स्त्रियों के लिए प्रेरणादायक बाइबिल सन्देश | सलोफाद की बेटियां

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नमस्कार दोस्तों आपका इस बाइबिल वाणी में स्वागत है आज हम पढेंगे स्त्रियों के लिए प्रेरणादायक बाइबिल सन्देश | सलोफाद की बेटियां

सलोफाद-की-बेटियां

यह घटना उस समय कि है जब इस्राएली लोग मिस्र देश से आजाद होकर 40 वर्षों तक जंगल (मरुभूमि) में भटकते रहे

और फिर जब वे वाचा के देश अर्थात कनान देश जहाँ दूध और मधु की धारा बहती थी मतलब बहुत ही उपजाऊ देश था

उसमें में प्रवेश करने ही वाले थे. उस समय वहां उनकी जनगणना की जाती है और यह निश्चय किया जाता है किस किस को

कौन कौन सी जमींन दी जाएगी. उस समय नियम के अनुसार केवल पुरुषों को या बेटों को ही जमीन से हिस्सा दिया जाता था.

स्त्रियों को या बेटियों को हिस्सा नहीं मिलता था. ऐसे समय में सलोफाद की पांच बेटियां जिनके नाम महला, नोवा, होग्ला,

मिलका, और तिर्सा थे वे बड़ा साहस दिखाती हुई एक मन होकर मण्डली के प्रधानो मतलब मूसा और अन्य अगुवों के सामने

जाकर अपनी बातें बहुत ही बुद्धिमानी के साथ रखती हैं. और अपनी विरासत की भूमि मांगती हैं. और प्रश्न करती हैं कि हमारा

पिता सलोफाद मर चूका है तो क्या हमें इसलिए विरासत नहीं मिलेगी क्योंकि हमारा कोई भाई नहीं है. या हमारे परिवार में कोई

पुरुष नहीं है. इस प्रश्न का उत्तर महान अगुवा मूसा के पास भी नहीं होता है. सारी मण्डली के सभी अगुवे चुप हो जाते हैं

…सन्नाटा छा जाता है किसी के पास कोई उत्तर नहीं होता. ऐसे समय में मूसा परमेश्वर के पास तम्बू में जाता है और प्रार्थना

करता है और परमेश्वर यहोवा मूसा को जवाब देते हैं. हाँ, वे बेटियां ठीक कहती हैं उनका हिस्सा उनको दे.

यहाँ बाइबिल में पहली बार किसी स्त्रियों ने न्याय मांगने का साहस दिखाया था. जिसे परमेश्वर ने अपनी पुस्तक में दर्ज करने का आदेश दिया.

और आज हम इसकी चर्चा कर रहे हैं. इस बात से हम सीखते हैं कि जिस प्रकार अन्याय करना बुरा है उसी प्रकार अन्याय सहना

या उसके खिलाफ आवाज न उठाना भी बुरा है. हमें अपने समाज में हो रही कुरूतियों के विरुद्ध आवाज अवश्य उठाना चाहिए.

चाहे आप एक स्त्री ही क्यों न हो…

इन पांच बहनों ने एक साथ मिलकर जो काम किया अपना हक़ माँगा वह एक परंपरा को चुनौती थी. और हम देखते हैं उसके

बाद नियम ही बदल गया. हम अपने भारत में भी देखते हैं. कहीं कहीं पर पुरानी रुढ़िवादी परंपरा चली आती है जिसके कारण

स्त्रियों को कमतर आँका जाता है. पुत्र और पुत्री के बीच भेदभाव किया जाता है. हमें परिवर्तन अपने घर से शुरू करना चाहिए.

परमेश्वर ने दोनों को एक समान माना है. कोई भेदभाव नहीं किया. तो हम क्यों करें. परमेश्वर के दास विलियम केरी ने भारत

की सती प्रथा को समाप्त करके भारत की स्त्रियों पर बड़ा उपकार किया है. लेकिन आज कुछ बदलाव हमें स्वयं ही करना होगा.

बहुत बार हमारे पास अच्छे विचार अच्छे आइडियास होते हैं लेकिन हम कदम नहीं बढाते जिसके कारण से हमारी परिस्थिति जस की तस रहती है.

कोई परिवर्तन दिखाई नहीं देता लेकिन इन बहनों ने अपने अधिकार के लिए परमेश्वर पर भरोसा करते हुए आगे बढ़ी और उसे प्राप्त भी किया.

और ऐसा करके उन्होंने न केवल नियम को बदल दिया बल्कि आने वाली पीढ़ी के लिए एक उत्तम मिशाल (आदर्श) भी कायम किया.

पाँचों बहनों ने मिलकर अपनी बात बुद्धिमानी के साथ रखी, जो एकता और शक्ति का प्रतीक है.

अपनी बात को सही समय में सही शब्दों के साथ सही व्यक्ति के सामने रखना ही बुद्धिमानी है. हमें भी अपनी बातों को सही

समय में और बुद्धि और विवेक के साथ रखनी चाहिए. सही समय में बोला गया शब्द ऐसा है जैसे चांदी की टोकरी में सोने का सेब. (नीतिवचन 25:11)

यह ऐतिहासिक कदम उन पांच बहनों के पूरे खानदान की प्रतिष्ठा को बचाया. बाइबिल में स्त्री अधिकारों की यह प्रथम कानूनी विजय है जिसे परमेश्वर ने भी मंजूरी दी थी.

और उनके इस अद्भुत कार्य का उल्लेख पवित्र शास्त्र बाइबिल में स्थान प्राप्त हुआ.

यह घटना हमें एक अद्भुत सत्य को उजागर करती है कि हमारा परमेश्वर केवल पुरुषों को नहीं बल्कि स्त्रियों को भी समान रूप से अधिकार और सम्मान प्रदान करता है.

उसके लिए दोनों बराबर हैं. आज भी हम देखते हैं सेवा क्षेत्र में हो या किसी अधिकार में केवल पुरुषों को ही प्रार्थमिकता दी जाती है लेकिन परमेश्वर की दृष्टि में ऐसा नहीं है.

जरुरी नहीं जो अब तक नहीं हुआ वो आगे भी नहीं होगा. जैसे उन पांच बेटियों ने अपने अधिकार की मांग की और उन्हें प्राप्त

हुई उसी प्रकार से यदि हम आज आत्मिक अधिकारों को परमेश्वर से मांगें तो वह हमें देने के लिए तैयार है. क्योंकि पवित्रशास्त्र

हमसे वायदा करता है कि जितनो ने उसे ग्रहण किया उसने उन्हें परमेश्वर की सन्तान होने का अधिकार दिया. (यूहन्ना 1:12)

इसका अर्थ है हम भी अपने वो अधिकार मांग सकते हैं जो परमेश्वर हमें देना चाहता है. हमें अब तक क्यों नहीं मिला क्योंकि

बाइबिल कहती है हमने माँगा नहीं इसलिए पाया नहीं. (याकूब 4:2-3)

आज हमारे देश में स्त्रियों को आत्मिक अगुवाई में उतना स्थान प्राप्त नहीं हैं लेकिन गलतियों की पुस्तक में परमेश्वर का वचन

हमसे कहता है अब न तो कोई पुरुष रहा और न स्त्री मतलब प्रभु की दृष्टि में सभी समान हैं. और सभी को समान रूप से

अधिकार प्राप्त है. यदि पुरुष भविष्यवाणी कर सकता है तो स्त्री भी भविष्यवाणी कर सकती हैं. और जो वरदान किसी पुरुष को

प्राप्त होते हैं वही वरदान स्त्रियाँ भी पाकर आशीषित रूप से आत्मिक अगुवाई कर सकती हैं.

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