इजराइल-का-इतिहास

इजराइल का इतिहास | हिंदी बाइबल स्टडी | History Of Israel Full Biblical Studies In Hindi (Part-1)

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इजराइल का इतिहास | हिंदी बाइबल स्टडी ( भाग 2 )

मिलापवाला तम्बू | Tent of Meeting (Tabernacle)

इस्राएल का इतिहास का भाग 1

परमेश्वर का लोगों से वाचा बाँधने के बाद मूसा फिर सिनै पर्वत पर चढ़ गया. वह चालीस दिन और चालीस रात यहोवा की उपस्थिति में रहा. इस समय यहोवा ने मूसा को पत्थर पर दस आज्ञाओं को लिखी हुई दो पाटियाएं दी (निर्गमन 31:18)

साथ ही परमेश्वर ने वहां मूसा को आदेश दिया कि एक तम्बू बनाया जाए जिसमें वह अपने लोगों के मध्य निवास कर सके. इस्राएलियों ने उस तम्बू को उसी रूप में बनाया जिस रूप में परमेश्वर ने उसे बनाने का निर्देश दिया था. उस तम्बू को मिलाप वाला तम्बू कहा जाता था.

वह तम्बू, यहोवा का तम्बू, यहोवा का भवन, साक्षी का तम्बू, निवास आदि नामों से भी जाना जाता था. (निर्गमन 29:42, 26:9 1 राजा 2:28 निर्गमन 23:19, 39:32, 9:15, 25:8)

उसकी बनावट इस प्रकार की थी, कि उसे सफलता पूर्वक जोड़ा या अलग किया जा सके ताकि उसे लाया ले जाया जा सके. इजरायली लोग उसे अपनी यात्रा में कनान ले गए तथा अपनी यात्रा के दौरान उसे अनेक बार स्थापित किए. बाद में इस तम्बू के स्थान में यरूशलेम का मन्दिर बनाया गया. (राजा सुलेमान के समय में)

मिलापवाले तम्बू के चारो ओर एक आंगन था, आंगन में दो वस्तुएं रहती थी. एक होमबलि की वेदी और दूसरा एक हौदी जिसमें याजक हाथ पाँव धोते थे. तम्बू के भीरत दो भाग थे. पहला भाग पवित्र स्थान कहलाता था, जिसमें तीन वस्तुएं रहती थीं.

एक सात दीपों वाला दीवट, पवित्ररोटी के लिए एक मेज, तथा धूप जलने के लिए एक वेदी, दूसरा भाग परमपवित्र स्थान था. या महापवित्र स्थान भी कहा जाता था. जिसको पवित्र स्थान से विभाजित करने के लिए एक पर्दा रहता था. महापवित्र के भीतर वाचा का सन्दुक रहता था.

पवित्र स्थान में केवल याजक लोग ही प्रवेश कर सकते थे. परम पवित्र स्थान में केवल महायाजक वर्ष में एक बार प्रवेश करते थे. जब वह अपने तथा लोगों के भूल-चूक के लिए क्षमा मांगने हेतु बलिपशु का वह प्रायश्चित के ढकने पर छिड़कता था.

प्रायश्चित का ढकना वह सजावटी ढक्कन था जो वाचा के सन्दूक के ऊपर रहता था और वह परमेश्वर के सिंहासन को दर्शाता था. इसको अनुग्रह का सिंहासन भी कहा जाता था. वाचा के सन्दूक में दस आज्ञाओं वाली पत्थर की पाटियाएं, मन्ना से भरा हुआ सोने का पात्र और हारून की छड़ी जिसमें फूल आ गए थे रखी थी. (पढ़े निर्गमन 25-27,30, निर्गमन 16:32-34, गिनती 17:1-10, मत्ती 27:50-51, इब्रा. 4:16, 9:1-10, 10:19)

मिलाप वाले तम्बू में दिन को बादल छाया रहता था, जो रात को आग सा दिखाई देता था. जब जब वह बादल तम्बू पर से उठ जाता, तब इस्राएली प्रस्थान करते थे, और जिस स्थान पर बादल ठहर जाता, वहीँ इजरायली अपने डेरे खड़े करते थे. (निर्गमन 9:15-23)

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इजरायल द्वारा वाचा को तोड़ना और वाचा की पुन: स्थापना

जब मूसा वाचा की पटियाओं को लेकर पर्वत से उतरा, तब उसने देखा कि लोगों ने अपने लिए एक बछड़े की मूर्ति बना ली थी. मूसा का क्रोध भड़क उठा और उसने पटियाओं को अपने हाथों से फ़ेंक दिया और वे नीचे गिर कर टूट गयीं . दस आज्ञाओं के आधार पर परमेश्वर ने जो वाचा इस्राएलियों से बाँधी थी, उस वाचा को लोगों ने बछड़े की मूर्ति बनाकर तोड़ दी थी.

इस प्रकार वे दण्ड के योग्य भी ठहरे. परन्तु मूसा के गिड़गिड़ाने के कारण परमेश्वर ने लोगों को पूरी तरह नाश नहीं किया. परन्तु जिन्होंने परमेश्वर के विरुद्ध पाप किया उनको दण्ड मिला. परमेश्वर ने अपनी वाचा को फिर से स्थापित किया (निर्गमन 32-34) तक उसने फिर से पत्थर की दो पटियाओं पर अपने वचन लिखकर मूसा को दी.

कुड़कुड़ाने वालों का नाश

इस्राएली पारण के जंगल में (कादेश बर्ने) पहुंचे. तब यहोवा के कहने के अनुसार मूसा ने इस्राएलियों के बारह प्रमुखों को कनान देश का भेद लेने के लिए भेजा. वे देश का भेद लेकर चालीस दिन बाद लौटे. उन्होंने कहा,कि कनान देश सच में एक समृद्ध देश है, लेकिन वहां के लोग शक्तिशाली है और इस्राएली उन पर विजय नहीं कर सकते. (गिनती 13:1-33)

यह बात सुनकर समस्त मंडली मूसा और हारून के खिलाफ कुड़कुड़ाने लगी. उन्होंने कहा कि यहोवा कनान देश में ले जाकर उन्हें मरवाना चाहता था. और अच्छा होता कि वे मिश्र देश में यह उस जंगल में ही मर जाते. उन्होंने यह भी कहा कि उनके बाल बच्चे लूट लिए जायेंगे. लोगों ने मिश्र वापस जाने के लिए अपना एक अगुवा नियुक्त करने को भी सोचा (गिनती 14:1-4)

यहोवा का क्रोध भड़क उठा. लेकिन मूसा की विनती के कारण लोगों को तुरंत नाश नहीं किया गया, यद्यपि भेद लेने वालों को तुरंत नाश नहीं किया गया, इस्राएलियों को कुड़कुड़ाने के लिए उभारा था, यहोवा ने उन्हें नाश किया. यहोवा ने अपने जीवन की शपथ खाई कि जो लोग उसके खिलाफ कुड़कुड़ाए, उनमें से एक भी कनान देश में नहीं पहुंचेंगे. (गिनती 14:28-35) जो लोग भेद लेने के लिए गए थे, उनमें से केवल कालेब और यहोशु ही वहां पहुंचेंगे जिनहोंने कनान देश के विषय में योह्वा के पक्ष में बातें की थीं (गिनती 14:6-38, 18:30)

इस्राएलियों को कनान में पहुँचने से पहले चालीस साल जंगल में वास करना पड़ा. जो लोग यहोवा के विरुद्ध कुड़कुड़ाए, वे सब चालीस वर्ष के समय में उसी जंगल में मर गए. लेकिन उनके बाल बच्चे तथा कालेब और यहोशु कनान देश में चालीस वर्ष बाद पहुँच पाए.

हारून और मूसा की मृत्यु और यहोशु का चुना जाना.

इस्राएली फिर से कादेश में पहुचे. वहां उनको पानी नहीं मिला. इस कारण वे मूसा से झगड़ने लगे. मूसा और हारून ने यहोवा से प्रार्थना की. यहोवा ने मूसा से कहा कि हारून की लाठी जिसमें फूल फल आ गए थे, उठाकर चट्टान से बातें करें कि वह अपना पानी दे. मूसा और हारून ने मंडली को इकट्ठा किया और मूसा ने अपने क्रोध में चट्टान पर दो बार लाठी से मारा.

चट्टान से पानी फूट निकला. लेकिन यहोवा इस बात से प्रसन्न नहीं हुआ और इस कारण से उसने कहा कि मूसा और हारून कनान देश में नहीं पहुँच पायेंगे. उस पानी के सोते का नाम “मरीबा” पड़ा जिसका अर्थ है. “झगड़ा” (गनती 20:2-13)

इस्राएलियों के कनान पहुँचने से पहले हारून और मूसा की मृत्यु हुई. होर पर्वत पर हारून की मृत्यु हुई और यहोवा के कहने के अनुसार मूसा ने हारून के स्थान पर उसके पुत्र एलीआजर को नियुक्त किया (गिनती 20:22-29). मूसा की मृत्यु भी हुई.

लेकिन उससे पहले नून के पुत्र यहोशु को मूसा के स्थान पर अगुवा बना दिया गया. यहोवा ने मूसा को नबी पर्वत से कनान देश देखने का अवसर दिया. उसके बाद मूसा की मृत्यु उसी पर्वत पर हुई. यहोवा ने मूसा को दफनाया. लेकिन आज तक कोई नहीं जानता कि वह कब्र कहाँ है. (गिनती 27:12-23, व्यव32:48, 52 34:1-9)

रूबेनियों, गादियों और मनश्शे के आधे गोत्र के लिए भूमि.

मूसा की मृत्यु से पहले इस्राएलियों ने दो प्रमुख राजाओं को हराकर उनके देशों पर कब्ज़ा कर लिया था. वे राजा थे हेराबोन का राजा सिहोन और बाशान का राजा ओग. रुबेनियों, गादियों और मनश्शे के आधे गोत्र को उनकी विनती के अनुसार वह भूमि उनका निज भाग होने के लिए दे दी गयी. परन्तु जब तक कनान देश पर इस्राएलियों ने अधिकार जमा न लिया. तब तक इन गोत्रों के योद्धा इस्राएलियों के आगे आगे चलते रहे. (गिनती 32:1-42, व्यव2:26-3:17)

यहोशु के नेतृत्त्व में यरदन नदी को पार करना (यहोशु 31:1-4:24)

यहोवा ने यहोशु से वायदा किया कि जैसा वह मूसा के साथ रहा, वैसे ही यहोशु के साथ भी ठहरेगा. कनान देश को जीतने के लिए इस्राएलियो को पहले यरदन नदी को पार करने के लिए यहोवा के कहने के अनुसार याजक लोग वाचा का सन्दूक लेकर आगे आगे चले. उनके पैर जल के तट पर पडे. तब यरदन नदी की जल धारा थम गई और लोग सूखी भूमि से होकर यरदन पार किये.

इस घटना की याद में इस्राएलियों ने यरदन नदी से बाहर पत्थर लिए और यहोशु ने उनको गिलगाल में खड़ा किया (यहो 4:19-20) यरदन नदी के बीच में भी जहाँ पर याजक खड़े थे. यहोशु ने बारह पत्थर खड़े कर दिए (यहो 4:9 ) जिस दिन इस्राएली लोग यरदन पर करके कनान देश पहुंचे. उस दिन से उन्हें मन्ना मिलना रुक गया (यहोशु 5:12).

यरीहो का पतन और कनान पर अधिकार

इस्राएलियों के भय से यरीहो दृढ़ता से बंद रहता था. (यहो6:1) कोई भीतर बाहर आने जाने नहीं पाटा था. यरीहो को जीतने के लिए यहोवा के आदेश के अनुसार इस्राएली सेना शहरपनाह की चारो ओर घूमे. वाचा का सन्दूक और उसके आगे तुरही लेकर याजक लोग चले. बाकी सेना वाचा के सन्दूक के पीछे चेल .ऐसे सात दिन वे सात बार नगर को घूमे और फिर उनहोंने जय जयकार किया और यरीहो की शहरपनाह नींव से गिर पड़ी. इसके पश्चात इस्राएलियों ने पुरे यरीहो नगर को नाश कर डाला. (यहोशु 6:20)

इसके पश्चात यहोशु के नेतृत्त्व में इस्राएलियों ने बहुत कनानी राजाओं को हराकर उनके देशों को अपने अधिकार में कर लिया (यहोशु 8:1-12,24) फिर यहोवा की आज्ञा के अनुसार इस्राएल के गोत्रों के बीच कनान देश का बटवारा चिट्टी डालकर किया गया( यहोशु 14:1-21:45)

लेकिन लेवी के गोत्र के लिए इस प्रकार कोई भाग नहीं दिया गया. उनके लिए यहोवा ही अपना भाग ठहरा(यहोशु 13:33, गिनती 18:2, व्यव18:2) लेवियों को यहोवा के आज्ञानुसार इस्राएलियों के सारे गोत्रो के निज भाग से अड़तालीस नगर और उनकी चराईयां दी गई (यहो 21:1-42, गिनती 35:1-8, इतिहास 6:54-81)

इस प्रकार यहोवा ने इस्राएलियों को वह सारा देश दिया, जिसके विषय में उसने उनके पूर्वजों से शपथ खायी थी. और वे उसके अधिकारी होकर उनमें बस गए. (यहो 21:43), फिर भी यहोशु की मृत्यु के बाद भी कुछ कनानी वहां बचे थे जिनको यहोवा धीरे धीरे उस देश से मिटाने वाला था. (व्यव7:22, न्यायियों 3:1-5, यहोशु 23:4,5)

(4) न्यायियों का समय

प्रष्टभूमि :- यहोशु की मृत्यु के बाद भी कुछ कनानी राजा बचे थे जिनको इस्राएलियूं ने नहीं हराया था. इसके कुछ कारण इस प्रकार थे.

(a) यहोवा यह परखना चाहता था कि क्या इस्राएली उसकी आज्ञाओं को मानेंगे या नहीं. (न्या. 3:1) यहोवा ने मूसा और यहोशु के द्वारा इस्राएलियों को यह आज्ञा दी थी कि जा वे कनान देश में पहुंचेगे तब जिन राजाओं को यहोवा उनके हाथ में देगा, उनको और उनके पूरे देश को पूरी तरह नाश करना, और उनकी मूर्तियों को भी नाश करना(व्यव7:24-26).

उन जातियों से किसी भी प्रकार का बाँधने से भी इस्राएलियों को मना किया गया था. (यहोशु 23:12) कनान देश के सारे राजाओं को जीतने के लिए और उस देश में बने रहने के लिए ये सब बातें और मूसा के द्वारा दी गई व्यवस्थाओं को मानना बहुत जरूरी था. यदि वे उनका पालन करेंगे तो आशीष और नहीं करेंगे तो शाप पाते (यहोशु 23:4-16, व्यव7:1-26, 28:1-29:28)

(b) इस्राएल की नई पीढ़ी को यहोवा युद्ध सिखाना चाहता था (न्या 3:1) और

(c) यहोवा वन पशुओं के खतरों से अपने लोगों को बचाना चाहता था (व्यव 7:22)

न्यायियों का नियुक्त किया जाना

इस्राएली परमेश्वर की आज्ञाओं के प्रति पूर्ण रूप से आज्ञाकारी नहीं रहे और कनानियों को पूर्णत: नष्ट करने में विफल हुए. यहोशु और शेष लोग जिन्होंने यहोवा के अद्भुत कामों को देखे थे, जब तक जीवित रहे, तब तक इस्राएली लोग यहोवा की आज्ञाओं को मानकर चले. लेकिन उनके पश्चात एक ऐसी पीढ़ी आई जो यहोवा को नहीं जानते थे.

उन्होंने यहोवा के विरुद्ध पाप किया और वे अन्यजातियों को देवताओं की उपासना करने लगे. यहोवा उन पर क्रोधित हुआ और उसने उन अन्यजातियों के द्वारा इस्राएलियों को दंड दिया. इस्राएलियों ने अपनी पीड़ा में यहोवा को दोहाई दी. इस पराक्र कई बार इस्राएलियों के जीवन में हुआ. जब जब वे यहोवा की दोहाई देते थे, तब तब यहोवा को उन पर तरस आता था.

और उनके बचाव के बाद वह एक छुटकारा देने वाले व्यक्ति को, जिनको न्यायी कहा, गया खड़ा करता था. लेकिन हर एक न्यायी के मरने के बाद इस्राएली फिर से पराए देवताओं की उपासना करने लगते थे. इन छुटकारा देने वालों को न्यायी इसलिए कहा जाता था कि इस्राएलियों को शत्रुओं से छुटकारा दिलाने के द्वारा वे परमेश्वर के न्याय को कार्यान्वित करते थे. अन्य न्यायी जो युद्ध प्रिय कम थे इस्राएलियों को उनके दैनिक मामलों में परमेश्वर की व्यवस्था अनुसार मार्गदर्शन करने के द्वारा परमेश्वर के न्याय को कार्यान्वित करते थे.

इस प्रकार यहोवा ने इस्राएलियों के लिए कुल 14 न्यायियों को नियुक्त किया, जिनके नाम इस प्रकार थे. ओलिएल, एहुद, शमगर, दबोरा, गिदोन, तोला, माईर, पिता, इब्सान, एलोन, अब्दोन, शिमशोन, एली, शमुएल. ये सब एक के बाद एक न्यायी नहीं बने.

परमेश्वर ने उन्हें भिन्न-भिन्न स्थानों पर भिन्न भिन्न परिस्थितियों में खड़ा किया था. ऐसा भी सम्भव है कि एक ही समय में विभिन्न स्थानों में न्यायी रहे होगें. उदाहरण के लिए यिपतह और अम्मोनियों की कथाएँ उसी एक समय की हो सकती हैं जैसे की शिमशोन और पलिस्तियों की कथाएँ हैं (न्यायियों 10:7, 8, 11:5, 13:1)

(5) राजाओं का समय

भाग 1 शाउल से लेकर शमुएल :- शाउल इस्राएलियों का पहला राजा. इस्रालियों ने देखा कि उनके सभी शत्रुओं के अपने -अपने राजा थे और उन्होंने यह सोचा कि इजराइलमें स्थायी स्थिति उत्पन्न होने के लिए न्यायियों की शासन व्यवस्था को हटाकर अन्य देशो के समान राजा का सासन स्थापित करना होगा, उन्होंने शमुएल से माँगा कि उनके लिए सब जातियों के समान राजा नियुक्त किया जाए. (शमुएल 3:1-9)

विशेषकर वे एक ऐसा व्यक्ति चाहते थे जो एक प्रभावशाली एवं अगुवा हो (1शमुएल 8:19-20) परन्तु इस्राएलियों के स्वयं यहोवा राजा था और उनका अपना राजा बनाने का मतलब था यहोवा परमेश्वर के राजा होने का तिरस्कार करना. तथा यहोवा के कहने के अनुसार शमुएल ने बिन्यामीन गोत्र के शाउल को इस्राएलियों का राजा नियुक्त किया गया. (1 शमुएल 8:1-8, 19:22, 10:20-24, 11:14-15)

शाउल (इसराएल के पहले राजा) की अनाज्ञाकारिता

शाउल इजरायल का पहला राजा था परन्तु उसकी अनाज्ञाकारिता के कारण उसका राज्य बना नहीं रहा. इस्राएलियों के खतरनाक शत्रुओं में से एक पलिस्ती इस्राएल से युद्ध करने के लिए इकत्रित हुए. शमुएल ने शाउल से कहा था कि बलि चढ़ाने हेतु युद्ध के लिए एवं परमेश्वर का निर्देश सुनाने के लिए वह शाउल के पास आएगा.

परन्तु जब नियुक्त समय में बली चढ़ाने के लिए शमुएल नहीं आया, तब शाउल पलिस्तियों के आक्रमण के डर से अपने आप ही बली को चढ़ाया. शाउल की इस अनाज्ञाकारिता के कारण शमुएल के द्वारा यहोवा ने यह कहा कि शाउल का राज्य बना नहीं रहेगा. और उसके स्थान पर यहोवा ने अपने मन के अनुसार एक व्यक्ति को खोज लिया है (1 शमुएल 13:5-19)

शाउल ने फिर से यहोवा से अनाज्ञाकारिता की अमालेकियों से इस्राएल की पुरानी शत्रुता थी. यहोवा ने उनको पूरी तौर से नाश करने की शपथ खायी. (निर्गमन 17:8-16, व्यव25:17-19) यहोवा ने अमालेकियों को शाउल के हाथ में यह कह कर दे दिया कि उनको पूरी तरह मिटा डालना है. (1 शमुएल 15:1-3)

लेकिन शाउल ने अमालेकियों के राजा को नहीं मारा. शाउल के लोगों ने अमालेकियों के सर्वोत्तम भेड़ बकरियों, गए बैल आदि अच्छी बस्तुओं को यहोवा के नाम में बचा लिया (1 शमुएल 15:9,21) यहोवा शाउल को राजा बनाकर खेदित हुआ क्योंकि उसने अनाज्ञाकारिता की (1शमुएल 15:11)

इस्राएल का इतिहास का भाग 1


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2 thoughts on “इजराइल का इतिहास | हिंदी बाइबल स्टडी | History Of Israel Full Biblical Studies In Hindi (Part-1)”

  1. Rev.sachin sonkar

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