दोस्तों आज हम एक विशेष विषय पर चर्चा करेंगे जो है, परमेश्वर पर निर्भरता | परमेश्वर के उद्देश्य क्या हैं. यह बाइबिल सन्देश पढ़कर आप अवश्य आशीष पायेंगे.
परमेश्वर पर निर्भरता | परमेश्वर के उद्देश्य क्या हैं.

यह कौन है जो अपने प्रेमी पर टेक लगाये हुए जंगल से चली आती है? (श्रेष्ठगीत 8:5 a)
यह वचन एक सवाल से शुरू होता है, कि यह कौन है …जो अपने प्रेमी पर टेक लगाए हुए जंगल से चली आती है.
तो इसका उत्तर है यह मैं हूँ यह आप हैं…जो अपने प्रेमी पर टेक लगाए हुए हैं तो वो प्रेमी हमारा प्रभु यीशु है.
कलीसिया को अपने प्रिय यीशु पर अपनी निर्भरता रखना होगा.
टेक लगाने का अर्थ –
टेक लगाने का मतलब है, सहारा लेना या पूरी रीती से निर्भर होना.
बाइबिल में अनेक स्थानों में हम पाते हैं जहाँ परमेश्वर हमें आदेश देता है कि हम अपनी बुद्धि का भरोसा न करें,
बल्कि सम्पूर्ण मन से परमेश्वर पर ही भरोसा करें. तब वह हमारे लिए सीधा मार्ग निकालेंगे.
जंगल का अर्थ –
जंगल एक ऐसा स्थान है जो कमी घटी को दिखाता है, असमंजस को दिखाता, जहाँ हमारे जीवन में कोई रास्ता नहीं दिखता या कुछ नहीं सूझता वो स्थान जंगल को इंगित करता है.
चाहे कोई क्यों न हो इस दुनिया में हर एक व्यक्ति को इस जंगल जैसी परिस्थिती से होकर अवश्य गुजरना पड़ता है.
जंगल एक परीक्षा को भी दिखाता है. जब हम उस जंगल से बाहर निकलते हैं तो परिपक्व (mature) होकर बाहर निकलते हैं.
और स्मरण रख कि तेरा परमेश्वर यहोवा उन चालीस वर्षों में तुझे सारे जंगल के मार्ग में से इसलिये ले आया है, कि वह तुझे नम्र बनाए, और तेरी परीक्षा करके यह जान ले कि तेरे मन में क्या क्या है, और कि तू उसकी आज्ञाओं का पालन करेगा वा नहीं. उसने तुझ को नम्र बनाया, और भूखा भी होने दिया, फिर वह मन्ना, जिसे न तू और न तेरे पुरखा ही जानते थे, वही तुझ को खिलाया; इसलिये कि वह तुझ को सिखाए कि मनुष्य केवल रोटी ही से नहीं जीवित रहता, परन्तु जो जो वचन यहोवा के मुंह से निकलते हैं उन ही से वह जीवित रहता है. (व्यवस्थाविवरण 8:2-3)
उपरोक्त बेहतरीन वचन हमें सिखाता है, कि इस्राएलियों को मिस्र से आजाद कराकर परमेश्वर ने जंगल में लेकर आया और चाहा कि वे नम्र बन जाएं.
उनके पास घमंड करने के लिए कुछ भी नहीं था लेकिन फिर भी वे नम्र नहीं थे. यही कारण है कि चालीस दिनों की यात्रा उनके लिए चालीस साल की हो गई.
वे लोग जंगल में ही भटकते रहे. हालाकि परमेश्वर उनके साथ था उनके लिए प्रतिदिन चमत्कार हो रहे थे.
समुद्र दो भाग होकर रास्ता बनाया, आग का खंबा बनकर परमेश्वर ने उन्हें भयंकर ठंड से बचाया,
दिन को बादल का छाया बनकर उनकी रक्षा किया उन्हें भूखा भी होने दिया ताकि फिर वो मन्ना खिलाये जो उन्होंने
और उनके पुरखाओ ने भी कभी देखा नहीं था और न उसके विषय में सुना था.
देखो परमेश्वर हमारे जीवन में ऐसी ऐसी आशीषें और बरकते देना चाहते हैं जो हमने कभी कल्पना भी नहीं की थी और न हमारे माता पिता ने हमारे विषय में कभी सोचा था.
लेकिन उसके लिए वह केवल एक ही चीज चाहता है कि हम नम्र होकर परमेश्वर के आज्ञाकारी बनें.
उपरोक्त वचन को ध्यान से पढ़ें. उसने इस्राएलियों को लगातार सिखाता रहा.
उस जंगल में न तो कोई मेघा बाजार था, न कोई दूकान या सुपर मॉल लेकिन उस जंगल में उनकी सभी जरूरतें पूरी हो रही थी.
उन्हें कपडे खरीदने की जरूरत नहीं पड़ी क्योंकि उनके कपडे और जूते फटे ही नहीं और न ही पुराने हुए.
उन्हें कोई खाना बनाना नहीं पड़ता था उन्हें स्वर्ग से पका पकाया भोजन प्राप्त होता था. चट्टान से पानी मिल रहा था जो असंभव है वो उनके लिए संभव हो रहा था.
और उन्हें एक बहुत धन्य आशा थी कि अपने देश कनान में जो कि दूध और मधु की धारा का देश है अपना स्थान मिलेगा.
इसके बावजूद वे लोग नम्र नहीं हो रहे थे. उनका यह जंगल की परीक्षा को पास करना पूरी रीती से उनके उपर निर्भर था.
जितनी जल्दी वे नम्र हो जायेंगे और आज्ञाकारी हो जायेंगे वे वाचा के देश कनान में प्रवेश कर पायेंगे.
परमेश्वर का हमारे जीवन से उद्देश्य क्या है?
यह जितना उनके विषय में सत्य है उतना ही आज हमारे विषय में भी सत्य है. यदि हम आज परमेश्वर के सम्मुख नम्र हो जायेंगे
तो उतनी ही शीघ्रता से परमेश्वर की स्वर्गीय आशीषों के वारिस हो जायेंगे हमारे रुके काम रुकी आशिशें रुकी बरकते हम पर प्रगट हो जायेंगी.
स्वर्ग हमारे उपर खुल जाएगा. परमेश्वर नम्र लोगों पर अनुग्रह करता है लेकिन घमंडियों का सामना करता है. (1 पतरस 5:5)
इसलिये देखो, मैं उसे मोहित कर के जंगल में ले जाऊंगा, और वहां उस से शान्ति की बातें कहूंगा. और वहीं मैं उसको दाख की बारियां दूंगा, और आकोर की तराई को आशा का द्वार कर दूंगा …(होशे 2:14-15)
यहाँ परमेश्वर का वचन कह रहा है, कि कई बार परमेश्वर हमें जान बूझ कर जंगल के जैसी परिस्थिति में लेकर आता है
ताकि वह हमें वहां जंगल में दाख की बारियाँ (एक बारी नहीं बल्कि बहुत सी अंगूर के बगान) हमें देना चाहता है.
देखिये जंगल में डर है जानवर हैं, असमंजस है, भटकाव है, लेकिन हमारा परमेश्वर वहीँ हमें सफलता भी देगा हमारे लिए आशीषों के दरवाजे भी खोलेगा…
Conclusion | तो आज मैं क्या करूँ ?
यदि आप आज जंगल के जैसी परिस्थिति से होकर गुजर रहे हैं तो यह वचन परमेश्वर की ओर से आपके लिए है,
प्रभु ने चाहा है कि आप यह वचन को यहाँ तक पढ़ें और आज निर्णय लें कि आपको वचन के अनुसार क्या करना है.
यदि हम इस जंगल के भटकाव से बचना चाहते हैं तो पूरी रीती से परमेश्वर पर निर्भरता लाना होगा.
जब हम अपने प्रिय पर टेक लगाते हैं वो हमारा भटकाव रोक देता है और उस जंगल से हम उस पर टेक लगाए हुए बाहर आ जाते हैं.
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