दोस्तों आज हम देखेंगे बाइबिल के अनुसार मसीही परिवार | Bible define a Christian Family
बाइबिल के अनुसार मसीही परिवार
बाइबिल के अनुसार एक मसीही परिवार की परिभाषा :
एक अच्चा मसीही परिवार वह परिवार है जो बाइबिल के सिद्धांतो के अनुसार चलता है जिसका प्रत्येक सदस्य परमेश्वर प्रदान अपने कर्तव्य को समझता है.
परिवार एक ऐसी संस्था या प्रतिष्ठान नहीं है जिसका ढांचा मनुष्य द्वारा बनाया गया है. इसकी रचना परमेश्वर ने की थी तथा मनुष्य को इसके भंडारीपन की जिम्मेदारी दी गई है.
बाइबिल आधारित एक परिवार में ये लोग गिने जाते हैं. एक पुरुष, एक स्त्री मतलब उसकी पत्नी और उनके बच्चे या गोद लिए हुए बच्चे.
विस्तारित परिवार में खून के रिश्तेदार या शादी के द्वारा जो रिश्तेदार बने वे लोग ठाठ दादा-दादी नाना नानी भतीजा भतीजी चचेरे ममेरे फुफेरे भाई बहन.
एवं अंकल आंटी आते हैं. परिवार इकाई का एक मूलभूत सिद्धांत यह है कि प्रत्येक सदस्य को जीवन भर परिवार के प्रति समर्पित रहना है, वह समर्पण परमेश्वर की और से ठहराया गया है.
हमारी संस्कृति की धरोहर को थामें रहने की जिम्मेदारी पति और पत्नी दोनों की है. यद्यपि हमारे समाज में तलाक बड़ी आसानी से ले लिया जाता है तथा स्वीकार्य भी जो जाता है.
किन्तु परमेश्वर तलाक से घरना करता है (मलाकी 2:16) अन्यापूर्ण तलाक परमेश्वर की दृष्टि में महान अन्याय है, क्रूरता व हत्या समान है.
इफिसियों 5:22-26 में पति और पत्नी के लिए कुछ निर्देशों को बताया गया है जिनका कि दोनों के द्वारा एक अच्छे परिवार में पालन किया जाना चाहिए.
पति को अपनी पत्नी को इस प्रकार प्रेमम करना चाहिए, जैसा कि मसीह ने कलीसिया के प्रेम किया, तथा पत्नी को अपने पति का आदर करना चाहिए. तथा स्वेच्छापूर्वक परिवार के मुखिय को समर्पित करना चाहिए.
परिवार | Family
बाइबिल में परिवार की धारण बहुत महत्वपूर्ण है शारीरीक तथा ध्र्मिविज्ञान अर्थ के आधार पर. बाइबिल में आरम्भ ही से हम परिवार की धारणा को पाते हैं.
उत्पति 1:28 में हम पढ़ते हैं कि ‘परमेश्वर ने आदम और हव्वा को आशीष दी और उनसे कहा, फूलों फलूं और प्रित्व्ही में भर जाओ.
पृथ्वी को अपने वश में कर लो. समुद्र की मछलियों, आकाश के पक्षियों और पृथ्वी पर रेंगने वाले जन्तुओं पर अधिकार रखों.
सृष्टि को बनाने के पीछे परेम्श्व्र का यही उद्देश्य था कि स्त्री और पुरुष विवाह करें और अपने लिए सन्तान पैदा करे.
विवाह के द्वारा स्त्री और पुरुष एक तन बन जाते है और वे फिर अपनी संतानों के द्वारा एक परिवार बन जाते हैं जो कि मानव समाज का एक आवश्यक भाग है.
हम यह भी पाते हैं आरंभ में परिवार के सदस्यों की यह जिम्मेदारी भी थी कि वे एक दूसरे की देखभाल व् चिंता करें.
जब परमेश्वर ने कैन से पूछ, “तुम्हारा भाई हाबिल कहाँ है? तब कैन ने एक नकारात्मक उत्तर दिया, “क्या मैं अपने भाई का रखवाला हूँ.
इस का अर्थ यह हुआ कि कैन का अपने भाई हाबिल का और हाबिल को कैन का रखवाला होना चाहिए था.
कैन के द्वारा की गई हत्या का मानवता के विरोध में किया गया अपराध का मामला तो था ही, बल्कि एक बहुत घिनौना अपराध भी था क्योंकि अपने ही परिवार के किसी सदस्य की हत्या का पहला मामला था.
बाइबिल में लोगों और परिवारों को अधिक सामजिक मूल्य प्रदान किया गया है. यह सब जानते हैं कि पचाती देशों में बाक़ी देशों से अधिक अविवाहित लोग जीवन व्यतीत करते हैं.
परन्तु इसके मुकाबले मध्यपूर्वी देशों में परिवार को ज्यादा महत्व दिया जाता है. जब परेम्श्व्र ने नूह को जल प्रलय से बचाया था तब परमेश्वर ने एक व्यक्ति विशेष को नहीं बचाया बल्कि पूरे परिवार को भी बचाया.
उत्पत्ति 6:18 में जब परमेश्वर ने अब्राहम को बुलाया, तब उसके साथ उसके परिवार को भी बुलाया. (उत्पति 12:4-5).
इब्राहिम को दी गए वाचा का चिन्ह खतना, परिवार में जन्म लिए हर एक पुरुष सदस्य के लिए था, चाहे वे दास भी हों, (उत्पति 17:12-13)
दूसरे शब्दों में अब्राहम के साथ परेम्श्व्र की वाचा पारिवारिक या कुटूम्बीय थी न कि व्यक्तिगत. परिवार के महत्व को मूसा की व्यवस्था में भी देखा जा सकता है.
उदाहरण के तुअर पर दस आज्ञाओं में से दो परिवार से सम्बन्धित हैं.
पांचवी आज्ञा – “अपने माता पिता का आदर करना” जिसका अर्थ है कि परिवार के मामलों में माता-पिता का आदर को पूरा अधिकार दिया जाए.”
और सातवी आज्ञा “तू व्यभिचार न करना” विवाह की पवित्रता को बचाता है.
इन्हीं दो आज्ञाओं में से मूसा की व्यवस्था के एनी निर्देशों का उद्गम होता है. जी कि विवाह और परिवार को नाश होने से बचाने में सहायक है.
परमेश्वर के लिए परिवार के स्वास्थ्य का इतना महत्व था कि इसे इस्राएल की वाचा में विधिव्द्ध या वर्गीकृत किया गया है. यह विषय केवल पुराने नियम में ही नहीं बताया गया है.
बल्कि नए नियम में ऐसे नियमों और प्रतिबंधों को बताया गया है. प्रभु यीशु मसीह ने भी इस बात को बताया कि एक मसीही परिवार का रूप कैसा होना चाहिए, जब उसने यह दो आज्ञाएं दी.
बच्चों अपने माता-पिता की आज्ञा मानो और माता-पिता अपने बच्चों को रिस मत दिलाओ. (इफिसियों 6:14, कुलु. 3:20-21)
इसके अलावा भी हम नए नियम में विवाह की धारणा के सन्दर्भ में परिवार के महत्व को देखते हैं, उद्धार पाने की प्रक्रिया में,
प्रेरितों के काम की पुस्तक में पौलुस की दूसरी मिशनरी यात्रा के दौरान जब एक व्यक्ति के उद्धार प्राप्त करने के अवसर पर पूरे परिवार ने उद्धार पाया.
प्रेरितों के काम 16:11-15, 31-33) यहाँ यह बताने की कोशिश नहीं की जा रही है कि बच्चों का बप्तिस्मा उचित है
या बप्तिस्में के समय ही नए जन्म का अनुभव हो जाता है, किन्तु इस बात पर जोर देना बहुत ही रुचिकर बात है
कि जिस प्रकार पुराने नियम में वाचा का चिन्ह (खतना) पूरे परिवार पर लागू होता था उसी प्रकार नए नियम की वाचा का चिन्ह (बप्तिस्मा) पूरे परिवार पर लागू होता है.
हम यहाँ तर्क दे सकते हैं, कि जब परमेश्वर किसी एक व्यक्ति को उद्धार देते हैं तो उनकी इच्छा यही होती है कि पूरा परिवार उद्धार पाए.
स्पष्ट रूप से परमेश्वर की इच्छा इनती ही नहीं कि अलग अलग व्यक्तिओं का व्यक्तिगत रूप से उनका उद्धार करें, बल्कि पूरे घराने का उद्धार.
1कुरु. 7 में बताया गया है कि विश्वास नहीं करने वाला पति, अपनी पत्नी के विश्वास करने के द्वारा बच जाएगा अर्थात अन्य बातों के मध्य में, अविश्वासी पति या पत्नी विश्वासी पति या पत्नी की गवाही से बच जाएगा.
वाचा के सन्दर्भ में देखने पर हमें यह मालुम पड़ता है कि वाचा के समाज में सदस्यता व्यक्तिगत नहीं बल्कि सामुदायिक होती है.
जब लूदिया और जेल के दरोगा ने उद्धार पाया, उनके परिवार ने भी बप्तिस्मा लिया था, तथा वे कलीसियाई समुदाय के भाग बन गए थे.
हम जानते हैं कि बप्तिस्मा हमें उद्धार प्रदान नहीं करता, उद्धार हमें अनुग्रह के द्वारा विश्वास करने से प्राप्त होता है. (इफिसियों 2:8-9).
हम यह मान सकते हैं, कि सबने उद्धार नहीं पाया, किन्तु सभी विश्वासियों के समुदाय में शामिल हो गए थे. लुदिया तथा दरोगा के उद्धार के कारण परिवार का विभाजन नहीं हुआ.
हम जानते हैं कि उद्धार के कारण, एक परिवार में तनाव जरुर आ सकता है किन्तु परमेश्वर की मनसा यह नहीं कि उद्धार के कारण एक परिवार में विभाजन हो.
लुदिया तथा दरोगा को यह आदेश नहीं दिया गया था. कि वे अपने अपने परिवारों से बाहर आ जाए बल्कि वाचा का चिन्ह बप्तिस्मा परिअर के सभी लोगों पर लागू था.
परिवार पवित्र किए गए थे. अलग किए गए थे. तथा विश्वासियों के समाज में बुलाए गए थे. आइये हम देखें की परिवार के विषय में धर्मविज्ञान की धारणा क्या है?
यीशु मसीह ने पृथ्वी पर अपनी तीन साल की सेवकाई में इस बात पर कुछ मुख्य बातें कहीं हैं कि परिवार के सदस्य होने का अर्थ क्या है?
मत्ती 12:46-50 वचन 46- जब वह भ्हिद से बाते कर ही रहा था, तो देखो, उस की माता और भाई बाहर खड़े थे, और उस से बातें करना चाहते थे.
v.48 यह सुन उस ने कहने वाले को उत्तर दिया ,” कौन है मेरी माता? 49- और कौन है मेरे भाई? और अपने चेलों की और अपना हाथ बाधा कर कहा, देखों, मेरी माता और मेरे भाई ये हैं.
50- क्योंकि जो कोई मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चले, वाही मेरा भाई और बहिन और माता है. अब हमें कुछ गलत धारणाओं को अपने मन से दूर करने की जरुरत है.
इन वचनों के आधार पर यीशु यह नहीं कह रहे कि जैविक (biological) परिवार महत्वपूर्ण नहीं हैं.
प्रभु माता या भाई की उपेक्षा नहीं कर रहे हैं. बल्कि यह कहना चाह रहे हैं कि परमेश्वर स्वर्ग के राज्य में सबसे महत्वपूर्ण पारिवारिक सम्बद्ध आत्मिक संबंध है शारीरिक नहीं.
इस सच्चाई को यूहन्ना के सुसमाचार में और भी स्पष्ट किया गया, जब कि यूहन्ना ने वहां इस प्रकार से बता यूहन्ना 1:12,13
“परन्तु जितनो ने उसे ग्रहण किया, उस ने उन्हें परमेश्वर के सन्तान होने का अधिकार दिया, अर्थात उन्हें जो उसके नाम पर विश्वास रखते हैं.
13 वे न तो लोहू से, न शरीर की इच्छा से, न मनुष्य की इच्छा से, परन्तु परमेश्वर से उत्पन्न हुए हैं. इस प्रकार इन दोनों घरानो में तुलना स्पष्ट है.
जब हम शारीरिक रूप से पैदा होती हैं, हम एक संसारिक परिवार में पैदा होते हैं, किन्तु जब हमारा नया जन्म होता है तब हम एक आत्मिक परिवार में पैदा होते हैं.
पौलुस के शब्दों में परमेश्वर के परिवार में हमें गोद लिया गया है. रोमियो 8:15 जब हमें परमेश्वर के आत्मिक परिवार में जिसे चर्च कहते हैं,
गोद लिया जाता है तब परमेश्वर हमारे पिता और यीशु हमाए भाई बन जाते हैं. इस आत्मिक परिवार में जाति, लिंग और सामाजिक स्थिति का कोई महत्व नहीं है.
जैसा कि प्रेरित पौलुस कहते हैं गलतियों 3:26-29 क्योंकि तुम सब उस विश्वास करने के द्वारा जो मसीह यीशु पर है, परमेश्वर की सन्तान हो.
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