मन कठोर मत करो | हिंदी बाइबिल अध्ययन

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सभी को जय मसीह की मित्रों, आज का बाइबिल सन्देश ( मन कठोर मत करो | हिंदी बाइबिल अध्ययन ) मैंने एक घरेलू प्रार्थना में दिया था सोचा यह लिख दूँ ताकि आप सभी के साथ भी बाँट सकूँ. चलिए शुरू करते हैं.

मन कठोर मत करो | हिंदी बाइबिल अध्ययन

मन-कठोर-मत-करो

अपने मन को कठोर न करो. (इब्रानियों 3:8)

चेलों के मन कठोर हो गए थे .. (मरकुस 6:52)

बाइबिल में एक बहुत ही रोचक और आश्चर्यजनक घटना मुझे स्मरण आती है, प्रभु यीशु मसीह अपने 12 चेलों के सामने अद्भुत रीती से पांच हजार लोगों को पांच रोटी और दो मछली के द्वारा भोजन करवाकर उन्हें तृप्त करते हैं.

लेकिन फिर भी ये बड़ा चमत्कार देखने के बाद भी प्रभु यीशु के चेलों में कुछ बदलाव नहीं हुआ बल्कि लिखा है उनके मन कठोर हो गए थे. (मरकुस 6:52)

शायद यही कारण है कि यीशु मसीह ने उन सभी 12 चेलों को शाम के अँधेरे में ही वहां से जाने के लिए विवश कर दिया. अर्थात जबरदस्ती उन्हें वहां से भेजा.

लेकिन स्वयं उनके साथ नहीं गया बल्कि रात को ही पहाड़ पर जाकर प्रार्थना करने लगा. और चेले भी यीशु मसीह को वहीँ छोड़कर नांव में बैठकर रवाना हो गए…

मुझे आश्चर्य होता है कि किसी एक चेले ने भी यीशु मसीह से यह नहीं कहा प्रभु हम तेरे बिना नहीं जायेंगे. या जब तक आप हमारे साथ नहीं चलते हमें भी मत भेज…

मैं सोचता हूँ जैसा कि पहले ही कहा जा चुका है कि उनके मन कठोर हो गए थे. इसी कारण उन्होंने प्रभु यीशु को साथ में लेना मुनासिफ नहीं समझा.

पवित्रशास्त्र में अनेकों स्थान में हम देख सकते हैं जब जब किसी का मन कठोर हुआ है तब तब उसके जीवन में घोर संकट आया है.

फिर वो चाहे मिस्र का राजा फिरौंन हो या परमेश्वर का दास योना या मिस्र की गुलामी से आजाद किये हुए इस्राएली लोग ही क्यों न हो.

परमेश्वर अभिमानियों का विरोध करता है परन्तु दीनों पर अनुग्रह करता है. (1 पतरस 5:5) और हम जानते हैं विनाश से पहले गर्व और ठोकर खाने से पहले घमंड आता है. (नीतिवचन 16:18)

कई बार हमारे जीवन में भी यह आंधी तूफ़ान हमें नाश करने के लिए नहीं बल्कि हमारे मनो की कठोरता को तोड़ने और हमें नम्र बनाने के लिए आती हैं.

आज जब यह वचन आप पढ़ रहे हैं अपने जीवन को जांचें कि मेरे जीवन में मेरी कलीसिया या पास्टर या सेवकाई या स्वयं परमेश्वर के प्रति कुछ कठोरता तो नहीं आ गई.

मेरे जीवन के चमत्कार क्यों रुक गए…या मेरे जीवन में कोई Breakthroughs क्यों नहीं मिल रहे कोई द्वार खुल क्यों नहीं रहा…

क्यों मेरे जीवन में चारो ओर अन्धकार नजर आ रहा है और मेरा जीवन आंधी तूफ़ान में क्यों फंसा हुआ सा प्रतीत हो रहा है?

चेलों ने यीशु को भूत समझा …(मरकुस 6:49)

आप क्या सोचते हैं यदि हम प्रभु को बिना लिए अपने जीवन में कार्य करेंगे तो आशीष पायेंगे कदापि नहीं.

प्रभु ने कहा तुम मेरे बिना कुछ नहीं कर सकते. डाली यदि दाखलता में बनी न रहे तो अपने आप से फल नहीं सकती.

वही हुआ भी उसी रात समुद्र में भारी आंधी और तूफ़ान भी आया और नांव यहाँ तक डोल रही थी डूबने पर थी सभी को लगा ये यात्रा अब जीवन की आखरी यात्रा होगी.

दूर दूर तक कोई भी सहायता के लिए नहीं था इसलिए वे नांव खेते खेते बहुत ही घबरा गए. रात के अँधेरे में उन्हें शायद कोई उम्मीद कोई किनारा कोई सहारा नहीं मिल रहा था.

उम्मीद की कोई किरण नहीं दिखाई दे रही थी. ऐसे समय में स्वयं प्रभु यीशु अपने चेलों को बचाने के लिए उसी तूफ़ान के बीच पानी पर चलते हुए आते हैं.

लेकिन देखो उन चेलों के मन इतने ज्यादा कठोर हो गए थे कि उन्होंने अपने प्रभु को पहचाना तक नहीं बल्कि डर के मारे चिल्लाने लगे और चिल्ला चिल्ला कर कहने लगे ये भूत है ये भूत है….(मरकुस 6:49)

भेड़ें अपने चरवाहे को और उसकी आवाज को भी पहचानती हैं लेकिन प्रभु के चेले अपने गुरु अपने स्वामी को ही नहीं पहचाने….ये तब होता है जब हमारे मन कठोर हों…

मन कठोर होने के बाद हमें अपने लोगों को भी पहचान नहीं पाते. जो हमारे हित में और भलाई के लिए भी आते हैं उन्हें भी हम भूत या शत्रु समझने लगते हैं.

जैसे जवानी की जोश में बच्चों को उनके माता पिता की सीख भी शत्रुओं की बात प्रतीत होती है और उनके नए जवान दोस्तों की सीख उन्हें स्वर्गीय सलाह प्रतीत होती है.

बाइबिल कहती है प्रभु यीशु ने आंधी और पानी को डांटा और तूफ़ान तुरंत शांत हो गया. और वे सभी चेले बड़ा आश्चर्य करके प्रभु की महिमा करने लगे.

और नांव तुरंत अपने गंतव्य स्थान में पहुँच गई…(यूहन्ना 6:21)

और ध्यान दें ….सो वे उसे नाव पर चढ़ा लेने के लिये तैयार हुए और तुरन्त वह नाव उस स्थान पर जा पहुंची जहां वह जाते थे. (यूहन्ना 6:21)

पूरी रात जहाँ पहुँचने के लिए जद्दोजहद चल रही थी वहां वे प्रभु को साथ लेने के कारण एक पल में पहुँच गए. तुरंत ही…

मेरे प्रिय पाठकों यदि आपने यहाँ तक वचन को पढ़ा है तो आप बाइबिल के इस वचन को underline कर लें और इस पर मनन करें …

जीवन के जिस मुकाम जिस लक्ष्य को आप पाने के लिए संघर्षरत है और नांव को खेते खेते घबरा रहे हैं

यह वचन आपको यह सिखाता है अपने जीवन के किसी भी लक्ष्य को पाने के लिए किसी भी मंजिल या मुकाम को हासिल करने के लिए प्रभु यीशु को अपनी नांव में बुला लें

उसे अपनी नांव में ले लें और आप देखेंगे कि तुरंत, बहुत जल्दी, शीघ्र ही आप अपने आप को आपकी मंजिल में पायेंगे. चाहे फिर आपकी मंजिल किसी भी प्रकार की सफलता क्यों न हो.

यदि यह सन्देश आपको समझ में नहीं आया है तो दुबारा इसे बाइबिल खोलकर इसकी आयतों का मिलान करते हुए पढ़ें. प्रभु आपसे बहुत प्यार करता है वो आपको घबराते हुए नहीं देखना चाहता….

वो आपने जीवन में चल रहे तमाम आंधी तूफ़ान और लहरों को चीरते हुए उनको पैरों तले रौंदते हुए आएगा

और आपको न केवल बचाएगा बल्कि आपको आपकी बुलाहट की मंजिल तक भी शीघ्रातिशीघ्र पहुंचाएगा भी.

विश्वास करें परमेश्वर के लिए कुछ भी असंभव नहीं उसके लिए कुछ भी कठिन नहीं…

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