परमेश्वर-के-लिए-आप-अनमोल-हैं

परमेश्वर के लिए आप अनमोल हैं | You Are Precious

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दोस्तों आज मैं आपको एक ऐसी कहानी बताने जा रहा हूँ जिसे पढ़कर आप जानेंगे कि परमेश्वर के लिए आप अनमोल हैं | You Are Precious तो आइये शुरू करते हैं.

परमेश्वर के लिए आप अनमोल हैं | You Are Precious

परमेश्वर-के-लिए-आप-अनमोल-हैं

बहुत बार हमारे जीवन के उतार चढ़ाव के कारण और परिस्थितियों के कारण अपने जीवन की कीमत भूल जाते हैं, और विचार करने लगते हैं कि मैं इस दुनिया में क्यों हूँ.

क्या मैं किसी के कोई काम आ सकता हूँ क्या मुझे परमेश्वर कभी इस्तेमाल कर सकता है. और इस प्रकार हम स्वयं को तुच्छ समझने लगते हैं.

लेकिन जब हम पवित्र शास्त्र बाइबिल पढ़ते हैं तो बहुत से ऐसे घटनाओं को पाते हैं और ऐसे लोगों की जीवनी को जिन्हे

देखकर हमें लगता है यदि परमेश्वर ऐसे लोगों को इस्तेमाल कर सकता है तो निश्चय हमें भी इस्तेमाल अवश्य करेंगे.

हम भी उसके लिए अनमोल हैं. आइये ऐसे है एक व्यक्ति की कहानी आज हम पढेंगे.

पुराने नियम के यहूदा की कहानी.

यहूदा याकूब का चौथा पुत्र था, जो उसकी पहली पत्नी लिया के द्वारा जन्मा था. याकूब के लिया और राहेल से कुल 12 बेटे थे.

आज हम केवल यहूदा के जीवन पर ही ध्यान देंगे. यहूदा के चरित्र के विषय में बाइबिल में कुछ बढ़िया शुरुआत नहीं दिखाई देती.

जब ग्यारह भाई लोग मिलकर जो युसूफ से नफरत करते थे )क्योंकि उसने दर्शन देखा था कि एक दिन उसके भाई और माता पिता उसके सामने दंडवत करेंगे.)

उस समय जब ग्यारह भाई युसूफ को अकेला पाकर उसे मार डालना चाहते थे और उसे सूखे कुएं में धकेल दिए थे

उस समय वो यहूदा ही था जिसने अपने भाई युसूफ को गुलाम के रूप में बेचने की योजना बनाई थी.

और फिर 20 चांदी के सिक्कों में उसे बेच भी दिया गया था जिस पैसों को भाइयों ने आपस में बाँट लिया.

और अपने पिता (इस्राएल) याकूब को जाकर बताया कि तेरे छोटे बेटे युसूफ को जंगली जानवरों ने खा लिया.

उस समय युसूफ 17 साल का (टीनएज) जवान था. वह अपने सभी बड़े भाइयों के चरित्र को और उनकी कठोरता को भी जानता होगा.

उत्पति 38 अध्याय में हम देखते हैं… बाद में यहूदा ही वह व्यक्ति था जिसने अपने घर से अलग होकर अन्यजाति की लड़की से विवाह किया था.

वह परमेश्वर का भय मानने वाला व्यक्ति नहीं था. वह हमेशा अपने बारे में अपने स्वार्थ के विषय में ही सोचता था.

उसके पिता की ओर से सभी को चेतावनी भी दी गई थी कि किसी भी कनानी स्त्री से विवाह न करना.

उसके तीन बच्चे हुए पहले का नाम एर दूसरे का नाम ओनान और तीसरे बेटे का नाम शेला रखा गया.

बड़े होने पर पहले बेटे का विवाह भी अन्य जाति (कनानी) लड़की के साथ उसका विवाह हुआ जिसका नाम तामार था.

क्योंकि बड़ा बेटा एर एक दुष्ट व्यक्ति था इसलिए परमेश्वर ने उसे मार दिया. तामार विधवा हो गई. उसके कोई सन्तान भी नहीं थी.

उन दिनों यदि कोई विधवा नि:सन्तान रहती थी तो अपने देवर के साथ उसका विवाह करवा दिया जाता था ताकि उसके सन्तान के द्वारा वंश चलता रहे.

उसका देवर ओनान अपनी भाभी के पास जाकर शारीरिक संबंध तो बनाए लेकिन उसने जानबूझकर बच्चे पैदा नहीं होने दिया ताकि बड़े भाई का वंश आगे न बढे ऐसी दुष्टता के कारण परमेश्वर ने उसे भी मार डाला.

यहूदा ने तीसरे बेटे को तामार से विवाह करने को नहीं बोला…समय बीतता गया उस समय तामार को यह दुःख सताने लगा कि अभी तो मैं जवान हूँ लेकिन मेरे बुढापे में मेरी लाठी कौन बनेगा.

इसलिए उसने एक वेश्या के जैसे वस्त्र पहनकर और चेहरे के ऊपर घूघंट डालकर एक मन्दिर की वेश्या का रूप धारणकर मार्ग के किनारे बैठ गई जहाँ पर उसका ससुर अर्थात यहूदा निकलने वाला था.

यहूदा ने उसे देखकर पहचान न पाया कि यह उसकी बहू तामार है.

इसलिए उसने उसके साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाए और उसके जब तामार ने जो अभी भी मुंह छुपाए हुए थी पैसे मांगे तो उसने कहा मैं तुम्हें बाद में दूंगा

अभी मेरे पास पैसे नहीं है इसलिए मैं तुम्हें चिन्ह के रूप में अपनी लाठी अपनी बकरी और बाजूबंद एवं मुहर रख दिया,

ताकि जब मैं पैसे दूँ तो ये चिन्ह मुझे वापस दे देना.

कुछ समय के बाद वह किसी व्यक्ति के द्वारा अपनी चिन्हानी वापस लेने और पैसे देने हेतु उसी वेश्या के पास भेजता है.

लेकिन उस स्थान में कोई भी वेश्या नहीं पाई जाती क्योंकि वहां के लोग कहते हैं कि इस प्रकार की कोई वेश्या यहाँ नहीं रहती.

तीन माह के बाद सभी परिवार के सदस्यों को पता चलने लगता है कि तामार गर्भवती है.

जब यह बात उसके ससुर को पता चलती है तो वह क्रोध से आग बबूला हो उठता है और गुस्से से कहता है उसे बाहर लाओ ताकि सभी लोग उस पर आग जलाकर मार डालें.

इस पर जब तामार बाहर आती है तो वह उन्हीं चिन्हानी को जो उसके ससुर यहूदा ने दी थी उसे दिखा देती है.

कि जिसके ये सामान हैं उन्हीं के द्वारा मैं गर्भवती हूँ. इस पर यहूदा पूरी रीती से टूट जाता है और अच्छी और भली बात यह है कि वह अपने पाप का अंगीकार करता है.

और वहां उसका जीवन परिवर्तन हो जाता है वह उस आने वाले बच्चे को अपने बेटे के समान पालता है लेकिन फिर दुबारा अपनी बहू के साथ शारीरिक सम्बन्ध नहीं बनाता.

आपको याद होगा दूसरी और मिस्र देश में जब युसूफ प्रधानमंत्री बन चुका है और पूरी दुनिया में अकाल पड़ा हुआ है

और केवल मिस्र में परमेश्वर के अनुग्रह से और युसूफ के कारण धन सम्पदा और अनाज की भरपूरी है

तब युसूफ के दस भाई अपने सबसे छोटे भाई बिन्यामिन को अपने पिता के पास छोड़कर अनाज खरीदने के लिए मिस्र देश में जाते हैं.

वहां पहुंचकर उस समय ये भाई लोग तो अपने भाई युसूफ को नहीं पहचान पाते लेकिन युसूफ अपने सभी भाइयों को पहचान लेता है,

लेकिन उनके सामने अपने को जाहिर नहीं करता. और उन्हें अनाज देकर विदा करते समय जानबूझकर अपने भाई शिमोन अपने पास रख लेता है

और कहता है यह मेरा गुलाम रहेगा क्योंकि मुझे लगता है तुम लोग जासूस लोग हो.

यदि तुम्हें अपना भाई वापस चाहिए तो तुम्हे अपने छोटे भाई बिन्यामिन को भी मेरे पास लाना होगा तो मैं तुम सभी को आजाद कर दूंगा.

वास्तव में ऐसा करके युसूफ परखना चाहता था कि इन बीस वर्षों में उसके भाइयों में कुछ बदलाव आया है कि नहीं

वे आपस में अब प्रेम करते हैं या नहीं कहीं वो स्वार्थ उनके अन्दर अभी भी बरकरार तो नहीं.

लेकिन उसे आश्चर्य होता है देखकर कि अब उनके भाइयों में बदलाव आ चुका है.

यह सुनकर हमें भी आश्चर्य होता कि वो यहूदा ही था जो पहले स्वार्थी था अपने भाई युसूफ को कुछ पैसों के लिए बेच दिया था

लेकिन अब युसूफ से अपने छोटे भाई शिमोन के लिए गिडगिड़ा कर विनती करता है.

और फिर अपने घर जाकर अपने पिता याकूब से भी विनती करता है कि कृपया छोटे बेटे बिन्यामिन को जाने दे मैं उसकी जवाबदारी लेता हूँ कि उसे जीवित तेरे पास वापस लेकर आऊंगा.

और जब युसूफ शिमौन के स्थान में बिन्यामिन को कैद करके गुलाम बनाने की बात करता है तो हम उत्पति 44:33 में देखते हैं

यहूदा वेदना से भरकर युसूफ से विनती करने लगता है ऐसा मत कर मेरे इस भाई को छोड़ दे…चाहे उसके बदले में मुझे गुलाम

बना ले मैं जीवन भर तेरी गुलामी करूंगा. इस दुःख को मेरा पिता सहन न कर पाएगा. यहाँ पर हम यहूदा का सच्चा बदलाव देखते हैं.

वह एक अच्छा भाई बन गया है. यह सब कुछ युसूफ परखने के लिए कर रहा था.

इसके बाद युसूफ उनके सामने अपनी सच्चाई प्रगट कर देता है और उनको पूरे परिवार सहित मिस्र में बुलवाकर स्वागत करता है

और बहुत सा धन दौलत से आशीषित करता है. हम यहाँ यहूदा के अन्दर यीशु मसीह की एक प्रकार की छाया के रूप में देखते हैं.

यीशु मसीह भी हम सभी मानव जाति के लिए बलिदान हो गए…ताकि हम आजाद हो जाएं.

फिर हम आगे देखते हैं जब उनका पिता याकूब मिस्र में आता है तो वह सभी बच्चों को जीवित पाकर उन्हें और उनकी संतानों को आशीष देते हुए भविष्यवाणी करता है…

और उत्पति 49 वह सबसे ज्यादा यहूदा को आशीष देता है. कि तेरे भाई तेरा धन्यवाद करेंगे.

मतलब भविष्य में, यहूदा के वंशज ही शक्तिशाली और सम्मानित होंगे और बाकी सभी गोत्र के लोग उसके सामने झुकेंगे।

भविष्यवाणी का पुर्तिकरण

यह प्रतिज्ञा, यह आशीर्वाद, राजा दाऊद में पूरा हुआ, जो एक शक्तिशाली योद्धा राजा था, जो यहूदा के गोत्र से आया था.

और फिर यह यहूदा के सबसे महान वंशज—यीशु, मसीह में पूरी तरह से पूरा हुआ. नए नियम में हम देखते हैं

प्रभु यीशु मसीह की वंशावली में यहूदा और तामार का नाम भी शामिल किया गया है.

क्या ही अद्भुत बात है. यीशु मसीह का जन्म इसी यहूदा के गोत्र से (वंश से ) हुआ यही कारण है यीशु मसीह को यहूदा गोत्र का सिंह कहा गया. (प्रकाशितवाक्य 5:5)

परमेश्वर का अनुग्रह उन लोगों को भी दिया जाता है जो इसके लायक नहीं हैं. यही बात हम यहूदा के जीवन में भी देखते हैं.

प्रारंभ में यहूदा का जीवन ठीक नहीं था लेकिन उसके पश्चाताप और पाप अंगीकार ने उसके जीवन में परमेश्वर का अनुग्रह हुआ

ठीक वैसा ही हमारे जीवन में भी हो सकता है हमारी परिस्थिति कैसी ही क्यों न रही हो.

लेकिन जब हम नम्र होकर अपने पापों को मानकर उन्हें छोड़ देते हैं तो परमेश्वर के अनुग्रह को प्राप्त करते हैं.

जो हमारे जीवन को महिमा से महिमा में और आशीषित जयवंत जीवन की ओर लेकर जाता है.

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