उत्पत्ति की पुस्तक पुराना नियम बाइबल सर्वेक्षण | पुराना नियम सर्वेक्षण
पुराना नियम 39 पुस्तकों का विशेष संग्रह है. इसमें यीशु मसीह के समय से पहले, परमेश्वर और उनके चुने हुए लोग अर्थात यहूदियों की कहानी है. इन पुस्तकों को प्राय: चार भागों में विभाजित किया जाता है. पहला भाग है व्यवस्था, जिसमें इब्री लोगों की प्रारंभिक इतिहास और कानून दोनों शामिल हैं.
दुसरे भाग में एतिहासिक पुस्तकें हैं जिसमें प्राचीन इस्राएल की उन्नति और पतन दोनों आते हैं. तीसरा भाग हैं पद्य जिसमें आराधना के गीत, ग्यापूर्ण नीतिवचन का संग्रह और विश्वास की एक कहानी. है. चौथा भाग भाविष्यवक्ताओं का हैं. इसमें परमेश्वर के द्वारा चुने हुए लोगों के द्वारा परमेश्वर की आशीष. न्याय और वायदा का उल्लेख है.
पुराने नियम की पुस्तकों को निम्नलिखित भागों में बांटा गया है. | पुराना नियम हिंदी
व्यवस्था. की पुस्तकें – गिनती निर्गमन लैव्यव्स्था, गिनती, व्यवस्थाविवरण.
इतिहास की पुस्तकें – यहोशु न्यायियों रूट 1 शमुएल, 2 शमुएल, 1 राजा, 2 राजा, 1 इतिहास, 2 इतिहास, एज्रा नहेम्याह और एस्तेर,
पद्य की पुस्तकें– अय्यूब, भजन संहिता, नीतिवचन, सभोपदेशक और श्रेष्टगीत.
भविष्यवाणी की पुस्तकें -यशायाह यिर्मयाह विलापगीत यहेजकेल, दानिएल, होशे, योएल, आमोस ओबद्याह, योना, मीका नहूम, हबक्कुक, सपन्याह, हाग्ग, जकर्याह और मलाकी.
पुराना नियम कब लिखा गया | ओल्ड टेस्टामेंट कब लिखा गया.
पुराने नियम सन 1440 ई पू. और 400 ई. पू. के बीच में लिखी गई थी. अधिकतर भाग में उस समय और उससे पहले के लोग और घटनाओं के बारे में और उनमें प्र्मेह्स्व्र के कार्य के बारे में लिखा गया है.
पुराना नियम क्यों पढ़ना चाहिए | पुराना नियम क्यों महत्वपूर्ण है
1, प्रभु यीशु मसीह ने अपनी शिक्षाओं में सिखाया कि पुराना नियम परमेश्वर का वचन है. जिसके कारण हमारे प्रति परमेश्वर की इच्छा और परमेश्वर के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी इसमें है.
वास्तव में पुराना नियम इतना महत्वपूर्ण है कि यीशु मसीह ने इसके विषय में कहा, यह न समझो कि मैं व्यवस्था या भविष्यवक्ताओं की पुस्तकों को (पुराने नियम ) को लोप करने नहीं परन्तु पूरा करने आया हूँ. क्योंकि मैं तुम से सच सच कहता हूँ, कि जब तक आकाश और पृथ्वी टल ना जाएं, तब तक व्यवस्था से एक मात्र या एक बिंदु भी बिना पूरा हुए नहीं. टलेगी. (मत्ती 5:17-18)
“बिंदु” इब्रानी भाष का सबसे छोटा अक्षर है. मात्रा थोड़ा सा लम्बा है. यीशु पुराने नियम के किसी भी भाग को नहीं बदलें यहाँ तक कि जिस प्रकार लोगों ने इसे लिखा था उसे भी नहीं बदले. नए नियम के लेखकों ने भी पुराने नियम को परमेश्वर के वचन के तौर पर आदर दिया.
पवित्र आत्मा से प्रेरित होकर लिखते समय जिस तरह उन्होंने पुराने नियम के बारे में बात की, जिससे यह बात स्पष्ट है. प्रेरित पतरस ने सिखाया कि पुराने नियम के लेखकों में पवित्र आत्मा थी.परमेश्वर ने उन्हें यीशु के बारे में गवाही देने के लिए मार्गनिर्देशन दिया (1 पतरस 1:10-11)
पतरस ने पुन: लिखा कि परमेश्वर ने पुराने नियम के लेखकों को प्रेरणा दी कि वे यीशु मसीह के बारे में भविष्यवाणी करें. (2 पतरस 1:21) संत पौलुस ने कहा, कि पूरे पवित्रशास्त्र (पुराना नियम भी) परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया था. (2 तीमुथियुस 3:16)
इब्रानियों की पत्री का लेखक भी कहता है जिस प्रकार परमेश्वर ने यीशु के द्वारा अपने लोगों से बाते की उसी प्रकार पुराने नियम के भविष्यवक्ताओं के द्वारा अपने लोगों से बातें की. (इब्रानियों 1:1-2)
2. यह स्पष्ट है कि यीशु और नए नियम के लेखकों ने विश्वास किया था कि पुराने नियम में परमेश्वर का वचन है. परमेश्वर ने अपनी दुनिया और हमारे व्विश्वास की नींव किस प्रकार डाली, इसके विषय में अधिक जानने के लिए हैं पुराना नियम पढना चाहिए.
पूरे बाइबल में सबसे महत्वपूर्ण आयतों में से एक है पहली आयत उत्पत्ति 1:1 हमसे कहती है, “आदि में परमेश्वर ने आकाश और पृथ्वी की सृष्टि की जो कुछ भी हम देखते हैं जो कुछ भी हमारे पास है परमेश्वर की ओर से है.
परमेश्वर हमसे इतना प्रेम कैसे कर सकते हैं? वह हमसे क्या उम्मीद करते हैं? पुराने नियम की कहानियां इन प्रश्नों के उत्तर देने में हमारी सहायता करेंगी. परमेश्वर अपने सामर्थ्य दिखाने के उन तरीकों पर गौर करें जिनके द्वारा उन्होंने लोगों को स्मरण दिलाया कि स्वयं परमेश्वर ही सृष्टिकर्ता और शासक हैं.
उन तरीकों में से कुछ निम्नलिखित हैं. जैसे जलप्रलय जो नूह और उसके परिवार को छोड़कर बाकी सभी लोगों को मिटा दिया. (उत्पति 7:1-8:19)
पाप के कारण सदोम और अमोरा का विनाश (उत. 19:1-21)
इस्राएलियों को छोड़ने के लिए फिरौंन के इनकार करने के कारण मिश्र के ऊपर आई विपत्तियाँ (निर्गमन 7:14-12:30)
मरुभूमि में परमेश्वर के द्वारा इस्राएलियों को दिया गया भोजन. (निर्गमन 16)
झूठे देवता की बलि वेदी को नाश करने के लिए परमेश्वर के द्वारा भेजी गई आग (1 राजा 18:20-39).
परमेश्वर के साथ साथ चलने के लिए परमेश्वर की ओर से लोगों को मिली हुई आशीषें और प्रावधान. परमेश्वर ने अपनी व्यवस्था दी ताकि उनके लोग उनको प्रसन्नयोग जीवन बिता सके (लैव्य. 20:22-24) दाउद अक्सर परमेश्वर के पास आराधना के द्वारा पहुँचते थे. (भजन संहिता 63:7-8).
परमेश्वर की करुणा को खोने और एक राजा के स्वप्न का अर्थ समझने के लिए दानिएल न प्रार्थना में समय बिताया. इन बातों को सही तरह से समझने के लिए दानिएल को परमेश्वर के करीब रहना पड़ता था. (दानिएल 2:14-23)
3. परमेश्वर के लोगों के इतिहास से सीखें. जब परमेश्वर के लोग विश्वासयोग्य थे तब परमेश्वर ने उन्हें आशीष दी. जब वे विश्वासयोग्य नहीं रहे तब उन्हें उनके आज्ञाउलंघन के परिमाणों को झेलना पड़ा. कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं.
> जब इस्राएल परमेश्वर से दूर हुए. उनके परिवार उजड़ गए (निर्गमन 19:4-9)
> जब इस्राएल ने परमेश्वर की आज्ञा का पालन करने का चुनाव किया. परमेश्वर ने उन्हें विजय दिलाई. (यहोशु 6)
> एक ब्यक्ति के द्वारा किये जाने वाले काम से पूरे राष्ट्र को नुकसान हुआ या उसे सहायता मिली है. (यहोशु 7:10-26)
जैसे-जैसे आप पुराने नियम की ऐतिहासिक वार्ता को सीखेंगे वैसे वैसे आप देखेंगे कि वे किस प्रकार वर्तमान समय में लागू होते हैं. परमेश्वर की आज्ञा मानने या न मानने का नतीजा एक जैसा ही होता है. जिन राष्ट्रों ने परमेश्वर के मार्गों को अस्वीकार किया. वहां के परिवारों को आज क्या हो रहा है. एक व्यक्ति आज एक राष्ट्र में क्या फर्क ला सकता है.?
4. जब आप पुराने नियम को पढ़ते हैं तब परमेश्वर के वायदों आशीषों और न्यायों को लिखना न भूलें इनमें से कई बातें भविष्यवकताओं के शब्दों में पाए जाते हैं. सबसे रोमांचक वायदों में से कुछ हैं. यीशु मसीह के बारे में की गई भविष्यवाणी पुराने नियम के यशायाह की पुस्तक में पाए जाने वाले बस कुछ ही हैं.
> वह कुंआरी से जन्म लेंगे. (यशायाह 7:14).
> वे अपनी सेवकाई में प्रभु की आज्ञाओं को मानेंगे. (यशायाह 50:4-9).
> वह स्वतंत्र रूप से कष्ट सहने के लिए अपने आप को सौंप देंगे. (यशायाह 50:6, 53:7-8)
> वह संसार के पापों को अपने ऊपर उठा लेंगे. (यशायाह 53:4-6, 10-12)
> वह मृत्यु पर जयवंत होंगे (यशायाह 53:10). ये भविष्यवाणियाँ केवल एक शुरुआत ही है. आप पुराने नियम में पता लगाने पर और भी अधिक पाएंगे. पुराना नियम हमें सिखाता है कि, परमेश्वर के मार्ग पर चलना कितना महत्वपूर्ण हैं वह ज्ञान आज भी उतना ही महत्वपूर्ण हैं जितना 3000 वर्षों पहले थे.
पुराना नियम हमें एक के बाद एक उन लोगों की कहानी बताता है जिन्होंने परमेश्वर के साथ चलना सीखा. परमेश्वर के हृदय से हमें बुद्धि प्राप्त होती है. गीत और पद्य उपलब्ध कराती है. जिनके द्वारा आज हम परमेश्वर की आराधना कर सकते हैं. स्पष्ट करती हैं कि परमेश्वर की आज्ञाओं को मानना हमेशा आसान नहीं है,
फिर भी उनके पीछे चलनेवालों से इसकी मांग की जाती जाती है. यीशु मसीह में पूरे किये गए वायदों की ओर इशारा करती है. परमेश्वर आपको आशीष दे जब आप अपने आप को परमेश्वर के ग्रहणयोग्य ठहराने और सत्य के वचन को ठीक रीती सी काम में लाने का प्रयत्न करते हैं. (2 तीमुथियुस 2:15)
उत्पत्ति परिचय और शीर्षक | उत्पत्ति की पुस्तक पुराना नियम सर्वेक्षण
बाइबल में पंचग्रंथ उत्पत्ति, निर्गमन, लैव्यवस्था, गिनती, और व्यवस्थाविवरण के नाम से बुलाया जाने वाली पांच पुस्तक में से पहली पुस्तक है उत्पत्ति. पंचग्रन्थ पेंटाटुक अर्थात पांच पुस्तके) इन पुस्तकों में सृष्टि से लेकर मूसा की मृत्यु (सन 1405 ई. पू.) तक की बातों का विवरण है.
बाइबल के इस भाग को व्यवस्था भी कहा जाता है. व्यवस्था मूसा के द्वारा लिखी गई पुस्तकों को दर्शाता है. इन पुस्तकों में कई व्यवस्था शामिल है जो भविष्य वक्ता मूसा के द्वारा परमेश्वर ने अपने लोगों को दिया. यह व्यवस्थाएं जीवन के हरेक क्षेत्र को शामिल करती हैं.
ये परमेश्वर के जनों को सही और गलत को समझने के लिए एक आधार है इन पुस्तकों में दुनिया की आरंभ और परमेश्वर के वाचा के लोग इस्राएल की शुरुआत का भी वर्णन किया गया है. परमेश्वर को इस विश्व के और अपने लोगों के सृष्टिकर्ता के रूप में दर्शाया गया है.
उत्पत्ति का अर्थ | उत्पत्ति का मतलब
उत्पत्ति का अर्थ है “आरंभ” या श्रोत. उत्पत्ति आरभ के बारे में कहती है. सृष्टि (अध्याय 1-2). पाप का आरंभ- किस प्रकार पाप इस दुनिया में आया. (अध्याय 3:1-24) धरती के लोग (अध्याय 5-11) परमेश्वर और उनके लोगों के बीच जो इब्राहिम के साथ शुरू हुआ (12:1-14:24).
उत्पत्ति की पुस्तक के लेखक कौन है | उत्पत्ति की पुस्तक के लेखक और लिखने की तिथि
उत्पत्ति के लेखक मूसा हैं. बाइबल में कहा गया है कि व्यवस्था के सभी पांच पुस्तकों के लेखक मूसा हैं (यहोशु 1:7, दानिएल 9:11-13, यूहन्ना 7:19, रोमियों 10:19).
उत्पत्ति व्यवस्था की अन्य पुस्तकों के साथ लगभग 1402 ई. पू. में लिखी गई थी.
उत्पत्ति की पुस्तक का उद्देश्य, विषय तथा संरचना
उत्पत्ति की पुस्तक लिखने का उद्देश्य, परमेश्वर द्वारा चुने गए लोग, इस्राएल के साथ उनके वाचा के पीछे के इतिहास बताना है. उत्पत्ति के विषयों का संबंध आरंभ के साथ है. रचे गए विश्व का आरंभ (1:1-23) मानव जाति का आरंभ (2:4-25) धरती के राष्टों का आरंभ (10:1-11:32).
इब्राहिम के माध्यम से परमेश्वर और उनके लोगों के साथ वाचा का आरंभ (अध्याय 11-50) एक वाचा दो पक्षों के बीच एक समझौता है, जो एक या दोनों पक्षों से आमतौर किसी कार्य की मांग करता है.
परमेश्वर ने अपने और इब्राहिम के बीच एक वाचा को सक्रीय किया. ये सदा बने रहने वाले वायदे थे, जो परमेश्वर ने इब्राहिम के साथ वाचा में कहा, कि वह पूरा करेंगे. इब्राहिम के द्वारा परमेश्वर एक बड़े राष्ट्र की स्थापना करेंगे. (18:18) परमेश्वर इब्राहिम को दीर्घायु और संपत्ति एवं संतान से तृप्त करेंगे. (15:15)
इब्राहिम की मृत्यु के बाद भी उसका नाम जीवित रखेंगे. (17:5) इब्राहिम दूसरों के लिए एक आशीष होंगे. (12:8). जिन्होंने इब्राहिम को आशीष दिया वे आशीष पाएंगे. (12:3) भूमंडल के सारे कुल इब्राहिम के द्वारा आशीष पाएंगे. (12:3) जिन्होंने इब्राहिम को श्राप दिया वे श्रापित होंगे.
(12:3) इब्राहिम के साथ की गई वाचा उनके स्वयं के जीवन से आगे बढ़कर उन लोगों तक पहुंचा जो परमेश्वर के पीछे चले. परमेश्वर की वाचा के वायदे बिना किसी शर्त के थे. फिर भी परमेश्वर ने इब्राहिम से आज्ञाकारिता चाही, ताकि वह और उनका परिवार उस वाचा की सम्पूर्ण आशीषों को पा सके.
अब्राम और सारे को एक नए देश में जाने हेतु अपने घर को छोड़ना पड़ा. (12:1) इब्राहिम को दूसरों के लिए एक आशीष बनना था. (12:2) इब्राहिम को परमेश्वर की उपस्थिति में चलना था और निर्दोष बने रहना था. (17:1) वाचा के चिन्ह के तौर पर उनके घराने के हर पुरुष का खतना करना था. (17:1)
उत्त्पत्ति को दो मुख्य भागों में विभाजित किया गया है.
वाचा प्राप्त लोगों से पहले का इतिहास (1:1-11:9) इब्राहिम के साथ परमेश्वर की वाचा की ओर ले जाने वाली घटनाएं निम्नलिखित हैं. परमेश्वर द्वारा विश्व की सृष्टि (1:1-11:9) आदम और हव्वा का पाप में गिरना (3:1-24) जलप्रलय के द्वारा परमेश्वर परमेश्वर का न्याय. (6:5-8:22)
बाबुल के गुम्मट (मीनार) में मनुष्य के घमंड पर परमेश्वर विजय पाते हैं. (10:1-11:32) > प्रथम वाचा के लोगों का इतिहास (11:10-50:26) ये इब्राहिम, इसहाक याकूब और युसूफ की कहानियां हैं.
= ये इस्राएल के कुलपतियों के नाम से जाने जाते हैं. एक “कुलपति”एक परिवार या एक गोत्र का स्थापक है. इस्राएल ने इब्राहिम को उनके स्थापक के रूप में माना है. इब्राहिम के साथ परमेश्वर की वाचा के कारण उनके बेटे इसहाक और उनके पोते याकूब ने कनान देश पर अपना अधिकार बनाए रखा (व्यवस्था 1:8)
उसी प्रकार इब्राहिम, इसहाक और याकूब के साथ परमेश्वर की वाचा के कारण इस्राएल ने कहा कि कनान देश उनका है. हालाकि युसूफ अपने वयस्क काल में मिश्र में रहते थे, वह अभी भी कनान के साथ एक मजबूत सम्बन्ध महसूस करते थे और उन्होंने उन्हें वहां दफनाए जाने की मांग की. (50:24-25). इन चारों कुलपतियों ने विश्वास किया था कि परमेश्वर अपनी वाचा अपने लोगों के साथ जारी रखेंगे.
उत्त्पति की पुस्तक की पृष्ठभूमि
उत्पत्ति की पुस्तक ऐसे समय लगभग ई. पू. 15वीं शताब्दी में लिखी गई जब लोग विश्वास करते थे, कि कोई भी एक मात्र सच्चा परमेश्वर नहीं है. कई लोग, विशेष रूप से प्राचीन मध्यपूर्व के इर्द गिर्द रहनेवाले, विभिन्न स्तर के सामर्थ रखने वाले कई देवताओं पर विश्वास करते थे.
उत्पत्ति में एक सच्चे परमेश्वर के सामर्थ के बारे में जो लिखा है और यह कि परमेश्वर मानव इतिहास में शामिल थे. इत्यादि बातें इसके विचारों को अनोखा बनाती है.
उत्त्पति की पुस्तक का सन्देश ‘
उत्पत्ति एक वाक्याश “यह इतिहास है” या “ये पीढियां हैं” के साथ प्रमुख भागों को परिचित कराती है. जैसे सृष्टि एक संपूर्ण रूप, आकाश और पृथ्वी आदम की वंशावली, नूह, और उसके पुत्र आदि. ईश्वरीय शास्त्र कुछ परमेश्वर के कारण विद्यमान है (1:1 प्रेरित 17:24-28) परमेश्वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप में बनाया
(1:26-28; 2:4-7). मनुष्य में परमेश्वर का जो स्वरूप है वह शारीरिक नहीं हैं, क्योंकि परमेश्वर आत्मा है (यूहन्ना 4:24) इसका मतलब है मानव जाति में परमेश्वर का स्वरूप नैतिक, बौद्धिक और आत्मिक है. इन तरीकों से लोगों का पृथ्वी पर परमेश्वर के स्वभाव को प्रतिबिम्बित करना है.
जब परमेश्वर ने पहला मनुष्य आदम के भीतर सांस फूंकी, उन्होंने मानव जाति के भीतर नैतिक, बौद्धिक सम्बन्धात्मक और आत्मिक पहलुओं को फूंका. ये बाते हैं परमेश्वर द्वारा बनाए गए जानवरों से परिपूर्ण रूप से अलग करती है. आत्म और हव्वा के पतन ने पाप को मनुष्य के ऊपर अधिकार जमाने का मौका प्रदान किया (3:1-24)
पाप इस कार्य को दो तरीके से करता है. पहला स्वयं को धोखा देने के द्वारा. यह तब होता है जब, हम हव्वा के समान, परमेश्वर और उनके मार्गों के बारे में झूठ पर विश्वास करता सुनते हैं (3:13)
दूसरा स्वेच्छा से…यह तब होता है जब हम आदम के समान परमेश्वर के अधिकार को नजरअंदाज करते हैं और अपनी ही इच्छाओं पर चलने का चुनाव करते हैं (3:17)
परमेश्वर विश्व पर शासन करते हैं. मनुष्य की आज्ञाकारिता के अनुसार उसे आशीष या श्राप देने का अधिकार परमेश्वर के पास (12:1-3)
उत्त्पति की पुस्तक से सीख
उत्पत्ति की पुस्तक हमें यह सिखाती है कि जो कुछ भी हा देखते हैं और करते हैं वे परमेश्वर की ओर वापस जुड़ते हैं जिन्होंने सब कुछ बनाया है. और सम्हालते हैं. हमें दूसरों को यही बताना हैं कि केवल परमेश्वर ही एकमात्र इस पृथ्वी के राजा और शासक हैं.
सब कुछ उन्हीं के द्वारा बनाया गया है और उन्हीं के कारण सब कुछ कायम है. शासक होने के नाते, परमेश्वर चाहते हैं कि हर कोई उनका आज्ञाकारी बने. हमारे सृष्टिकर्ता होने के कारण वह लोगों से प्रेम करते हैं और आशीष देना चाहते हैं.
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सुनिए परमेश्वर के वचन की लघु कहानियां
यह वेबसाईट और बाइबल स्टडी बिलकुल फ्री है…लेकिन यदि आप इस सेवकाई के सहयोग के लिए अपना हाथ बढ़ाना चाहते हैं तो हम इसकी सराहना करते हैं आप इस नीचे दिए गए बारकोड के जरिये इस सेवा में भागीदार हो सकते हैं धन्यवाद.
Pastor Rajesh Bawaria (An inspirational Christian evangelist and Bible teacher)