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पवित्र बाइबल नया नियम का इतिहास | विवरण | New Testament Survey in Hindi (Part-1)

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दोस्तों आज हम एक पवित्र बाइबल नया नियम Hindi bible study की New Series आरंभ कर रहे हैं, जिसमें हम सीखेंगे कि नया नियम का क्या अर्थ है और इसे किसने लिखा. इसकी एतिहासिक एवं राजनैतिक पृष्टभूमि, और यह किस समय लिखा गया.

पवित्र बाइबल नया नियम और पुराना नियम का निर्माण

पवित्र बाइबल एक पवित्र पुस्तक है लेकिन अपने आप में एक पुस्तकालय है इसमें कुल 66 पुस्तकों का संग्रह है. शब्द ‘बाइबल’ यूनानी भाषा के शब्द “बिब्लिया” से लिया गया है. जिसका अर्थ है “पुस्तकें”.

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Image by zofiaEliyahu from Pixabay पवित्र बाइबल नया नियम का इतिहास

66 पुस्तकों के संग्रह के रूप में बाइबल को बनने में लगभग 1900 वर्ष लगे हैं. पुराना नियम लगभग 1500 ईसवी पूर्व या 1300-1200 ईस्वी पूर्व से 400 ईस्वी पूर्व के दौरान लिखा गया है.

पवित्र बाइबल पुराना नियम को तीन भागों में बांटा गया था

पुराने नियम को बाइबिल के विद्वानों ने तीन भागों में बांटा है जिसे TaNaKa (तनक) कहा गया है

”त” …. से तोरा अर्थात पहली पांच पुस्तक जिन्हें परमेश्वर के दास मूसा ने लिखी हैं.

“ना” …. से नाबीम अर्थात नबियों की या भविष्यवक्ताओं की पुस्तकें और

“क” ….से केतुबीम मतलब इतिहास और कविताओं की पुस्तक.

पवित्र बाइबल नया नियम की पहली और अंतिम पुस्तक किसने लिखी

नया नियम की पुस्तकों को लिखने में पुराने नियम की तुलना में कम समय लगा. यीशु मसीह की मृत्यु के बाद के लगभग बीस वर्षों में चेलों या प्रेरितों ने प्राय: मुंह से बोलकर मौखिक शिक्षा दी. परन्तु समय बीतने पर इस बात को महत्वपूर्ण समझा गया. कि आगामी पीढ़ियों को ये शिक्षाएं पूरी सच्चाई के साथ प्राप्त होने के लिए उनको लिखित रूप में उपलब्ध करवाना आवश्यक है.

इसलिए कुछ प्रेरितों और उनके सहयोगियों ने मसीह का जीवन वृत्तांत लिखना आरंभ किया. (सुसमाचार की पुस्तकें) मसीह का जीवन वृत्तांत लिखने के साथ-साथ कलीसिया के लिए अतिरिक्त शिक्षाएं देने एवं कलीसियाओं में फैलती हुई गलतियों और झूठी शिक्षाओं को सुधारने के लिए प्रेरितों ने कलीसियाओं को पत्र लिखना भी आरंभ किया.

बाइबल के अनेक शास्त्री यह मानते हैं, कि नए नियम की सबसे पहले लिखी गई पुस्तक याकूब की पत्री है, जो माना जाता है कि यीशु मसीह के भाई याकूब ने 50 ई. से पहले लिखा था. नए नियम के अंत में लिखी गई पुस्तक प्रकाशितवाक्य है. जिसे प्रेरित यूहन्ना ने 90-95 ई. में लिखा है. इस प्रकार सम्पूर्ण नया नियम लगभग 50 ई. और 100 ई. के बीच लिखकर पूरा किया गया.

तथापि कई पुस्तकों के विषय में (जैसे इब्रानियों, याकूब, 2 पतरस, 2,3 यूहन्ना, यहूदा, प्रकाशितवाक्य और गैर बाइबिल लेख मसीहियों के बीच असहमति थी कि नए नियम को शामिल करना चाहिए या नहीं.

चौथी शताब्दी के अंत तक इन सभी असहमतियों को सुलझा लिया गया और नए नियम की इन 27 पुस्तकों को चुन लिया गया. जो हमारी आज की पवित्र बाइबल में उपलब्ध है. इस प्रकार 66 पुस्तकों वाली बाइबिल की उत्पत्ति हुई, इसका लेखक स्वयं परमेश्वर का आत्मा है. जिसमें लगभग 1600 वर्षों में लगभग 40 लोगों को इन पुस्तकों को लिखने की प्रेरणा दी.

नये नियम का अर्थ (Meaning of the Testament)

“नियम’ का अर्थ है वाचा (covnent) बाइबल की सम्पूर्ण पुस्तकें दो मुख वाचाओं पर आधारित हैं, जो परमेश्वर ने अपने लोगों से बाधी. पुराना नियम वह वाचा है. जिसे परमेश्वर ने मसीह के आगमन से पूर्व मनुष्य से उसके उद्धार के लिए बाँधी थी. (निर्गमन 24:8)

नया नियम वह वाचा है जिसे परमेश्वर ने मसीह के आगमन के पश्चात मनुष्य से उसके उद्धार के लिए बाँधी है. (लूका 22:20) नए नियम में कुल 27 पुस्तकें हैं, जिनको कम से कम आठ व्यक्तियों ने विभिन्न समय में लिखे थे.

पवित्र बाइबल नये नियम की पुस्तकों को 4 भागों में बाँट सकते हैं.

सुसमाचार – 4 (मत्ती, मरकुस, लूका, यूहन्ना)

इतिहास – 1 (प्रेरितों के काम)

पत्रियाँ – 21 (रोमियो से यहूदा तक)

भविष्यवाणी – 1 ( प्रकाशितवाक्य )

नये नियम काल के धार्मिक और राजनैतिक पृष्ठभूमि | Religious and Political Background of the New Testament

धार्मिक पृष्ठभूमि | Religious Background

यीशु मसीह के समय में यहूदी समाज के चार प्रमुख दल पाए जाते थे.

1. फरीसी दल | Pharisees

फरीसी शब्द का अर्थ है अलग किये गए. यीशु मसीह के समय में यहूदियों पर फरीसियों का बहुत बड़ा प्रभाव था. फरीसी दल सबसे लोकप्रिय दल था. वे यहूदी व्यवस्था का अत्यधिक कड़ाई से पालन करने का सावधानी पूर्वक प्रयास करते थे.

व्यवस्था के शिक्षक अर्थात शास्त्री मूसा की व्यवस्था के अतिरिक्त अनेक नियमों को मानने के लिए सिखाते थे, जिनको मौखिक परम्परा भी कहा जाता था.

फरीसी इस मौखिक परम्परा को मानने में कट्टर थे. विशेषकर धार्मिक प्रथाओं से सम्बन्धित नियमों को मानने में. उदाहरण के रूप में : उपवास रखना, दशमांश देना, सब्त के दिन को मानना आदि (मत्ती 12:1-2; 15:1-6, मरकुस 7:1-9) फरीसी अपने आप को धर्मी मानते थे, परन्तु अधिकतर फरीसी केवल बाहरी तौर पर ही धर्मी थे (लूका 18:11-12)

कुछ फरीसी भले और धर्मी भी होते थे. जैसे निकुदेमुस (यूहन्ना 3:1) गमालिएल (प्रेरित 5:34) संत पौलुस स्वयं एक फरीसी था. (प्रेरित 26:5) फिलिप्पियों 3:5) मसीही के सबंध में उनका विचार था कि मसीह एक राजनैतिक एवं आध्यात्मिक आदर्श व्यक्ति होगा जो अपने निश्चित समय पर प्रकट होगा.

2. सदूकी दल | Sadducees

यहूदी याजको में अनेक लोग सदूकी दल के थे. सदूकी और फरीसी आपस में विरोधी थे. सदूकी धनी थे. सदूकी मूसा की व्यवस्था का पालन करते थे. परन्तु वे मौखिक परम्परा में विश्वास नहीं करते थे. वे आत्मा की अमरता, मृतकों का पुनरुत्थान, अंतिम न्याय, स्वर्ग और नरक और स्वर्गदूत आदि में विश्वास नहीं रखते थे.

यद्यपि सदूकी मसीह सम्बन्धी प्रचलित सिद्धांतो पर किसी सीमा तक विश्वास रखते थे. वे इसे प्रति उत्साही थे क्योंकि मसीह सम्बन्धी प्रचलित सिद्धांतो में उन्हें राजनैतिक संकट दिखाई देता था.

3. जेलोतेस दल | Zealots

जेलोतेस दल के यहूदी लोग क्रन्तिकारी थे. वे विश्वास करते थे परमेश्वर के राज्य को आने ले लिए मनुष्य का यत्न आवश्यक है अर्थात यहाँ तक की लड़ाई भी जरूरी है.

वे यह विश्वास करते थे कि आने वाला मसीह शक्तिशाली अगुवा होगा. वो अपनी बुद्धि और शक्ति से रोमी शासन पर जय प्राप्त करके ले लेगा. और उनका विचार था कि परमेश्वर के राज्य अर्थात यहूदी राज्य को स्थापित करेगा.

4. एसेनी दल | Essenes

एसेनी दल के विषय में सुसमाचारों में कोई उल्लेख नहीं पाया जाता. वे समाज से अपना सम्बन्ध अलग करके यहूदा के मरुभूमि स्थल में संगठित समूह के रूप में रहा करते थे. और इस इन्तजार में रहते थे कि परमेश्वर का राज्य रहस्यमय अद्भुत तरीके से प्रकट होगा.

नए नियम में यहूदी आराधनालय (सिनेगोग) | Synagogues

बाबुल के बन्धुआइ के समय से लेकर यहूदी जहाँ जहाँ बसे उन्होंने अपने लिए आराधनालय की स्थापना. ये आराधनालय प्रार्थना, आराधना, शिक्षा, संगती करने एवं स्थानीय यहूदी मामलों के प्रशासन के केंद्र थे.

नए नियम में यहूदी महासभा (सन्हेद्रिन) | Sanhedrin

एज्रा के समय के आरंभ में यहूदी मामलों में प्रशासित करने के लिए न्यायियों के समूह को नियुक्त किया गया. (एज्रा 7:25-26) इस प्रथा का पालन स्थानीय आराधनालयों की समितियों में किया गया, किन्तु जैसे-जैसे समय बीता इन समितियों की शक्ति बढ़ी यद्यपि किसी भी स्थानीय यहूदी महासभा को सन्हेद्रीन (Sanhedrin} कहा जा सकता था.

किन्तु इस शब्द का सामान्य प्रयोग यरूशलेम में स्थित यहूदियों की सर्वोच्च महासभा के लिए किया जाने लगा. यरूशलेम की Sanhedrin में सत्तर सदस्य और एक महायाजक थे. महायाजक इस Sanhedrin का अध्यक्ष हुआ करता था. नए नियम काल के दौरान Sanhedrin को यहूदियों के स्थानीय और धार्मिक मामलों का न्याय करने का भी अधिकार था.

तथापि यहूदी अधिकारियों को मृत्यु दंड देने की अनुमति या अधिकार नहीं था. इसी कारण रोमी राज्यपाल पिलातुस की आज्ञा के अनुसार ही यीशु को मृत्यु दण्ड दिया गया था. (लूका 23:1-4, 24)

पवित्र बाइबल नए नियम की राजनैतिक पृष्ठभूमि | Political Background of New Testament

यीशु कौन है जानने के लिए यहाँ क्लिक करके पढ़ सकते हैं

नए नियम के समय में पलिश्तीन, रोमी शासन के अधीन था, जिसके कारण यहूदियों के मनों में रोमियो के प्रति विद्रोह की भावना बढती जा रही थी. वे बड़ी उत्सुकता से मसीह के आगमन की प्रतीक्षा कर रहे थे. कि वह मसीहा आकर रोमी साम्राज्य को नष्ट कर देगा और यहूदी राज्य का आरम्भ होगा. (लूका 24:21, प्रेरितों 1:6)

यीशु मसीह के समय से लेकर प्रकाशितवाक्य लिखने के समय तक शासन करने वाले रोमी शासक निम्न लिखित रूप से हुए हैं .

1. औगस्तुस | Augustus (27 BC- 14 AD तक )

यीशु मसीह का जन्म औगस्तुस कैसर के शासनकाल में हुआ. औगस्तुस के समय से सम्पूर्ण रोमी साम्राज्य में रोमी सम्राट की आराधना के लिए मन्दिर बनवाये गए थे (लूका 2:2)

2. तिबिरियुस | Tiberius (14 AD – 37 AD तक)

यीशु मसीह की सेवकाई और मृत्यु और पुनरुत्थान और कलीसिया का जन्म इस कैसर के समय हुआ (लूका 3:1)

3. कलिगुला | Caliguila (AD 37 – 41)
4. क्लौदियुस | Claudius (AD 41 – 54)

क्लौदियुस के समय में रोम से यहूदी लोगों को निकल जाने की आज्ञा दी गई. उदाहरण : अक्विला और प्रिस्किल्ला (प्रेरितों 18:1-4)

5. नीरो | Nero (AD 54 – 68)

प्रारंभिक समयों में रोमी शासन मसीहियत को यहूदी धर्म का ही एक भाग समझता था. क्योंकि यहूदी धर्म एक वैध धर्म था. रोमी शासन मसीहियत का विरोध नहीं करता था. किन्तु सम्राट नीरो के शासन काल में रूमी शासक यह समझने लगे कि मसीहियत यहूदी धर्म का भाग नहीं है. नीरो के समय से लेकर रोमी शासन के अंतर्गत मसीहियों को घोर सताव हुआ.

रोम में लगी एक बड़ी आग के लिए नीरो ने मसीहियों को दोषी ठहराया. दण्ड के रूप में उसने मसीहियों को बंदी बनाया, मार दिया और अन्य कई प्रकार के सताव उन पर जारी किये.

ऐसा माना जाता है कि पतरस और पौलुस की मृत्यु इस सताव के समय हुई. संत पौलुस का सिर काटा गया था और पतरस को क्रूस पर उल्टा लटकाया गया था.

यह सताव AD 68 तक चला जब नीरो की मृत्यु हुई परन्तु उसके बाद भी समय-समय पर और जगह जगह में मसीहियों पर रोमी शासन के द्वारा सताव हुए और इस प्रकार चौथी शताब्दी तक चला.

6. वेसपेसियन | VASPASIAN (AD 69 – 79)
इस सम्राट के समय में यहूदी राष्ट्र का अंत हुआ (AD 70 ) में जब मसीहियों ने देखा कि रोमी सेना यरूशलेम को घेरे हुए हैं, तब यीशु मसीह की चेतावनी को याद करते हुए वे यरूशलेम को भाग गए.
7. तीसुस | TITUS (AD 79 – 81)
8. डोमिशियन | DOMISIAN (AD 81 -96)

डोमिशियन के समय में भी मसीहियों पर सताव हुए. माना जाता है “प्रकाशितवाक्य की पुस्तक डोमिशियन के समय में लिखी गई थी, जब प्रेरित यूहन्ना को मसीही विश्वास के कारण पतमुस टापू में डाला गया था (प्रका. 1:9)

रोमी शासन के बिना सम्भवत: मसीहियत प्रभावशाली रूप में नहीं फैलती. इसका मुख्य कारण यह था कि रोमी साम्राज्य में बनाई गई सड़कों ने साम्राज्य के अंदर विभिन्न स्थानों के बीच यात्रा को सरल बनाया और यह सुसमाचार प्रचार कार्य के लिए लाभदायक बनी.

इन सड़कों के कारण प्रवासी कारीगर (Craftman) अलग अलग नगरों की यात्रा करते थे, जिनके द्वारा भी सुसमाचार फैलता था. सम्पूर्ण रोमी साम्राज्य में लोग यूनानी भाषा बोलते थे. यह भी सुसमाचार प्रचार कार्य के लिए सहायक बना.

सुसमाचारों की पुस्तकों का सर्वेक्षण….क्रमश: …Part 2 देखें

मसीही सेवकाई क्या है ?


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