आज हम पढेंगे यीशु मसीह की कहानी जिसमें हम जानेंगे यीशु मसीह कौन हैं. प्रभु यीशु को जानना मानव जाति के उद्धारकर्ता के रूप में मानना आशीष का कारण है तो आइये जानते हैं Who is Jesus christ in Hindi.
प्रभु यीशु मसीह ने कभी कोई किताब नहीं लिखी लेकिन उनके विषय में या उनके जीवनी के बारे में पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा पुस्तक छापी गई हैं। उनके जीवन के कुछ महत्वपूर्ण घटनाएं व तथ्य दिए गए हैं। इस लेख में हम देखेंगे की वास्तव में यीशु मसीह कौन हैं (Who is jesus Christ)
यीशु के नाम का अर्थ क्या है ? | यीशु मसीह की कहानी
यीशु का नामकरण स्वर्ग में हुआ…क्योकि स्वर्गदूत ने आकर मरियम और युसुफ को बताया कि उसका नाम यीशु रखना। जिसका मतलब है ‘परमेश्वर उद्धार करता है…बचाता है”
यीशु को अंग्रेजी में जीसस कहा जाता है जो मूल भाषा यूनानी से लिया गया है…यूनानी भाषा में ‘इसुस‘ है…इब्रानी भाषा में येशुआ है जिसका अर्थ है, ‘यहोवा उद्धार करता है‘।
मसीहा का क्या अर्थ है ? | Jesus story
यीशु मसीह में ‘मसीह’ कोई नाम नहीं बल्कि एक पदवी है जिसका मतलब है ‘अभिषिक्त’ या अभिषेक पाया हुआ। मसीहा शब्द मूल भाषा इब्रानी के शब्द “मेशाक” से लिया गया है यशायाह 61:1
यहाँ यह शब्द पवित्रात्मा का प्रतीक के रूप में था, और पवित्रात्मा के द्वारा ही यीशु का सेवकाई और जीवन के लिए अभिषेक हुआ था ऐसा स्वयं यीशु ने कहा था (लूका 4:18) में और हम प्रेरितों के काम 10:38 में भी पाते है ।
यीशु का जन्म मरियम नाम की एक कुंआरी कन्या के द्वारा हुआ…मरियम की मंगनी हुई थी शादी नहीं..यह पवित्रआत्मा की आशीष से हुआ।
यीशु के जन्म की भविष्यवाणी | yishu ki kahani
यीशु का जन्म की भविष्यवाणी पुराने नियम के लगभग सभी भविष्यवक्ताओं ने की थी और जो कुछ उन्होंने यीशु के विषय में कहा था वो सब अक्षरशः पूरा हुआ।
जैसे यीशु के जन्म की भविष्वाणी (यशायाह 9:6) में हमारे लिये एक बालक उत्पन्न हुआ, हमें एक पुत्र दिया गया है; और प्रभुता उसके कांधे पर होगी, और उसका नाम अद्भुत, युक्ति करने वाला, पराक्रमी परमेश्वर, अनन्तकाल का पिता, और शान्ति का राजकुमार रखा जाएगा।
उसके जन्म के स्थान की भविष्यवाणी
(मीका 5:2 ) हे बेतलेहेम एप्राता, यदि तू ऐसा छोटा है कि यहूदा के हजारों में गिना नहीं जाता, तौभी तुझ में से मेरे लिये एक पुरूष निकलेगा, जो इस्राएलियों में प्रभुता करने वाला होगा; और उसका निकलना प्राचीन काल से, वरन अनादि काल से होता आया है। उसके जन्म का चिन्ह (यशायाह 7:14) इस कारण प्रभु आप ही तुम को एक चिन्ह देगा। सुनो, एक कुमारी गर्भवती होगी और पुत्र जनेगी, और उसका नाम इम्मानूएल रखेगी।
उसके जन्म की घोषणा | मसीह यीशु की कहानी
(लूका 7:14 ) तब जिब्राइल स्वर्गदूत ने उन से कहा, मत डरो; क्योंकि देखो मैं तुम्हें बड़े आनन्द का सुसमाचार सुनाता हूं जो सब लोगों के लिये होगा।
उसके जन्म की राजशाही
(मत्ती 2:2) यहूदियों का राजा जिस का जन्म हुआ है, कहां है? क्योंकि हम ने पूर्व में उसका तारा देखा है और उस को प्रणाम करने आए हैं।
यीशु मसीह के जन्म के विषय में लिखा है मरियम ने अपने पहले पुत्र को जन्म दिया और उसे चरनी में रखा क्योंकि सराय में उनके लिए जगह नहीं थी…(लूका 2:7)
यीशु मसीह के जन्म दिन की खबर स्वयं स्वर्गदूत ने चरवाहों को दी थी। और पूरा विवरण भी दिया की बालक चरनी में कपड़े से लिपटा हुआ पाओगे (लूका 2:8-13)
यीशु मसीह के माता पिता की आर्थिक स्थिति कैसी थी ?
यीशु एक गरीब घर में पैदा हुए थे…क्योंकि जन्म के आठवे दिन जब उनको लेकर मन्दिर ले जाया गया तब फक्ता के (कबूतर जैसे ) जोड़े को चढाया गया..जो केवल सबसे निर्धन लोग ही चढाते थे।
यीशु मसीह के जन्म के समय चिन्ह दिखाई देना
यीशु मसीह के जन्म के समय एक तारा दिखाई दिया जिसका पीछा करके मजूसी लोग (विद्वान लोग ) पूर्व देश से आये लोगों का मानना है वे तीन थे क्योंकि उनहोंने तीन भेंट दी थी….वे चरनी के पास गौसाले में नहीं आए थे बल्कि घर में आए थे जहाँ यीशु बालक थे अर्थात चल सकते थे। वे शिशु नहीं थे और उन विद्वान लोगों ने यीशु को दंडवत किया…यीशु की अराधना की। शायद इसी कारण हेरोदेश राजा ने दो ढाई वर्ष के बच्चों को मरवाया था। (मत्ती 2:11-12)
यीशु मसीह का बचपन
यीशु मसीह बचपन से ही बड़े विद्वान् थे क्योंकि उन्होंने 12 वर्ष की उम्र में ही बड़े बड़े फरीसियों को जो उस समय विद्वान् कहलाते थे अपनी शिक्षा से चकित कर दिया था।
यीशु मसीह ने अपने जीवन काल में कभी भी किसी से भी चाहे वो काम हो या शब्द हो माफी नहीं मांगी क्योंकि यीशु मसीह ने अपने जीवन काल में कभी कोई गलती नहीं की…कभी कोई गलत शब्द नहीं कहा। यीशु ने पूरा जीवन निर्दोष व पापरहित बिताया…वे पूर्ण रूप से निष्कलंक थे।
यीशु के सांसारिक पिता अर्थात युसुफ पेशे से एक बढई थे इसलिए यीशु भी उनके साथ बढ़ई का काम करते थे।
यीशु के कई भाई और बहन भी थीं, जिनमें से चार के नाम याकूब, योसेस, सिमोन और यहूदा हैं…बहनों के नाम बाइबल में नहीं दिया गया…(मत्ती 12:46-47, 13:55-56) भाइयों में से याकूब बाद में कलीसिया का अगुवा भी बना।
यीशु मसीह का बप्तिस्मा
यीशु मसीह ने 30 वर्ष की आयु में यहुन्ना बप्तिस्मादाता से यर्दन नदी में बप्तिस्मा लिया..और पानी से बाहर आने के तुरंत बाद स्वर्ग से परमेश्वर ने कहा ह मेरा प्रिय पुत्र है जिससे मैं अति प्रसन्न हूँ। और यीशु पर पवित्रात्मा कबूतर के समान उतरा।
यीशु बप्तिस्मा के तुरंत बाद 40 दिन और रात निराहार उपवास किया और प्रार्थना किया…जहाँ शैतान ने उनकी परीक्षा ली जिसमें यीशु ने पवित्रशास्त्र के द्वारा ही शैतान को परास्त कर दिया।
यीशु ने उन चालीस दिनों की उपवास और प्रार्थना के बाद लोगों के बीच अपनी सेवा शुरू की। उनकी सेवा काल में ऐसा कोई भी रोगी नहीं हुआ जो यीशु के पास आया हो और चंगाई न पाया हो…फिर वो बीमारी कैसी भी क्यों न हो…. जब हम बात कर रहे हैं who is jesus तो यह बात दर्शाती है कि यीशु ही परमेश्वर हैं ।
यीशु मसीह की शिक्षाएं
यीशु के उपदेश इतने प्रभावशाली होते थे कि उन्हें लोग ‘रब्बी’ अर्थात गुरुओं का गुरु कहकर पुकारते थे। उनकी शिक्षाएं विश्व प्रसिद्ध हैं जिनमें से कुछ को पहाड़ी उपदेश भी कहा जाता है। जिसने पूरे विश्व में प्रभाव डाला है। उसने अधिकार के साथ सिखाया यह कहते हुए कि …मैं तुम से सच सच कहता हूँ ..(युहन्ना 3:3) उसके सिखाने में सादगी और विनम्रता थी उन्होंने कहा मुझसे सीखो मैं मन में दीन हूँ ।
उनकी शिक्षा के मुख्य मुद्दे या विषय थे पश्चाताप करो और मन फिराओ क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट है…(मरकुस 1:15) उनकी शिक्षाएं व्यवहारिक हैं और उन्होंने उन पर स्वयं भी अमल किया और उसके बाद कहा जा ऐसा ही कर (लूका 10:37)
उनहोंने आत्मा के अभिषेक में होकर सिखाया और कहा…आत्मा ..मुझ पर है..मेरा अभिषेक किया गया है… (लूका 4:18) उनके सिखाने के तरीके बिलकुल नए और अद्भुत थे...उन्होंने कहा मैं एक नई आज्ञा देता हूँ (यूहन्ना 13:34)
ईसा मसीह के चमत्कार
यीशु ने अपना पहला चमत्कार काना शहर में एक शादी के दौरान पानी को दाखरस में बदलकर दिखाया। उन्होंने अपने चेलों को बचाने के लिए समुद्र में पानी के उपर चलकर आये और आंधी और तूफान को आज्ञा दी और वो आंधी थम गई ।
यीशु मसीह ने अपने सेवा काल में 3 मुर्दों को जीवित् किया जिसमें एक लाजर नाम का व्यक्ति भी था जो चार दिनों से मरा हुआ था।
यीशु के अनुयाई और श्रोताओं को जब उन्हें भूख लगी तो 5 रोटी और 2 मछली से लगभग पांच हजार लोगों को भर पेट खिलाया और उसके बाद 12 टोकरे भर कर बच भी गए । इस प्रकार प्रभु यीशु ने अनेकों अद्भुत चमत्कार करके लोगों चिन्ह दिखाया की वे ही परमेश्वर हैं ।
यीशु मसीह के कितने चेले थे ?
यीशु मसीह के चमत्कार और अद्भुत काम को देखकर हजारों लोग उनके पीछे आते थे परन्तु केवल 12 चेले कहलाए जिनमें से अधिकाँश चेले मछुआरे थे। यीशु मसीह ने साड़े तीन वर्ष सेवा की जिसमें उनहोंने सबसे ज्यादा समय प्रार्थना में तथा अपने 12 चेलों को प्रशिक्षित करने में बिताया।
क्या यीशु आधे परमेश्वर और आधे मनुष्य थे ?
यीशु पूरी रीति से मनुष्य और पूरी रीति से परमेश्वर थे….अर्थात 100% मनुष्य और 100% परमेश्वर। उन्हें भूख लगती थी…वे रोटी और मछली भी खाते थे उन्हें प्यास लगती थी उनहोंने सामरी स्त्री से पानी माँगा था…उन्हें दुःख होता था अपने मित्र की मृत्यु पर उन्होंने आंसू भी बहाया था…रोया था…और नांव में यीशु सो भी रहे थे।
यीशु मसीह के अद्भुत काम
यीशु मसीह के अद्भुत काम बाइबल में लगभग 37 उद्धरित हैं लेकिन यीशु मसीह के एक शिष्य यूहन्ना ने लिखा है यीशु ने इतने चमत्कार किये है यदि उन सब को लिखे जाते तो वो किताब बनती जो धरती में न समाती।
युहन्ना जो सुसमाचार लेखक और प्रभु यीशु के शिष्यों में से था उसने यीशु को अपनी आखों से देखा था वह यीशु के अद्भुत कामों को चमत्कार नहीं बल्कि चिन्ह कहता है, कि वे चिन्ह थे कि यीशु ही परमेश्वर है।
यीशु मसीह को किसने पकड़वाया यीशु मसीह को अपने ही एक शिष्य (चेले) ने 30 चांदी के सिक्कों में रोमन सैनिकों के हाथों पकडवा दिया था…जिसका नाम यहूदा इसकरोती था।
यीशु मसीह की अंतिम सात वाणी कौन सी हैं ?
यीशु मसीह को रोमन सैनिकों को बिना किसी अपराध के सबसे क्रूर सजा अर्थात क्रूस पर कीलों से ठोंककर लटका दिया जहाँ उनहोंने सुप्रसिद्ध उन सात शब्दों को कहा …
पहली वाणी :- पिता इन्हें क्षमा कर क्योंकि ये नहीं जानते के ये क्या कर रहे हैं…
दूसरी वाणी :-पास में लटके चोर से कहा मैं तुझ से सच कहता हूँ आज ही तू मेरे संग स्वर्गलोक में होगा…
तीसरी वाणी :- पिता मैं तेरे हाथ में आपनी आत्मा सौंपता हूँ…
चौथीं वाणी :- हे नारी ये तेरा पुत्र है…
पांचवी वाणी :- मेरे पिता मेरे पिता तू ने मुझे क्यों छोड़ दिया..
छटवीं वाणी :- मै प्यासा हूँ…
सातवीं वाणी :- सब कुछ पूरा हुआ।
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यीशु मसीह की मृत्यु का समय
यीशु मसीह की मृत्यु के समय कई मुर्दे कब्र में से बाहर आ गए थे।
यीशु मसीह को एक गुफा नुमा कब्र पर रखा गया जहाँ से वे तीसरे दिन पुनः जीवित हो उठे और बहुत से लोगों को दिखाई दिए। यीशु मसीह इस वायदे के साथ कि मैं तुम्हारे लिए स्वर्ग में जगह तैयार करने जा रहा हूँ और तुम्हें लेने जल्द ही वापस आऊंगा, वे स्वर्ग में उठा लिए गए।
यीशु मसीह के स्वर्गारोहण से पहले उन्होंने अपने अंतिम शब्दों में कहा, देखो जगत के अंत तक मैं सदैव तुम्हारे संग हूँ।
जब बाइबल में उनहोंने एक भी जगह झूठ नहीं बोला और न ही कभी कुछ ऐसी बात बोली जिससे उन्हें किसी से माफी मांगनी पड़े और उन सभी भविष्यवाणियों को पूरा भी किया जिसमें उनका जन्म और मृत्यु भी शामिल है तो वो अपने वायदे के अनुसार जल्द ही आने भी वाले है…
धन्यवाद पढने के लिए …यदि आपके कुछ सवाल है बाइबिल से लेकर या प्रभु यीशु के विषय में तो अपने कमेन्ट जरुर लिखें इससे हमें आसानी होगी उत्तर देने में
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