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क्यों भारत में एक आस्ट्रेलिया के मिशनरी, ग्राहम स्टेन्स को उनके दो बच्चों सहित जिन्दा जला दिया

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डॉ. ग्राहम स्टुअर्ट स्टेन्स का जीवन और प्रभु के प्रति समर्पण

 डॉ. ग्राहम स्टुअर्ट स्टेन्स आस्ट्रेलिया के एक मसीही मशीनरी थे, जिनका जन्म 18 जनवरी 1941 को पाल्म्वुड्स क्वीन्सलैंड आस्ट्रेलिया में विलियम और एलिजाबेथ की दूसरी सन्तान के रूप में हुआ था. उनकी माता एलिजाबेथ परमेश्वर का भी मानने वाली महिला थी और ग्राहम स्टेन्स  पर अवस्था से ही माता के जीवन का गहरा प्रभाव था. जब वे पन्द्रह वर्ष के थे तब एक पाहून मिशनरी ने कोढ़ग्र्स्त लोगों की तस्वीरें स्लाइड के द्वारा दिखाई और उनके विषय में बताया. इसी समय ग्राहम स्टेन्स ने जोसिया सोरेन नामक एक लडके की तस्वीर देखी, जो लगभग ग्राहम स्टेन्स की ही उम्र का था और भयानक कोढ़ से पीड़ित था. कोधग्र्स्त रोगियों के लिए दुःख और करुना से भर कर और परमेश्वर के प्रति अपने गहरे प्रेम के कारण, ग्राहम ने यह निर्णय लिया कि वह अपना जीवन कुष्ठ रोगियों की सेवा करने के द्वारा परमेश्वर को समर्पित कर देंगे.

भारत में ग्राहम स्टेन्स कैसी सेवा में संलग्न थे

 भारत में कुष्ठरोगियों की सेवा करने की उनकी बुलाहट की पुष्टि दो वर्षों बाद स्पष्ट रूप से हो गई, जब परमेश्वर ने न सिर्फ उनके व्यक्तिगत मनन अध्ययन के माध्यम से उन्हें इस सेवा हेतु अपनी बुलाहट दी बल्कि इसी समय मिशन द्वारा संचालित की जा रही सभाओं में वक्ता ने वहां उपस्थित लोगों के सामने भारते के उड़ीसा राज्य के मयूरभंज नगर में कुष्ठरोगियों के बीच में सेवकाई करने की चुनौती प्रस्तुत की. यह रोचक बात है, कि जिस गाँव को वे बाद में अपना घर बनाने वाले थे उसके साथ उनका नाता 1965 से जुड़ा . आठ वर्ष बाद ग्राहम ने भारत दौरा करने का निर्णय लिया.

ग्राहम स्टेन्स का भारत आगमन कब हुआ

अपने 24वें जन्म दिन को, 18 जनवरी 1965 को वे भारत पहुंचे. जब ग्राहम उड़ीसा में बड़ीपड़ा की गलियों से हो कर जा रहे थे, उनका हृदय कुष्ठ रोग के कारण कष्ट भोग रहे रोगियों की दुर्दशा को देखकर पिघल गया. उनहोंने परमेश्वर और मनुष्यों के प्रति एक गहरा समर्पण जताया और मिशनरी दर्शन को लेकर पूरी तरह से दृढ और स्पष्ट हो गए. उनहोंने अपने ह्रदय की गहराई में यह महसूस किया कि यह परमेश्वर की बुलाहट और जिम्मेदारी है कि वे जनसमुदाय में अछूतों की तरह जी रहे लोगों की सेवा करने के द्वारा उन तक मसीह का प्रेम पहुचाये.

ग्राहम स्टेन्स कोढियों की सेवा के साथ और क्या सेवा करते थे

 वे 1965 में इवेंजलिकल मिशनरी सोसाइटी ऑफ मयूर भंज में शामिल हो गए और कुष्टरोगियों के बीच एन सेवा करना आरम्भ कर दिया. उनहोंने उड़िया, संथाली और भी भाषाओं को भली भाँती सीखा, जो कि स्थानीय ग्रामवासियों और आदिवासियों के बीच में बोली जाती थी. यह एक तथ्य है कि यहाँ तक कि सरकार ने भी उन्हें आदिवासियों के बीच में पोलियो उन्मूलन को बढ़ावा देने के लिए संथाली भाषा एन एक गीत लिखने की जिम्मेदारी सौंपी .

ग्राहम स्टेन्स का उनकी पत्नी ग्लेडिस से पहली मुलाक़ात

वर्ष 1981 के जून महीने में ग्राहम पड़ीपड़ा में (जो कि भारत के उड़ीसा राज्य के मयुरभंज जिले का एक शहर है) कुष्टरोगियों की सेवा कर रहे थे, वहां एक ऊंची, सुंदर और मृदुभाषी युवती जो एक युवा मिशन से जुडी हुई थी वैश्विक युवा मिशन कार्यक्रम के तहत भारत आई थीं जिनका नाम ग्लेदिस वेदरहेड था . वे इप्स्विक, क्वींसलैंड आस्ट्रेलिया से बड़ीपड़ा आइन थीं और कुछ ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न हुई कि कि दोनों की मुलाक़ात हुई. ग्राहम ने 1983में ग्लेडिस से आस्ट्रेलिया में विवाह किया और फिर लौट कर साथ मिलकर भारत में सेवा करने लगे और तब से वे साथ मिलकर कार्य करते रहे.

ग्राहम स्टेन्स और ग्लेडिस की तीन संताने

ग्लेडिस एक प्रशिक्षित नर्स थीं, और अपनी इस योग्यता के कारण वे मयूरभंज लेप्रेसी होम में ग्राहम के लिए एक उपयुक्त सहयोगी सिद्ध हीन. त्याग का जीवन व्यतीत करने वाले इस दम्पत्ति ने बड़ीपड़ा के मिशन कम्पाउंड के भीतर एक पुराने भवन को अपना घर बनाया और बहुत ही साधारण जीवन जीने का निर्णय लिया. उनके तीन बच्चे थे, एक पुत्री एस्तेर जॉय और दो पुत्र, फिलिप ग्राहम और तिमोथी हेरल्ड उनका पारिवारिक जीवन भी एक चमचमाते उदाहरण की तरह था.

ग्राहम स्टेन्स की बाइबिल अनुवाद की सेवकाई

 ग्राहम ने मयूरभंज लेप्रेसी होम को 1982 में एक पंजीकृत संस्था के रूप में स्थापित करने में एक प्रमुख भूमिका अदा की. 1983 में उनहोंने मिशन के प्रबंधन की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली. ग्राहम एक बहुआयामी व्यक्तिगत के, मसीह केन्द्रित मिशनरी थे. वे अलग अलग प्रकार की अनेक सेवकाईयों से जुड़े हुए थे, जिसमें साक्षरता, अनुवाद कार्य, कुष्ठ रोगियों की सेवा, शिष्यता की शिक्षा देने की सेवा, कलीसिया स्थाप और सामजिक विकास कार्य शामिल है. भारत में ओली जाने वाली हो भाषा में नया नियम का अनुवाद, बाइबिल अनुवाद कार्य में उनकी क्षमता का प्रमाण, है इसका प्रकाशन 1997 में हुआ. उनहोंने उड़ीसा के हो जाति के लोगों के बीच में कलीसिया स्थापना की सेवकाई में भी प्रेरक के रूप में सहायता की. वे एक उत्क्रिस्ट रोचक और कायल कर देने वाले उपदेशक के रूप में जाने जाते थे.

ग्राहम स्टेन्स लोगों को आत्म निर्भर बनाते थे

 ग्राहम जीवन से और अच्छाइयों से भरे हुए थे. उन्होंने लेप्रेसी अस्पताल को एक आत्म निर्भर स्थान बना दिया था जहाँ रोगियों को आत्सम्मान का बोध कार्य जाता था. उन्होंने चगाई प्राप्त कर चुके लोगों को ऐसी कलाओं से निपुण किया कि वे समाज में आत्म निर्भर जो कर अपना जीवन व्यतीत कर सकें .

ग्राहम स्टेन्स, चिकित्सा केंद्र और व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र

इस लेप्रेसी होम में 80 से 100 कुष्ठ रोगी रह सकते थे और यहाँ एक चिकित्सा केंद्र और एक व्यावसायिक प्रशिक्ष्ण केंद्र भी था, जहाँ रोगियों ने साड़ी बुनना पैरपोश, तौलिया, और धोती बनाना सीखा. वह लेप्रेसी होम में रहने वाले लोगों के लिए एक पिता के समान थे और उन्होंने बहुतों के लिए तब एक घर का प्रबंध किया जब स्वस्थ हो जाने के बाद उनके पास रहने का कोई स्थान नहीं था. आसपास के लोग उन्हें बड़े प्यार से बड़े भैया कह कर पुकारते थे .

ग्राहम स्टेन्स, और उनके दो मासूम पुत्रों की भयानक रात

एक रात 22 जनवरी 1999 को ग्राहम, झारखंड के मनोहरपुर के जंगल कैम्प में भाग लेने गए, यह उस क्षेत्र के मसीहियों के लिए धार्मिक और सामाजिक विषयों पर आधारित एक वार्षिकसहभागिता थी. यह गाँव उड़ीसा के मयुरभंज और कियोंझार जिलों की आदिवासी बहुल सीमा पर स्थित है. वे अपने दोनों पुत्रों के साथ, जो ऊटी से अपनी स्कूल की छुट्टियाँ बिताने आए थे, उड़ीसा के कियोनझार की ओर जा रहे थे. वे रात को बीच रास्ते में रुके और मनोहरपुर कियोनझार उड़ीसा में रात बिताने के लिए अपने वाहन के भीतर ही सो गए, क्योंकि बाहर कड़ाके की ठण्ड थी. ग्लेडिस बड़ीपड़ा, मयूरभंज में ही ठहर गई थीं. सूचनाओं के अनुसार 50 लोगों की एक उन्मादी भीड़ कुल्हाड़ियाँ और अन्य औजार लिए हुए वहां आई, और वाहन पर हमला कर दिया, उस समय स्टेन्स और बच्चे गहरी नींद में वाहन के भीतर सो रहे थे. ग्राहम और उसके पुत्रों फिलिप्प और तिमोथी, को जिन्दा जला दिया गया, कुछ ग्रामवासियों ने स्टेन्स व उनके बच्चो को बचाने का प्रयास किया, परन्तु सब व्यर्थ था. उन्होंने बच निकलने का प्रयास किया, परन्तु भीड़ ने उन्हें बच कर निकलने नहीं दिया.

ग्राहम स्टेन्स की पत्नी का अपने पति के हत्यारे को क्षमा करना

डॉ. ग्राहम स्टुअर्ट स्टेन्स ने अपने जीवन के 34 वर्ष प्रेम के साथ हमारे मसीह के अनुग्रह को उन तक पहुंचाते हुए लोगों की सेवा करने में व्यतीत कर दिया. वे उड़ीसा में निर्धन आदिवासियों के बीच में और विशेष रूप से कुष्ट रोगियों के बीच में 1965 से कार्य कर रहे थे. ग्राहम को मार डाले जाने के बाद भी, ग्लेडिस भारत में ही रह कर 2004 तक कुष्ठरोगियों की सेवा करती रहीं और फिर उसके बाद आस्ट्रेलिया लौट गई. हत्यारों को सजा सुनाए जाने के कुछ ही समय बाद, ग्लेडिस ने एक वक्तव्य जारी करते हुए कहा कि उन्होंने हत्यारों को क्षमा कर दिया है, और उनके मन में हत्यारों के प्रति कोई कडवाहट नहीं है.

ग्राहम स्टेन्स की पत्नी को भारत में पदमश्री पुरुष्कार से सम्मान

वर्ष 2004 में उन्होंने आस्ट्रेलिया लौट कर अपनी पुत्री और पिता के साथ रहने का निर्णय लिया. किन्तु उन्होंने कहा कि वे उन लोगों की सुधि लेती रहेगी जिनकी सेवा वे और उनके रति अब तक करते आ रहे थे. 2005 में, उन्हें पदम्श्री पुरस्कार एकर सम्मानित किया गया, यह नागरिको को भारत सरकार की ओर से दिया जाने वाला एक पुरस्कार है. इस पुरस्कार को उड़ीसा (भारत) के कुष्ट रोगियों की सेवा में उनके कार्यों के प्रति आभार जताने के लिए उन्हें दिया गया.

ग्राहम स्टेन्स की पत्नी आज आस्ट्रेलिया में क्या करती हैं

आज वे आस्ट्रेलिया में अपनी बेटी के साथ रहती हैं और एक रजिस्टर्ड नर्स होने के नाते दूसरों की सेवा करती और अपना जीवन यापन करती हैं, वे अपना सब काम स्वयं ही करती हैं. विश्वास करता हूँ यह हिंदी लेख आपको परमेश्वर के दास ग्राहम स्टेन्स के विषय में एक लघु जीवनी के द्वारा जानकारी दे पाया होगा यदि आप किसी और परमेश्वर दे दास के विषय में या मिशनरी के विषय में जानना चाहते हैं तो कमेन्ट में जरुर बताएं और यह लेख और लोगो तक शेयर करें ऐसे ही लेखों के लिए यह ब्लॉग सबस्क्राइब करें धन्यवाद

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2 thoughts on “क्यों भारत में एक आस्ट्रेलिया के मिशनरी, ग्राहम स्टेन्स को उनके दो बच्चों सहित जिन्दा जला दिया”

    1. अवश्य भाई जी जल्द ही एक लेख साधू सुन्दर सिंग जी पर लिख कर इसपर पोस्ट करूँगा आपके कमेन्ट के लिए धन्यवाद प्रभु आपको बहुत आशीष दे.

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