दोस्तों आज हम सीखेंगे मसीही चरित्र | Bible Course in Hindi जिसे आप पढ़ एवं पढ़ा सकते हैं इसे अपने जीवन में लागू करके.
मसीही चरित्र | Bible Course in Hindi
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सन्देश और सन्देशवाहक
हम संदेश और सन्देशवाहक को अलग नहीं कर सकते. संदेशवाहक सन्देश का अभिन्न भाग है.
मूसा के जीवन से देखते हैं कि सन्देश हेतु इस्तेमाल करने से पहले परमेश्वर ने उसे अपने सन्देशवाहक के रूप में तैयार किया.
यीशु के जीवन से देखते है कि वह जीवन के हर क्षेत्र में यानी शारीरिक मानसिक, सामाजिक व आत्मिक तुअर पर बढ़ोत्तरी करता रहा.
लूका 2:40,51 में यह दिया है. हमारे द्वारा काम करने से पहले परमेश्वर हम में काम करता है. परमेश्वर अपना चरित्र हमारे भीतर पैदा करता है.
उद्धार का लक्ष्य भी यही है कि हम यीशु के समान बन जाएं. मनुष्य में परमेश्वर की समानता में लौटाता है. पाप द्वारा आए पतन से यीशु मसीह के द्वारा हम परिपक्वता तक पहुंचाए जाते हैं.
इफिसियों 2:1-10. चरित्र दान में नहीं दिया जाता है. परन्तु जैसे-जैसे हम परमेश्वर की मर्जी की पूरित के लिए अपने को समर्पित करते हैं वैसे-वैसे एक लम्बे समय में चरित्र का निर्माण होता है.
जितना हम मसीह के समान ढलते जाते हैं. उतना ही हम परमेश्वर द्वारा इस्तेमाल किए जाने के लायक बनते हैं, उतना ही फलवंत, प्रभावशाली बनते जाते हैं.
हमें सेवकाई में सफल करने वाली बातें हमारे वरदान और हमारी कार्य-कौशलता नहीं है बल्कि हममें प्रदशित मसीह का चरित्र है.
कुछ बातें जो हममें मसीह सा चरित्र पैदा करती हैं.
1. उद्धार :- जब हम यीशु के हो जाते हैं वह अपने आत्मा के द्वारा हम में वास करता है. 1 कुरु. 3:23, 2कुरु 5:17, यूहन्ना 1:12
2. परमेश्वर के वचन पर मनन :- परमेश्वर का वचन एक बीज के समान है. यदि सही परिस्थिति पड़ा की जाए तो वह अंकुरित होगा और फल पैदा करेगा.
मरकुस 4:13-20. मनुष्य में परमेश्वर की समानता पैदा होने में सबसे बड़ा दुश्मन है शैतान. यूहन्ना 15:1-4, इब्रानियों 4:12
3. परमेश्वर के वचन की आज्ञाकारिता :- इसके द्वारा हम परमेश्वर को हमारे जीवन का प्रभु बनाते हैं.. यीशु का हमारे जीवन पर उसके वचन द्वारा पूरा नियंत्रण बना रहता है.
आज्ञाकारिता बलि चढाने से ज्यादा उत्तम है. मत्ती 7:21 यूहन्ना 2:17. आज्ञाकारिता के द्वारा हम शुद्ध किए जाते हैं. फिली 2:5-8 1पतरस 1:22, भजन 119:9,111 परमेश्वर का वचन हमारा शुद्धिकरण करता है.
4. प्रार्थना :- प्रार्थना के द्वारा हम परमेश्वर के साथ वार्तालाप और संगती करते हैं. प्रार्थना के द्वारा हम परमेश्वर के दिल को पहचानने लगते हैं और उसका दिल हमारे अन्दर पैदा होने लगता है.
दानिएल. 6:10 में हम देखते हैं कि दानिएल प्रार्थना में लगातार बने रहा. प्रार्थना न केवल परिस्थिति को बदलता है बल्कि लोगों को भी बदलता है. 1 यूहन्ना 11
5. संगती :- यीशु मसीह की कलीसिया की सेवा यह है कि सभी विश्वासियों को परिपक्व बन्ने में मदद करें ताकि सब यीशु की पूरी डील डौल तक बढ़ सकें.
कलीसिया ही वह जगह है जहाँ सभी संत जीवन के सभी क्षेत्रों में सिद्ध किए जाते हैं. इफिसियों 4:12-16
6. सताव और दुःख :- रोमियो 5:3-4 परमेश्वर नहीं चाहता कि उसके सन्तान में दुःख में पड़े पर दुखों के द्वारा परमेश्वर हमको अनुशासित करता है.
इब्रानियों 12:3-8 जब जीवन में दुःख मुसीबते आने तो हमें उन्हें परमेश्वर की छ्टाव की विधि के रूप मेस स्वीकार करना चाहिए. याकूब 1:2-4.
कुछ चरित्र के गुण जो परमेश्वर हममें देखना चाहते हैं.
1. पवित्रात्मा का फल: गलातियों 5:22-23
प्रेम :- मत्ती 22:37-39 1कुरु. 1:3 रोमियो 5:5
आनन्द :- यूहन्ना 15:10, 11
शान्ति :- फिली 4:4-7
धीरज :- 1तिमू. 4:2
दयालुता :- 1युहन्ना 3:17, कुलु. 3:12
भलाई :- इफिसियों 2:10 मत्ती 5:16
विश्वासयोग्यता :- लूका 16:10-13
नम्रता :-मत्ती 5:5
संयम :- 1 तिमू 3:1-3 तीतुस 1:6-9 1कुरु 9:23-27
2. अच्छे सुनने वाले : इसका मतलब यह नहीं हैं कि हमें वह सब कुछ मानना है जो दूसरे लोग कहते हैं. एक अच्छा श्रोता यह समझ लेगा कि बोलने वाला क्या कह रहा है और क्या नहीं कह रहा.
वह बोलने वाले के भीरत आत्मा में झाँक लेता हैऔर इसका अच्चा हमदर्द बन पाता है. याकूब 1:19, नीतिवचन 10:19, याकूब 3:11 एक गलत धारणा है कि एक फल्वंत सेवकाई करने हेतु हमें बहुत अच्छा बोलना आना चाहिए.
3. मनुष्य से प्रेम करने वाले : मरकुस 10:45 हमें उन सब लोगों से प्रेम करना है और उनका आदर करना है जिनके बीच हम सेवा करते हैं. पाप में डूबी आत्माओं का बोझ इसी ईश्वरीय प्रेम का नतीजा है. 1 यूहन्ना 2:7-11, यूहन्ना 13:34.
4. हिम्मत वाले और बलवंत : यहोशु 1:6-9 हमारा जीवन औरो के लिए आदर्श होना चाहिए. और हम अपने च्र्रित्र के द्वारा दूसरों के सामने नए स्तर कायम करते हैं. हिम्मत और ताकत प्रभु की और से ही आत है. प्रेरितों 4:29.
5. अधीनता स्वीकार करने वाले : हमें सर्वप्रथम परमेश्वर के आधीन होना चाहिए और उनके सबके भी जिन्हें परेम्श्व्र हमारे ऊपर ठहराता है.
1 तीस 5:12. 13 व रोमियो 13:1,2 मसीही जीवन में स्वाधीनता अधीनता में ही है. जब हम उनके अधीन होते हैं जिनके नीचे प्रभु ने हमें रखा है तो हम ईश्वरीय सुरक्षा एवं आशीषों के लिए रास्ता खोल देते हैं.
6. सीखने की मनसा रखने वाले बने : परमेश्वर चाहते हैं कि हम ऐसे लोग बने जो सीखने की इच्छा रखते हों और सिखाए जा सकते हों.
जब हम यह सोच लेते हैं कि हमें सब कुछ आ गया है तो हम सेवा में पतन का रास्ता अनजाने में ही. खोलते हैं. हमें जीवन भर एक अच्छे विद्यार्थी के गुणों से सुसज्जित होना चाहिए.
7. कर्मठ बने : मत्ती 25:24-30 रोमियो 12:8 परमेश्वर नहीं चाहता कि उसकी सेवा करने वाले आलसी बने. वह ऐसे लोगों को स्तेमाल करता है जो जीवन के हर क्षेत्र में मेहनती होते हैं.
2 तिमू 4:2. आज इंसान की प्रवृत्ति इसके विपरीत है. सभी सुख सुविधाओं व उपकरणों ने इंसान को आलसी बना दिया है.
8. क्षमा करने वाले : क्षमा न कर पाना परेम्श्व्र द्वारा स्तेमाल किये जाने में एक बहुत बड़ी रुकावट है. हम जब औरो को क्षमा नहीं कर पाते हैं तो इससे हमारे और परमेश्वर के बीच के रिश्ते में रुकावट पैदा होती है और पवित्रात्मा शोकित होता है.
-: मसीही परिपक्वता :-
आत्मिक परिपक्वता एक ऐसी परक्रिया है जिसकी शुरुआत तब होती है जब एक वक्ती यीशु को अपने उद्धारकर्ता के रूप में स्वीकार करता है.
ऐसे व्यक्ति का पवित्रात्मा के द्वारा नया जन्म होता हैऔर उसके बाद वह यीशु में जीवन बिन्ताने का निर्णय लेता है.
(फिली. 3:12-14) यहाँ तक कि प्रेरित पौलुस भी यही कहते हैं कि वे भी वहा तक नहीं पहुंचे जहाँ तक उन्हें पहुंचना चाहिए. पर कहते हैं, कि वे लक्ष्य की तरफ दौड़ रहे हैं.
यीशु के प्रत्येक अनुयायी के लिए परमेश्वर की यही मर्जी है कि वह बढ़ोतरी करे और परिपक्वता तक पहुंचे.
परिपक्वता न तो उम्र पर, न बाहर दिखात पर, न उपलब्धियों पर और न ही पढ़ाई-लिखाई पर निर्भर होता है.
परिपक्वता हमारी मानसिकता पर आधारित होती है. हमारी मानसिकता ही हमारे चरित्र को प्रभावित करती है.
रिश्तो में आत्मिक परिपक्वता के लिए समर्पित हुए बिना हम कभी भी पडोसी को अपने समान प्रेम करने के लिए यीशु द्वारा दिए गए आज्ञा का पालन नहीं कर सकते.
यह जो आप सीख रहे हैं इस बात को आप उन तक पहुंचाएं जिनके साथ आप वचन का अध्ययन करते हैं और मिलकर मसीह यीशु में बढ़ते रहें.
एक आत्मिक रूप से परिपक्व व्यक्ति तीन क्षेत्रों में विकसित होता रहेगा
ज्ञान अथवा जानकारी में Knowing – सिर
बनना या अस्तित्व Being – ह्रदय
करना या अमल में लाना Doing – हाथ
आत्मिक परिपक्वता क्या नहीं है?
आत्मिक परिपक्वता के बारे में अक्सर लोगों में कुछ गलत धारणाएं होती है. इनसे बाहर निकलना चाहिए. इनमें से कुछ निम्नलिखित हैं .
– बप्तिस्मा लिए हुए बहुत समय हो जाना.
– अपने कलीसिया या मसीही समुदाय के सिद्धांतो का पूर्ण ज्ञान होना.
– प्रत्येक सप्ताह कलीसिया की सभाओं में जाना
– वृद्ध होना
– ऊँची आवाज से बात कर पाना या दूसरों पर हावी होने वाला व्यक्तित्व होना.
– कलीसिया में अगुवा होना. – बढ़िया कपडे पहनना
– एक बड़ा प्रचारक होना
– आत्मिक विरासत होना मतलब सेवकों के घर में या मसीही परम्परा में जन्म लेना
– बड़े लोगों या अभिषिक्त दासों के आस पास रहना
– बहुत ज्यादा धार्मिक प्रवृत्ति का दिखावा करना
– धनी होना
– चर्च या कलीसिया में ऊंचे पदाधिकारी होना
– बहुत ज्ञानवान होना.
एक आत्मिक रूप से परिपक्व व्यक्ति को कैसे पहचान सकते हैं?
1. एक परिपक्व व्यक्ति दबाव में भी सकारात्मक बना रहता है. देखें कि आप परेशानियों का सामना कैसे करते हैं.
याकूब 1:1-2 ‘हे मेरे भाइयों जब तुम नाना प्रकार की परीक्षाओं में पदों तो इसको पूरे आनन्द की बात समझो. यह जानकार कि तुम्हारे विश्वास के परखे जाने से धीरज उत्पन्न होता है.
पर धीरज को अपना पूरा काम करने दो कि तुम पूरे और सिद्ध हो जाओ और तुम में किसी भी बात की घटी न रहे.
2. एक आत्मिक परिपक्व व्यक्ति अन्य लोगों के प्रति संवेदनशील होता है. ध्यान दें आप दूसरों के साथ कैसे पेश आते हैं?
याकूब 2:8 तौभी यदि तुम पवित्रशास्त्र के इस वचन के अनुसार कि, तू अपने पडोसी से अपने समान प्रेम रख, सचमुच उस राज व्यवस्था को पूरा करते हो, तो अच्छा ही करते हो.
3. एक आत्मिक परिपक्व व्यक्ति अपनी जीभ पर नियंत्रण पा चुका है. आप जो कहते है उस पर क्या आप नियन्त्र करते हैं? याकूब 3:2 “इसलिए कि हम सब बहुत बार चूक जाते हैं, जो कोई वचन (जीभ) में नहीं चूकता वही तो सिद्ध मनुष्य है और सारी देह पर भी लगाम लगा सकता है. (इफी. 4:29)
4. एक परिपक्व व्यक्ति मेल कराता है मतलब शान्ति स्थापित करता है. आपकी उपस्थिति का दूसरों पर क्या असर पड़ता है?
याकूब 4:1 “तुम में लड़ाइयाँ और झगड़े कहाँ से आ गए? क्या उन सुख विलासों से नहीं जो तुम्हारे अंगो में लड़ते भिड़ते हैं.”
रिश्तों में कडवाहट के दो मुख्य कारण : स्वार्थपूर्ण इच्छाएं जो दिया है याकूब 4:3 व नीतिवचन 13:10 में और दूसरों में दोष निकालने की पृवत्ति या आत्मा जो दिया है याकूब 4:11 में
तीन कारणों से हमें दोष नहीं लगाना चाहिए – मैं खुदा नहीं हूँ. / केवल परमेश्वर ही पूरी सच्चाई जानता है. / केवल परमेश्वर ही ह्रदय की भावनाओं को जानता है.
5. एक परिपक्व व्यक्ति प्रार्थना करने वाला व्यक्ति होता है. अपने जीवन की समस्याओं के समाधान के लिए आप कितना परमेश्वर पर निर्भर रहते हैं?
याकूब 5:16 “और एक दूसरे के लिए प्रार्थना करो जिस्स्से चंगे हो जाओ. धर्मी जन की प्रार्थना के प्रभाव से बहुत कुछ हो सकता है. (लूका 22:31)
6. एक परिपक्व व्यक्ति ईश्वरीय प्रेम को प्रकट करता है. आत्मिक परिपक्वता का एक प्रधान लक्षण है कि एक व्यक्ति ईश्वरीय प्रेम में कितना बढ़ पा रहा है.
आत्मिक रूप से परिपक्व होने का मतलब है कि परमेश्वर के जैसे बनना. हम बुलाए गए हैं की हम परमेश्वर के समान बन सकें. पौलुस ने इफिसियों यही कह, इफिसियों 5:1-2 1यूहन्ना 4:8
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