क्रिसमस की कहानी | बड़ा दिन, यीशु मसीह की कहानी | Christmas in Hindi
दोस्तों आज हम जानेगे क्रिसमस की कहानी के विषय में बाइबल क्या कहती है. क्यों ये त्यौहार पूरे दुनिया में मनाया जाता है. Most Amazing Christmas Story in Hindi लेख लिखने का एकमात्र उद्देश्य यह है ताकि हम जान सकें कि असल में सच्चाई क्या है. तो आइये जानते हैं इस लेख के माध्यम से. मैं इसमें ऑडियो भी डाल दूंगा ताकि आप लोग सुन सकें और लोगों को शेयर कर सकें.
परन्तु जब समय पूरा हुआ, तो परमेश्वर ने अपने पुत्र को भेजा, जो स्त्री से जन्मा और व्यवस्था के अधीन उत्पन्न हुआ.
(गलातियों 4:4)
क्रिसमस की कहानी यीशु के जन्म से पहिले
पूरी दुनिया में क्रिसमस (25 दिसम्बर) को बड़े धूम धाम से मनाया जाता है. जिसमें क्रिसमस ट्री और सेंटा क्लोस को दिखाया जाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं बाइबल में इन दोनों का कोई जिक्र ही नहीं है. तो फिर क्रिसमस क्यों मनाया जाता है.
क्या है इसकी सच्चाई. दरसल क्रिसमस प्रभु यीशु के जन्म के उपलक्ष्य में मनाया जाता है. जिस प्रकार उपरोक्त बाइबल का पद बताता है. परमेश्वर ने इस दुनिया को जब बनाया तो सब कुछ बहुत सुंदर बनाया और उसमें सबसे सुन्दर सृष्टि या यूं कहें मास्टर पीस मनुष्य को बनाया और कहा, “तुम फूलो फलो और इस दुनिया में राज्य करो. अधिकार रखो”.
लेकिन साथ ही साथ हिदायत दी मेरा कहना मानना मेरी आज्ञा का पालन करना. लेकिन मनुष्य ने वही एक काम गलत किया कि परमेश्वर की आज्ञा का उलंघन किया और मना किये हुए पेड़ से फल तोड़कर खाया. जिसके कारण सारी की सारी पीढ़ी पापी हो गई. और फिर ये दुनिया पाप के दलदल में फंसती चली गई. मानवजाति और परमेश्वर के बीच एक अलगाव हो गया.
हर व्यक्ति जन्म से ही पापी स्वभाव का होने लगा. वो जो भी सोचता वह पाप से भरा होने लगा. लेकिन परमेश्वर ने इस मानव जाति को बचाने के लिए समय समय पर अपने भविष्यवक्ताओं को भेजा ताकि वे लोग परमेश्वर के दिल की बात समझ सकें.
लेकिन मानवजाति का हृदय कठोर हो गया था. इसलिए परमेश्वर ने बहुत इंतजार करने के पश्चात एक योजना बनाई कि वे अपने एकलौते पुत्र यीशु मसीह को इस दुनिया में भेजेंगे ताकि सारी मानवजाति उन पर (यीशु मसीह पर) विश्वास करे और विश्वास करने से सभी का उनके पापों से उद्धार हो जाए.
क्योंकि उस समय तक लोगों की मान्यता थी कि हमारे पापों के बदले यदि हम किसी जानवर या पक्षी की बलि देंगे तो हम बच जायेंगे. इसलिए प्रभु परमेश्वर ने अपने पुत्र को ही इस धरती पर भेज दिया ताकि वो सारे मानवजाति के लिए एक बार हमेशा के लिए बलि हो जाए. और यह बलि प्रथा समाप्त हो जाए.
और फिर किसी भी जानवर या पक्षी की बलि न दी जा सके. ( परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उसने अपना इकलौता पुत्र दे दिया ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे वो नाश न हो बल्कि अनंत जीवन पाए. (यूहन्ना 3:16) मसीह यीशु का देह धारण कर इस पृथ्वी में आना संयोगवश नहीं हुआ था.
बल्कि परमेश्वर की योजना के द्वारा हुआ. जब यीशु का इस पृथ्वी पर जन्म हुआ, बाइबल की अधिकांश भविष्यवाणियों की पूर्ति उसमें हुई थी. ये भविष्यवाणियाँ उसके जन्म से बहुत पहले भविष्यवक्ताओं के द्वारा की गई थीं.
क्रिसमस की कहानी यीशु मसीह के जन्म के समय
जहाँ यीशु मसीह का जन्म होने वाला था वह देश इस्राएल रोमन साम्राज्य के अधीन था. रोमन के सैनिक बहुत क्रूर हुआ करते थे. इसलिए इस्राएल की जनता बहुत ही दुखी थी, तथा सारी प्रजा किसी राजा के प्रगट होने की बाट जोह रही थी. क्योंकि भाविष्यवक्ताओं ने उन्हें बताया था.
एक उद्धारकर्ता जन्म लेगा. प्रभुता उसके काँधे पर होगी और उसके राज्य का कभी अंत न होगा और वह अद्भुत युक्ति करने वाला होगा. (यशायाह 9:6)
उस समय स्वर्ग से एक स्वर्गदूत आकर एक कुआंरी लड़की (मरियम) जिसकी मंगनी युसूफ नामक एक यहूदी जवान से हुई थी लेकिन के पास उतरता है और उसे कहता है, हे मरियम आनन्द और जय तेरी हो जिस पर परमेश्वर का अनुग्रह हुआ है और प्रभु तेरे साथ है. मरियम बहुत डर जाती है.
तब स्वर्गदूत कहता है, तू गर्भवती होगी और तेरा एक पुत्र होगा तू उसका नाम यीशु रखना . और परमेश्वर की सामर्थ तुझ पर होगी. हालाकि वह कहती है मेरा तो विवाह नहीं हुआ मैं किसी पुरुष को नहीं जानती. तब भी परमेश्वर की ओर से एक असम्भव काम संभव हुआ क्योंकि परमेश्वर ने उसे चुना था.
यद्यपि मरियम यह सोच सकती है कि बिना विवाह के पुत्र होगा तो क्या होगा…समाज या परिवार के लोग क्या कहेंगे. लेकिन मरियम ने कहा प्रभु की मर्जी मेरे जीवन में पूरा हो. और मरियम गर्भवती हो…मरियम की मंगनी जिसके साथ हुई थी उसका नाम युसूफ था.
वह धर्मी व्यक्ति था और उसने जब जाना कि उसकी होने वाली पत्नी गर्भवती है तो वह उसे बिना बदनाम किये उसके जीवन से दूर चला जाना चाहता था. लेकिन तब परमेश्वर ने उसे स्वप्न में आकर कहा, युसूफ तू ऐसा मत कर मरियम को ग्रहण करने में संकोच मत कर क्योंकि वह परमेश्वर की आत्मा की ओर से हुआ है.
युसूफ ने मरियम को ग्रहण किया और उसके साथ विवाह किया. युसूफ और मरियम दुनिया के सबसे आशीषित माता पिता कहलाए क्योंकि परमेश्वर स्वयं उनके घर मानव रूप लेकर जन्म लेने वाले थे.
ये इसलिए हुआ क्योंकि दोनों ने परमेश्वर की आज्ञा मानी और अपने जीवन को सौंप दिया. उन्हीं दिनों जब मरियम के प्रसव के दिन पूरे हुए तो उस देश में राजा की आज्ञा के अनुसार जनगणना हुई और उसमें युसूफ और मरियम को नाम लिखाने जाना था.
जब वे दोनों बेतलेहम में अपना नाम लिखवाने पहुँचते हैं तब उस स्थान में युसूफ और मरियम के लिए सराय में ठहरने के लिए कोई जगह नहीं थी. और लिखा है और यीशु का जन्म हुआ और उसे गौशाले में एक चरनी में (गाय के भोजन करने के पात्र में) एक बोरे के कपड़े में लपेट कर रखा गया.
इसका मतलब है हो सकता है यीशु का जन्म किसी रास्ते में या गौशाले के बाहर हुआ. इस दुनिया का बनाने वाले का जब जन्म हुआ तो उसे सर रखने की जगह न थी.
इस बात की ख़ुशी मनाने के लिए स्वयं स्वर्गदूत के दल ने इस धरती पर आकर गीतों को गाया और जाकर भेड़ बकरियों को चराने वाले गरडियों को सुसमाचार सुनाया कि डरो मत मैं तुम्हें आनन्द का सुसमाचार सुनाता हूँ जो सबके लिए होगा. क्योंकि तुम्हारे लिए एक उद्धारकर्ता जन्मा है.
वह एक गौशाले में एक चरनी में कपड़े से लपटा हुआ पाओगे. और वे लोग गए वैसा ही पाया और बड़े आनन्द से भर गए.
क्रिसमस की कहानी और मजूसी लोग
उसी दिन पूर्व देश में कुछ मजुसियों ने (विद्वान लोगों ने ) एक तारे को देखा जो एक नया तारा था और ये लोग तारे की गणना करना जानते थे उन्होंने उस तारे को परमेश्वर की ओर से निर्देश समझकर उसका पीछा करना शुरू किया और वे यरूशलेम तक पहुँच गए.
उन्होंने वहां के राजमहल जाकर राजा हिरोदेश से पूछा कि, यहूदियों का राजा जिसका जन्म होना था कहाँ है, (मत्ती 2:2) राजा हेरोदेश यह सुनकर घबरा गया और उसने अपने विद्वान शास्त्रियों से पूछकर पता लगाया क्या ये जो कुछ कह रहे हैं सच है.
तब उनहोंने बताया हाँ शास्त्रों में ऐसा ही लिखा है. तब वह राजा उन विद्वानों को जिन्हें हम मजूसी भी कहते हैं कहा, जाओ और देखो कि वह राजा कहाँ जन्मा है और लौटकर मुझे बताना. उन मजुसियों ने उस तारे का पीछा करते हुए एक घर में पहुंचे.
वहां बालक यीशु अपनी माता और पिता युसूफ के साथ था तब ये विद्वान मजूसी लोगों ने उस बालक यीशु को दंडवत किया (आराधना किया) और भेंट चढ़ाए. उन्होंने तीन भेंट चढाई सोना मुर्र और लोबान इसलिए अनुमान लगाया जाता है कि मजूसी लोग शायद तीन लोग थे.
यहाँ एक बात गौर करने की है, कि मजूसी लोग एक लंबे समय से चलकर उस तारे को देखकर आ रहे थे. उस समय तक यीशु एक बालक थे शिशु नहीं और वे अब गौशाले की चरनी में नहीं बल्कि घर में थे.
और इन मजुसियों ने मरियम और युसूफ की आराधना नहीं की बल्कि उस बालक की आराधना की अत: हमें भी केवल यीशु की आराधना करनी चाहिए. (और जो आज हम क्रिसमस की तस्वीर में देखते हैं गरड़िये और मजूसी साथ में दिखाई देते हैं वो भी सत्य नहीं.
क्योंकि मजुसियों के आने में लगभग 2 वर्ष लगे होंगे क्योंकि तभी राजा हिरोदेश ने कहा था जितने भी बच्चे दो वर्ष के हों उन्हें मरवा दिया जाए. ये सम्पूर्ण घटना बताती है कि प्रभु यीशु के जन्म के समय पूरा विश्व कैसे इंतजार कर रहा था और परमेश्वर ने अपने स्वर्गदूतों के जरिये न अनपढ़ को बल्कि पढ़े लिखे मजुसियों को भी अपने पुत्र यीशु मसीह के दर्शन कराए.
आज वही उद्धार का संदेश हम सभी के लिए है कि आज दाउद के नगर में तुम्हारे लिए एक उद्धारकर्ता जन्मा है…और यही मसीह प्रभु है. (लूका 2:11)
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सुनिए परमेश्वर के वचन की लघु कहानियां
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Pastor Rajesh Bavaria (An inspirational Christian evangelist and Bible teacher)