तीसरी वाणी | Third Saying of Jesus on the Cross. (John 19:26,27)
जब यीशु ने अपनी माता और उस चेले को जिससे वह प्रेम रखता था पास खड़े देखा तो अपनी माता से कहा, “हे नारी, देख यह तेरा पुत्र है.” तब उसने चेले से कहा “यह तेरी माता है.” और उसी समय से वह चेला उसे अपने घर ले गया.
अब तक हम सुन चुके हैं, क्रूस पर यीशु की दो वाणियों के विषय में और आज हम बात करेंगे क्रूस की तीसरी वाणी के विषय में और आइये आज हम क्रूस की तीसरी वाणी के बारे में बातें करें. आइये इस पुरे दृश्य को अपनी नहीं वरन मरियम की आखों से देखते हैं.
तो मरियम जिसको स्वर्गदूत ने दर्शन दिया की तू एक पुत्र जनेगी और बेतलहम की चरनी में या वहां की सड़कों पर उन कठिन हालातों में उसने यीशु को जन्म दिया. घर का पहला बेटा था वो और बड़े कठिन हालातों में ही एक बढ़ई के घर में उसका पालन पोषण हुआ. और तीस साल की उम्र तक यीशु अपनी माता के साथ ही रहा.
और आज 33 साल की उम्र में उसको क्रूस पर चढ़ा हुआ वो देख रही है. और जिस हालात में यीशु उस समय पर है जहाँ पुरे बदन पर उसके कोड़े मारे जाने के निशाँ है, सर पर काँटों का ताज है और हाथों पैरों में कील ठुकी हुई है. कोई भी साधारण व्यक्ति इस दृश्य को देखकर दुख से भर सकता है. तो फिर उसकी मां मरियम के दिल में क्या बीत रही होगी. जिसके बेटे को बिना किसी अपराध के सजा मिल रही थी.
यह बात शमौन की भविष्यवाणी को पूरा करता है कि ” वरन तेरा प्राण भी तलवार से वार पार छिद जाएगा.” लूका 2:34 ऐसे दुःख के समय में मरियम को ढांढस बंधाने के लिए वो कहता है, कि हे नारी ये तेरा पुत्र है और यूहन्ना ये तेरी माता है. और इस Statement से आज कई बातों को हम सीख सकते हैं.
1. पहला सवाल जो हमारे मन में उठना चाहिए वो है कि यूहन्ना ही ने इस बात को क्यों लिखा? क्यों मत्ती या मरकुस या लूका ने नहीं लिखा. क्योंकि ये बात यीशु ने स्वयं यूहन्ना से कही थी. और साथ में कुछ स्त्रियाँ भी वहां खड़ी थीं. बाकी सभी चेले इसलिए वहां नहीं थे क्योंकि एक बड़ा आरोप यीशु मसीह पर लगा था और कोई नहीं चाहता था अपना नाम उसके साथ जुड़ना.
2. यूहन्यूना का वहां उपस्थित होना उसकी Availability को या उसकी उपलब्धता को दर्शाता है. और जो उपलब्ध है उसको प्रभु जिम्मेदारी देते हैं. यूहन्ना वहां उपलब्ध था तो यीशु ने उसे अपनी माता की जिम्मेदारी सौंपी.
तो आज ये सवाल हम अपने आप से पूछें कि क्या हम उसके लिए Available हैं…क्या जब यीशु को मेरी जरूरत है तो मैं उसके लिए खड़ा हूँ या नहीं. यशायाह ने जब प्रभु का वचन सूना कि मैं किसको भेजूं और हमारी ओर से कौन जाएगा? तब यशायाह ने कहा मैं यहाँ हूँ. मुझे भेज. वो उपलब्ध है प्रभु के लिए इस्तेमाल होने के लिए.
शमूएल को परमेश्वर ने पुकारा तो उसने कहा, कि हाँ प्रभु बोल क्योंकि तेरा दास सुनता है” अर्थात वो उपलब्ध है परमेश्वर की आवाज को सुनने और उसके अनुसार करने के लिए.
तो क्या आज मैं और आप उपलब्ध हैं उसकी आवाज को सुनने के लिए और कहने के लिए कि हाँ प्रभु मैं Ready हूँ मुझे भेज या मुझे ये जिम्मेदारी प्रदान कर.
2. यीशु मसीह ने एक पुत्र होने फर्ज को अदा किया.
क्रूस के ऊपर जब यीशु अपने शरीर में बड़ी यातनाओं को सह रहा है उस समय में भी वो अपने कर्तव्य को नहीं भूलता और ऐसे समय में भी उसे दूसरों का ख्याल है, अपने जाने के बाद वो अपनी मां को यूं ही नहीं छोड़ना चाहता पर उसके लिए पर्याप्त इंतजाम को करता है. और अपने चेले को जिससे वह प्रेम करता था उसको उसकी जिम्मेदारी सौंपता है.
और परमेश्वर द्वारा दी गई पांचवी आज्ञा को वो पूरा करता है जो कहती है, कि ” तू अपने माता पिता का आदर करना. लोग अक्सर जीते जी अपने मां बाप को छोड़ देते हैं परन्तु वो अपनी आखिरी साँसों को लेते वक्त भी अपनी मां को याद रखता है.
3. तीसरी बात को यदि हम देखें तो उसने कहा कि हे नारी. उसने हे माता, या हे मां या कोई और शब्द का प्रयोग नहीं किया , जैसा कि आज बहुत से लोग करते हैं और मरियम ओ एक विशेष दर्जा देते हैं कोई कहता है “स्वर्ग की रानी” या फिर और भी बहुत कुछ.
यीशु मसीह नहीं चाहते थे कि कोई विशेष दर्जा उसकी माता को दिया जाए या फिर लोग किसी असमंजस में रहें कि वास्तविकता में उद्धारकर्ता कौन है? उद्धार केवल यीशु मसीह से है, न की मरियम से जैसा कि आज बहुत से लोग मानते हैं. एक बार यीशु मसीह की माता और भाई उससे मिलने को आए थे और चेलों ने कहा कि तेरी माता और भाई आए हैं तो उसने कहा कि जो मेरी बातों को सुनता है वही मेरे माता और भाई हैं.
तो यीशु मसीह ने क्रूस पर भी मरियम को समान दर्जा ही दिया और अपनी जिम्मेदारी को पूरा किया. आप ध्यान दे तो पता चलता है कि यीशु मसीह वहाँ पर मरियम या यूहन्ना से कोई Request या निवेदन नहीं कर रहा है परन्तु आज्ञा दे रहा है.
मसीह के चरित्र की ये विशेषता हैं जब वो प्रचार भी करते थे तो एक अधिकारी के समान लोगों को आज्ञा देते थे, जिससे बहुत से लोग उससे प्रभावित भी होते थे. वाही चरित्र हम यीशु मसीह का यहाँ क्रूस पर भी देख सकते हैं हैं.
किसी ने कहा है, कि यीशु मसीह क्रूस पर है पर वो ऐसे बात कर रहें हैं जैसे कि कहीं सिंहासन पर बैठे हुए हों.
4. एक नए तरह से संबंध को वहाँ यीशु मसीह ने बनाया. उसने अपनी माता का पुत्र होने के लिए अपने एक चेले को चुना हालाकिं यूहन्ना यीशु के परिवार का ही था. यीशु की माता मरियम और यूहन्ना की माता सालोमी बहन थीं.
पर यहाँ पर हम बात कर रहे हैं खून के रिश्ते से बढकर एक संबंध की जो है प्रेम का संबंध. यूहन्ना प्रेम के बारे में काफी बातें करता है जैसे की एक नई आज्ञा मैं तुम्हें देता हू जैसे मैंने तुमसे प्रेम किया, तुम भी एक दूसरे से प्रेम करो. (jn 3:11, 3:16)
आपसी प्रेम के बारे में यूहन्ना काफी बातें करता है. तो मसीह में हमारा जो संबधं है, वो खून के रिश्ते से भी बड़ा है हम एक अनंत परिवार के सदस्य हैं जो कि हैं परमेश्वर का परिवार.
जब यीशु मसीह ने कलीसिया की स्थापना की तो उसने एक परिवार की स्थापना की और हम बेशक अलग अलग जगह से हों अलग संस्कृति से या पृष्ठभूमि से हों पर हम सब एक परिवार हैं.
हम कैसे विश्वास को बढ़ा सकते हैं
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