पैसा बोलता है, (लघु नाटिका), एकल नाटक | Best Single Drama (Paisa bolta hai).

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नोट:- यह नाटिका मैंने (राजेश ने ) लिखा है इसका मंचन किया जा सकता है लेकिन इसे पुन: लिखित रूप से या यूट्यूब में बिना मेरे अनुमति के पब्लिस नहीं किया जा सकता इसका कॉपीराइट आ जाएगा धन्यवाद …

पर्दा उठता है

और मंच में एक फटेहाल जवान व्यक्ति बैठा हुआ हुआ है. और अपने जीवन की समस्याओं से परेशान होकर बडबडाता है

स्वयं से बातें करता हुआ, मैं क्या करू…मैं किसी धनी के घर में पैदा क्यों नहीं हुआ ??

दिनेश का दुःख

कितना भी काम करूँ कितना भी मेहनत करूँ मेरे पास कुछ बचता ही नहीं, पैसे मेरे पास रुकते ही नहीं…खाना पानी, घर का किराया, और ऊपर से यह मंहगाई मेरी जान लेकर ही रहेगी…कोई मुझे बताए मैं क्या करूँ …

अपनी जेब से आखरी बचा हुआ एकमात्र सौ रूपये का नोट निकाल कर उसे जोर जोर से कोसता है, ” यार मेरे नोट तुम कितने धोखेबाज हो मैं तुम्हे बड़ी मेहनत से कमा कर ले कर आता हूँ और तुम हो कि मुझे हमेशा छोड़कर भाग जाते हो…. कभी दवाई में तो कभी घर के किराए में कभी ट्रेफिक पुलिस वाले के पास तो कभी दुकानदार के पास…..

यार तुम मेरे पास रुकते क्यों नहीं…धनी लोगों के पास तो तुम भर भर कर घुसते हो तो हमसे क्या एलर्जी है… क्यों भागते हो मेरे पास से…टिकते क्यों नहीं मेरे पास…तुम्ही बताओ मै ऐसा क्या करूँ…..जिससे तुम मेरे पास ही रहो और बढ़ो मेरे पास….अरे कुछ बोलते क्यों नहीं ….

हमेशा रात दिन बिना नागा किये मेहनत करता हूँ…काम पर जाता हूँ…फिर भी कंगाल हूँ….मेरे पास अब तेरे सिवा कुछ भी नहीं है …और वो फुट फुट कर रोने लगता है …..

तभी वह कुछ धीमी आवाज सुनता है…दिनेश…हे दिनेश ….दिनेश डर के मारे चारो ओर देखता है और तेज आवाज में पूछता है कौन है कौन बोल रहा है ??

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पैसा बोलता है

तभी 100 का नोट हँसते हुए कहता है, मैं हूँ तेरा 100 का नोट …देख दिनेश मैं तो हमेशा तेरे पास आता हूँ तू ही मुझे इस्तेमाल करना नहीं जानता, मुझे भगा देता है…मुझे हमेशा खर्च कर देता है कभी किराए के रूप में तो कभी किसी और रूप में…

तू हमेशा मेरे लिए काम करता है, बड़ी मेहनत करता है लेकिन तूने मुझे कभी काम पर नहीं लगाया…तू रात दिन सुबह से शाम मेरे लिए काम करता है…परन्तु क्या तू जानता है कि, “जैसे मैं बोल सकता हूँ वैसे ही तेरे लिए काम भी कर सकता हूँ…”

अब चल जैसा मैं तुझसे कहता हूँ तू वैसा वैसा करता जा….दिनेश ने भी सहमती में अपना सिर हिला दिया और उस सौ रूपये को लेकर चल दिया…दिनेश ने सौ रूपये से गुब्बारे खरीदा और उन गुब्बारों को अपने मुंह से फुला फुला कर जहाँ बच्चे ज्यादा थे उनके बीच जाकर बेचने लगा और यह क्या कुछ ही मिनिटों में सारे गुब्बारे बिक गए और 100 रूपये से उसने 500 रूपये बना लिया

पैसा काम करता है

और मारे ख़ुशी के उन पैसों चूमने लगा …उसे लगा जैसे ये सौ सौ के पांच नोट एक साथ कह रहे हैं… अभी तो पूरा दिन बाकी है हमें भी काम में लगा …उसने उन 500 रुपयों से भी गुब्बारे खरीदे और उन्हें इंडियागेट के बाहर आई बच्चों की भीड़ में बेचने लगा और दिन ढलते ढलते 500 रूपये से 5000 रूपये कमा लिए …आज से पहले दिनेश इतना खुश कभी नहीं था

अब क्या था, दिनेश रोज ही ऐसा करने लगा अब तो वह एक गुब्बारे फुलाने की मशीन भी खरीद लिया और कुछ दिनों में वह अपने जैसे 3 और लोगों को अपने साथ काम में लगा लिया वो मशीन से गुब्बारे फुलाता और उनको देता वे लोग अलग अलग स्थानों में खड़े होकर गुब्बारे बेचते और मुनाफे का आधा आधा बाँट लिया जाता ….

दिनेश प्रतिदिन तरक्की करते जा रहा था वह प्रतिदिन लगभग 2000 की बचत को अलग रख देता और बाकी पैसों से अपना घर भी चलाता और अपने छोटे व्यापार को भी बढाता जाता…कुछ ही महीने बीते थे की उसने अपना एक बड़ा घर खरीदा और अपनी पत्नी के लिए एक सिलाई मशीन खरीद कर दे दिया

उसकी पत्नी जो सिलाई में दक्ष थी उसने अनेक गरीब लडकियों को कम फीस में सिलाई सिखाना शुरू कर दी ….दिनेश आधे घर को किराए से दिया और आधे घर में स्वयं रहता और सिलाई मशीन का काम भी चलवाता था….

अब वह शाम को जल्दी आ जाता क्योंकि उसका काम उसने लोगों को बाँट दिया …और एक नया काम उसने शुरू किया शाम को वह Artificial jewellery खरीद कर अपने पास के बाजार में बेचने लगा…पैसा तो जैसे चारों ओर से उसके पास बह कर आ रहा था ….अब वह जिस काम में हाथ लगाता वह सफल होता और बढ़ने लगता….

दिनेश का सफल जीवन

दिनेश आज अपने परिवार के साथ दिल्ली के नगली पूना नामक स्थान में ख़ुशी ख़ुशी रहता है…आज वह पूरी रीती से जानता है कि “पैसा न केवल बोलता है, बल्कि काम भी करता है,”

दोस्तों यह नाटिका सच्ची घटना पर आधारित है जिसे मैंने केवल एक नाटक का रूप दिया है यह पैसा नहीं है जो बोलता है यह हमारा दृष्टिकोण है जो हमें या तो गरीबी की ओर लेकर जाता है या सफलता की ओर…विश्वास करता हूँ यह कहानी आपको पसंद आई होगी यदि हाँ तो इसे शेयर करें और इस पेज को सबस्क्राइब करें…अपने विचार कमेन्ट में लिखकर जरुर बताएं कि इस कहानी में आपको क्या अच्छा लगा धन्यवाद


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3 thoughts on “पैसा बोलता है, (लघु नाटिका), एकल नाटक | Best Single Drama (Paisa bolta hai).”

  1. बहुत अच्छे से आप लिखते हैं मैं इसे पढ़कर बहुत आशीष पाया हूं और आशा करता हूं कि बहुत से लोग आपके इस आर्टिकल, बाइबल संदेश और कहानियों को पढ़कर बहुत कुछ सीख रहे होंगे और आशीष पा रहे होंगे।

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