हेलो दोस्तों बाइबल के प्रेरक प्रसंग में एक hindi bible ki kahani आपके लिए लाया हूँ जो है अब्राहम की कहानी जिसे बाइबल में तीन बार परमेश्वर का मित्र कहा गया है. आज हम सीखेंगे कैसे हम भी परमेश्वर के मित्र बन सकते हैं.
परमेश्वर का मित्र
बाइबल में तीन स्थानों में 2 इतिहास 2:7, यशायाह 41:8 और याकूब 2:23 अब्राहम को परमेश्वर का मित्र कहकर संबोधित किया गया है. अब्राहम के पिता का नाम तेरह था, वह ऊर देश का निवासी था जिसे परमेश्वर ने बुलाया. था जिसे हम अब्राहम की बुलाहट भी कहते हैं.
अब्राहम को परमेश्वर का मित्र क्यों कहा गया?
अब्राहम में कुछ सच्चे मित्र की खूबी या qualities पायी जाती हैं, जो हम उत्पति की पुस्तक जो (बाइबल की पहली पुस्तक) 18 अध्याय में पाते हैं. एक बार परमेश्वर स्वर्गदूत के रूप में इस धरती पर अब्राहम को दर्शन दिए. तीन स्वर्गदूतों को देखकर अब्राहम उनसे मिलने को दौड़ा.
- वह परमेश्वर से मिलने को दौड़ा (उत्पति 18:2) :- अब्राहम अब 99 वर्ष का एक बुजुर्ग व्यक्ति है, तौभी वह परमेश्वर से मिलने को दौड़ा. एक मित्र से मिलने के लिए दूसरा मित्र फुर्ती करता है. और प्रेम से मिलता है जैसे कि अब्राहम ने परमेश्वर के साथ किया. अब्राहम कड़ी धूप में भी आलस्य नहीं किया.
- उसने परमेश्वर के साथ समय बिताना चाहा (v. 3) :- एक मित्र जब अपने परम मित्र से मिलता है तो बार बार घड़ी नहीं देखता बल्कि उसके साथ समय बिताना चाहता है. अब्राहम जो परमेश्वर का मित्र था ऐसा ही किया. उसने कहा अपने दास के पास से चले न जाना.
- अब्राहम ने अतिथि सत्कार किया (v.4):- एक सच्चा मित्र अपने मित्र का अतिथि सत्कार करता है उसे भोजन करवाता है जैसा अब्राहम ने किया उसने परमेश्वर को भोजन करवाने के लिए बढ़िया से बढ़िया जो उससे हो सकता था उसने किया. अब्राहम ने पहुनाई की.
- अब्राहम ने बिना लालच के सब कुछ किया :- एक सच्चा मित्र अपने मित्र के लिए निस्वार्थ भाव से सेवा करता है. क्योंकि अब्राहम को नहीं मालुम था कि वो स्वर्गदूत के रूप में परमेश्वर ही है. जबतक परमेश्वर ने स्वयं उसे प्रगट नहीं किया. अब्राहम ने बिना किसी लालच के सेवा की.
परमेश्वर का मित्र होने का प्रतिफल
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि परमेश्वर किसी का कर्जदार नहीं. यदि हमने परमेश्वर के लिए थोड़ा भी काम किया है वह मसीह यीशु में व्यर्थ नहीं होगा. उसी प्रकार अब्राहम ने जो परमेश्वर के प्रति अपनी मित्रता दिखाई थी. परमेश्वर ने उसे प्रतिफल दिया.
अब्राहम को सन्तान की प्राप्ति
परमेश्वर ने उसके तम्बू में आकर उसकी पत्नी और अब्राहम को आशीष दिया और कहा आज से ठीक एक वर्ष के पश्चात बसंत ऋतू में तुझे एक सन्तान पुत्र की प्राप्ति होगी. स्मरण रहे अब्राहम उस समय 99 वर्ष का है.
मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर हूँ
परमेश्वर ने अब्राहम से कहा मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर हूँ इसका अर्थ यह है. कि तू जो बूढ़ा है जो यह सोचता होगा कि मेरे शरीर से या विचार से यह तो असंभव है लेकिन परमेश्वर उसे स्मरण दिला रहा है मैं तेरा मित्र शक्तिमान परमेश्वर हूँ मुझसे सब कुछ सम्भव है. मैं तुझे आशीषित करूँगा. और दुनिया के सारे कुल तेरे द्वारा आशीष पाएंगे.
परमेश्वर अपने मित्र को सबकुछ बताता है.
परमेश्वर का मित्र होना सर्वश्रेष्ठ बात है. जिस प्रकार एक मित्र अपने मित्र से कुछ भी नहीं छिपाता बल्कि सब कुछ बता देता है उसी प्रकार परमेश्वर ने अब्राहम से मित्रता निभाई और उसे उस मिशन के विषय में भी बता दिया जिसे पूरा करने इस पृथ्वी पर आये थे. सदोम और अमोरा को आग से नाश करने.
अब्राहम की प्रार्थना
अब्राहम अपने परमेश्वर की बात सुनकर परमेश्वर के दिल की चाहत को समझ गया. परमेश्वर यहोवा अवश्य यह कह रहा था कि मैं उस सदोम को नाश करने आया हूँ लेकिन अब्राहम समझ गया परमेश्वर दिल से ये देश नाश नहीं करना चाहते. नहीं तो बिना बताए भी नाश कर सकते थे.
इसलिए अब्राहम ने उस देश को बचाने के लिए प्रार्थना करना शुरू किया. और विनती की यदि वहां कुछ लोग प्रार्थना करने वाले होंगे या विश्वास करने वाले होंगे जो परमेश्वर की आराधना करते हों तो क्या उनके कारण भी कुछ दया नहीं की जाएगी.
बड़ी रोचक बात है परमेश्वर बड़े धैर्य से उस विनती को सुनकर अब्राहम को बता रहे हैं नहीं मैं उन धर्मियों के कारण पूरे देश को नाश नहीं करूंगा. लेकिन 50 धर्मी भी उस देश में नहीं थे सभी पापी हो चुके थे. तब अब्राहम ने कहा क्या 10 लोगों भी धर्मी होंगे तो क्या तब भी बच सकता है . परमेश्वर ने कहा हाँ. अर्थात उस देश में 10 लोग भी धर्मी नहीं थे.
आज सवाल उठता है क्या हम परमेश्वर के मित्र बन सकते हैं और अपने देश के लिए प्रार्थना कर सकते हैं. यदि हाँ तो हमें कुछ उपरोक्त बातें जो अब्राहम के जीवन से सीखकर अपने जीवन में लागू करना चाहिए.
परमेश्वर का मित्र बनने के लिए हमें परमेश्वर के साथ समय बिताना अर्थात प्रार्थना में समय बिताना आवश्यक है. और उसकी आज्ञा का पालन करते हुए उसके लोगों के साथ प्रेम भाव के साथ रहना होगा.
हम भी परमेश्वर के मित्र हैं
प्रभु यीशु ने यूहन्ना 15:15 में कहा अब से मैं तुम्हें दास न कहूँगा क्योंकि दास नहीं जानता कि उसका स्वामी क्या करता है लेकिन मित्र जानता है. इसलिए मैं तुम्हें मित्र कहूँगा क्योंकि मैंने तुम्हें मित्र कहा है. जो बाते मैंने अपने पिता से सुनी वो सब तुम्हें बता दी.
प्रभु यीशु हमें मित्र कहता है तो आइये हम भी मित्रता को निभाएं और परमेश्वर का मित्र कहलाएं. प्रभु आप सभी को आशीष दे अपने कमेन्ट अवश्य लिखें धन्यवाद
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पास्टर राजेश बावरिया (एक प्रेरक मसीही प्रचारक और बाइबल शिक्षक हैं)