दोस्तों आज हम सीखेंगे हम कैसे बरनबास के समान एक दूसरे को प्रोत्साहित करें | Lessons From Barnabas बरनबास के जीवन से सीखेंगे.
बरनबास के समान एक दूसरे को प्रोत्साहित करें | Lessons From Barnabas
Definition of encouragement | प्रोत्साहन की परिभाषा
प्रोत्साहन का अर्थ होता है :- स्वयं को या किसी व्यक्ति को पूरे दिल से आगे बढ़ने और विजयी होने के लिए उत्साहित करना,
उनके अच्छी बातों को देखकर उन्हें अवगत करवाना, या उनसे बोलना ताकि वे अपनी वर्तमान अवस्था से और ऊंचा उठ सके. किसी के जीवन में आशा प्रदान करना आदि.
हमारा परमेश्वर उत्साहित करने वाला (सब प्रकार की शांति का) परमेश्वर है. (2 कुरुन्थियों 1:3) परमेश्वर का वचन पवित्रशास्त्र पूरा प्रोत्साहन से भरा हुआ है.
जिसमें आज हम परमेश्वर के दास के विषय में चर्चा करने जा रहे हैं जिसने बहुत से लोगों को प्रोत्साहित किया.
बरनाबस नाम का अर्थ
यूसुफ नाम, कुप्रुस का एक लेवी था जिसका नाम प्रेरितों ने बरनबा अर्थात (शान्ति का पुत्र) रखा था. जिसके नाम का अर्थ होता है ‘प्रोत्साहन का पुत्र‘.
उसने अपने जीवन भर लोगों को अपने काम से अपनी बातों से और अपने व्यवहार के द्वारा प्रोत्साहित किया. यही कारण था उसने बहुत सी आत्माओं को जीत लिया था.
वह एक भला मनुष्य था; और पवित्र आत्मा से परिपूर्ण था: और और बहुत से लोग प्रभु में आ मिले. (प्रेरित 11:24)
आज सभी लोग संत पौलुस के विषय में चर्चा करते हैं उसके लिखे पत्रियों के विषय में बातें करते हैं लेकिन संत पौलुस के मन फिराने से पहले जो उसने कलीसिया में अत्याचार किये थे
उसका भय पूरे यरूशलेम के और अन्य स्थानों में रहने वाले सभी विश्वासियों के बीच था उन दिनों संत पौलुस को लाकर अन्ताकिया की कलीसिया में परिचय करवाने वाला यदि कोई व्यक्ति था तो वो बरनाबस ही था.
जब पौलुस ने अपनी पहली मिशनरी यात्रा प्रारंभ की थी उस समय उस यात्रा की अगुवाई बरनाबस के नेतृत्व में किया गया था लेकिन बाद में हम देखते हैं संत पौलुस और मरकुस (जिसका नाम युहन्ना मरकुस भी था) कुछ विवाद होने के कारण पौलुस ने मरकुस को अपनी दूसरी सेवा यात्रा में नहीं लेकर गया.
फिर हम केवल पौलुस का नाम ही पाते हैं लेकिन बरनाबस ने मरकुस का साथ दिया और उसे निराश होने से बचाया और यही कारण है मरकुस ने बाद में एक पुस्तक को लिखा जो हम चार सुसमाचार में से एक में पाते हैं मरकुस रचित सुसमाचार.
हालाकिं पौलुस की सेवा के अंत में पौलुस मरकुस को बुलवाता है और फिर से उसे अपने सेवा में शामिल करता है और कहता है यह मेरे बड़े काम का है. (2 तीमुथियुस 4:11)
मरकुस यह सब कुछ कर पाया इसके पीछे उसके चचेरे भाई बरनाबस का ही प्रोत्साहन था. (प्रेरित 13:5, कुलु. 4:10)
परमेश्वर ने बरनाबस को और पौलुस को अन्य जाति के लोगों का उद्धार करने के लिए अद्भुत रीती से इस्तेमाल किया. (प्रेरित 14:26-27)
हम बरनाबस के जीवन से दूसरों को प्रोत्साहित करने हेतु 5 बातें सीख सकते हैं.
1. वह लोगों को अपनी खराई के द्वारा प्रोत्साहित किया : (प्रेरित 4:37) में हम पाते हैं उस की कुछ भूमि थी, जिसे उस ने बेचा, और दाम के रूपये लाकर प्रेरितों के पांवों पर रख दिए.
जब बरनाबस ने कलीसिया में जरूरत को देखा वह प्रभु के प्रति और कलीसिया के प्रति यहाँ तक खरा और ईमानदार था कि उसने अपनी स्वयं की जमीन का भाग बेचकर भी उस जरूरत को पूरा किया.
वो जानता था कि जो कुछ उसके पास है वो सब कुछ परमेश्वर का ही है.
2. वह लोगों के साथ मित्रता बढ़ाकर प्रोत्साहित करता था. (प्रेरित 9: 22-27) : एक ऐसे समय में जब शाउल से सभी डरे हुए थे, क्योंकि वह मसीहियों को सताने वाला था लेकिन जब वह प्रभु के अनुग्रह से परिवर्तन हो गया तो सबसे पहले बरनाबस ने उससे मित्रता की और उसे सेवा में प्रोत्साहित किया.
ऐसे समय में (शाउल) पौलुस को सचमुच किसी आत्मिक मसीही मित्र की जरूरत थी ताकि वह आत्मिक रीती से बढ़ सके.
3. वह लोगों के साथ साझेदारी करके प्रोत्साहित करता था. (प्रेरित 11:20-24) : जब कुप्रुसी और कुरेनी लोगों ने यूनानियों को भी सुसमाचार सुनाने लगे तो वहां बड़ी हलचल होने लगी तब यह बात यरूशलेम तक पहुंची तब यरूशलेम के विश्वासियों ने बरनाबस को एक अगुवे के रूप में वहां भेजा कि पता किया जाए वहां क्या हो रहा है तब बरनाबस ने वहां आकर लोगों को प्रभु में प्रोत्साहित किया और उनके साथ अन्य विश्वासियों के साथ साझेदारी में लाया और कहा प्रभु में तन मन से लिपटे रहो.
4. वह लोगों को अगुवे बनाकर प्रोत्साहित करता था. (प्रेरित 11:20-24) फिर बरनाबस ने उसी स्थान में अर्थात अन्ताकिया में कलीसिया की अगुवाई करने हेतु संत पौलुस को ढूढने के लिए तरसुस तक गया और उसे अन्ताकिया में एक अगुवे के रूप में खड़ा किया.
यह अन्ताकिया ही वो स्थान हैं जहाँ प्रभु पर विश्वास करने वाले सबसे पहले मसीही कहलाए थे.
5. वह टूटे रिश्ते को जोड़ने वाला और एक और अवसर देकर प्रोत्साहित करने वाला था. (प्रेरित 15:36-40) पंफिलिया में जब मरकुस और पौलुस अलग अलग हो गए थे तब पौलुस सेवा में बिना मरकुस को छोड़ कर आगे बढ़ गया था तब बरनाबस ने उसे प्रोत्साहित करने के लिए उसके पास गया था.
उसके साथ टूटे सम्बन्ध को जोड़ने की कोशिश किया. और उसे एक और अवसर दिया और यही कारण है वह मरकुस बाद में एक परिपक्व लीडर के रूप में उभर कर सामने आया और परमेश्वर के द्वारा इस्तेमाल हुआ और मरकुस रचित सुसमाचार लिखा. और पौलुस के अंतिम समय में जेल की सेवकाई में भी फिर से साथ दिया.
निष्कर्ष | Conclusion
दोस्तों हम भी अपनी कलीसिया में अपने सेवाकाई क्षेत्रों में उपरोक्त बिन्दुओं से सीख कर नए विश्वासियों को और विश्वास में कमजोर लोगों को प्रोत्साहित कर सकते हैं.
हमें नहीं मालुम हमारी सेवकाई से भी कुछ पौलुस और मरकुस जैसे सेवक निकल कर पूरी दुनिया में परमेश्वर की सेवा को अंजाम दे सकें.
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पास्टर राजेश बावरिया (एक प्रेरक मसीही प्रचारक और बाइबल शिक्षक हैं)
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