दोस्तों आज हम सीखेंगे आत्मिक मल्ल युद्ध | Spiritual Warfare इस अध्ययन को आप किसी आत्मिक समूह में सिखा सकते हैं.
आत्मिक मल्ल युद्ध | Spiritual Warfare
हमारी लड़ाई और हमारा दुश्मन | आत्मिक युद्ध
1. – पौलुस विश्वासियों को जब व्यवहारिक बातें समझाता है तब कहता है. “आत्मिक हथियार बांध लो…”इफिसियों. 6:10.
इससे यह साफ़ प्रकट हो जाता है कि हम एक मैदान इ जंग में है भले ही हम इस बात पर गौर कर रहे हैं या नहीं.
जैसे ही एक व्यक्ति प्रभु यीशु मसीह को अपना प्रभु और उद्धारकर्ता के रूप में स्वीकार करता है वह इस लड़ाई में शामिल हो जाता है.
2. – आगे 12वीं आयत में पौलुस हमारे दुश्मन के बारे में बताता है जिससे यह साफ़ होता है कि कोई इंसान हमारा न तो दुश्मन है और न कभी बन सकेगा.
हमारा सामना एक बहुत ही व्यवस्थित और क्रमबद्ध सेना से है जिसमें अधिकार और ओहदे बंटे हुए हैं. अधिकारों प्रधानताओं, हाकिम व् दुष्टता की सेनाएं.
अर्थात दुश्मन की सेना एक रणनीति के साथ हमसे टक्कर ले रही है. ऐसा है तो हम भी एक रणनीति के बगिर सामना नहीं कर सकते.
2 कुरु. 2:14 में पौलुस कहता है. तुम शैतान की युक्तियों से अनजान नहनी हो. यानी वह एक युक्तिपूर्ण ढंग से आक्रमण कर रहा है. उससे निपटने के लिए हमें भी अच्छी युक्ति बनानी होगी.
3. – शैतान को न तो अनदेखा करना है और न ही उससे डरना है. दुश्मन को और उसकी योजनाओं को समझ लेने में ही हमारी बुद्धिमानी है.
4. आगे पौलुस कहते हैं कि यह सेना ‘आत्मिक’ है. ये सर्वप्रथम यह आत्मिक मंडल की लड़ाई है. अर्थात इस लड़ाई में भौतिक या शारीरिक हथियार बेकार है.
5. पौलुस सेना के मुख्यालय के बारे में भी बताता है. यह सेना आकाशमंडल में व्याप्त है अय्यूब के जमाने में परमेश्वर ने जब स्वर्गदूतों को बुलाया तो शैतान भी वहां पहुँच गया (अय्यूब 1:6, 7 व 2:1, 2)
प्रकाशितवाक्य 12 से पता चलता है कि महाक्लेश के समय जब विरोधी मसीह इस पूरे विश्व पर राज कर रहा होगा तब शैतान स्वर्ग से पृथ्वी पर फेंक दिया जाएगा.
पौलुस 2 कुरु. 12 में कहता है कि वह तीसरे स्वर्ग तक उठाया गया था. बाइबिल की पहली आयत में आकाश शब्द का इस्तेमाल भी बहुवचन में हुआ है.
2 इतिहास 2:6 में सुलेमान की प्रार्थना में भी कई स्वर्गों के बारे में देखते हैं. इफिसियों 4:10 कई स्वर्गों का जिक्र है.
इन आयतों से यही पता चलता है कि तीन स्वर्ग हैं. तीसरा स्वर्ग जहाँ परमेश्वर का सिंहासन है और जहाँ संत आज स्वर्ग का आनन्द पा रहे हैं.
दूसरा स्वर्ग है अन्तिरिक्ष का वह घेरा जिसमें चाँद तारे गृह है और पहला स्वर्ग है पृथ्वी के वायुमंडल का घेरा जिसमें बादल है.
6. कुलुसियों 1:12, 13 से पता चलता है कि इस ब्रह्मांड में दो राज्यों के बीच संघर्ष चल रहा है. परमेश्वर के पुत्र का राज्य और शैतान का राज्य. हर इंसान इन दोनों साम्राज्यों में से एक में हैं.
1 यूहन्ना 5:19 के अनुसार जितने लोगों ने यीशु को ग्रहण नहीं किया वे शैतान की हुकूमत में हैं. मतलब शैतान के नियन्त्रण में हैं.
7. जब हमारा उद्धार होता है तब हम शैतान के वश से छुडाए जाकर प्रभु यीशु के राज्य में आ जाते है. और वही से हम इस लड़ाई में परमेश्वर के सैनिक के रूप में हमारी नियुक्ति होती है. तब से हम’ शैतान के दुश्मन बन जाते हैं. मती 12:22:28 में इस विषय की एक स्पष्ट जानकारी हमें मिलती है. यीशु मसीह के कथनों से पता चलता है.
* पहला – शैतान का एक राज्य है
* दूसरा- उसके राज्य में फूट नहीं है यानि वह बनता हुआ नहीं है .
* तीसरा – अभी वह राज्य खड़ा है यानि गिरा नहीं है.
* चौथा – परमेश्वर का राज्य शैतान के राज्य के ऊपर विजयी है.
स्वर्गदूतों की भूमिका :-
दनियेल 10:2-6 से यही मालुम होता है कि स्वर्गदूत भी इस युद्ध में शामिल है.
जब दानिएल 21 दिन तक उपवास और पार्थना करता हुआ परमेश्वर के सामने अपने आप को नम्र करते हुए अपने लोगों के विषय में परमेश्वर से ज्ञान मांग रहा था.
तब स्वर्ग (आकाशमंडल) में स्वर्गदूतों और शैतान की प्रधानताओं के बीच घमासान युद्ध हो रहा था.
प्रकाशितवाक्य 12 अध्याय में भी ये देखते हैं कि पृथ्वी पर महाक्लेश के समय विरोधी मसीह के राज के साड़े तीन साल बाद स्वर्ग में एक युद्ध होगा जिसमें मिकाएल शैतान को हराकर पृथ्वी पर डाल देगा.
इन लड़ाइयों से भी यह समझ सकते हैं कि शैतान का सारा काम आकाशमंडल में केन्द्रित है.
इफिसियों 2:2 से भी यह स्पष्ट होता है.
इस लड़ाई में विजय का आधार :- 1. इस लड़ाई में विजय का आधार है यीशु मसीह की विजय.
हमें जब शैतान को हारने की जरूरत नहीं है. क्योंकि वह तो पहले से ही हारा हुआ है. कुलुस्सियों 2:15 में इसका स्पष्टीकरण दिया हुआ है.
वहां लिखा है कि यीशु ने शैतान के अधिकारों और हाकिमों को ऊपर से उतार फेंका और क्रूस के द्वारा उन पर फतहमंद हुए और उनका खुल्लम खुल्ला तमाशा बनाया.
यही जीत यीशु ने मानवजाति के लिए हासिल की थी. आज के विश्वासियों को केवल यह जीत अपनाना है.
इसलिए रोमियो 16:20 में लिखा है शान्ति का राजकुमार आप शीग्र शैतान को हमारे पाँव तले कुचलवा देगा.
2. हम देखते हैं कि हमारी जय को तय करने लिए ही यीशु कलवरी पर पाप गिने गए. 2 कुरु. 5:21 रोमियो 10:4 में भी यही बात देखने में आती है.
3. जय तो यीशु ने हमारे लिए क्रूस पर हासिल कर लिया अब हमें अपनी ताकत से शैतान, को हराने का प्रयास करने की जरुरत नहीं.
हमें केवल यीशु के जय को अपना बनाना है. हमें केवल यीशु के जय के आनन्द और उत्सव में जीवन बिताना है,
जैसा 2 कुरु. 2:14 में लिखा है कि वह हमें मसीह यीशु में जय के उत्सव में लिए फिरता है. जय तो उसने दिला दी, आज हम उत्सव मनाते हैं.
4. अपने स्वर्गारोहण से पहले इसी कारण यीशु ने कहा, कि स्वर्ग और पृथ्वी का सारा अधिकार उन्हें दिया गया है. यही अधिकार यीशु ने हमें दी है जिसका हमें इस्तेमाल करना है. मत्ती 28:18
इस युद्ध में विश्वासी की भूमिका :-
1. हर विश्वासी को इस युद्ध में शामिल होना है और प्रभु तो उसे उसके उद्धार के वक्त ही शामिल कर लेता है. आज दुविधा यह है कि अधिकाँश विश्वासी इन सब बातों से अनभिज्ञ हैं.
2. यीशु ने मत्ती 16:18 में कहा कि वे अपनी कलीसिया बनाएंगे और अधोलोक के फाटक उस पर प्रबल नहीं होंगे.
पुराने दिनों में शहर का फाटक यह जगह होती थी जहाँ सारे पुरनिये बैठ कर सारे निर्णय लेते थे और योजनाएं बनाते थे.
यीशु के कहने का मतलब यह है कि शैतान अपनी सारी युक्तियों और चालाकियों के बावजूद भी प्रभु के काम को रोक नहीं पाएगा.
शैतान के राज्य को पराजित करता हुआ यीशु का राज्य बढ़ता जाएगा. जैसे 1 यूहन्ना 5:19 में लिखा है कि लोग शैतान के वश में हैं.
उसके वश से लोग आजाद किए जाएंगे और प्रभु के राज्य में स्थापित किए जाएंगे. इस काम में हर विश्वासी को शामिल होना है. इसके अलावा और किसी काम में यीशु की दिलचस्पी नहीं है.
3. यीशु ने मत्ती 12:30 में कहा कि यदि कोई उनके साथ बटोर नहीं रहा तो वह बिखेर रहा है. यदि कोई उनके साथ नहीं है तो उनका विरोधी है.
जब तक एक व्यक्ति इस युद्ध में अपनी भूमिका को नहीं समझता और इसके आधार पर अपने जीवन की प्राथमिकताओं को नहीं क्रमबद्ध करता वह यीशु का विरोधी है.
3. इस लड़ाई के हथियार :-
1. चूँकि यह लड़ाई आत्मिक जगत की है इसलिए इसके हथियार भी आत्मिक जगत में प्रभाव डालने में सक्षम है.
2 कुरु. 10:3-5 में यही पता चलता है कि इस लड़ाई के हथियार परमेश्वर की और से है और शैतान के हर गढ़ को ढा देने के लिए पर्याप्त हैं.
हालाकि हम शरीर में रहते हैं. तौभी शारीरिक प्रणालियों से यह लड़ाई नहीं लड़ते.
2. इस युद्ध में सबसे प्रधान लक्ष्य है मनुष्य के मन पर कब्जा करना. इसलिए इस युद्ध में इंसान के मन में बनाए गए शैतान के गढ़ों को गिराते हैं.
3. इफिसियों 6 अध्याय में सारे हथियार पहन लेने को कहने के बाद पौलुस ने हथियारों का परिचय भी दिया है.
एक विश्वासी को एक सैनिक के रूप में प्रस्तुत करते हुए हमें कई हथियारों को धारण करने के लिए यीशु ने कहा है.
4. बचाव के हथियार :-
पहला – सत्य का कमरबंध – कमर कसने का मतलब है, तैयार होना, सतर्क होना. ढीला-ढाला जो कुछ है उसे दूर करना. हमारे जीवन के हर क्षेत्र में सत्य को धारण करें.
सत्य ही हमें आजाद करता है प्रभु की सेवा और महिमा के लिए. (युहन्ना 8:32) दूसरा – धार्मिकता की झिलम – एक रोमी सैनिक के ह्रदय को उसकी झिलम बचाती थी.
नीतिवचन 4:23 से पता चलता है कि एक विश्वासी को अपने ह्रदय की रखवाली करनी चाहिए. यह वह धार्मिकता है जिसका उद्भव प्रेम और विश्वास से होता है.
देखे 1 थिस 5:8 एवं फिली. 3:9 हमारी धार्मिकता या व्यवस्था से प्राप्त धार्मिकता नहीं बल्कि विश्वास से प्राप्त धार्मिकता.
हमारी धार्मिकता में छेड़ शैतान बहुत सरलता से ढूढ़ सकता है. हमें मसीह की धार्मिकता को पहन लेना है. 2 कुरु. 5:21 इस धार्मिकता से प्रेम उत्पन्न होता है.
तीसरा . मेल के सुसमाचार के जूते– एक रोमी सैनिक को उसके जूते युद्ध के मैदान में स्फूर्ति के साथ चलने फिरने में मदद करते थे.
इन जूतों के कारण वह अपने अफसर के कप्तान, यीशु मसीह की हर आज्ञा का पालन करने हेतु तत्पर रहने पाएं. हमें सदैव सुसमाचार सुनाने के लिए तैयार रहना है.
कहीं भी हमारी आशा के विषय में बताने का अवसर मिले तो उसे गंवानानहीं चाहिए. 1 पतरस 3:15 मत्ती 10:12, 13 में देखते हैं,
कि इसी सुसमाचार के द्वारा हम मेल कराने वाले और शान्ति फैलाने वाले बनते हैं. चौंथा विश्वास की ढाल.
एक ढाल छोटी होती है पर यहाँ पौलुस जिस ढाल एक विषय में बातें करता है वह बड़ी ढाल है जिसका सैनिक इस्तेमाल करते थे.
यह पूरे शरीर को आक्रमणों से बचाता था. जब हम शैतान के विरुद्ध लड़ने के लिए निकलेंगे तो हो सकता है कि वह हम पर अपना निशाना साधेगा.
हमारे स्वास्थ्य पर, हमारी आर्थिक आशीषों पर, हमारे बच्चों पर हमारे जीवन साथी पर हमारी गवाही पर एवं हमारे जीवन के हर क्षेत्र पर.
जहाँ भी उसे मौका मिले वह हमें पटकने का प्रयास करेगा. हमें बुद्धिमान बनते हुए अपने आप को विश्वास की ढाल से बचाना है.
किसी भी सेवा पर निकलने से पहले हमें अपने आप को और अपने परिवार को और अपनी सारी सम्पत्ति को प्रभु यीशु के लहू में छुपाना चाहिए.
पांचवा – उद्धार की टोप –
जैसे झिलम ह्रदय की सुरक्षा करती है वैसे ही टोप मन की सुरक्षा है. मन की सबसे बड़ी रणभूमि है. हमारे मन पर विविध आक्रमण होते रहते हैं.
चिंताओं का, निराशा का, तनाव का, आत्मगिलानी का, निरुत्साह का इत्यादि. 1 थिस. 5:8 के द्वारा इस टोप को और भी समझ सकते हैं.
यह टोप है हमारे उद्धार की आशा. सदैव हमें इस आशा से अपने आप को संवारना है और कभी भी किसी निराश करने वाली बात को हमारे मन में घर करने की अनुमति नहीं देनी चाहिए.
रोमियो 8:28 जैसी आयतों के द्वारा अपने मन को बलवंत और आशावान रखें. आशा ही मन की सुरक्षा है इसलिए इब्रानियों 10:23 के अनुसार आशा करते रहे.
अब्राहम ने तब भी आशा में अपने आप को बरकरार रखा जब उसे आशा की कोई किरण नजर नहीं आ रही थी.
छटा :- आत्मा की तलवार यानी परमेश्वर का वचन (यह आक्रमण के भी काम आता है.) इब्रानियों 4:12 में वचन को एक चोखे दुधारी तलवार के रूप में प्रस्तूत किया गया है.
तलवार एक ऐसा हथियार है जिसे न केवल बचाव के लिए वरन आक्रमण के लिए भी इस्तेमाल कर सकते हैं. परमेश्वर के वचन पर हमारी अच्छी पकड़ होनी चाहिए.
कब और कहाँ कौन सी आयत का इस्तेमाल करना है यह हमें मालुम होना चाहिए. यीशु ने अपनी परीक्षा के दौरान शैतान के हर प्रहार को वचन के सच्चे विश्लेषण द्वारा काटा. वचन का सही अर्थ निकालना हमें आना चाहिए.
5. प्रहार के हथियार :-
प्रार्थना और उपवास – इफिसियों 6:18 में हम देखते हैं कि प्रार्थना एक सामर्थी हथियार है. मरकुस 9:29 में यीशु ने शैतान की योजनाओं पर जय स्थापित करने के लिए प्रार्थना के साथ-साथ उपवास पर भी जोर दिया.
आज मसीही कलीसिया के अन्दर सबसे ज्यादा कमी प्रार्थना और उपवास ही की है. प्रार्थना कैसे काम करता है यह मालुम कर पाना बहुत कठिन है,
पर इस बात में कोई शक नहीं कि प्रार्थना काम करता है. यीशु की सेवा प्रार्थना पर ही निर्भर थी.
प्रेरितों 12 अध्याय में हम देखते हैं कि किस तरह याकूब को मारने के बाद हेरोद राज ने पतरस को भी पकड़ लिया और उसे भी मारडालने की योजना से कारागृह में बंद कर दिया.
लेकिन कलीसिया लौ लगाकर प्रार्थना करने लगी. न केवल पतरस आजाद हुआ वरन हेरोद भी स्वर्गदूत के द्वारा मार डाला गया.
और वचन बहुत तेर्जी से बढ़ने और फैलने लगा. आज प्रभु के राज्य के विस्तार के लिए मध्यस्थता करने वाले बिचवईयों की बहुत आवश्यकता है.
प्रार्थना से हम परमेश्वर के दी को बदलते नहीं वरण प्रभु के दिल की इच्छा की पूर्ति के लिए रास्ता तैयार करते है.
यीशु ने भी सिखाया कि प्रार्थना करें – हे पिता तेरा राज्य आवे. आज हमें एक एक शहर के उद्धार के लिए प्रार्थना करना है.
जब तक कि हर गाँव और हर शहर में प्रभु का राज्य स्थापित न हो जाए. शैतान के द्वारा बंदी बनाए हुए लोगों को प्रार्थना द्वारा आजाद करते जाने की जिम्मेदारी है कलीसिया पर.
स्तुति अराधना – निर्गमन 15:10-11 में देखते हैं कि लाल समुद्र पार करने के बाद इस्राएली परमेश्वर की स्तुति आराधना करने लगे.
वहां लिखा है कि परमेश्वर स्तुतियों में पराक्रमी है. प्रभु के लोगों की स्तुति आराधना परमेश्वर के पराक्रम को प्रकट करता है.
भजन 8:2 में भी यही बात लिखी हुई है कि दुश्मन पर जय पाने के लिए स्तुति आराधना का एक बड़ा रोल है.
भजन 149:6,9 में भी देखते है कि प्रभु के लोग ऊँची आराधना के द्वारा शैतान के प्रधानो और हाकिमों को बाँधा जाता है.
प्रकाशित वाक्य 16:13,14 में देखते हैं कि शैतान के सारे प्यादे अपने मुंह के अपवित्र वचनों के द्वारा ही अपना सारा काम करते हैं.
मन्त्र-तन्त्र में भी इसी बात को देखते हिं. प्रभु के लोग भी अपने मुंह की स्तुतियों के द्वारा शैतान के हर काम को पराजित करते और प्रभु के काम को अंजाम देते हैं.
परमेश्वर के वचन का प्रचार :- प्रभु के वचन का प्रचार भी एक प्रहार करने का माध्यम है. 2 तिमू. 4:1-4 में हमसे प्रचार करने को कहा गया है.
प्रेरितों 19 में हम देखते हैं कि मिथ्या आराधना और जादू टोने से भरे इफिसुस नगर में जब पौलुस ने दो वर्ष से ज्यादा प्रभु की सामर्थ्य से भरकर प्रचार किया तो अनोखे और अद्भुत चमत्कार होने लगे.
रूमाल से भी बीमार चंगे होने लगे. जादू-टोना करें वालों ने लाखों रुपयों की पुस्तकों को जला दिया. और लिखा है कि परमेश्वर का काम जोरो से बढ़ने लगा.
यशायाह 55:11 में लिखा है परमेश्वर का वहन अपना काम पूरा करता है. यिर्मयाह 23:29 में लिखा है कि वचन आग है. इब्रानियों 4:12 में लिखा है कि वचन में भेदने की शक्ति है.
गवाही :- एक विश्वासी की गवाही शैतान पर आक्रमण है. पवित्रात्मा की सामर्थी हमें इसलिए दी गई है कि हम गवाही दें.
प्रेरितों 1:8. हमारी ताकत में नहीं बरन परमेश्वर की सामर्थ से भरकर जब यीशु के गवाह बनते हैं तब शैतान का राज्य चूर-चूर होने लगता है.
गवाही देंगे तो प्रभु के राज्य का दायरा विस्तृत होता रहेगा. यरूशलेम से यहूदिय और फिर सामरिया और अनंत: सम्पूर्ण विश्व में.
प्रकाशित 12:11 में लिखा है, प्रभु के लोगों ने अपने मुंह की गवाही और मेमने के लहू के द्वारा शैतान पर विजय पाई.
हमें गवाही देने के लिए यीशु के लहू की सामर्थी का पता होना चाहिए. यीशु का लहू उद्धार और पाप क्षमा देता है. (इफिसियों 1:7) शुद्ध करता है.
1 यूहन्ना 1:7 हमें धर्मी ठहराता है. रोमियो 5:9 और यीशु का लहू हमें पवित्र करता है, इब्रानियों 13:12 जब प्रभु के लोग गवाही देते हैं तो प्रभु का राज्य बढ़ता है.
जब हम अपने कचन और चालचलन में यीशु के गवाह बनते हैं तब हम परमेश्वर की ओर से आत्मिक युद्ध में अपनी भूमिका ऐडा करते है और शैतान को लज्जित करते हैं.
इस तरह हम आत्मिक यूध के द्वारा अपने आप को शैतान की योजनाओं से बचाए रखते और बहुतों के उद्धार का कारण बनते हैं और परमेश्वर की योजनाओं की पूर्ति के लिए परमेश्वर के सहकर्मी बनते हैं.
आज सम्पूर्ण कलीसिया को चाहिए कि आत्मिक युद्ध की इस सच्चाई को समझें और गम्भीरता से लें.
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