नीतिवचन की पुस्तक का परिचय और शीर्षक
नीतिवचन की पुस्तक बताती है कि किस प्रकार परमेश्वर का विश्वास और उनके वचन के प्रति आज्ञाकारिता प्रतिदिन के जीवन में कार्य में इस्तेमाल किया जाता है. नीतिवचन की पुस्तक यह दिखाती है कि परमेश्वर की बुद्धि किस प्रकार दिखती है, जब उसे कार्य में लाया जाता है.
नीतिवचन की पुस्तक अनेक परिस्थितियों के लिए सही और गलत व्यवहार को स्पष्ट करती है. नीतिवचन की पुस्तक पुराने नियम के बुद्धि साहित्य का एक उत्तम उदाहरण है.
बुद्धि साहित्य स्पष्ट रूप से एवं सरलता से जीवन के विषय में विचारों को व्यक्त करती है. नीतिवचन बुद्धि साहित्य संक्षिप्त कथनों के माध्यम से जीवन का वर्णन उपमाओं, दृष्टान्तो, या कथनों के साथ करती है.
विचारात्मक बुद्धि साहित्य जीवन की बुनियादी समस्याओं का वर्णन करने के लिए कहानियों का प्रयोग करता है जैसे सफलता का मार्ग, दुःख की समस्या, या जीवन का अर्थ.
नीति वचन का मतलब क्या होता है
नीतिवचन नाम लेटिन भाषा के प्रोवर्बियोम शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ होता है नीतिवचन मतलब बुद्धि की बातें या जीवन की कहावतें जो हमारे रोजमर्रा के जीवन में मार्गदर्शन करती हैं.
नीतिवचन की पुस्तक को किसने लिखा
नीतिवचन की पुस्तक में राजा सुलैमान ने 800 कहावतों को लिखा है इस पुटक के तीन भागो में (1-9, 10:1-22:16, 25-29) के ऊपर उनका नाम आता है. यहाँ पर आगूर (30:1-33) और राज लामुएल (31:1-9) की कहावतें भी हैं,
नीतिवचन का अंतिम भाग जो आदर्श स्त्री के विषय में है (31:10-31) माना जाता है यह भाग राजा लमुएल के द्वारा लिखा गया होगा.
नीतिवचन की पुस्तक को कब लिखा गया
नीतिवचन की पुस्तक में माना जाता है सुलैमान के नीतिवचनों को उनकी मृत्यु से पहले 931 ई. पू. में लिखा गया होगा. सुलेमान के नीतिवचन जिन्हें हिजिकिय्याह के जनों ने इकत्र किया था, उन्हें 700 ई. पू. में लिखा गया होगा.
इस बात की भी संभावना है कि नीतिवचन की पुस्तक को अंत में उस तिथि के आसपास संकलित किया गया होगा.
नीतिवचन की पुस्तक का उद्देश्य क्या है
नीतिवचन की पुस्तक का उद्देश्य प्रतिदिन के जीवन में बुद्धि के कार्य करने के लिए एक शुद्ध हृदय और स्पष्ट मन के महत्व के बारे में बताना है. नीतिवचन की पुस्तक का मुख्य विषय भक्तिपूर्ण बुद्धि है, जो परमेश्वर के भय से आरंभ होती है. (9:10)
"यहोवा परमेश्वर का भय मानना बुद्धि का आरंभ है, और परम पवित्र परमेश्वर को जानना ही समझ है" नीतिवचन 9:10
यहाँ पर बुद्धि का अर्थ परमेश्वर के वचन और मार्गों के अनुसार जीवन व्यतीत करना है. नीतिवचन की पुस्तक में बुद्धिमान व्यक्ति वह है जो परमेश्वर के मार्गों के बारे में जानता है और उसका अनुकरण करता है.
नीतिवचन की पुस्तक में कहावतों और शिक्षाओं के अनुसार सात मार्ग हैं
पहला भाग – बुद्धि के महत्ता के विषय में बताता है (1-9)
दूसरा भाग – जीवन के अनेक क्षेत्रों में बुद्धि से जीने के विषय में बताता है. (10:1-22:16)
तीसरा भाग – बुद्धिमान व्यक्तियों की कहावतों को सम्मिलित करता है. यह जीवन के अनेक क्षेत्रों को भी सम्बोधित करता है. (22:17-24-34)
चौथा भाग– जीवन के अनेक क्षेत्रों के विषय में दूसरे नीतिवचनों का संग्रह है. (25-29)
पांचवा भाग– परमेश्वर को आदर देने और परिश्रम के विषय में बुद्धिपूर्ण कहावतें है. (30)
छटवां भाग – मदिरा के खतरों के विषय में और जरुरतमंदों के लिए आवाज उठाने और उनकी सुधि लेने के विषय में बुद्धिपूर्ण कहावतें हैं. (31:1-9)
सातवाँ भाग – एक धर्मी पत्नी और उसके अहमियत के विषय में बताता है. (31:10-31)
नीतिवचन की पुस्तक की एतिहासिक पृष्ठभूमि
अधिकांश कहावतें सुलैमान के द्वारा तब लिखी गई थीं जब वह इस्राएल के राजा थे (971-931 ई. पू.) सुलैमान ने इस्राएल पर शासन करने के लिए परमेश्वर से बुद्धि मांगी थी. और परमेश्वर ने उसे बुद्धि प्रदान की थी. (2 इतिहास 1:8-12)
सुलैमान अपने ज्ञान के लिए सभी जगह प्रसिद्ध था. और बाइबल कहती है उन्होंने लगभग 3000 कहावतें लिखी (1 राजा 4:32)
यद्यपि यह कहावतें बहुत समय पहले लिखी गईं थी, लेकिन यह कहावतें आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं, जितनी वे उस समय थी.
नीतिवचन की पुस्तक का संदेश
नीतिवचन की पुस्तक अपने संदेश का विकास यह दिखाकर करती है कि परमेश्वर की बुद्धि जीवन के हर क्षेत्र में लागू होती है. कहावतें स्वयं अपने आप में विभिन्न प्रकार के विषयों को सम्मिलित करती है जिसमें यह विषय भी हैं. विवाह (5:18) व्यापार (16:11) माता-पिता का कर्तव्य (19:18)
नीतिवचन की पुस्तक का धर्मविज्ञान (थियोलोजी)
नीतिवचन का धर्मविज्ञान बुद्धि की कहावतों की अन्य प्राचीन संग्रह से भिन्न है. सम्पूर्ण पुस्तक इस सत्य पर आधारित है कि जहाँ परमेश्वर का भय है, वहीँ बुद्धि शुरू होती है. (1:7) बुद्धि अनेक वर्षों तक जीने से या अनेक चीजों के बारे में जान्ने से प्राप्त नहीं होती.
बुद्धि केवल पहले परमेश्वर को जानने से और परमेश्वर का भय भक्ति के साथ आदर करने से ही प्राप्त हो सकती है. परमेश्वर का भय मानना एक मूलभाव है जिसके आसपास वचन का अधिकांश हिस्सा रचा गया है. पौलुस इस मूलभाव को नए नियम में जारी रखते हैं.
नीतिवचन की पुस्तक की विशिष्टता
नीतिवचन की पुस्तक में एक विशेष गद्यांश है, जो यीशु मसीह की ओर संकेत करता है. “बुद्धि परमेश्वर के साथ सृष्टि की रचना से पहले ठहराई गई थी (8:22-31)….
जिस प्रकार परमेश्वर ने सारी सृष्टि की रचना से पहले ठहराई गई थी. जिस प्रकार परमेश्वर ने सारी वस्तुओं की रचना की थी बुद्धि उसके साथ एक निपुण कारीगर के समान थी…”
यूहन्ना 1:1 हमें याद दिलाता है कि आदि में वचन था और वचन परमेश्वर के साथ था और वचन ही परमेश्वर था. वचन के बिना कुभ्ह भी नहीं बनाया गया, जो यीशु मसीह थे. हमें लोगों को बताने की जरूरत है कि परमेश्वर अपनी बुद्धि को हमारे जीवन में लागू करना चाहते हैं. (कुलु 1:9-11)
जो कोई बुद्धि की बातें सुनते हैं और आज्ञा मानते हैं उन्हें परमेश्वर बुद्धि देते हैं (नीति 2:1-9) यीशु मसीह ही परमेश्वर की बुद्धि हैं जो देहधारी हुए (1 कुरु. 1:30-31 कुलु 2:9) मसीह के पास बुद्धि और ज्ञान के सारे भंडार हैं. (कुलु 2:2-3)
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