मेरे जीवन के लिए परमेश्वर की इच्छा क्या है, और मैं इसे कैसे जान सकता हूँ ? परमेश्वर पर विश्वास करने वाले लोगों के जीवन में कभी न कभी सबके मन में यह सवाल जरुर आया होगा कि उसके जीवन में परमेश्वर की इच्छा क्या है. या मैं अपने जीवन में परमेश्वर की इच्छा को कैसे जान सकता हूँ. आज के इस लेख में यही बात देखेंगे की कैसे हम परमेश्वर की इच्छा को जान सकते हैं.
परमेश्वर की इच्छा को जानने के लिए प्रार्थना करना होगा (मरकुस 14:36)
अनेक बार हम निर्णय लेने के एक ऐसे मझधार में फंस जाते हैं जहाँ हमें कुछ भी समझ नहीं आता है क्या किया जाए. हमारा शरीर कुछ कहता है और हमारी आत्मा कुछ और कहती हैं. मन में बड़ा युद्ध चल रहा होता है. हम एक दबाव सा महसूस करते हैं. दिमाग काम नहीं करता.
शायद ऐसा ही कुछ प्रभु यीशु के साथ हो रहा था. जब उसे क्रूस की दर्दनाक मृत्यु को सहना था. वो मन में व्याकुल हो रहा था तब वो गतासमने बाग़ में अपने चेलों के साथ प्रार्थना करता है. पिता हो सके तो ये कटोरा मेरे सामने से हटा ले…लेकिन मेरी नहीं बल्कि तेरी इच्छा पूरी हो…(मरकुस 14:36)
जब हमारा मन भी इस प्रकार व्याकुल हो. निर्णय लेना मुश्किल हो जाए. और हमें परमेश्वर की सिद्ध इच्छा को जानना हो और पूरा करने का मन हो तो हमें भी पूरे मन से उससे प्रार्थना करना चाहिए. परमेश्वर अवश्य हमारा मार्गदर्शन करेंगे.
परमेश्वर के वचनों के द्वारा परमेश्वर की इच्छा को जाना जा सकता है (याकूब 1:5)
परमेश्वर का वचन स्वयं ही सामर्थी है और परमेश्वर की प्रेरणा से लिखा गया है, यह हर मानव जाति के लिए दिशा सूचक के समान है. इसे पढ़कर हम परमेश्वर की इच्छा को जान सकते हैं. यह हमारे पाँव के लिए दीपक है और पथ के लिए उजियाला है. (भजन 119:105)
जैसे स्ट्रीट लाईट या मोटरसाईकिल की हेड लाईट इससे कई किलोमीटर तक रौशनी नहीं मिलती लेकिन यदि हम उस उजियाले में आगे बढ़ते हैं तो घोर अंधकार में भी एक शहर से दूसरे शहर तक पहुचा जा सकता है.
यदि हमें बुद्धि की घटी है परमेश्वर हमें बिना उलाहना दिए बिना डांटे हमें बुद्धि प्रदान कर सकते हैं, जब हम वचन पढ़ते हैं तो परमेश्वर हमें पवित्रात्मा के द्वारा सहायता प्रदान करते हैं. कि हम सही निर्णय ले सके और उस मार्ग में चल सके जिसमें परमेश्वर हैं चलाना चाहते हैं.
परमेश्वर की इच्छा को जानने हेतु कुछ सामान्य इच्छाओं को पूरा करना होगा. (1थिस्सलुनीकियों 4:3)
पवित्रशास्त्र बाइबिल पढने से यह ज्ञात होता है परमेश्वर की कुछ इच्छाएं सारे मानव जाति के लिए है. जिन्हें हम सामान्य इच्छाएं भी कह सकते हैं. जैसे परमेश्वर की इच्छा है की हम सभी लोग पवित्र बने जैसा वो स्वयं पवित्र है. (1 थिस्सलुनीकियों 4:3) और परमेश्वर की इच्छा है कि हम सभी परमेश्वर का धन्यवाद दें (1 थिस्सलुनीकियों 5:18) उसकी महिमा करें जिसके लिए उसने हम सभी मानव जाति को बनाया है.
हम एक दूसरे के साथ भलाई करें ( 1 पतरस 2:15) परमेश्वर यह भी चाहते हैं हममें से कोई भी खो न जाए या नाश न हो जाये. (मत्ती 18:14) और सबसे बड़ी परमेश्वर की इच्छा है सभी मानव जाति के लिए कि हम सभी अनंत जीवन पाएं. (यूहन्ना 6:40) जिसके लिए प्रभु यीशु इस पृथ्वी पर आये थे.
परमेश्वर की इच्छा को पूरा करने के लिए अपनी इच्छा का त्याग (मत्ती26:39)
ऐसा नहीं हो सकता आप अपनी इच्छा भी पूरी करना चाहते हों और परमेश्वर की इच्छा की भी मांग कर रहे हों. जैसे एक जवान लडकी ने प्रार्थना में प्रभु से कहा, प्रभु मैं शादी तो राहुल से ही करुँगी लेकिन परमेश्वर आप अपनी इच्छा मुझे बताइये कि किस व्यक्ति से शादी करूं.
प्रभु यीशु ने प्रार्थना किया, जैसा मैं चाहता हूँ वैसा नहीं, परन्तु जैसा तू चाहता है वैसा ही हो. जहाँ हमारी इच्छा पूरी रीति से समाप्त हो जाती है. वहीं से परमेश्वर की इच्छा का आरंभ होता है.
जब हम परमेश्वर की इच्छा को पूरा करने लगते हैं तब हम मन में एक अद्भुत शान्ति को महसूस करते हैं. फिर चाहे शारीरिक तकलीफ हो या आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ रहा हो, लेकिन परमेश्वर एक ऐसी शांति जो समझ से परे है वो हमारे मनो में देता है. तब हमें समझ लेना चाहिए कि हम परमेश्वर की सिद्ध इच्छा में चल रहे हैं. (कुलु. 3:15)
हमारे मन के नए हो जाने से हम परमेश्वर की इच्छा जान सकते हैं (रोमियो 12;2)
बाइबिल में परमेश्वर के दास संत पौलुस रोमियो की कलीसिया को लिखते हैं, तुम्हारी बुद्धि (मन) के नए हो जाने से तुम्हारा चालचलन भी बदलता जाए जिससे तुम परमेश्वर की भली भावती और सिद्ध इच्छा को अनुभव से मालुम करते जाओ.
राजा सुलेमान जिसे परमेश्वर ने वरदान के रूप में अति बुद्धि प्रदान की थी. वो भी कहता है अपनी बुद्धि का सहारा न लेना वरन सम्पूर्ण मन से परमेश्वर पर भरोसा करना तब वो तेरे लिए सीधा मार्ग निकालेगा (नीतिवचन 3:5) सीधा मार्ग निकालने का अर्थ है अपनी इच्छा प्रदान करेगा.
मैं प्रभु का सेवकाई करने से पहले कपड़ों का एक व्यापारी था और जब मैंने परमेश्वर की बुलाहट को एक प्रार्थना सभा में ग्रहण किया उस समय तो उस समय से मेरे मन में बड़ा युद्ध चल रहा था, की मैं क्या करूं.
अपना व्यापार बंद करूं या न करूं प्रभु की सेवा के लिए जाऊं या न जाऊं. आगे क्या होगा. कैसे होगा…मेरे परिवार का क्या होगा…लेकिन जब मैंने इस विषय के लिए प्रार्थना किया और कदम को बढाया परमेश्वर ने रास्ता खोलना आरंभ कर दिया…
और आज लगभग 20 वर्षो के बाद भी उसकी सेवा ख़ुशी से कर पा रहा हूँ. मुझे हर रोज प्रभु अपने वचन के द्वारा बातें करने लगा और मेरा मन नया होने लगा…पुरानी बातें बीतने लगी. स्वभाव बदलने लगा.
पवित्रात्मा की सहायता से परमेश्वर की इच्छा को जान सकते हैं (रोमियो 8:27)
प्रभु यीशु ने हमसे वायदा किया है कि उनके जाने के बाद अर्थात स्वर्गारोहण के पश्चात वो हमारी सहायता के लिए पवित्रात्मा को भेजेंगे जो हमारी सहायता करेगा. पवित्रात्मा हमारे मनो को भी जांचता है की हमारे मनो की मनसा क्या है और परमेश्वर की इच्छा के अनुसार हमारे लिए विनती करता है. (रोमियो 8:27)
पवित्र आत्मा आहें भर भर कर हमें प्रार्थना करना भी सिखाता है. प्रभु यीशु ने कहा था जब पवित्रात्मा जब आएगा तो वह तुम्हें मेरी बातों में से लेकर तुम्हें बताएगा. पवित्रात्मा प्रार्थना में ही हमें परमेश्वर की इच्छा को प्रगट करता है. जैसा परमेश्वर के दास दानिएल को जब राजा के स्वप्न का अर्थ बताना था तब पवित्रआत्मा ने उसकी सहायता किया और वह राजा के स्वप्न का अर्थ बता पाया.
पवित्र लोगों से सलाह लेकर परमेश्वर की इच्छा को जाना जा सकता है (प्रेरितों के काम 15:2)
पवित्र लोग अर्थात वे लोग जो प्रभु में आपके अगुवे हैं या परमेश्वर के वचन के अनुसार जीवन जी रहे हैं. उनसे सलाह लेकर भी आप अपने जीवन में परमेश्वर की आज्ञा को जान सकते हैं.
ऐसे बहुत से लोग हुए हैं जिन्होंने परमेश्वर की इच्छा के अनुसार जीवन जीया है और वे जब सलाह देते हैं तो परमेश्वर की इच्छा के अनुसार ही सलाह देते हैं. जैसे संत पौलुस कलीसिया को कहते हैं मेरे अनुसार चलो क्योंकि मैं मसीह की सी चाल चलता हूँ. वे जवान तीमुथियुस को भी सलाह देते है. अत: इस रीति से हम परमेश्वर के दासों से भी सलाह लेकर परमेश्वर की इच्छा की पुष्टि कर सकते हैं.
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