परमेश्वर-की-खोज-करना

परमेश्वर की खोज करना | Seeking God

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दोस्तों आज हम बातें करेंगे परमेश्वर की खोज करना | Seeking God मतलब हर एक व्यक्ति के लिए परमेश्वर की खोज करना क्यों जरुरी है?

परमेश्वर की खोज करना | Seeking God

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तुम मुझे ढूंढ़ोगे और पाओगे भी; क्योंकि तुम अपने सम्पूर्ण मन से मेरे पास आओगे. (यिर्मियाह 29:13)

यहाँ परमेश्वर को खोजने का अर्थ यह नहीं है कि परमेश्वर खो गया है बल्कि सच यह है कि मनुष्य खो गया है.

और जब हम अपने परमेश्वर को खोजने का मन बना लेते हैं तो वह अति सहज से मिल जाता है. परमेश्वर स्वयं चाहते हैं कि मनुष्य उसकी खोज करें.

परमेश्वर की खोज करने में मनुष्य की ही भलाई है. उसके जीवन का उद्देश्य पता चल जाता है जब मनुष्य परमेश्वर की खोज करता है..

अधूरे मन से खोज करना हमें कभी भी हमारे मंजिल तक नहीं पहुंचाता. यह लेख आपके अन्दर प्रभु के प्रति एक भूख जगाने के लिए है.

क्योंकि बाइबिल कहती है. धन्य हैं वे जो धार्मिकता के भूखे और प्यासे हैं क्योंकि वे तृप्त किये जाएंगे. (मत्ती 5:6)

यदि आप परमेश्वर की खोज नहीं कर रहे हैं, परमेश्वर के प्रति आप में भूख नहीं है, या परमेश्वर की उपस्थिति के लिए प्यासे नहीं हैं, तो आप उनको पा नहीं सकते हैं, क्योंकि आप उन्हें खोज नहीं रहे हैं.

भूखे और प्यासे ही तृप्त किये जाएंगे. परमेश्वर को क्यों खोजें ? हम एक आत्मा हैं, और एक प्राणी हैं, हम एक शारीर में रहते हैं.

हमारी आत्मा आत्मिक चीजों की खोज में रहती है. हमारा अस्तित्व परमेश्वर की इच्छा के वजह से है. आप और मैं परमेश्वर के जैसा होने के लिए रचे गए है, तथा उसके स्वरूप में रचे गए हैं.

प्रत्येक पुरुष और स्त्री के भीतर ऐसा कुछ है जो केवल परमेश्वर के बिना और किसी भी चीज से तृप्त नहीं हो सकता.

परमेश्वर आत्मा है और हम लोग भी उसी सच्चे आत्मा के द्वारा रचे गए हैं. और सच्चे आराधक आत्मा और सच्चाई से आराधना करेंगे.

यदि हम हमारी खोज को परमेश्वर की दिशा में न मोड़ें. तो हमारी आत्मा सच्चाई को कहीं और ही खोजने लगेगी.

शायद बुद्धिमान सुलेमान ने यही गलती किया और जिसके कारण वह कहने लगा सब कुछ व्यर्थ है सब कुछ व्यर्थ है. क्योंकि वह सही चीज को गलत जगह ढूढ़ रहा था.

हमारी सर्वप्रथम बुलाहट परमेश्वर के साथ घनिष्टता के लिए है.

जब तक हम परमेश्वर को नहीं जान लेते हम अपने आप को भी नहीं पहचान सकते. हम परमेश्वर की परछाई होने के लिए रचे गए हैं.

जितना बेहतर उनके प्रति हमारा दर्शन होगा, स्वयं के लिए हमारा दर्शन उतना ही बेहतर होगा, और हम अधिक उसके जैसा बन पायेंगे.

आत्मा अविनाशी अमर है. बाइबिल बताती है परमेश्वर के ह्रदय में यह है कि वह मनुष्य के साथ घनिष्ट सम्बन्ध बनाना चाहता है.

आदि में परमेश्वर ने सृष्टि की रचना की… उत्पत्ति 1:1 हमारी सेवकाई का स्तर और कार्य शैली कको इसी पर स्थापित करना है.

यदि परमेश्वर ने कार्य किया है, तो हमें भी कार्य करना चाहिए. यदि परमेश्वर सक्रिय है तो हमें भी सक्रीय होना चाहिए.

परमेश्वर के लिए कार्य करते हुए उसको प्रसन्न करना जरूरी है. और हम परमेश्वर को खुश करना चाहते हैं. प्रभु यीशु ने बारह चेलों को इसलिए चुना था ताकि वे उसके साथ साथ रहें.

तब उसने बारह पुरुषों को नियुक्त किया कि वे उसके साथ साथ रहें, और वह उन्हें भेजें कि वे प्रचार करें.” (मरकुस 3:14)

प्रभु तो हमारे साथ साथ रहना चाहते हैं क्या हम प्रभु के साथ साथ रहना चाहते हैं. क्या प्रभु की उपस्थिति हमारे जीवन में महत्वपूर्ण है.

परमेश्वर की उपस्थति के चिन्ह

बाइबिल में एक घटना है इस्राएलियों ने सोने का बछड़ा बनाया तो परमेश्वर ने इस्रालियों का एक बड़ा भाग नष्ट किया.

मूसा ने लोगों के लिए पश्चाताप किया और परमेश्वर से क्षमा मांगी. परमेश्वर इस बात पर सहमत हुए कि वह उस स्थान को छोड़ कर प्रतिज्ञा किये देश (कनान देश) की ओर जाएँ.

निर्गमन 33:12-16 में हम एक महत्वपूर्ण वार्तालाप को देखते हैं. कौन सी बात हम परमेश्वर के लोगों को दूसरों से अलग करती है?

परमेश्वर की उपस्थिति मूसा केवल एक ही बात सोच रहा था. क्या परमेश्वर की उपस्थिति हमारे साथ चलेगी? मूसा एक अगुवे के समान काम कर रहा था.

अगुवाई का कार्य परमेश्वर की उपस्थिति द्वारा किया जाता है. हमारे जीवन में परमेश्वर की उपस्थिति ही अंतर पैदा करती है.

परमेश्वर का तेज मूसा के चेहरे पर दिखाई दिया. परमेश्वर उनके साथ समय बिताना पसंद करते हैं, जो उसकी उपस्थिति में आनन्दित रखते हैं.

आप परमेश्वर की उपस्थिति को जब तक नहीं जान सकते जब तक आप उसका अनुभव न कर लें. हालाकि परमेश्वर को हमारी जरूरत नहीं है लेकिन वो हमें चाहते हैं.

परमेश्वर को जानने के विषय में चार प्राथमिक कार्य

 वे प्रेरितों से शिक्षा पाने, और संगति रखने में और रोटी तोड़ने में और प्रार्थना करने में लौलीन रहे.

(प्रेरित 2:42)

यह आयत एक उत्तम उदाहरण है क्योंकि यह प्रारभिक कलीसिया के द्वारा परमेश्वर को खोजने के क्रम में चार बाते बताती है. 1. बाइबिल अध्ययन 2. संगति करना, 3. रोटी तोडना और 4. प्रार्थना करना.

1. बाइबिल अध्ययन (शिक्षा पाना और देना) जो परमेश्वर से प्रेम करते हैं वे उसके वचन से भी प्रेम करते हैं.

परमेश्वर के लिखित वचन का मकसद है कि उसके जीवित वचन अर्थात यीशु मसीह को प्रगत करना. यूहन्ना 1:1

वचन से प्रेम करना मसीह से प्रेम करना है और मसीह से प्रेम करना वचन से प्रेम करना है. परमेश्वर चाहते हैं हम मसीह के समान बनें.

और मसीह के समान बनने का सबसे शक्तिशाली तरीका है कि हम परमेश्वर के वचन के पठान और अध्ययन द्वारा उसका अनुकरण करर्ते हुए यीशु मसीह के समान बनते जाएं. (यशायाह 55:11)

2. संगति करना :- परमेश्वर के बच्चों को जानने के द्वारा हम परमेश्वर को बेहतर तरीके से जान सकते हैं.

यह सत्य है क्योंकि परमेश्वर अपने बच्चों में वास करते हैं. दूसरे विश्वासियों के साथ सहभागिता, संगती का मापदंड है क्योंकि परेश्वर उसमें भी वास करता है.

गलातियों 2:20 के अनुसार मसीह के साथ संगती और दूसरे विश्वसियों से साथ संगति एक साथ जुड़े हुए हैं.

3. रोटी तोडना :- प्रेरितों के काम में यह प्रभु भोज को दर्शाता है. इस कार्य का तात्पर्य है धन्यवाद तथा आराधना. धन्यवाद और आराधना के द्वारा हम परमेश्वर को बेहतर रीती से जान सकते हैं.

भजन 95:2-6 जितना ज्यादा हम परमेश्वर को जानेंगे उतना बेहतर हम आराधना करेंगे. जितना बड़ा परमेश्वर हमारे जीवन में होगा उतनी महान हमारी अराधना उसके प्रति होगी.

स्तुति परमेश्वर की महानता के प्रति प्रतिउत्तर देना है. फिली. 3:10 परमेश्वर की उपस्थिति हमें उसके स्वरूप में बदलती है.

4. प्रार्थना करना. प्रार्थना करने का अर्थ है परमेश्वर से बातचीत करना. प्रार्थना के द्वारा हम किसी भी क्षण परमेश्वर के साथ संगति कर सकते हैं.

इफिसियों 6:18 निरंतर प्रार्थना करने के बारे में बताता है. जब हम प्रार्थना करते हैं तब हम परमेश्वर से बातें करते हैं लेकिन जब हम बाइबिल पढ़ते हैं तब परमेश्वर हमसे बातें करते हैं. वार्तालाप दोनों और से होनी चाहिए.

परमेश्वर को खोजने का प्रतिफल

बड़े बड़े और अद्भुत काम करेंगे. –जो लोग अपने परमेश्वर का ज्ञान रखेंगे, वे हियाव बान्धकर बड़े काम करेंगे. (दानिएल 11:32)

परमेश्वर से मार्गदर्शन पाएंगे :- तू अपनी समझ का सहारा न लेना, वरन सम्पूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रखना. उसी को स्मरण करके सब काम करना, तब वह तेरे लिये सीधा मार्ग निकालेगा. (नीतिवचन 3:5-6)

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