दोस्तों आज हम सीखेंगे कि परमेश्वर के वचन की शक्ति को इस्तेमाल करने के 10 प्रभावशाली तरीके क्या है जिन्हें सीखकर हम भी परमेश्वर के सामर्थी वचनों के द्वारा अपने जीवन में आशीषों को प्राप्त कर सकते हैं.
परमेश्वर के वचन की शक्ति को इस्तेमाल करने के 10 प्रभावशाली तरीके
राजा दाउद जो बचपन में एक गरीब चरवाहा था वह परमेश्वर के वचनों से बहुत प्रेम करता और आदर करता था. वह भजन (संहिता 119:1-8) में कहता है,
जो परमेश्वर की आज्ञाओं को और नियमों को मानते हैं वे लोग धन्य लोग हैं वे कुटिलता के काम नहीं करते बल्कि परमेश्वर के वचनों को यत्न से पालन करते हैं. ऐसे लोगों का चालचलन दृढ होता है.
और उनकी आशा नहीं टूटती. मतलब वे लोग कभी हिम्मत नहीं हारते. तो आइये शुरू करते हैं कि कैसे हम परमेश्वर के वचनों का पालन करें.
1. परमेश्वर के वचनों से प्रेम करें (भजन 119:97)
जो व्यक्ति परमेश्वर के वचन से प्रेम करता है वह वचन पढने के लिए बाइबिल के साथ समय भी व्यतीत करेगा. जिस प्रकार दाउद कहता है अहा, मैं तेरे वचनों से ऐसा प्रेम करता हूँ कि दिन भर मैं उसी में ध्यान लगाए रहता हूँ. (भजन 119:97)
2. परमेश्वर के वचनों पर ध्यान और मनन करें (भजन 1:2)
धन्य और और आशीषित व्यक्ति वही है जो यहोवा की व्यवस्था से प्रसन्न रहता मतलब ख़ुशी के साथ परमेश्वर की व्यवस्था पर रात-दिन ध्यान करता रहता है. (भजन 1:2) ऐसा व्यक्ति जो कुछ करे उसमें वह सफल होता है. क्योंकि उसकी अगुवाई परमेश्वर के वचनों के द्वारा होती है.
3. परमेश्वर के वचनों के द्वारा सचेत और सावधान रहें (भजन 119:9)
मतलब अपने ह्रदय में परमेश्वर के वचनों को इतना अधिकाई से बसने दें कि आपको किसी भी प्रकार का पाप और सांसारिक प्रलोभन लुभाने न पाए. और आप शैतान के चंगुल से बच सकें. जवान अपनी चाल को किस रीती से शुद्ध रख सकता है केवल परमेश्वर के वचन के प्रति सावधान रहने से. (भजन 119:9)
4. परमेश्वर के वचन को गहराई से सीखें (एज्रा 7:10)
पुराने नियम में एज्रा नामक एक परमेश्वर का दास हुआ जो इस्राएल के लोगों के साथ बन्धुआइ में अर्थात बंदी था लेकिन जब वह वापस लौटा तो उसने परमेश्वर के वचनों का अर्थ जान लेने, और उसके अनुसार चलने और इस्राएल में विधि और नियम सिखाने के लिए अपना मन लगाया था.
5. परमेश्वर के वचनों में बने रहें (यूहन्ना 15:7)
प्रभु यीशु मसीह ने कहा, यदि तुम मुझमें बने रहे और मेरा वचन तुममें बना रहे तो जो कुछ मांगो वह तुम्हारे लिए हो जाएगा. इसलिए यदि हम प्रभु के वचनों की सामर्थ अपने जीवन में देखना चाहते हैं तो हमें प्रभु के वचनों में जड़ पकड़ते हुए मजबूती से उसमें बने रहना चाहिए.
6. परमेश्वर के वचनों को दूसरों को सिखाएं (इब्रानियों 5:12)
लिखा है समय के विचार से तो तुम्हें गुरू हो जाना चाहिए था, तौभी क्या यह आवश्यक है, कि कोई तुम्हें परमेश्वर के वचनों की आदि शिक्षा फिर से सिखाए ओर ऐसे हो गए हो, कि तुम्हें अन्न के बदले अब तक दूध ही चाहिए. यदि हमें वचन की आशीष पाना है तो हमें लोगों को इसे सिखाना भी चाहिए.
7. परमेश्वर के वचनों का प्रचार करें (2 तीमुथियुस 4:2)
संत पौलुस अपने आत्मिक बेटे तीमुथियुस को पत्र लिखते हुए कहते हैं, कि वचन को प्रचार कर, और इस काम के लिए समय और असमय मतलब हर समय तैयार रह. पहली शताब्दी की कलीसिया में हर विश्वासी लोगों के घर घर जाकर सुसमाचार का प्रचार करते थे इसलिए कलीसिया भी बढती जाती थी.
8. परमेश्वर के वचनों के अनुसार चलो (याकूब 1:22)
परमेश्वर का दास याकूब अपने पत्र में कहता है, वचन पर चलने वाले बनो, और केवल सुनने वाले ही नहीं जो अपने आप को धोखा देते हैं. यदि हम वचन को जानते हैं लेकिन उसके अनुसार चलते नहीं तो सब कुछ व्यर्थ है.
9. परमेश्वर के वचनों में कुछ जोड़ना घटाना न करो (प्रकाशितवाक्य 22:18-19)
यदि कोई मनुष्य इन बातों में कुछ बढ़ाए, तो परमेश्वर उन विपत्तियों को जो इस पुस्तक में लिखीं हैं, उस पर बढ़ाएगा, और यदि कोई इस भविष्यद्वाणी की पुस्तक की बातों में से कुछ निकाल डाले, तो परमेश्वर उस जीवन के पेड़ और पवित्र नगर में से जिस की चर्चा इस पुस्तक में है, उसका भाग निकाल देगा.
10. परमेश्वर के वचनों पर विश्वास करें. (यूहन्ना 20:31)
परन्तु ये इसलिये लिखे गए हैं, कि तुम विश्वास करो, कि यीशु ही परमेश्वर का पुत्र मसीह है: और विश्वास करके उसके नाम से जीवन पाओ.
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