प्रेरितों-के-काम

प्रेरितों के काम | Acts of Apostles

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दोस्तों आज हम प्रेरितों के काम | Acts of Apostles की पुस्तक के विषय में समीक्षा करेंगे और जानेंगे यह अद्भुत पुस्तक क्या सिखाती है.

प्रेरितों के काम | Acts of Apostles

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कई बार इस पुस्तक को पांचवा सुसमाचार भी कहा जाता है, यह लूका के सुसमाचार के आगे का विस्तार है. मत्ती ने सिखाया (जी उठना)

मरकुस ने – (उठाया जाना) लूका ने – (पवित्रआत्मा का वायदा) और यहुन्ना ने – दूसरे आगमन का वायदा) चारो सुसमाचार में जो महान मिशनरी आदेश दिए गए हैं उसकी पुष्टि प्रेरितों के काम में दी गई है.

संक्षेप में प्रेरितों के काम की पुस्तक सुसमाचार और पत्रियों के बीच एक पुल का काम करती है. प्रेरितों के काम की किताब कलीसिया में और कलीसिया के द्वारा पवित्र आत्मा के द्वारा हुए कामों का लेखा है.

लूका का सुसमाचार यीशु के द्वारा मानव शरीर में रहते हुए किए गए कामों और शिक्षाओं का विवरण है और प्रेरितों के कामों की पुस्तक यीशु ने आत्मिक देः,

कलीसिया में जो किया और सिखाया उन बातों का विवरण है. पवित्र आत्मा मिशन की उन्नति में एक सक्रिय सामर्थ्य की तरह काम करता है.

जैसी उत्तेजित करने और अगुवाई देने के लिए (प्रेरितों 8:29, 39:10, 11:15, 13:2, 15:28, 20:22) विश्वासियों पर पवित्र आत्मा के उन्डेले जाने के बारे में पांच अलग जगह लिखा है. (2:1-4, 4:28-30, 8:15-17, 10:44, 19:6)

इस पुस्तक को “प्रेरितों द्वारा किये गए पवित्र आत्मा के काम” भी कह सकते हैं. क्योंकि उसकी सर्वोपरिता और उसके संचालन के कार्य एक मनुष्य की तुलना में कहीं अधिक महत्वपूर्ण हैं.

वह पवित्र आत्मा था जिसने कलीसिया को बलवंत करने के लिए उसका संचालन किया, नियंत्रण किया और सामर्थ्य दिया

ताकि वह गिनती में, आत्मिक अधिकार और प्रभाव में बढ़ें. संक्षेप में देखा जाए तो प्रेरितों के काम की पुस्तक का सार चार शब्दों में देखा जा सकता है.

1. सामर्थ 2. प्रचार 3. स्ताव और 4. बढ़ोतरी इस पुस्तक में 28 अध्याय हैं.

प्रेरितों के काम का लेखक :

लूका एक वैध मतलब डॉक्टर था (कुलु. 4:14) जिसने तीसरे सुसमाचार को लिखा उन्होंने ही इस पुस्तक को भी लिखा.

प्रत्यक्ष रूप से उनका नाम इस पुस्तक में हम नहीं पाते हैं किन्तु प्रेरितों (16;10-17, 20:5-15, 21:1-28, 27:1-28:16) के अनुच्छेदों में “हम” शब्द का प्रयोग है

जिससे यह साफ़ पता चलता है कि लूका पौलुस का यात्री साथी था. साथ ही साथ वह इतिहासकार भी था जिसने उसे इस पुस्तक को बिना संदेह लिखने के लिए विवश किया.

वह एक अन्यजाति में से था और अन्ताकिया का निवासी था. लूका ने अपनी पुस्तक को थियुफिलुस नामक एक बहुत ही अच्छे सज्जन को समर्पित किया, जिसके नाम का अर्थ है.

प्रेमी, परमेश्वर का मित्र. लूका ने थियुफिलुस के लिए जो ‘अति उत्तम’ शब्द का स्तेमाल किया है उसी शब्द का उपयोग उन्होंने महान फैलिक्स के लिए 23:6 में और उसके परिवर्ती फेस्तुस के लिए 26:15 में भी किया गया है.

जिससे यह स्थापित होता है कि थियुफिलुस एक रोमी अधिकारी था, या फिर एक ऐसा व्यक्ति था जिसका समाज में बहुत महत्वपूर्ण स्थान था.

हालाकि यह पुस्तक थियुफिलुस को लिखी गई थी किन्तु यह सभी विश्वासियों के लिए है.

प्रेरितों के काम को लिखने की तिथि: –

इस पुस्तक को लगभग 62-63 AD में रोम से लिखी गई. प्रेरितों की किताब में 30 वर्षों का इतिहास है. AD 33 में यीशु मसीह के स्वर्गारोहण की शुरुआत से लेकर AD 62 में पौलुस को दो वर्ष के रोम के कारागृह के अंत तक.

यह कलीसिया की शुरुआत का प्रेरणादायक विवरण है. जिस रीती से उत्पत्ति में हम भौतिक जगत की शुरुआत का विवरण पाते हैं उसी प्रकार प्रेरितो के काम में आत्मिक देह कलीसिया की शुरुआत का विवरण पाते हैं.

प्रेरितों के काम की मुख्य आयत :-

प्रेरित 1:8 “परन्तु जब पवित्र आत्मा तुम पर आएगा तब तुम सामर्थ पाओगे, और यरूशलेम और सारे यहूदिय और सामरिया में और पृथ्वी की छोर तक मेरे गवाह होंगे.”

मुख्य अध्याय :- प्रेरितों के काम अध्याय 2

प्रेरितों के काम की विशेषताएं

यीशु मसीह की श्रेष्टता, पवित्रआत्मा की श्रेष्ठता – यीशु ने वायदा दिया था, वह पवित्र आत्मा को भेजेंगे. (यूहन्ना 7:37-39, 14:16-17, 20:22, )

यह पवित्र आत्मा का युग है. इस युग का महत्वपूर्ण तथ्य है कि “पवित्र आत्मा हमारे अन्दर वास करता है” (1 कुरु. 6:19) कलीसिया की सामर्थ.

कलीसिया की श्रेष्टता, पकात और अदृश्य स्थानों की श्रेष्ठता, – यरूशलेम से शुरू होकर, रोम में समाप्त करना व्यक्तियों की श्रेष्ठता, सुसमाचार प्रचार का केंद्र.

पहले भाग में पतरस की श्रेष्ठता और दूसरे भाग में पौलुस की श्रेष्ठता (इस पुस्तक के सभी प्रेरितों के कार्य का विवरण हैं, किन्तु दो का है पतरस 1-12 और पौलुस 13-26

प्रेरितों के काम का उद्देश्य :-

यरूशलेम की पहली कलीसिया की शुरुआत का एक सबूत. चेलों के अथक प्रयासों का प्रदशन कि कैसे उन्होंने महान आदेश को पूरा करें के लिए विश्वासयोग्यता के साथ प्रेरिताई की सेवा को निभाया.

सेवा की बढ़ोतरी के लिए पवित्र आत्मा के महत्व को दर्शाना. यरूशलेम से लेकर पृथ्वी के छोर-छोर तक सुसमाचार को बहाव का प्रदर्शन, साथ ही साथ वर्तमान युग के विश्वासियों के लिए सुसमाचार प्रचार के तरीके.

पवित्र आत्मा की भारुपुरी द्वारा हर विश्वासी को मिशन केन्द्रित बनाना. पवित्र आत्मा के बप्तिस्मा द्वारा अन्यजातियों के लिए बोझ.

परमेश्वर आत्मा के बप्तिस्मा द्वारा अन्यजातियों के लिए बोझ. परमेश्वर की महाम योजना को प्रदर्शन कि कैसे कलीसिया को सताने वाला सुस्म्चार का बांटने वाला बन गया.

मिशन के लिए एक उत्साह और मसीही सेवाओं के लिए एक जूनून को पैदा करना.

प्रेरितों के काम की रूप रेखा

(1) पवित्र आत्मा के माध्यम से प्रेरितों द्वारा यरूशलेम में यीशु के कार्य, अध्याय 1-7

(अ) पवित्र आत्मा के आने की तैयारी, अध्याय 1 :-

पुनुरुत्थित यीशु की 40 दिनों की सेवा, यीशु का स्वर्गारोहण और लौटने का वायदा, पवित्र आत्मा की बाट जोहना, प्रेरित की नियुक्ति.

(ब) पेंतिकोस्त का दिन, अध्याय 2 :- पवित्र आत्मा का आना, पतरस कलीसिया का पहला संदेश,

(स) कलीसिया का पहला चमत्कार, पतरस का दूसरा संदेश अध्याय 3 :- लंगड़े की चंगाई, पतरस का उपदेश, 5000 पुरुषों का यीशु को स्वीकार करना.

(द) कलीसिया का पहला सताव, पवित्र आत्मा की सामर्थ्य, अध्याय 4

(ई) हनन्याह और सफीर की मृत्य्य दूसरा सताव, अध्याय 5 सेवकों की नियुक्ति स्तुफ्नुस की गवाही, अध्याय 6

स्तिफनुस का उपदेश और शहीदी पहला शहीद,

(2) पवित्र आत्मा के माध्यम से प्रेरितों द्वारा यहूदिय और सामरिया में यीशु के कार्य, अध्याय 8-12

इथियोपिया के खोजे का मन फिराव, अध्याय (8) तरसुस के शाऊल का मन फिराव, अध्याय 9 कुरनेलियुस,

इतालियानी पलटन के सूबेदार का मन फिराव, अध्याय 10 पतरस के द्वारा अपने कार्य का स्पष्टीकरण सुसमाचार का अन्ताकिया में पहंचना अध्याय 11 याकूब की मृत्यु पतरस की गिरफ्तारी, अध्याय 12

(3) पवित्र आत्मा के माध्यम से प्रेरितों द्वारा प्रित्व्ही के छोर-छोर तक यीशु का कार्य, अध्याय 13-28

पौलुस की पहली मिशनरी यात्रा,, यरूशलेम की सभी, पौलुस की दूसरी मिशनरी यात्रा, तीसरी मिशनरी यात्रा अध्याय 1823-21:14 पौलुस का यरूशलेम को जाना और उसकी गिरफ्तारी,

यरूशलेम की भीड़ के सामने पौलुस का पक्ष, सन्हेद्रिन सामने पौलुस का पक्ष, फैलिक्स के सामने. फैस्तुस के सामने पॉलुस. पौलुस का रोम को जाना और आंधी से जहाज का टूटना.

अध्याय 27 रोम में पौलुस का आगमन, अध्याय 28

प्रेरितों के काम का परिचय

नए नियम के सभी पुस्तकों में प्रेरितों के काम पुस्तक विशेष एवं अद्वितीय है. इसी एक पुस्तक के कारण हम मसीही कलीसिया के इतिहास को समझ पाते हैं.

यदि इस प्रकार का एक पुटक सुसमाचारों एवं प्तिर्यों के मध्य नहीं होता तो हम पौलुस, पतरस या एनी चेलों के द्वारा लिखित पटरियों के पृष्ठभूमि से अनजान रह जाते.

हम कभी यह नहीं जान पते कि विभिन्न पटरियों के लेखक पौलुस कहा से आये और यीशु के डरते हुए चेलों में ऐसा बदलाव कैसे आया. यही एक पुस्तक हमें पहली कलीसिया की बनावट और जीवनशैली का झलक देता है.

इस पुटक में यही एक पुस्तक हमें पहली कलीसिया की बनावट और जीवन शैली की झलक देती है. इस पुस्तक में हम यीशु के स्वर्गारोहण से पौलुस के रोम में दो साल के कैद तक की घटनाओं का विवरण पाते हैं.

प्रेरितों के काम पुस्तक को हम चारों सुसमाचार का फल भी कह सकते हैं. क्योंकि सुसमाचारों में हम यीशु को अपने लहू के द्वारा कलीसिया को मोल लेते हुए देखते हैं

और प्रेरितों के काम पुस्तक में यही मोल ली गई कलीसिया पवित्र आत्मा के सामर्थ्य में अपनी वास्तविक रूप प्रगट करती है.

प्रेरितों के काम का उद्देश्य

यह पुस्तक थियुफिलुस के नाम पर लिखी गई है. थियुफिलुस शब्द का अर्थ है “परमेश्वर से प्रेम करने वाला”.

क्योंकि थियुफिलुस को अति श्रेष्ठ कहकर संबोधित किया गया है तो इस से हम अनुमान लगा सकते हैं कि थियुफिलुस या तो रोमी अधिकारी होगा या कोई बहुत ही धनी व्यक्ति.

लूका का उद्देश्य था कि वह थियुफिलुस को क्रमानुसार मसीही कलीसिया के विस्तार से विवरण दें.

जिस समय लूका अपने पुस्तकों को लिख रहा था उन दिनों म्सीहत के विषय गलत अफवाहें फैली हुई थी कि यह एक देश विरिधि आन्दोलन है.

और मसीहियों का लक्ष्य यह है कि देश में अशांति फैलाएं. लूका इन गलत अफवाहों को दूर करना चाहता था. और थियुफिलुस को यह पुस्तक लिखने के द्वारा उसे मसीही कलीसिया के विषय सही जानकारी देना चाहता था.

लूका का या भी उद्देश्य था कि यह लोगों को यह स्पष्ट करें कि किस प्रकार कलीसिया, जिसकी शुरुआत यरूशलेम में से हुई यह रोम तक कैसे पहुंची.

प्रेरितों के काम की पुस्तक का शीर्षक

हालाकि हम इसे प्रेरितों के काम पुस्तक कहते हैं, तो भी इस किताब के लिए यह नाम पूरी रीती से उपयुक्त नाम नहीं है.

क्योंकि हम इस पुस्तक में सभी प्रेरितों की सेवा की जानकारी नहीं पाते हैं. कुछ बाइबिल शास्त्रियों ने इसको “कुछ प्रेरितों के कुछ कामों” के नाम से भी संबोधित किया है.

लेकिन इस पुस्तक को “पवित्र आत्मा के कार्यों की पुस्तक” कहना सबसे उपयुक्त है.

क्योंकि प्रेरितों ने सब कुछ पवित्र आत्मा के शक्ति और अगुवाई के द्वारा किया इसलिए इस पुस्तक में लोगों के कार्यों के बारे में नहीं बताया गया बल्कि उस पवित्र आत्मा के कार्यों का वर्शन है जो लोगो के भीतर रहता है.

यरूशलेम में कलीसिया का आरंभ

1. यीशु के स्वर्ग में उठा लिया जाना (1:6-11) : यीशु के चेले यह सोचते थे कि यीशु इस्राएल राज्य को पुन:स्थापित करने के लिए पृथ्वी पर आए हैं. उन दिनों में इस्राएल रोमी साम्राज्य के कब्जे में था.

वे रोमी लोगों के द्वारा अक्सर सताए जाते थे. इसलिए जब यीशु ने प्रचार किया कि परमेश्वर का राज्य निकट है, तो उसके चेले यह सोचते थे वह एक संसारिक राज्य के बारे में बातें कर रहे हैं.

तब यीशु ने उनको बताया कि वे कोई सांसारिक राज्य स्थापित करने के लिए बल्कि एक आत्मिक राज्य की स्थापना करने के लिए इस पृथ्वी पर आये हैं.

फिर यीशु ने उनको इस आत्मिक राज्य के बढ़ोतरी के विषय उनको समझाया और उन कम शिक्षित साधारण चेलों से कहा कि तुम पृथ्वी के कोने कोने तक मेरे गवाह ठहरेंगे.

हर एक प्रभु यीशु पर विश्वास करने वाला व्यक्ति गवाह होने के लिए बुलाया गया है. इन सब बातों को कहने के बाद उनके देखते ही देखते जैतून के पहाड़ के ऊपर से यीशु स्वर्ग की और उठा लिया गया.

जाते समय स्वर्गदूतों ने प्रगत होकर चेलों को यह वायदा दिया कि जैसे यीशु यीशु उठा लिया गया है, उसी रीती से वह फिर से बादलों पर आएगा.

2. परमेश्वर की सामर्थ्य को उंडेला जाना (2:1-13) :- यीशु के पुनरुत्थान के पचास दिनों के बाद पिन्तेकुस्त का दिन आया. पिन्तेकुस्त शब्द का अर्थ है पचासवां.

पुराने नियम के अनुसार, प्नितेकुस्त का दिन यहूदी पसः के पर्व के रविवार के बाद पचासवे दिन आया था. (लैव्यव्यवस्था 23:15) यहूदी लोग पिन्तेकुस्त के दिन सप्ताहों का पर्व मनाते हैं (निर्गमन 34:22).

इस दिन यहूदी लोग अपनी पहली उपज परमेश्वर के सामने चढाते थे. यीशु मसीह के जी उठने के पचास दिन बाद 120 लोगों के एक झुण्ड के ऊपर परमेश्वर ने अपने साम्ढ़टी को उडेला.

यह यीशु के शिष्य यरूशलेम के घर में इकत्रित थे.

और अचानक आंधी की सी सनसनाहट हुई और उन्हें आग की सी जीभें फटती हुई दिखाई दी और उनमे से हर एक पर आ ठहरी.

आग परमेश्वर की उपस्थिति का प्रतीक है. और वे सब अन्य अन्य भाषा बोलने लगे. अन्य भाषा का मतलब है कि वे उस भाषा को बोलने लगे जिसे उन्होंने कभी सीखी नहीं थी.

उस पवित्र आत्मा के सामर्थ्य के द्वारा उन सभी का जीवन पूरी रीती से बदल गया. उस दीन से उनका जीवन पूरी तरह से पवित्र आत्मा पर निर्भर हो गया तथा उसके नियंत्रण में था.

यह पवित्र आत्मा का सामर्थ्य आज भी उपलब्ध है. पवित्र आत्मा की भरपूरी केवल एक बार नहीं होती है. यह परिपूर्णता या भरपूरी एक निरंतर अनुभव है. यह लगातार नया होते जाता है. (प्रेरित 4:31)

पवित्र आत्मा का बप्तिस्मा और पवित्र आत्मा का हमारे ह्रदय में वास करना यह दोनों अलग अलग अनुभव है.

जब एक व्यक्ति यीशु को अपने जीवन में ग्रहण करता है उस समय से लेकर पवित्र आत्मा उसके दिल में वास करता है (इफिसियों 1:13)

पवित्र आत्मा का बप्तिस्मा, वो सामर्थ है जिसके द्वारा आप परमेश्वर की इच्छा को पूरी कर सकते हो. पवित्र आत्मा का बप्तिस्मा के द्वारा आप परमेश्वर के लिए गवाह बनने की सामर्थ प्राप्त करते हैं.

3. पतरस का प्रचार (2:14-42) :-

पतरस को सुनने वाले लोग सब यहूदी थे इसलिए पतरस ने अपना प्रचार पुराने नियम में से किया.

जब भी आप वचन की सेवा करते हैं तो आपके सुनने वालों को ध्यान में रखते हुए कीजिए वे जिन बातों को समझते हैं वहां से शुरुआत कीजिए और उन्हें यीशु की ओर ले चलिए.

– पतरस ने योएल नबी के किताब में से उन्हें समझाया कि जो कुछ हुआ है यह पुराने नियम में पहले से भविष्यवाणी के रूप में लिखी गई है. (योएल 2:28-32)

उसके बाद उसने यीशु के जीवन और कामों के बारे में उन्हें समझाया. इसके पश्चात पतरस ने पुराने नियम से स्थापित कर के दिखाया

की जिस मसीहा की वे अभिषिक्त यह शब्द दौड़ के वंश से आनेवाले उस राजा के लिए इस्तेमाल करते थे जो उसके सिंहासन को हर हमेशा के लिए स्थापित करेगा.

आखिर में पतरस ने लोगों को न्योत्ता दिया कि वे अपने पापों को अंगीकार कर के मन फिराए और सब के सामने बप्तिस्मा ले. उस दिन 3000 लोग कलीसिया से मिल गए.

यरूशलेम में कलीसिया की बढ़ोतरी

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