दोस्तों आज हम सीखेंगे ईसा मसीह की मृत्यु कब और कैसे हुई या ईसा मसीह को क्यों मारा गया. ताकि सारी मानव जाति बच सकें क्योंकि लिखा है परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उसने अपना एकलौता पुत्र ईसा मसीह को दे दिया ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे वो नाश न हो वरन अनंत जीवन पाए.
ईसा मसीह का जीवन परिचय
मनुष्य जाति के इतिहास में ईसा मसीह का जन्म एक अत्यंत महत्वपूर्ण घटना थी. इसने संसार के इतिहास को दो भागो में बाँट दिया जैसे कि ई. पू.(मसीह ईसा के पूर्व ) तथ ए.डी. (एन्नी डोमिनि – हमारे प्रभु ईसा मसीह के वर्ष में )
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ईसा मसीह का जन्म किस देश में हुआ था
ईसा मसीह का जन्म स्थान फिलिस्तीन के बेथलेहेम नामक शहर है. जो इस्राएल देश का एक शहर है. जिसे दाउद का नगर भी कहा जाता है. ईसा मसीह का जन्म एक अलौकिक जन्म था और परमेश्वर की सिद्ध योजना के अनुसार था.
ईसा मसीह कौन थे
ईसा मसीह का असली नाम यहोशुआ, यीशु या Jesus है जिसे स्वयं परमेश्वर ने अपने एक स्वर्गदूत जीब्राइल के द्वारा मरियम पर प्रगट किया गया था. ईसा मसीह स्वयं परमेश्वर के पुत्र हैं जो मानव रूप में परमेश्वर हैं. और वो हमेशा जीवित हैं.
ईसा मसीह को क्यों मारा गया
परमेश्वर पवित्र और न्यायी हैं, उसका न्याय समस्त पापियों से मृत्यु दंड की मांग करता हैं. क्योंकि लिखा है पाप की मजदूरी मृत्यु है. और सारे संसार में कोई भी धर्मी नहीं है एक भी नहीं. “सबने पाप किया है”.
इसलिए सारी मानव जाति को बचाने के लिए किसी निर्दोष मेंमने को बलि होना था. और वह परमेश्वर का मेमना स्वयं यीशु बन गया.
अनेक लोग कहते हैं ईसा मसीह को सूली पर क्यों चढाया गया इसका उत्तर है हमारे पापों के लिए वह चढ़ गया ताकि हमें स्वर्ग प्राप्त हो सके. उसने जब अपने हथेली उन कीलों के लिए खोज दी तो हमारे लिए स्वर्ग के दरवाजे खुल गए.
जिसकी गवाही यूहन्ना बप्तिस्मा देने वाले ने दी थी कि देखो यह परमेश्वर का मेमना जो जगत का पाप उठा लिया जाता है. (यूहन्ना 1:29)
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ईसा मसीह फोटो
ईसा मसीह की मृत्यु कैसे हुई और कहाँ हुई
यहूदिया के राज्यपाल पिलातुस ने यीशु को क्रूस पर चढ़ाए जाने की सजा सुनाई थी. उन दिनों कृसीकरण का स्थान गुलगुता की पहाड़ी था.
इब्रानी गुलगुता नाम का अर्थ है, खोपड़ी का स्थान. इसे इसलिए इस नाम से पुकारा जाता था क्योंकि इस स्थान का आकर “खोपड़ी” के समान दिखाई देता था.
क्रूसीकरण के लिए एक सूबेदार और चार सैनिकों को नियुक्त किया गया था. रोमी दण्ड व्यवस्था का नियम था कि क्रूस पर चढ़ाया जानेवाला मनुष्य स्वयं अपना क्रूस उठाकर गुलगुता पहाड़ी पर ले जाता था.
यीशु के साथ दो और अपराधियों को क्रूस पर चढ़ाए जाने के लिए ले जाया गया जिन्होंने नगर में हिंसात्मक बलवा भड़काया था और हत्या की थी.
पूरी रात सो न पाने, कोड़ों की मार, घसीटे एवं पीटे जाने के कारण यीशु पूरी तरह से थककर चूर हो चुके थे.
गुलगुता की पहाड़ी पर क्रूस को उठाकर ले जान का मार्ग पिलातुस के राजभवन से आरंभ होता था, इसमें लगभग साढ़े तीन घंटे लगते थे.
तो उपरोक्त घटना को समझने पर यदि कोई हमसे पूछे कि ईसा मसीह की मृत्यु कब हुई और कहाँ हुई तो हम बता सकते हैं मसीह की मृत्यु A. D. 33 में यहूदा के यरूशलेम, रोमन साम्राज्य में हुई थी.
ईसा मसीह को सूली पर किसने चढ़ाया था
ईसा मसीह ने अपने कार्यों और वचनों के द्वारा सिद्ध कर दिया कि वे ही परमेश्वर के एकलौते पुत्र हैं और मानव रूप में स्वयं परमेश्वर हैं.
यह बात यहूदिया के धर्मगुरुओं को अच्छी नहीं लगी. और वे कट्टरपंथी लोगों के साथ मिलकर यीशु मसीह पर झूठा आरोप लगाने लगे और जाकर पिलातुस जो वहां का रोमन गवर्नर था उसे शिकायत कर दिए.
और सभी ईसा मसीह के विरुद्ध हो गए. और ईसा मसीह के विरोध में क्रूस पर चढ़ाने के नारे लगाने लगे. इसे मैं ईसा मसीह की कहानी के रूप में बताना चाहूँगा.
यीशु भारी क्रूस उठाए हुए धीरे धीरे गुलगुता की पहाड़ी पर चढ़ते चले गए. भारी संख्या में लोगों की भीड़ उसके साथ साथ चल रही थी.
उसमें स्त्रियाँ भी थी जो उसके लिए शोक मना रही थीं. निश्चय ही उनके हृदय गहरी व्यथा से भरे थे. वे यीशु के लिए विलाप कर रहीं थीं.
यीशु ने उनकी ओर मुड़ कर कहा, “हे यरूशलेम की पुत्रियों, मेरे लिए मत रोओ, परन्तु अपने और अपने बालकों के लिए रोओ.” जब जुलुस गुलगुता या ‘कलवरी, पहुंचा,
यीशु के वस्त्र उतारे गए और साधारण सा कपड़ा उसे पहिना दिया गया. सबसे पाहिले उन्होंने क्रूस को जमीन पर समतल लिटाया.
फिर यीशु को क्रूस पर लिटा दिया. दोनों हाथों में कीलों से लकड़ी में ठोंका गया और दोनों पैरों को एक दूसरे पर सीधे रखकर उन पर कील ठोंक दी.
शरीर में सिर से पाँव तक विकृति और पीड़ा थी. उसने यह सब दुःख मेरे और आपके लिए सहा था. दो अपराधी भी यीशु मसीह के बाएँ और दायें क्रूसों पर लटकाए गए थे.
जब रोमी सिपाहियों ने जिन्होंने यीशु को सूली पर चढ़ाया था. यीशु का ठठ्ठा किया और मखौल उड़ाया तो इन क्रूस पर टंगे अपराधियों ने भी उसे ठठ्ठों में उड़ाया.
परन्तु उन दोनों में से एक का मन उस समय बदल गया जब उसने यीशु को अपने सताने वालों के लिए प्रार्थना करते सुना. दूसरा डाकू निंदा करते हुए बोला, “क्या तू मसीह नहीं?
अपने आप को और हमें बचा ले”. पर दूसरा डाकू बोला क्या तू परमेश्वर से भी नहीं डरता. हम तो अपने किए का उचित दंड पा रहे हैं पर इस (यीशु) ने तो कुछ भी नहीं किया.
हमें हमारे किये का दंड मिला है. परन्तु इस मनुष्य ने कुछ भी गलत नहीं किया है. तब वह यीशु की ओर मुड़ा और उससे कहा, “हे यीशु जब तू अपने राज्य में आए तो मेरी सुधि लेना.”
यीशु ने उसे उत्तर दिया, “आज ही तू मेरे साथ स्वर्गलोक में होगा.” इस प्रकार वह भी उनमें से एक बन गया जिन्होंने परमेश्वर के राज्य को उत्तराधिकार में पाया है.
फिर यीशु मसीह ने सूली पर से सात वाणी कहीं और अपने प्राण त्याग दिए.
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ईसा मसीह का सच
बहुत लोगों का सवाल है क्या ईसा मसीह की पत्नी थी तो उत्तर है नहीं ईसा मसीह की कोई शारीरिक या सांसारिक पत्नी नहीं थीं.
लेकिन आत्मिक रूप से कलीसिया को ईसा मसीह की दुल्हन कहा जाता है. (इफिसियों 5:25-27) और वे अपने दूसरे आगमन पर दुल्हे के रूप में आयेंगे और अपनी कलीसिया रूपी दुल्हन को अपने साथ लेकर स्वर्ग जायेंगे. (प्रकाशितवाक्य 22:20)।
लोगों को भ्रम है की क्या ईसा मसीह का भारत भ्रमण हुआ था? इसका उत्तर है नहीं प्रभु यीशु मसीह कभी भी इस्राएल से बाहर नहीं गए.
और उनकी सेवकाई गलील के आप पास के गाँवों में और शहरों में थी ज्यादातर वे पैदल ही यात्रा करके सेवा किया करते थे. पूर्व देशों में वे कभी नहीं गए.
इस कारण यह कोरी कल्पना है कि ईसा मसीह का भारत भ्रमण हुआ था.
हम जानते हैं एक ही नाम के कई व्यक्ति हो सकते हैं जिसकी कब्र काश्मीर में बताई जाती है वह किसी और व्यक्ति जिसका नाम यीशु था है.
अगले भाग में हम पढेंगे यीशु मसीह का पुनुरुथान…प्रभु आप सब को आशीष दे.
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