नया-जन्म

नया जन्म | परमेश्वर में नया जन्म पाने का क्या अर्थ है ? | born again christian in hindi

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हेलो मित्रों आज हम एक विषय पर बातें करेंगे की परमेश्वर में नया जन्म क्या होता है.

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जिस प्रकार का रिस्ता परमेश्वर के संग हमारा हैं वो कुछ ऐसा विशेष सम्बन्ध हैं जिसको हर एक मसीही विश्वासी को समझने और जानने की अत्यन्त जरूरत हैं l इसका कारण यह हैं कि इस संसार में जितने भी नाते रिस्ते हैं उन सब रिस्तो में बहुत ही ज्यादा विविधताएँ हैं, यदि हम यह जानते ही नहीं हैं कि ऐसी कौन सी विशेषता हैं जो हमको और परमेश्वर को एक संग जोड़े रखने का कार्य करती हैं, तो हमारे लिए हक़ीक़त में यह नामुमकिन होगा कि हम उन सब चीजों का उचित इस्तेमाल कर पाए जो परमेश्वर ने हमारे लिए बनाई हैं l अतः इस विषय की महत्त्बता पर ध्यान देते हुए और सम्बन्धों की भ्रमता को दूर करते हुए आइए जानने का प्रयास करें कि बाइबल हमें इन सब बातों के विषय में क्या सीखना चाहती हैं l

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परमेश्वर के साथ हमारे रिस्तों के प्रकार l
सबसे पहले जो हम इस लेख के द्वारा सिखने का प्रयास करेंगे वो यह हैं कि हम जाने कि ऐसा कौन सा रिस्ता उपलब्ध हैं जो हम परमेश्वर के साथ स्थापितकर सकते हैं, अगले क्षेत्र के परिक्षण हेतू कि किसी प्रकार से और कब कोई रिस्ता हक़ीक़त बन जाता हैं उसे हम अवश्य जाने l इसलिए आइये इसका आरम्भ यहून्ना 1:12-13 का पढ़ते हुए करते हैं:

यूहन्ना 1:12‭-‬13
“परन्तु जितनों ने उसे ग्रहण किया, उस ने उन्हें परमेश्वर के सन्तान होने का अधिकार दिया, अर्थात उन्हें जो उसके नाम पर विश्वास रखते हैं। वे न तो लोहू से, और न शरीर की इच्छा से, न ही मनुष्य की इच्छा से, परन्तु परमेश्वर से उत्पन्न हुए हैं।”

मित्रों जैसे कि हमने पहले ही कहा, कि रिस्तों में कई किस्में होती हैं जिन्हें हमें जानना बहुत ही ज़रूरी हैं, उनमें से एक वो हैं, उसमें कोई शक नहीं कि वो सबसे ज़्यादा महत्तबपूर्ण है, और वो रिस्ता हमें उससे जोड़ता हैं जिससे हम पैदा हुए हैं l फिर भी, इसमें कुछ जोड़ते हुए हम सबसे पहले अक्सर उस पर ही ध्यान देते हैं जिसके विषय में हमने सबसे पहले सुना हो (उदाहरण के लिए, हमारे मानवीय अविभावक यानी कि हमारे स्वाभाविक माता पिता), इनसे हट कर भी कई चीज़े ऐसी हैं जिस से हम जन्म सकते हैं l कौन हैं वो? इसका ज़बाब हैं परमेश्वर l सचमुच, जैसे की ऊपर हमने आयत में पढ़ा जो कहती हैं कि, वह नाम जिस पर विश्वास करने के लिए परमेश्वर ने हमें दिया हैं उस पर जो कोई भी विश्वास करता हैं, तो उसमें आगे हम देख सकते हैं, कि वो परमेश्वर की सन्तान बन जाते हैं, जिसका मतलब हुआ कि वो परमेश्वर से जन्मते हैं l दूसरे शब्दों में कहें तो, दो प्रकार के जन्म होते हैं जिन्हें एक मनुष्य ले सकता हैं l उनमे से एक तो हमारे मानवीय माता पिता से और दूसरा परमेश्वर से जन्म लेना l

हक़ीक़त यही हैं कि दो जन्मों के विषय में बाइबल अन्य स्थानों पर भी इसकी पुष्ठि करती हैं, जैसे कि यहून्ना 3:1-8 में जहाँ पर हम आयत 1-3 में पड़ते हैं:

यूहन्ना 3:1‭-‬3
“फरीसियों में से नीकुदेमुस नाम एक मनुष्य था, जो यहूदियों का सरदार था। उस ने रात को यीशु के पास आकर उस से कहा, हे रब्बी, हम जानते हैं, कि तू परमेश्वर की आरे से गुरू हो कर आया है; क्योंकि कोई उन चिन्हों को जो तू दिखाता है, यदि परमेश्वर उसके साथ न हो, तो दिखा नहीं सकता। यीशु ने उसको उत्तर दिया; कि मैं तुझ से सच सच कहता हूं, यदि कोई नये सिरे से न जन्मे तो वो परमेश्वर के राज्य को देख नहीं सकता l”

इन आयतों से हम देख सकते हैं, कि परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करने के लिए “नया जन्म” लेना अति आवश्यक होता हैं l तो आइए देखते कि यह शब्द “नया जन्म” वास्तव में होता क्या हैं? दोस्तों यह शब्द यूनानी भाषा से लिया गया शब्द हैं जिसे “जेन्नेथे अनॉथम” कहते हैं जिसका अनुवादित मतलब “ऊपर से जन्मा हुआ” होता हैं, और यहीं यह शब्द “ऊपर से जन्मा हुआ” परमेश्वर के लिए उपयोग किया जाता हैं जो स्वर्ग में हैं l जैसे कि इसमें देखा जा सकता हैं, इसलिए यहाँ पर यहून्ना 1:12-13 की समानता में वो दूसरे जन्म के सन्दर्भ में बोलता हैं जो एक मनुष्य को मिल सकता हैं, वह हैं परमेश्वर से जन्म लेना, जिसको, जैसे यीशु मसीह ने समझाया, जो परमेश्वर के राज्य में प्रवेश प्राप्त करने से पूर्व एक सही मार्ग हैं l

इसी अध्याय की 4-5 वी आयत में दो जन्म के विषय को समझने के लिए और भी सरल कर दिया गया हैं, जहाँ पर हम पढ़ते हैं:

यहून्ना 3:4-5
“नीकुदेमुस ने उस से कहा, मनुष्य जब बूढ़ा हो गया, तो क्योंकर जन्म ले सकता है? क्या वह अपनी माता के गर्भ में दूसरी बार प्रवेश करके जन्म ले सकता है? यीशु ने उत्तर दिया, कि मैं तुझ से सच सच कहता हूं; जब तक कोई मनुष्य जल और आत्मा से न जन्मे तो वह परमेश्वर के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकता हैं।”

परमेश्वर के लोगों, जैसा कि यहाँ देखा जा सकता है, कि यह खण्ड हमें फिर से कह रहा हैं कि स्वर्गराज्य में प्रवेश करने के लिए मनुष्य को दो जन्मों से हो कर गुजरना अनिवार्य हैं l एक जन्म तो पानी से, जहाँ “पानी” शब्द हमारे पहले जन्म के लिए दिया गया हैं- जिसको हम आगे जैसे देख सकते हैं इसको शरीर से जन्म लेना कहते हैं l यह वह जन्म हैं जिसे हर मनुष्य या प्राणी लेता हैं उदहारण के तौर पर हमारे मानवीय माता पिता के द्वारा जन्म लेना l जैसे भी हो, इस जन्म से हट कर ऊपर की आयत दूसरे जन्म के बारे में भी बोलती हैं, और वो जन्म जो आत्मा से जन्मना होता हैं l अब इस शब्द “आत्मा” के सम्बन्ध में, इसका उपयोग ऐसे किया गया हैं:

1) अधिकांश समयों में इसका ऐसे भी उपयोग परमेश्वर के लिए किया गया होगा वो परमेश्वर जो आत्मा हैं (यहून्ना 4:24) या फिर

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1) परमेश्वर जो स्वंम भी आत्मा हैं वह हमें क्या देता हैं?


किसी भी खास खण्ड में इस शब्द का प्रयोग ऐसा हैं, जैसे कि कोई ऐसी बात जिसको इस खण्ड के नज़रिए से देखने की आवश्यकता हैं l हमारे समबन्ध यदि देखें तो, इसका अक्सर पहले शब्द के संग उपयोग के बराबर हैं, जैसे कि ये देने वाले के विषय में कुछ कह रहा हो, हमारे दूसरा जन्म देने वाले माता पिता के विषय में कह रहा हो, उदहारण के तौर पर परमेश्वर के बारे में l इससे सहमत भी हुआ जा सकता हैं, इस खण्ड के समबन्ध में (1-3 आयत) देखिए, यह उस जन्म के विषय में हैं जो उस प्रभाव से देखा जा सकता हैं जो परमेश्वर से जन्मने का भाव प्रदान करता हैं l

ये दोनों जन्मों के मध्य के अन्तर में और जैसे कि उनमें से क्या कुछ निकला जा सकता हैं, उसको यहून्ना के उसी अध्याय की 6-8 आयत में बिलकुल स्पष्ट कर दिया गया हैं, जहाँ पर हम पढ़ते हैं:
"क्योंकि जो शरीर से जन्मा है, वह शरीर है; और जो आत्मा से जन्मा है, वह आत्मा है। अचम्भा न कर, कि मैं ने तुझ से कहा; कि तुम्हें नये सिरे से जन्म लेना अवश्य है। हवा जिधर चाहती है उधर चलती है, और तू उसका शब्द सुनता है, परन्तु नहीं जानता, कि वह कहां से आती और किधर को जाती है? जो कोई आत्मा से जन्मा है वह ऐसा ही है।" (यहून्ना 3:6-8)

जैसे कि पहले जन्म में, जो हमारे मानवीय माता पिता के द्वारा हुआ, उससे हम जो प्राप्त करते हैं वो हैं, शारीर, और दूसरे जन्म में, वह जन्म जो हमें ऊपर से प्राप्त हुआ हैं, उसे हम परमेश्वर से पाते हैं और इस जन्म के अविभावक पवित्र आत्मा होती हैं l हमें जो भौतिक शरीर मिला हैं उसमें हैं पंच- इन्द्रियाँ l जैसे कि वह शरीर जो हम मानवीय जन्म से प्राप्त करते हैं, वह सम्भव होता हैं हमारे मानवीय माता पिता के संग सम्पर्क साधने से, अतः आत्मा से जो हम प्राप्त करते हैं वह दूसरे जन्म के रूप में, वह हमें स्वर्गीय पिता परमेश्वर के संग सम्पर्क साधने के लिए सक्षम बनाता हैं l

इससे पहले कि हम किसी और निष्कर्ष पर पहुँचे, तो ध्यान रहें कि परमेश्वर ने स्वंम को हमारे लिए उपलब्ध करा दिया, ताकि मनुष्य उसकी सन्तान बन जाए, परमेश्वर हमें इस दूसरे जन्म के द्वारा वह कुछ देता हैं जो कि वो खुद हैं मसलन आत्मा l तो मनुष्य के लिए कैसे अब यह सम्भव हैं कि वह परमेश्वर की एक सन्तान बन जाए, यह कुछ इस प्रकार से हैं जैसे हम आगे सीखने के लिए जा रहें हैं l

2. परमेश्वर के साथ हमारा रिस्ता “कैसे” ?

2.1. यदि हम यह जानना चाहते हैं की हम कैसे परमेश्वर की सन्तान बन सकते हैं, तो इसके लिए हमें फिर से यहून्ना 1:12-13 में जाना होगा, जहाँ पर हम पढते हैं :

कि “परन्तु जितनों ने उसे ग्रहण किया, उस ने उन्हें परमेश्वर के सन्तान होने का अधिकार दिया, अर्थात उन्हें जो उसके नाम पर विश्वास रखते हैं। वे न तो लोहू से, न शरीर की इच्छा से, न मनुष्य की इच्छा से, परन्तु परमेश्वर से उत्पन्न हुए हैं।”

बाइबिल का यह भाग, हम से यह कहने के वज़ह कि कोई भी वास्तव में परमेश्वर की सन्तान बन सकता हैं, यह साथ ही यह भी दर्शाता हैं कि यह कैंसे संभव होगा l जैसे कि यह कहता हैं कि, यह सब कुछ हमें “उसके नाम पर” विश्वास करने के द्वारा सम्भव हैं जो परमेश्वर ने हमारे लिए उपलब्ध कराया हैं और वो कोई और नहीं परन्तु यीशु मसीह हैं l जैसे कि पतरस बड़ी दृणता से प्रेरितों के काम 4:12 में उस नाम के विषय में कहता हैं

“और किसी दूसरे के द्वारा उद्धार नहीं; क्योंकि स्वर्ग के नीचे मनुष्यों में और कोई दूसरा नाम नहीं दिया गया, जिस के द्वारा हम उद्धार पा सकें l”

बाइबिल

यीशु मसीह ही एक मात्र वो नाम जिस पर विश्वास कर के परमेश्वर के द्वारा उद्धार प्राप्त किया जा सकता हैं l इसलिए वो नाम हैं केवल यीशु मसीह ही हैं l तो वास्तव में कोई यदि उद्धार प्राप्त कर भी सकता हैं तो वो सिर्फ यीशु पर विश्वास करने के द्वारा ही प्राप्त कर सकता हैं l और इसको ही नये जन्म की प्रक्रिया कहते हैं और केवल उसी के द्वारा ही उद्धार सम्भव हैं यह कुछ इस प्रकार से हैं जो रोमियो 10:9; दिया गया हैं, जहाँ पर हम पढ़ते हैं:

“कि यदि तू अपने मुंह से यीशु को प्रभु जानकर अंगीकार करे और अपने मन से विश्वास करे, कि परमेश्वर ने उसे मरे हुओं में से जिलाया, तो तू निश्चय उद्धार पाएगा।”

उद्धार पाने या नए जन्म के लिए जो आवश्यक हैं वो इस तरह हैं कि हम परमेश्वर के राज्य में प्रवेश प्राप्त करें, और इसके लिए प्रभु यीशु को प्रभु परमेश्वर और मुर्दों में से जी उठाने वाला ग्रहण करना जरूरी हैं l

2.2 सत्य यह हैं कि परमेश्वर में जन्मे हुए का एकमात्र तरीका जो हैं, वो यह कि प्रभु यीशु मसीह में विश्वास करना अनिवार्य l इस भाग से सम्बन्धित विषय अन्य आयतों के संग भी सुनिक्षित करता हैं l और उनमें से एक हैं 1यहून्ना 5;1 जहाँ पर हम पढ़ते हैं:

“जिसका यह विश्वास है कि यीशु ही मसीह है, वह परमेश्वर से उत्पन्न हुआ है और जो कोई उत्पन्न करने वाले से प्रेम रखता है, वह उस से भी प्रेम रखता है, जो उस से उत्पन्न हुआ है।”

उससे भी ज़्यादा 1 यहून्ना 4:15 हमें बताता हैं:
“जो कोई यह मान लेता है, कि यीशु परमेश्वर का पुत्र है: परमेश्वर उस में बना रहता है, और वह परमेश्वर में।”

जैसे इस खंड से देखा जा सकता हैं, कि जब कोई यह विश्वास करता हैं कि यीशु ही मसीहा हैं, अभिषिक्त मसीहा, परमेश्वर का चुना हुआ, परमेश्वर से पैदा हुआ l इस प्रकार से, ये खण्ड पहले वाले खण्डों को ही पूरा करते हैं, जो हमें परमेश्वर से पैदा होने का एकमात्र तरीके के विषय में बताता हैं जो कि केवल यीशु पर ही विश्वास करने से ही सम्भव हैं l यह जरूरी हैं कि स्पष्ट किया जाए कि उस पर विश्वास करने की क्या विशेषता हैं l अब आप क्या विश्वास करते हैं, यह आप पर निर्भर करता हैं l किन्तु यह बिलकुल सत्य हैं कि बाइबल जो कुछ भी निर्धारित करती हैं वही उद्धार प्राप्त करने लिए अतिआवश्यक हैं l तो अब क्या सच में बाइबिल ही हमें उद्धार देगी!

दोस्तों अक्सर हम संसार के भ्रम में फंस कर सत्य से काफी दूर चले जाते हैं परन्तु यह वास्तव में ख़ास महत्त्वपूर्णता की बिन्दु हैं, जैसे कि शैतान ने कुछ लोगों को सीखाया हैं कि यीशु के विषय में कुछ ही “अच्छी” बातों पर विश्वास करो (जैसे कि वो “एक अच्छा मनुष्य” था “एक महान मानवतामय” वगैराह वगैराह), पर हक़ीक़त में इस आधारभूत उद्धार की बातों को तिरष्कार करना और यह कि वो ही मसीहा हैं और परमेश्वर का पुत्र हैं इसको ग्रहण करने से कोषों दूर रहते हैं l

इसलिए निष्कर्ष निकालने के लिए: हम सभी परमेश्वर के बच्चे नहीं हैं जैसे कि कई लोग विश्वास करते हैं, क्योंकि वे कहते हैं, “हम सभी एक ईश्वर में विश्वास करते हैं”। उनके आश्चर्य के लिए, बाइबल एक ईश्वर के लिए ही नहीं बोलती है। इसके बजाय, यह एक सच्चे परमेश्वर, प्रभु यीशु मसीह के पिता और एक अन्य झूठे ईश्वर शैतान, जो “इस दुनिया का देवता हैं” उसके लिए भी बोलती है l और 2 कुरिन्थियों 4:4 विशेष रूप से बताती है, “उन अविश्वासियों के लिये, जिन की बुद्धि को इस संसार के ईश्वर ने अन्धी कर दी है, ताकि मसीह जो परमेश्वर का प्रतिरूप है, उसके तेजोमय सुसमाचार का प्रकाश उन पर न चमके।”

मित्रों बाइबल एक ही मार्ग को परिभाषित करती है न कि कई ऐसे तरीकों को जो एक सच्चे परमेश्वर की ओर मार्गदर्शन करते हैं। यह रास्ता कोई और नहीं बल्कि यीशु मसीह है। जैसा कि यीशु ने यूहन्ना 14:6 में कहा:

"यीशु ने उस से कहा, मार्ग और सच्चाई और जीवन मैं ही हूं; बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुंच सकता।"

यीशु ही केवल वो एकमात्र रास्ता हैं जो हमको पिता से मिलवाने की अगुवाही करता हैं l बाइबल की उन बातों पर विश्वास करने के द्वारा जो वो विश्वासियों को करने के लिए सीखती हैं, उन पर विश्वास करने के द्वारा हम उद्धार प्राप्त करते हुए प्रभु में जन्म लेते हैं l और अन्य सभी धर्म जो शायद “एक ईश्वर” के विषय में सीखने का प्रयास तो करते हैं पर वो हक़ीक़त में झूठे सिद्ध होते हैं l और जो यीशु, पिता परमेश्वर के विषय में न सीखा सकें वे झूठे पंथ हैं, या दुष्ट आत्माएं होती हैं l

2.3 बेशक ऊपर में से दो आयतों में से यह स्पष्ट घोषणा की जाती हैं कि जो प्रभु में जन्मते हैं वे यीशु ही प्रभु हैं इस बात पर विश्वास करने द्वारा ही सम्भव हो पाता हैं, आइए एक और भी पद पर ध्यान करते हैं जो यह सुनिक्षित करेगा कि अब तक हमने क्या कुछ देखा हैं l यह खण्ड हमें ग़लतियों 3:22-4:7 में देखने को मिलता हैं, जहाँ पर आयत 22 से 24 में हम पढ़ते हैं:

“परन्तु पवित्र शास्त्र ने सब को पाप के आधीन कर दिया, ताकि वह प्रतिज्ञा जिस का आधार यीशु मसीह पर विश्वास करना है, विश्वास करने वालों के लिये पूरी हो जाए॥ पर विश्वास के आने से पहिले व्यवस्था की आधीनता में हमारी रखवाली होती थी, और उस विश्वास के आने तक जो प्रगट होने वाला था, हम उसी के बन्धन में रहे। इसलिये व्यवस्था मसीह तक पहुंचाने को हमारी शिक्षक हुई है, कि हम विश्वास से धर्मी ठहरें।”

बहुत से मसीही लोग आज भी यही विश्वास करते हैं कि व्यवस्था अभी भी मायने रखती हैं और उसको निरन्तर मानना जारी रखना जरूरी हैं l उस पर विचार करते हुए, वे परमेश्वर की इच्छा को हमारे प्रशाशनिक नियन्त्रण में सोचते हैं l बेशक़, मनुष्य के भीतर यह भ्रम उसकी अयोग्यता और विभिन्न बाइबल आधारित कुशाशन का ही नतीजा हैं l जैसे की ऊपर का खण्ड हमें बताता हैं, “व्यवस्था हमें मसीह में लाने के लिए शिक्षक का काम करती हैं ताकि विश्वास के द्वारा हम सिद्ध किए जा सकें l” स्पष्ट रूप से इसलिए, व्यवस्था हमारी गुरु नहीं l वह तो, हक़ीक़त यह हैं कि व्यवस्था की अधिनता में रहकर कभी भी इतना स्पष्ट नहीं हो पाता था l गलातियों 3:25, जहाँ हम पड़ते हैं:

“परन्तु जब विश्वास आ चुका, तो हम अब शिक्षक के आधीन न रहे।”

गलातियों 3:25

हमारा शिक्षक कौन था? व्यवस्था. क्या हम आज भी एक शिक्षक की अधिनता में हैं? नहीं. और क्यों? क्यूंकि “विश्वास आ गया हैं” और अब हम, यीशु मसीह में विश्वास के द्वारा, बचाए गए हैं, और ठीक उसी समय में परमेश्वर में जन्माये भी गए हैं, और इस तरह हम प्रभु के बेटे और बेटियाँ बन गए हैं l सच में जिस प्रकार से 26-28 आयत हमें बताती हैं:

गलातियों 3:26-28
“क्योंकि तुम सब उस विश्वास करने के द्वारा जो मसीह यीशु पर है, परमेश्वर की सन्तान हो। और तुम में से जितनों ने मसीह में बपतिस्मा लिया है उन्होंने मसीह को पहिन लिया है। अब न कोई यहूदी रहा और न यूनानी; न कोई दास, न स्वतंत्र; न कोई नर, न नारी; क्योंकि तुम सब मसीह यीशु में एक हो।”

हम कौन हैं? हम परमेश्वर की सन्तान हैं. कैसे? यीशु मसीह पर विश्वास करने के द्वारा. अब, न कोई यहूदी और न कोई यूनानी रहा, न कोई स्त्री और न कोई पुरुष, न कोई ग़ुलाम और न कोई स्वतन्त्र l वजाहे इसके, जो कोई भी यीशु पर विश्वास करता हैं, वे सब एक हो जाते हैं, सभी एक ही परिवार के सदस्य होने के नाते, हम परमेश्वर के परिवार के सदस्य बन जाते हैं l

इसलिए इसकी तुलना में इस जगत में, जिनकी मुख्य विशिष्टता भेदभाव की हैं, मसीहत में इसकी मुख्य विशिष्टता एकीकरण की हो जाती हैं, यीशु मसीह के नाम में होकर हम आगे पढ़ते हैं, चौथे अध्याय की 1-7 वी आयत जो हमें कहती हैं:

गलतियों 4:1-7
“मैं यह कहता हूं, कि वारिस जब तक बालक है, यद्यपि सब वस्तुओं का स्वामी है, तौभी उस में और दास में कुछ भेद नहीं। परन्तु पिता के ठहराए हुए समय तक रक्षकों और भण्डारियों के वश में रहता है। वैसे ही हम भी, जब तक बालक थे, तो संसार की आदि शिक्षा के वश में होकर दास बने हुए थे। परन्तु अब जब समय पूरा हुआ, तो परमेश्वर ने अपने पुत्र को भेजा, जो स्त्री से जन्मा, और व्यवस्था के आधीन उत्पन्न हुआ।

ताकि व्यवस्था के आधीनों को मोल लेकर छुड़ा ले, और हम को लेपालक होने का पद मिले। और तुम जो पुत्र हो, इसलिये परमेश्वर ने अपने पुत्र के आत्मा को, जो हे अब्बा, हे पिता कह कर पुकारता है, हमारे हृदय में भेजा है। इसलिये तू अब दास नहीं, परन्तु पुत्र है; और जब पुत्र हुआ, तो परमेश्वर के द्वारा वारिस भी हुआ।”

हम कौन हैं? हमारी पहचान क्या हैं? हम परमेश्वर की सन्तान हैं, परमेश्वर के बेटे और बेटियाँ l तो क्या अब हमारे पास परमेश्वर को अपना अब्बा और पिता कहने का हक़ मिल गया हैं? निःसंदेह हाँ, जैसे कि हम उसकी संतान हैं l इसीलिए तो यह उपाधि “पिता” को परमेश्वर के लिए बाइबल में कई बार इस्तेमाल किया गया हैं हमारी पहचान के लिए l परमेश्वर हमारे लिए हक़ीक़त में पिता, और हमारा “अब्बा-पिता” हैं जिस प्रकार से वचन कहता हैं, और जैसे मसीह ने मरकुस 14:36 में कहा, यह मसीह ही हैं जो उसे “अब्बा-पिता” कह कर बुलाता हैं l

आज मसीह की आत्मा हमारे भीतर हैं, जिसके द्वारा हम भी उसे उसी नाम से बुला सकते हैं l और जैसे वचन यह भी कहता हैं, आज हम कोई परमेश्वर के गुलाम नहीं हैं जैसे कि अधिकांश लोग विश्वास भी करते हैं, परन्तु अब हम परमेश्वर की सन्तान हैं, और इस प्रकार से मसीह के संग हम उसके वारिस भी हुए l सच में जैसे रोमियो 8:17 हमें कहती हैं:

“और यदि सन्तान हैं, तो वारिस भी, वरन परमेश्वर के वारिस और मसीह के संगी वारिस हैं, जब कि हम उसके साथ दुख उठाएं कि उसके साथ महिमा भी पाएं l”

तो दोस्तों यह लाभ किस प्रकार से प्राप्त किया जा सकता हैं? केवल यीशु मसीह में और उसके पुनुरुत्थान में विश्वास करने के द्वारा l क्या यह अद्धभुत बात नहीं?

3. अब हम परमेश्वर की सन्तान हैं.

ऊपर की अब तक बातों में हमें परमेश्वर के संग अपने सम्बन्धों पर विचार विमर्श किया कि किस तरह से यह हक़ीक़त बन पायी l वचनों के मध्य जो इसकी सच्चाई को भी व्यान करती हैं 1यहून्ना 3:1-3 में वहाँ हम पढ़ते हैं:

“देखो पिता ने हम से कैसा प्रेम किया है, कि हम परमेश्वर की सन्तान कहलाएं, और हम हैं भी: इस कारण संसार हमें नहीं जानता, क्योंकि उस ने उसे भी नहीं जाना। हे प्रियों, अभी हम परमेश्वर की सन्तान हैं, और अब तक यह प्रगट नहीं हुआ, कि हम क्या कुछ होंगे! इतना जानते हैं, कि जब वह प्रगट होगा तो हम भी उसके समान होंगे, क्योंकि उस को वैसा ही देखेंगे जैसा वह है। और जो कोई उस पर यह आशा रखता है, वह अपने आप को वैसा ही पवित्र करता है, जैसा वह पवित्र है।”

हम कौन हैं? हम परमेश्वर की सन्तान हैं l कब? वचन कभी नहीं कहता कि हम भले कामों के द्वारा ही कुछ अच्छे स्तरों पर पहुंचेंगे और या मौत के बाद l जो कुछ वह कहता हैं वह यह हैं कि अब हम परमेश्वर की संतान हैं, अभी वर्तमान समय में, यह सच में हो चूका हैं, उस दिन से जब हमने यीशु मसीह पर और उसके पुनुरुत्थान पर विश्वास किया l यदि हम अपने बच्चों की फ़िक्र और देखभाल करते हैं, तो सच में परमेश्वर अपने बच्चों की कितना ज़्यादा चिंता फ़िक्र करता हैं, जिसमे की हम में से कितने हैं? जिस प्रकार से मत्ती 7:11 और भजनसहिंता 40:5 स्वभाविक तौर पर हमें कहती हैं:

मत्ती 7:11
“सो जब तुम बुरे होकर, अपने बच्चों को अच्छी वस्तुएं देना जानते हो, तो तुम्हारा स्वर्गीय पिता अपने मांगने वालों को अच्छी वस्तुएं क्यों न देगा?”

और भजन संहिता 40:5
“हे मेरे परमेश्वर यहोवा, तू ने बहुत से काम किए हैं! जो आश्चर्यकर्म और कल्पनाएं तू हमारे लिये करता है वह बहुत सी हैं; तेरे तुल्य कोई नहीं! मैं तो चाहता हूं की खोलकर उनकी चर्चा करूं, परन्तु उनकी गिनती नहीं हो सकती l”

परमेश्वर हमारी चिन्ता और फ़िक्र करता हैं, उसकी प्रिय सन्तान, कई गुणा (हमारे लिए उसके विचार अनगिनित जाते हैं जैसे भजन सहिंता 40:5 कहती हैं) जैसे हम अपने बच्चों की चिन्ता करते हैं l एक अच्छे पिता (उत्तम) के रूप में, वो हमारे साथ सदैव बना रहता हैं, हमारी सुरक्षा और चिन्ता फ़िक्र करता हैं l और यह सच हैं कि वो इस बात की स्वंम ही पुष्टि करता और हमें उत्साहित करता हैं:

इब्रानियों 13:5‭-‬6
“तुम्हारा स्वभाव लोभरिहत हो, और जो तुम्हारे पास है, उसी पर संतोष किया करो; क्योंकि उस ने आप ही कहा है, कि मैं तुझे कभी न छोडूंगा, और न कभी तुझे त्यागूंगा। इसलिये हम बेधड़क होकर कहते हैं, कि प्रभु, मेरा सहायक है; मैं न डरूंगा; मनुष्य मेरा क्या कर सकता है l”

और मत्ती 10:32‭-‬33
“जो कोई मनुष्यों के साम्हने मुझे मान लेगा, उसे मैं भी अपने स्वर्गीय पिता के सामने मान लूंगा। पर जो कोई मनुष्यों के सामने मेरा इन्कार करेगा उस से मैं भी अपने स्वर्गीय पिता के सामने इन्कार करूंगा।”

हमारे पास डरने के कई कारण हो सकते हैं अगर हमारे पास हमारे सहायक के तौर पर परमेश्वर साथ न हो तो l बेहरहाल, यह अभी नहीं हो सकेंगा l आज हम उसकी सन्तान हैं, ज़मीन और आसमान के रचैता की सन्तान, और उसकी जिसने सब कुछ रचा हैं देखी हो या अनदेखी l सच में, तब हमारे लिया क्या असम्भव क्या होगा, जब अगर हमारे पास ऐसा सामर्थी पिता हो तो? ऐसा क्या चीज़ हैं जिससे हम डरें?

“सताव, या पीड़ाएँ, या अत्याचार, और भुखमरी, या नग्नताएँ, या संकट, या तलवार? कुछ भी नहीं, इन सबसे बढ़कर हम विजेता से बजी बढ़कर हैं उसमें होकर जो हमसे प्रेम करता हैं l” (रोमियो 8:35-37). जैसे यीशु ने यहून्ना 14:12 में कहा और जिसको पौलूस फिलिपियों 4:13 में सुनिक्षित करता हैं:

यूहन्ना 14:12
“मैं तुम से सच सच कहता हूं, कि जो मुझ पर विश्वास रखता है, ये काम जो मैं करता हूं वह भी करेगा, वरन इन से भी बड़े काम करेगा, क्योंकि मैं पिता के पास जाता हूं।”

और फिलिप्पियों 4:13
“जो मुझे सामर्थ देता है उस में मैं सब कुछ कर सकता हूं।”

परमेश्वर की सन्तान होने के रूप में हमने इस प्रकार की शक्ति को प्राप्त किया हैं l यह कोई ऐसी शक्ति नहीं हैं जो हमें हमारे पहले जन्म से प्राप्त हुई हो किन्तु यह हमें हमारे दूसरे जन्म से प्राप्त हो होती हैं उस जन्म से जो हम परमेश्वर से प्राप्त करते हैं l यह वो शक्ति नहीं हैं जो हम “खुद में भरोसा” कर के प्राप्त कर लें, किन्तु यह एक वो शक्ति हैं जिसको हम मसीह यीशु में विश्वास करने के द्वारा और सर्वसामर्थी परमेश्वर की योग्यता में भरोसा करने से प्राप्त करते हैं, जो अब हमारा पिता हैं और जो हमें हमारे जीवन के हर कदम पर संभालता हैं l

4. परमेश्वर की सन्तान: जन्म से या गोद लेने के द्वारा?

इस भाग का उद्देश्य उस वचन पर ध्यान देना हैं जो गलतियों 4:4-6 में मिलता हैं, और यह बहुतेरों के लिए मुश्किल का विषय हैं l जहाँ हम पढ़ते हैं:

गलातियों 4:4‭-‬6
“परन्तु जब समय पूरा हुआ, तो परमेश्वर ने अपने पुत्र को भेजा, जो स्त्री से जन्मा, और व्यवस्था के आधीन उत्पन्न हुआ। ताकि व्यवस्था के आधीनों को मोल लेकर छुड़ा ले, और हम को लेपालक होने का पद मिले। और तुम जो पुत्र हो, इसलिये परमेश्वर ने अपने पुत्र के आत्मा को, जो हे अब्बा, हे पिता कह कर पुकारता है, हमारे हृदय में भेजा है।”

बहुतेरों के लिए यहाँ क्या मुश्किल का विषय हैं l इस खण्ड में जो मर्म “गोद लियी हुई सन्तान” यह इस मर्म पर निर्भर करती हैं, बहुत से लोग इससे सहमत होते हैं कि हम जन्म से ही परमेश्वर की सन्तान नहीं हैं परन्तु गोद लिए गए हैं l तौभी, अब तक हमने जो देखा है उस पर एक नज़र यह दिखाने के लिए पर्याप्त है कि किस तरह की व्याख्या बाइबिल के अनुसार नहीं हो सकती है,

जो बहुत स्पष्ट रूप से, कई अन्य अंशों में हमें बताती है कि हम परमेश्वर से पैदा हुए हैं, यह स्पष्ट रूप से एक जन्म के लिए बोल रहे हैं। इसके अलावा, चूंकि कोई भी गोद लिया हुआ बच्चा या जन्म से बच्चा हो सकता है, यह स्पष्ट है कि ये दो स्थितियां वैकल्पिक होने के कारण एक ही व्यक्ति के लिए एक साथ नहीं हो सकती हैं। दूसरे शब्दों में, हम या तो जन्म से या गोद लेने से ईश्वर की संतान हैं, लेकिन निश्चित रूप से दोनों से नहीं।

इसलिए सवाल यह है कि फिर बाइबल यह क्यों कहती है कि हम ईश्वर से पैदा हुए हैं, यह भी कहती है कि हम ईश्वर के द्वारा गोद ली हुई संतान हैं? क्या यह विरोधाभास नहीं है? जवाब है बिल्कुल नहीं। एक सिद्ध परमेश्वर के वचन के रूप में परमेश्वर का वचन भी परिपूर्ण है, इसमें जो कुछ भी कहा गया है उसमें छोटी सी भी अशुद्धि नहीं है। इसमें सब कुछ सटीक और सत्य है।


फिर भी, इसके अनुवादों के लिए ऐसा नहीं हो सकता है, जो एक आदमी का काम होने के कारण अनुवाद की अशुद्धियों से पीड़ित होने की संभावना है। इसलिए विभिन्न अनुवादों का आँख बंद करके अनुसरण करने के बजाय, यह बेहतर है, जब कुछ ऐसा प्रतीत होता है जो बाइबल के अन्य अंशों में कही गई बातों के अनुरूप नहीं है, तो मूल भाषाओं में वापस जाएँ और जाँचें कि वहाँ क्या कहा गया है। इस सिद्धांत को हमारे मामले में लागू करते हुए, हम देख सकते हैं कि उपरोक्त तरीक़े में “गोद लेने” के रूप में अनुवादित शब्द ग्रीक शब्द “यूओथेसिया” है जो शब्दों से बना है: “यूओस” जिसका अर्थ है बेटा और क्रिया का एक रूप “तीथेमी” इसका अर्थ है “सेट करना, रखना”। इसलिए “यूओथेसिया” का अर्थ पुत्रों के रूप में रखना है। इस बात को ध्यान में रखते हुए, गलातियों 4:5 का अधिक सटीक अनुवाद होगा: “जो व्यवस्था के अधीन थे, उन्हें छुड़ा ले, कि हम पुत्रों को प्राप्त करें।”

इसलिए यह मार्ग यह नहीं बताता कि हमें पुत्रों के रूप में कैसे रखा गया था, बल्कि यह कि हमें वास्तव में ऐसे ही रखा गया था। यह कैसे हुआ यानी गोद लेने से या जन्म से यह कुछ ऐसा है जिसे अन्य अंशों से देखा जाना चाहिए। जैसा कि हम पहले ही देख चुके हैं कि अन्य अंशों से जो उत्तर दिया गया है, वह यह है कि हमें जन्म से पुत्रों के रूप में रखा गया था, ऊपर से जन्म, जो तब हुआ जब हमने यीशु को प्रभु के रूप में स्वीकार किया और विश्वास किया कि ईश्वर ने उन्हें मृतकों में से जिलाया। इसलिए इस प्रश्न का उत्तर: “परमेश्वर के बच्चे: गोद लेने से या जन्म से?” स्पष्ट रूप से जन्म से है।

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