परमेश्वर-की-इच्छा-क्या-है

what are the amazing examples of will of God in the bible | परमेश्वर की इच्छा क्या है

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दोस्तों आज हम तीन बेहतरीन उदाहरणों से परमेश्वर की इच्छा क्या है को जानेगे. अनेक बार हमारी कमी घटी में हम परमेश्वर की ओर देखने के बदले अपनी परिस्थिति को देखने लगते हैं. लेकिन परमेश्वर चाहते हैं हम will of God को अपने जीवन में देखें.

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परमेश्वर की इच्छा

परमेश्वर अनेक बार अपनी इच्छा ऐसे समय में प्रगट करते हैं जब हम अपनी स्वयं की इच्छाओं और कमी घटी में उलझे हुए होते हैं. परमेश्वर चाहते हैं कि हर समय और हर हालात में हम परमेश्वर की ओर निर्भर रहें ताकि वह हमारे सोचने से बढ़कर हमारे लिए पूर्ति करें.

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हम यीशु मसीह पर विश्वास करें

परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम किया कि अपना एकलौता पुत्र दे दिया ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे वो नाश न हो बल्कि अनंत जीवन पाए.

परमेश्वर चाहते हैं हम उनके पुत्र पर विश्वास करें. ऐसा लिखा है यीशु ने और भी बहुत चिन्ह चेलों के साम्हने दिखाए, जो इस पुस्तक में लिखे नहीं गए।

परन्तु ये इसलिये लिखे गए हैं, कि तुम विश्वास करो, कि यीशु ही परमेश्वर का पुत्र मसीह है: और विश्वास करके उसके नाम से जीवन पाओ॥ (यूहन्ना 20:30-31)

और विश्वास करने से हमें अनंत जीवन प्राप्त होता है. प्रभु यीशु ने अनेक आश्चर्य कर्म किये ताकि हम उन पर विश्वास करें. आइये नीचे दिया गया उदाहरण देखते हैं.

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यीशु मसीह का पहला चमत्कार

बाइबल में हम युहन्ना 2 अध्याय में देखते हैं प्रभु यीशु मसीह को एक विवाह में अपने चेलों सहित दावत में जाने का न्यौता मिलता है. और वहां प्रभु यीशु अपने सभी चेलों के साथ जाते हैं.

विवाह में सभी जगह सजावट है. लोग भोजन कर रहे हैं. खुशियाँ मनाई जा रही है. तभी प्रभु यीशु की माता मरियम यीशु के पास आकर कहने लगी.

उन लोगों के पास दाखरस नहीं रहा, कमी घटी हो चुकी है. ऐसे में हम जानते हैं विवाह में कमी घटी होने से लोगों में बेज्जती हो सकती है.

और विवाह में जिन्होंने यीशु को निमन्त्रण दिया था वे सोच सकते हैं उद्धारकर्ता यीशु हमारे बीच में है तो फिर कमी घटी क्यों.

यीशु ने कहा, मेरा समय अभी नहीं आया. और थोड़े देर में ही उन्होंने पानी को दाखरस में बदलकर ऐसा चमत्कार किया कि न केवल विवाह के खानसामा और विवाह के लोग बल्कि सारे शहर के आस पास के लोग भी यीशु को जानने लगे.

यह यीशु मसीह का पहला चमत्कार था. और इस रीति से लोगों ने यीशु मसीह पर विश्वास किया. अर्थात परमेश्वर चाहते हैं कि हम अपने जीवन में प्रभु यीशु पर विश्वास करें.

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यीशु का 5 हजार को भोजन खिलाना

यह महत्वपूर्ण घटना चारों सुसमाचारों में लिखी गई है. जहाँ यीशु तिबिरियास की झील के किनारे, एक बड़ी भीड़ को उपदेश दे रहे थे.

और लोग पूरे दिन बड़े ध्यान से प्रभु के उपदेशों को सुन रहे थे. यीशु ने देखा कि सभी को बड़ी भूख लगी है, तब यीशु ने अपने चेले फिलिप्पुस को कहा, इनके लिए भोजन का इंतजाम करो.

लेकिन फिलिप्पुस ने तुरंत हिसाब किताब करके जान यीशु मसीह को जवाब दिया कि दो सौ दीनार की रोटियां भी इन लोगों को कम पड़ेंगी. मतलब पैसा नहीं है और रोटी भी नहीं.

कोई आस नहीं कि लोगों को भोजन कैसे मिलेगा. लेकिन लिखा है यीशु पहले ही जानते थे कि वे क्या करेंगे.

वहां एक छोटा लड़का था जिसकी मां ने उसके लिए पांच रोटी और दो मछली टिफिन बोक्स में बाँध कर उसके खाने के लिए दी थी.

और उस लड़के ने शायद सोचा मुझे अकेले नहीं खाना चाहिए मुझे इसे प्रभु यीशु के साथ भी बांटना चाहिए. हो सकता है यीशु के उपदेश सुनकर वह इस निर्णय पर पहुँच सका.

और जैसे ही उसने उन पांच रोटी और दो मछली को यीशु के हाथों में दिया तब यीशु ने धन्यवाद देकर उन रोटियों को तोडा और चेलों से कहा, लोगों को पचास पचास की पांति में बैठा दिया जाए और ये रोटियां और मछलियाँ बाँट दी जाएँ.

चेलों ने जैसे जैसे उन रोटियों को बांटना शुरू किया रोटियां बढ़ने लगी और सभी लगभग पांच हजार लोगों ने भोजन किया और खाकर तृप्त हो गए.

तब यीशु ने कहा, बचे हुए रोटी और मछली को बटोर लो कुछ भी फेंका न जाए. जब सब कुछ बटोरा गया तब कुल मिलाकर बारह टोकरे भर गए.

इस आश्चर्य कर्म को देखकर लोग कहने लगे कि जो भविष्यवक्ता जगत में आने वाला था वो निश्चय यही है. (यूहन्ना 6:14)

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सच्ची कहानी – नौकर नहीं मालिक बनो

चट्टान से पानी पिलाना

फिर इस्राएलियों की सारी मण्डली सीन नाम जंगल से निकल चली, और यहोवा के आज्ञानुसार कूच करके रपीदीम में अपने डेरे खड़े किए; और वहां उन लोगों को पीने का पानी न मिला। (निर्गमन 17:1-6)

हम देखते हैं 15 अध्याय में लोगों को पीने का पानी नहीं मिला और 17 अध्याय में भी लोगों को पानी नहीं मिला.

लेकिन यदि आप ध्यान से देखें यहाँ निर्गमन में 17 अध्याय के पहली आयत में लिखा हुआ है वे यहाँ यहोवा परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार आये थे.

तो सवाल यह उठता है यदि वे यहोवा परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार आये थे तो फिर फिर उन्हें पानी क्यों नहीं मिला. या यूं कहें परमेश्वर उन्हें ऐसे स्थान में क्यों लेकर आया कि उन्हें पानी न मिला.

परमेश्वर ने उन्हें ऐसे स्थान में जानबूझकर ऐसी स्थिति या परिस्थिति में लेकर आया. कई बार परमेश्वर हमें ऐसे परिस्थिति में लेकर आता है जहाँ हम कुछ कमी घटी में आ जाएं और फिर हमारी प्रतिक्रिया देखता है.

हम कैसे रिएक्ट करते हैं? उस समय हमारा बर्ताव कैसा रहता है. वचन तीसरा में फिर वहां लोगों को पानी की प्यास लगी तब वे यह कहकर मूसा पर बुड़बुड़ाने लगे,

कि तू हमें लड़के बालोंऔर पशुओं समेत प्यासों मार डालने के लिये मिस्र से क्यों ले आया है? वहाँ लोगों को भी पानी नहीं मिला और मूसा को भी पानी नहीं मिला लेकिन लोगों का और मूसा का प्रतिउत्तर अलग अलग होता है.

तब मूसा ने यहोवा की दोहाई दी, और कहा, इन लोगों से मैं क्या करूं? ये सब मुझे पत्थरवाह करने को तैयार हैं।

यहोवा ने मूसा से कहा, इस्राएल के वृद्ध लोगों में से कुछ को अपने साथ ले ले; और जिस लाठी से तू ने नील नदी पर मारा था, उसे अपने हाथ में ले कर लोगों के आगे बढ़ चल।

परमेश्वर हम क्यों कई बार ऐसे दौर पर आते हैं जहाँ हम कमी घटी में होकर जाते हैं.

देख मैं तेरे आगे चलकर होरेब पहाड़ की एक चट्टान पर खड़ा रहूंगा; और तू उस चट्टान पर मारना, तब उस में से पानी निकलेगा जिससे ये लोग पीएं। तब मूसा ने इस्राएल के वृद्ध लोगों के देखते वैसा ही किया। बाद में उन पूरे इस्राएली लोगों ने उस पानी से अपनी प्यास बुझाई और तृप्त हुए.

परमेश्वर की इच्छा क्या है

परमेश्वर क्यों उस चट्टान तक उन्हें लाना चाहता था. परमेश्वर उन लोगों से और मूसा को उस चट्टान से मुलाक़ात कराना चाहता था. वो चट्टान कौन है आइये देखते हैं

नए नियम में 1 कुरु 10:4 और सब ने एक ही आत्मिक जल पीया, क्योंकि वे उस आत्मिक चट्टान से पीते थे, जो उन के साथ-साथ चलती थी; और वह चट्टान मसीह था।

हो सकता है आपके जीवन में भी कमी घटी की परिस्थिति चल रही है और हमारे मुंह से निकल रहा हो क्यों परमेश्वर ने मेरे जीवन में ऐसी कमी आने दिया. मैंने तो किसी का कुछ नहीं बिगाड़ा. आदि आदि.

क्यों मेरे जीवन में समस्या और कर्ज की स्थिति चल रही है. हो सकता है ऐसे कठिन दौर में ही परमेश्वर आप से मिलना चाहते हैं और वो चाहते हों कि आप उनसे मिलें और आपके जीवन में जो सबसे बड़ी जरूरत है अर्थात उद्धार की वो आपको मिल जाए.

इन तीनों उदाहरण से हम यह सीखते हैं कि परमेश्वर की इच्छा क्या है. it is will of God that we may know Him and believe in Jesus Christ.

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