दोस्तों आज हम बातें करने जा रहे हैं, मसीही जीवन जीने के लिए 10 आवश्यक बातें. और यह कि एक विश्वासी व्यक्ति कैसे प्रभावशाली रीति से मसीही जीवन जी सकता है.
1. हर बात में धन्यवाद देना | धन्यवाद की प्रार्थना
मसीही जीवन में एक विश्वासी व्यक्ति को सदैव ही धन्यवादी हृदय का होना चाहिए . प्रभु यीशु हर बात में धन्यवाद देते थे. जब उन्होंने 5000 लोगों को रोटी और मछली खिलाई तब उन्होंने रोटी को तोड़ने से पहले परमेश्वर का धन्यवाद दिया.
अपने मित्र लाजर की कब्र में मरे हुए लाजर को जीवित करने से पहले प्रार्थना सुने जाने के लिए परमेश्वर का धन्यवाद दिया, अपने चेलों के साथ अपने अंतिम भोज से के समय में दाखरस और रोटी को उठाकर धन्यवाद दिया. इस प्रकार प्रभु यीशु धन्यवाद की सामर्थ को जानते थे.
संत पौलुस कहते हैं, “हर बात में हर समय धन्यवाद करो, क्योंकि तुम्हारे लिए मसीह यीशु में परमेश्वर की यही इच्छा है।”
1 थिस्सलुनीकियों 5:18
हमारे जीवन में दुःख हो या सुख हो हर समय धन्यवाद दो, धन्यवादी हृदय शिकायत कम करता है, अब आपके लिए एक सवाल है आप शिकायत करते रहते हैं या धन्यवाद।
2. हमें सदैव नम्र रहना चाहिए | सच्ची मसीही जीवन
एक सच्चा मसीही जीवन की पहचान है कि वह नम्र होता है, प्रभु यीशु ने कहा मुझसे सीखो मैं नम्र और मन में दीन हूँ. प्रभु यीशु ने स्वर्ग का सिंहासन को छोड़कर इस धरती में आ गया नम्र हो गया.
नम्र होने का मतलब ये है कि अपनी स्वार्थ भरी इच्छा को छोड़कर परमेश्वर की सिद्ध इच्छा को अपने जीवन में ग्रहण करना. इसका मतलब है अपने मसीही जीवन में हम धन, पदवी या नाम और शोहरत की न भागें बल्कि प्रभु की सिद्ध इच्छा को पूरा करने की कोशिश करें फिर चाहे उसमें दुःख ही क्यों न उठाना पड़े।
3. बाइबल का अध्ययन करें | बाइबिल पढ़ने के नियम
जब तक हम प्रभु की बातें, उसकी इच्छा या उसकी मर्जी को नहीं जानते हैं तो उसे कैसे पूरा कर सकते हैं. प्रभु यीशु के बारे में जानने के लिए हमें बाइबिल को पढना बहुत जरूरी है. बाइबिल पढने का नियम यह है कि पढने से पहले प्रार्थना करें कि प्रभु इसे पढने और समझने में सहायता करें।
दिन के नियत उत्तम समय में बाइबिल को पढ़ने से परमेश्वर हमें सिखाता हैं, समझाता है और सही और उत्तम मार्ग में ले चलता है इसलिए बाइबल को पढ़ना बहुत जरुरी है. इसलिए जब भी बाइबिल को पढ़ें तो एक नोटबुक और पेन या पेन्सिल भी लेकर पढ़े।
प्रभु ने कहा है, मनुष्य केवल रोटी से नहीं लेकिन हरेक वचन जो परमेश्वर के मुख से निकलता है जीवित रहेगा
बाइबल
जिस प्रकार जीने के लिए रोटी की आवश्यकता है उसी प्रकार आत्मिक जीवन के लिए परमेश्वर का वचन पढ़ना भी जरूरी है. नहीं तो हम आत्मिक रूप से कमजोर हो जाएंगे और छोटी से परीक्षा में भी गिर सकते हैं।
4. हमें बाइबल को कंठस्य (याद) भी करना है | बाइबल की गहरी बातें
बाइबल को केवल पढ़ना ही जरुरी नहीं है बल्कि बाइबल की गहरी बातें जानने के लिए हमें उसके महत्वपूर्ण वचनों को कण्ठस्य करना भी जरूरी है. कण्ठस्य किये हुए वचन हमारे कठिन समय में हमें हौसला देते हैं.
“मैंने तेरे वचन को अपने मन में रख छोड़ा है ताकि तेरे विरुद्ध पाप न करूँ “
दाउद (भजन 119:11)
दाउद ने परमेश्वर के वचन को अपने मन में रख छोड़ा था… और जब शैतान यीशु मसीह की परीक्षा कर रहा था तब प्रभु यीशु ने भी शैतान को वचन के द्वारा ही परास्त कर दिया.
5. हमें एक दूसरे की सेवा करना चाहिए | और हमें दूसरों की मदद करनी चाहिए
प्रभु यीशु मसीह परमेश्वर होने के बाद भी मानव रूप लेकर आकर लोगों के पाँव धो दिए. सभी का दास बन गया. एक मसीही जीवन में विश्वासी होने के नाते हमारा कर्तव्य यही है.
परमेश्वर से प्रार्थना करें और मांगे प्रभु मुझे किस क्षेत्र में सेवा करना चाहिए और किसकी मदद करनी चाहिए. यदि हम इस रीती से दूसरों की सेवा करते हैं और मदद करते हैं इस रीति से हम परमेश्वर की सेवा करते हैं.
जो दूसरों की खेती को सींचता है उसकी खेती भी सींची जाएगी.
नीतिवचन (सुलेमान)
6. हमें प्रार्थना करने वाला बनना है | विश्वास की प्रार्थना
विश्वास की प्रार्थना इस धरा की सबसे बड़ी सामर्थ है. प्रभु यीशु का जीवन एक प्रार्थना का जीवन था. वो सुबह तडके उठकर प्रार्थना करते थे, वो शाम को प्रार्थना करते थे. वो अपने बारह प्रेरितों का चुनाव करने से पहले प्रार्थना किये. कई बार प्रभु यीशु पूरी पूरी रात प्रार्थना करते थे.
एक बार चेलों ने आकर यीशु से कहा प्रभु हमें प्रार्थना करना सिखा. चेलों ने यीशु को चमत्कार करते देखा था, पानी में चलते और मुर्दों को जीवित करते देखा था लेकिन किसी ने भी उन चमत्कार कैसे करते हैं वो सिखाने को नहीं माँगा.
लेकिन वे जानते थे कि यीशु प्रार्थना योद्धा है इसलिए उन्होंने प्रार्थना करना सीखना चाहा. हमें भी एक विश्वासी मसीही जीवन में प्रार्थना का योद्धा होना चाहिए.
7. हमें अपने आप का इनकार करना है | क्रूस उठाना
अपने आप का इनकार करने का मतलब है जो बातें आपको अपनी ओर खींचती हैं या ये संसार की बातो के प्रति मन नहीं लगाना है. रोज अपना क्रूस उठाना है.
हमारा शरीर पाप और अन्धकार की ओर भागता है, रोज घंमड और क्रोध, और न न प्रकार की अभिलाषाओं की ओर जाता है लेकिन हमें रोज क्रूस को उठाकर अर्थात अपनी बुलाहट को स्मरण करते हुए प्रभु यीशु के पीछे चलना है.
8. प्रभु को देने वाले बनना है | दशमांश क्या है
हमारा संपूर्ण जीवन प्रभु की ओर से दान है, जो कुछ हमारा है वो प्रभु की ओर से दिया हुआ है. बाइबिल कहती है ये पृथ्वी और जो कुछ इसमें है सब कुछ प्रभु का है. जब हम प्रभु को अपनी कमाई से दसवां भाग प्रभु की सेवा हेतु देते हैं उसे दसवांश कहा जाता है.
देने के द्वारा हम प्रभु की आशीष भी पाते हैं. और इस रीति से हम स्वयं को स्मरण दिलाते हैं कि हमारा भरोषा धन पर नहीं बल्कि परमेश्वर पर है. इस तरह से परमेश्वर हमारे लिए स्वर्ग के झरोखे खोलकर अपरंपार आशीषों की वर्षा करते हैं. (मलाकी 3:10)
9. हम दूसरों के मनोबल बढ़ाने वाले बने | उत्साह दिलाएं
हमारा परमेश्वर सबसे बड़ा प्रोत्साहन करने वाला परमेश्वर है, बाइबिल में परमेश्वर हरेक को प्रोत्साहित करते हैं, परमेश्वर ने यहोशु से कहा कमर बाँध दृढ हो जा, रोने वाले भविष्यवक्ता यिर्मयाह से कहा मत कह तू लड़का ही है. परमेश्वर का वचन हमेशा लोगों के जीवन को उत्साह से भरता है.
हमारा प्रभु यीशु भी टिमटिमाती बत्ती को नहीं बुझाता, उसी प्रकार एक विश्वासी होने के नाते मसीही जीवन में हमें भी सदैव लोगों के मनोबल को बढाने वाला और उत्साह दिलाने वाला बनना है.
10. हमें अपनी गलतियों को मानने वाला और लोगों को क्षमा करने वाला बनना है.
प्रभु यीशु ने कहा, यदि तुम दूसरों की गलतियों को क्षमा करोगे तो तुम्हारा स्वर्गीय पिता तुम्हें भी क्षमा करेगा. यदि हमसे कोई गलती हो जाती है और क्षमा मांग लेते हैं तो हमारा प्रभु परमेश्वर धर्मी है कि वह हमारे पापों को क्षमा करें.
प्रभु यीशु ने कहा, यदि तुम परमेश्वर के भवन में कुछ भेंट लेकर चढ़ाने आते हो और यदि तुम्हें स्मरण आये कि तुम्हारे भाई के मन में तुम्हारे विरुद्ध कुछ है तो भेंट को वहीँ रखकर जाओ और जाकर पहले अपने भाई से मेल कर लो तब आकर भेंट को चढ़ाओ.
प्रभु यीशु
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