इस लेख में आप पढेंगे : आत्मिक मसीही जीवन की 15 अति महत्वपूर्ण बातें | हमारा आत्मिक मसीही जीवन कैसा होना चाहिए ?
प्रिय मित्र आज हम आपके लिए लाए हैं आत्मिक मसीही जीवन की 15 अति महत्वपूर्ण बातें. कि एक विश्वासी व्यक्ति का या आत्मिक मसीही जीवन कैसा होना चाहिए. विश्वास करते हैं आपको ये बातें आशीष का कारण होंगी तो आइये शुरू करते हैं.
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1. एक दूसरे के साथ प्रेम से रहो.
यीशु मसीह की सन्तान के रूप में हम सभी एक ही परिवार हैं, और हमें यह बुलाहट मिली है कि हमें हर जगह प्रभु के प्रेम को दिखाना है. हमें एक दूसरे से प्यार करने की जरूरत है जैसे कि हमारे प्रभु यीशु मसीह ने हमसे प्रेम किया है. हमें एक दूसरे से प्रेम क्यों दिखाना चाहिए ? बाईबल हमें बताती है की प्रेम परमेश्वर से आता है 1 यूहन्ना 4:7,8
यदि किसी के पास धन सम्पति है और वह किसी भाई या बहन को देखता है कि उसको मदद की जरूरत है लेकिन उन पर कोई दया नहीं करता, ऐसे व्यक्ति के अंदर परमेश्वर का प्रेम कैसे हो सकता है ? यदि परमेश्वर का प्रेम हममें है तो हम देंगे.
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2. एक दूसरे को स्वीकार करें
मत्ती 25:35-45 परमेश्वर ने हम सभी को अलग अलग विचारधारा वाले लोग बनाया है यही मानव जीवन की खूबसूरती है. हम डमी नहीं हैं हम सभी के पास अलग अलग विचार हैं. हम सच्चे मसीही प्रेम और मसीही जीवन का अनुभव तभी कर सकते हैं जब हम प्रत्येक को स्वीकार करेंगे. स्वीकार करने का अर्थ है दया के साथ स्वागत करना, बिना व्यक्ति को दोष लगाए उनको अपने दिल में जगह देना. अनेकता में एकता का सम्बन्ध बनाना. स्वीकार का अर्थ है सभी को सम्मान देना. यह परमेश्वर की प्रकृति है.
यह पभु की आज्ञा और उदाहरण है. इसके माध्यम से हम यीशु के प्रेम को व्यक्त कर सकते हाँ. जब हम स्वीकार करते हैं तो शान्ति और एकता विकसित होगी. यूहन्ना 17:23 किसी को स्वीकार करने के द्वारा हम उसके जीवन में बदलाव ला सकते हैं. यीशु ने उन लोगों को भी स्वीकार किया जिन्हें सभी लोगों ने नजरअंदाज कर दिया था या घृणा की दृष्टि से देखते थे जैसे जक्कई, सामरी स्त्री आदि. (मत्ती 9:12)
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3. एक दूसरे को सहन करें (मत्ती 11:28-30)
आत्मिक मसीही जीवन में एक दूसरे को सहन करने का मतलब है एक दूसरे की मदद करना, एक दूसरे का बोझ उठाना. एक व्यक्ति जो मसीह में है, जब वह एक दूसरे व्यक्ति को बोझ उठाता हुआ देखता है, तो उसे उस व्यक्ति की बोझ उठाने में मदद करने की आवश्यकता है. मसीह जीवन में बोझ उठाने का तात्पर्य यह है भी कि जब किसी को चोट, दर्द और समस्याएं आती हैं तो उसे सहन करें. प्रेम सभी चीजों को सहन करता है. बोझ उठाने का मतलब है उस व्यक्ति का भला करना जिसने आपको परेशान किया था. सच्चे मसीही का अर्थ है धन और बोझ बांटना.
4. एक दूसरे के लिए प्रार्थना करें. (मत्ती 5:15-16) | असली प्रार्थना
जितना किसी मनुष्य को सांस लेने के लिए आक्सीजन महत्वपूर्ण हैं उसी तरह एक आत्मिक मसीही जीवन के लिए प्रार्थना भी जरूरी है. अक्सर मैं लोगों से पूछता हूँ कि, “हम प्रार्थना क्यों करते हैं“? एक स्कूल के बच्चे ने बड़ा ही खुबसूरत जवाब दिया था. हम इसलिए प्रार्थना करते हैं क्योंकि कोई हमारी सुनता है. क्या ही सत्य बात है यदि कोई हमारी प्रार्थना सुने ही न तो हमारा प्रार्थना करना व्यर्थ हुआ. परमेश्वर हमारी प्रार्थना सुनते हैं और हमारी आवश्यकताओं को पूरा करते हैं. प्रार्थना से ही पता चलता है कि हम परमेश्वर पर भरोषा करते हैं और विश्वास करते हैं. हमें प्रार्थना में मजबूत बनने के लिए एक दूसरे के लिए प्रार्थना करना चाहिए और पवित्रशास्त्र बाइबल के अनुसार प्रार्थना करना चाहिए.
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5. एक दूसरे के साथ एकजुट रहें. (1 यूहन्ना 1:1-7)
एकजुट का अर्थ है बिना किसी असमानता और भेदभाव के व्यवहार करना. हमें एक दूसरे के साथ एक होने की आवश्यकता है. इसके लिए हमें पहले परमेश्वर के साथ एक होना जरूरी है. प्रभु यीशु ने भी यही प्रार्थना की थी कि उसके चेले एक मन रहें. और एक जुट रहें. एकता में बड़ी सामर्थ है. जो लोग विश्वासी नहीं हैं वे लोग भी एकता में रहकर बहुत बड़े काम कर लेते हैं. तो मसीह और आत्मिक लोगों को कितना एकजुट होना जरूरी है. एक व्यक्ति जो चर्च आता है लेकिन वह कलीसिया की एकता में नहीं रहता इसका मतलब है वह मसीहत से पीछे हट चूका है. ऐसे व्यक्ति को मसीह की अच्छाई और चर्च के साथ अच्छाई का मेल करना चाहिए.
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6. एक दूसरे के प्रति दयालु बनें. (इफिसियों 4:32, 1 पतरस 3:8)
हम सभी मसीह में भाई और बहन हैं, एक ही खून में धोये गए हैं, इसलिए हमें एक दूसरे के पति दया और उताश के साथ अपने कार्यों में नम्र होना अति आवश्यक है. हम कैसे दयालु हो सकते हैं ? हम दूसरों को परिस्थितियों को समझ कर, एक दूसरे को क्षमा करके. एक उदाहरण इस प्रकार है, की एक 12 वर्ष का बालक गलती से नदी में गिर पड़ा और डूबने लगा, तभी किनारे खड़े लोगों ने प्रतिउत्तर दिया, किसी ने कहा बच्चों को नदी के किनारे नहीं आना चाहिए नहीं तो ऐसा होता है. एक और आलसी व्यक्ति ने चिलाया तुम्हारी किस्मत खराब है बेटा, एक और व्यक्ति ने कहा जो मां बाप का कहना नहीं मानते उनके साथ ऐसा ही होता है. तभी एक मछुआरा आया और स्थिति को जानकर तुरंत नदी में कूद पड़ा और बच्चे को बचा लिया. बिलकुल सही कहा है किसी ने बड़ी बड़ी सलाह से बढ़कर सहायता में उठने वाले हाथ हैं.
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7. एक दूसरे की सेवा करें. (गला. 5:13-16)
सेवा करने का क्या मतलब है ? सेवा करने का अर्थ है, परमेश्वर के कायों में प्रेम दिखाना, सेवा करने का अर्थ है परमेश्वर के लिए लोगों का काम करना. सेवा करने का अर्थ है स्वेच्छा से दूसरों के लिए काम करना.. सेवा करने का अर्थ है पवित्र लोगों के लिए काम करते रहना. और अपना समय देकर दूसरों के लिए काम करना. ज्ञान, पतिभा, पैसा और भौतिक आदि से मदद करना. एक उदाहरण इस प्रकार है रमेश और मुकेश दोनों दोस्त किसी तरह एक बर्फीले पहाड़ी में फंस गए और रमेश को अपनी ताकत पर पूरा भरोषा था क्योंकि वह थोड़ा ज्यादा जवान था. वह तेजी से आगे बढ़ता हुआ चला गया रात के समय कड़ाके की ठण्ड पड़ रही थी और बर्फ भी गिरने लगी मुकेश ने देखा एक रास्ते में एक बुजुर्ग व्यक्ति जो ठण्ड के कारण चल नहीं पा रहा था.
मुकेश से सहायता मांगने लगा की उसे भी साथ ले ले मुकेश को अकेले ही चलना भारी लग रहा था लेकिन तब भी उसने सेवा और दया के भाव से उस बुजुर्ग व्यक्ति को अपने कंधे में उठा लिया और धीरे धीरे आगे बढ़ने लगा. मुकेश बहुत दूर चलने के बाद जब थक गया तो आगे क्या देखा की उसका मित्र जो उसे छोड़ भाग आया था आगे बर्फ में फंस कर मर गया था क्योकि भारी बर्फीली हवा और ठण्ड के कारण उसका शरीर का खून जम गया था. लेकिन उसी बर्फीली हवा में मुकेश उस बुजुर्ग की सहायता करने के कारण उस बुजुर्ग के शरीर का तापमान के कारण और चलते रहने के कारण उस ठण्ड को सह सका और जीवित बच गया. जब हम दूसरों की खेती सींचते हैं तो हमारी भी सीची जाती है हम किसी की सेवा करते हैं तो हमे भी उसका प्रतिफल परमेश्वर प्रदान करता है.
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8. एक दूसरे से सच बोलें. (इफिसियों 4:25)
आत्मिक मसीही जीवन में हम एक दूसरे के अंग है इसलिए हममें से हरेक को अपने पड़ोसी से एवं आपस में सच बोलना चाहिए. यीशु मसीह ने कहा, हमारी बात हाँ की हाँ और न की न होनी चाहिए. (मत्ती 5:37) बाइबल में हम एक उदाहरण देखते हैं प्रेरितों के काम में कलीसिया में एक परिवार था पति और पत्नी हनन्याह और शफीरा दोनों ने एका किया और जमीन को बेचकर पतरस कलीसिया के अगुवो अर्थात परमेश्वर के दासों के आगे झूठ बोला. जिसका यह परिमाण हुआ कि वह तुरंत मर गया. प्रभु यीशु सत्य है और हमें भी सत्य में चलना चाहिए.
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9. एक दूसरे को क्षमा करें (इफिसियों 4:32)
एक दूसरे को ऐसे क्षमा करें जैसे मसीह में परमेश्वर ने भी तुम्हें क्षमा किया है. क्षमा करने का अर्थ है किसी व्यक्ति की गलतियों को माफ़ करना और उसे पुन: स्वीकार करना हा. यीशु मसीह ने भी हमारे सभी पापों को क्षमा किया और हमारे पापों को भूलकर हमें स्वीकार कर लिया है. उसी तरह यहाँ हैं दूसरों की गलतियों को माफ़ करके और उन्हें भूलकर स्वीकार करने की आवश्यकता है. एक आदमी द्वारा किए गए पाप के लिए क्षमा करने के बाद, क्या आपका दिल अभी भी उस पाप के बारे में परेशान है, क्या आप में अभी भी थोड़ा गुस्सा है, इसका अर्थ है कि हमने उस आदमी को पूरे मन से क्षमा कर दिया है.
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10. एक दूसरे की चिंता करें (इबानियों 10:24-25)
हमें एक दूसरे के बारे में ख्याल रखने, प्यार का इजहार करने, उनके लिए भलाई करने और किसी तरह भी मदद करने की जरूरत है. यदि हम किसी को ठोकर खाते हुए देखते हैं, तो उनके पास दौड़ें और उनको सुदृढ़ करने के द्वारा प्रोत्साहित करें. हमें यह देखकर सावधान रहने की जरूरत है कि हम में से कोई भी विश्वास में पीछे न रहें. बाइबल में एक उत्तम उदाहरण है परमेश्वर के दास अब्राहम का, जब उसे पता चला कि परमेश्वर एक देश को जिसका नाम सदोम और अमोरा है नाश करने वाला है तो वह उस देश की चिंता किया और उस देश को बचाने के लिए प्रार्थना करने लगा. एक सच्चे मसीही व्यक्ति को एक दूसरे के लिए चिंता करना चाहिए.
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11. एक दूसरे की पहुनाई करें (1 पतरस 4:9)
एक मसीही व्यक्ति को एक दूसरे की पहुनाई अर्थात मेहमान नवाजी करना चाहिए. हमें परमेश्वर के सेवकों की अतिथि सत्कार करना चाहिए. बाइबल बताती है कुछ लोगों ने अनजाने में अतिथि सत्कार करने के कारण स्वर्गदूतों की सेवा की और उसका प्रतिफल भी पाया. अब्राहम एक बार तीन अजनबियों को अपने गाँव में देखकर उन्हें भोजन करवाता है और आदर सत्कार करता है बाद में उसे पता चलता है कि वे लोग स्वर्गदूत थे और जिसके कारण उसे आशीर्वाद के रूप में उसे 100 वर्ष के बाद पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ.
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12. एक दूसरे को प्रोत्साहित करें. (इफिसियों 4:29)
प्रोत्साहित करने का अर्थ है उन शब्दों का उपयोग करना जो उनके विश्वास को बढाएं, उनका निर्माण करें और उन्हें उठाएं. एक शब्द में कहने का अर्थ एक व्यक्ति को विश्वास में बढ़ाना. परमेश्वर के वचन का उद्देश्य हमें प्रोत्साहन देना है. यह हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है कि हा भी एक दूसरे को प्रोत्साहित करें और उठाएं. जिनके पास प्रोत्साहित करने वाले लोग हैं, वे अधिक जीत हासिल करेंगे. प्रभु यीशु अपने जीवन में हरेक हताश और निराश लोगों को प्रोत्साहित करते थे.
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13. एक दूसरे के पति एक ही मन रहें. (रोमियो 12:14-21)
आपस में एक मन रखो, एक दूसरे से घृणा न करो लेकिन दीनता के साथ अच्छा सम्बन्ध रखो. अपने आप में बुद्धिमान मत बनो. एक मन होने का अर्थ है, एकता दिखाना, उनके साथ रहना, उनके लिए होना और उनकी स्थिति में होना. हमारा परमेश्वर भी हमारे साथ एक मन होता है. वह कहता है मैंने तुम्हारे दुखों को देखा है, मैंने तुम्हारा रोना सूना है, मैं तुम्हारे दुखों को जानता हूँ. (निर्गमन 3:7-8)
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14. एक दूसरे के साथ शान्ति से रहो. (मरकुस 9:50)
नमक अच्छा है लेकिन यदि नमक अपना स्वाद खो दे तो क्या आप इसे फिर से नमकीन बना सकते हैं,? अपने आप में नमक रखें और एक दूसरे के साथ शान्ति से रहें. शान्ति का अर्थ है मेल से रहना. हमारा प्रभु यीशु भी शांन्ति का राजकुमार है वो कहता है मैं तुम्हें ऐसी शान्ति देता हूँ जो संसार तुम्हें नहीं दे सकता. हमें स्वयं के साथ और लोगों के साथ और परमेश्वर के साथ शांत रहने की आवश्यकता है. जिस प्रकार गहरी नदी शांत बहती है उसी प्रकार एक मसीह व्यक्ति शांत रहता है.
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15. एक दूसरे के साथ प्यार से रहो (रोमियो 12:10)
भाईचारे के साथ प्यार से एक दूसरे से प्यार करो. स्नेही होने का अर्थ है सुखद प्रेम. जिस प्रकार हम अपने ही भाई बहनों के साथ प्यार दिखाते हैं उसी प्रकार एक दूसरे के साथ भाई चारा दिखाने की जरूरत है. जिस तरह माता पिता अपने बच्चों को बहुत प्यार करते हैं, हमें भी दूसरों से बहुत प्यार करने की आवश्यकता है. कैसे यीशु मसीह ने हमें सुखद प्रेम दिखाया, इसी तरह हमें मसीही होने के नाते सभी मनुष्यों से प्रेम करना चाहिए.
Resource https://www.youtube.com/watch?v=Ewmax89PuSA
https://anchor.fm/rajesh9/embed/episodes/ep-e13se5tht
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पास्टर राजेश बावरिया (एक प्रेरक मसीही प्रचारक और बाइबल शिक्षक हैं)
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God bless you too dear Yogesh brother