आराधना की परिभाषा | worship definition
परिचय “आराधना” की एक सरल परिभाषा देना कठिन है. लेकिन आराधना में दो बातें जरूरी हैं. पहला – कार्य (Activity) हम क्या करते हैं. दूसरा – मनोभाव (Attitude) कि हम कैसे करते हैं.
अनेक धर्मों में सिर्फ कार्य या क्रिया को महत्व दिया जाता है, लेकिन मनोभाव को कुछ महत्व नहीं दिया जाता. लेकिन मसीही विचार के अनुसार दोनों को एक समान स्थान दिया जाता है . सही मनसा ही सही कार्य को उत्पन्न करता है. उदाहरण :- (उत्त्पति 4: 3-5)
आराधना एक व्यक्ति के पूरे जीवन से संबधित हैं. आराधना बाहरी दिखावट की कोई चीज नहीं है, लेकिन यह मन के अंदर की भावना से संबंधित है. कई बार मसीही लोग आराधना को केवल सामूहिक आराधना के रूप में मान लेते हैं. लेकिन यह सच नहीं है. आराधना एक व्यक्ति के संपूर्ण जीवन से जुड़ी हुई है. सामूहिक आराधना केवल उसका एक भाग है.
आराधना क्या है ? | What is worship
आराधना के कई पहलू (ASPACT) हैं
(1) परमेश्वर के महत्व को पहचानने का अनुभव है | Experiencing the greatness of God
(यशा 6 :1-5) (इब्रा. 12:28-29) “आराधना” परमेश्वर के महत्व को अंगीकार करना है. परमेश्वर, परमेश्वर है क्योंकि वह महान हैं. यद्यपि, परमेश्वर के वचन और यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर के विषय में हम समझ सकते हैं तो भी परमेश्वर हमारे समझ से परे है. परमेश्वर सर्वव्यापी सर्वशक्तिमान और सर्व ज्ञानी है. परमेश्वर का यह स्वभाव हमारे अंदर एक पवित्र भय को पैदा करता है.
परमेश्वर के सामने इस प्रकार के भय को प्रकट करना केवल मनुष्य की योग्यता है और पशुओं में यह योग्यता नहीं है.
(2) परमेश्वर की स्तुति करना | Praising Of God
भजन संहिता 33:1, 34:1 हम परमेश्वर की स्तुति करते हैं, क्योंकि परमेश्वर स्तुति के योग्य है (व्यव10:21, भजन 145:3). जब हम स्तुति करते हैं, तो परमेश्वर को जो देना है वह देते हैं.
सृष्टी में परमेश्वर के हाथ को हम देख सकते हैं इस्राएली लोग अपने इतिहास में परमेश्वर के काम को देखकर स्तुति करते थे. और हमें भी हमेशा परमेश्वर की स्तुति करना चाहिए. कई बार हम गीत को चुन लेते हैं ताकि परमेश्वर की स्तुति कर सकें (भजन 69:30).
(3) परमेश्वर से व्यक्तिगत रूप से मुलाक़ात करना | Personal Meeting With God
(भजन 27:4, 42:1-2) इन वचनों में ये लोग परमेश्वर को व्यक्तिगत रूप में मिलना चाहते हैं. हरेक व्यक्ति के अंदर परमेश्वर को व्यक्तिगत रूप में मिलने की एक लालसा रहती हैं. इसलिए हमारी आराधना हमारे दिल की आज्ञा से अंकुरित होना चाहिए.
(4) परमेश्वर को बलिदान चढाते हैं | Offering Sacrifice to God
जब हम परमेश्वर के सामने खड़े होते हैं, अगर परमेश्वर को कुछ नहीं दे पाएं तो हमारे अंदर कुछ कमी को हम महसूस करते हैं. इसलिए लोग परमेश्वर को कुछ देकर खुश करना चाहते हैं. पुराने नियम में पशुओं और अन्य जीवों को बलिदान के रूप में चढाते थे.
लेकिन नए नियम के अनुसार हमें आत्मिक बलिदान को चढ़ाने की आवश्यकता है. (1 पतरस 2:5, इब्रानियों 13:15, भजन 50:9-14) केवल स्तुति और धन्यवाद नहीं लेकिन हमारे पूरे जीवन को (अपने आप को ), हमारे शरीर और व्यक्तित्व को बलिदान के रूप में चढाना चाहिए. (रोमियो 12:1)
मसीही आराधना का आरंभ | Origin of Christian Worship
पुराने नियम के श्रोत | Old Testament Sources
ख्रिस्त धर्म (Christianity) का आरंभ, इब्रानियों या यहूदी संस्कृति और पृष्ट भूमि में हुआ. इसलिए कई इब्रानी रूप और विशेषताओं ने मसीही आराधना को प्रभावित किया है. पुराने नियम में कई प्रकार की आराधना का वर्णन किया गया है. उसमें से चार ने मसीही आराधना को बहुत प्रभावित किया है. इनको हम मसीही आराधना के श्रोत कह सकते हैं.
(1) सिनै घटना | The Sinai Event
(2) तम्बू और मन्दिर | Tabernacle and Temple
(3) यहूदी आराधनालय | Synagogue
(4) पर्व त्यौहार | Festivals
(1) सिनै घटना | The Sinai Event
(निर्गमन 19-24) परमेश्वर ने इस्राएलियों को मिश्र देश से निकालकर सिनै पर्वत के पास लाकर एक वाचा बाँधी. यहाँ परमेश्वर का लोगों के साथ एक सार्वजनिक सभा हुई थी. इस सभा में कुछ मौलिक बातें हम देख सकते हैं.
(a) यह सभा परमेश्वर के द्वारा बुलाया गया. इसे परमेश्वर की सभा कहा जा सकता है. इसलिए आराधना की एक महत्वपूर्ण बात यह है कि इसमें भाग लेने वाले लोग परमेश्वर के द्वारा बुलाए गए लोग हैं.
(b) कलीसिया – परमेश्वर के द्वारा बुलाए गए लोगों का समूह.
(c) लोगों की जिम्मेदारी – यहाँ कोई भी गूंगा या मूक दर्शक के जैसा नहीं आया. लेकिन सब लोग उस सभा में सम्मिलित होने के लिए आये थे. नए नियम की आराधना में भी लोगों की सहभागिता जरूरी है.
(d) परमेश्वर के वचन की घोषणा – (निर्गमन 19:3-6, 20:1, 24:2) यहाँ परमेश्वर लोगों से बात करता है और उनके बारे में अपनी इच्छा को भी बताता है. इसलिए परमेश्वर का वचन सुनाना (घोषणा करना) आराधना का एक मुख्य भाग है.
(e) परमेश्वर के वचन को स्वीकार करना – (अंगीकार करना) निर्गमन 19:8, 24:8 जो बातें परमेश्वर ने बताया, वे सुनने के लिए और स्वीकार करने के लिए लोग तैयार थे. इसलिए आराधना में परमेश्वर के वचन सुनने और उसको मानने की एक प्रतिबद्धता होनी चाहिए.
(f) वाचा का सर्मथन – (Approval of the Covenant) निर्गमन 24:8 इस वाचा को पक्का करना भी कह सकते हैं. पुराने नियम में बलिदान के समय का लहू बहाने के द्वारा, वाचा का समर्थन होता था. और यह बलिदान यीशु मसीह का सर्वोच्च बलिदान की एक छाया की तरह माना जाता है.
(2) तम्बू और मन्दिर | Tabernacle and Temple
तम्बू (मिलाप वाला तम्बू) और मन्दिर की कुछ सामान्य विशेषताएँ हैं, जिन्होंने मसीही आराधना की उत्पति को प्रभावित किया है.
(a) यहाँ परमेश्वर की पवित्र उपस्थति होती थी. निर्गमन 25:8, 2 इतिहास 6-7, पुराने नियम में इस्राएलियों की सारी यात्राएं तम्बू के द्वारा नियंत्रित किया जाता था. और तम्बू की गति को बादल नियंत्रित करता था. (निर्गमन 40:34-38, गिनती 9:15-23)
नए नियम में यीशु मसीह ने कहा, “जहाँ दो या तीन जन मेरे नाम से एकत्र होते हैं मैं उनके बीच में होता हूँ,” मत्ती 18:20
(b) प्रतीकात्मक स्वभाव | Symbolic Character – तम्बू या मन्दिर की सभी चीजें स्वभाव में प्रतीकात्मक थीं. सब चीजें परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार ही बनाई गईं थी. निर्गमन 39:32. और उनके स्थान विधि और मन्दिर की सेवा भी परमेश्वर के आज्ञा के अनुसार थी.
होम बलि, अन्नबलि जैसी बलियाँ जो लैव्यव्यवस्था में दिखाई देती हैं, लोगों को परमेश्वर के साथ सहभागिता को दर्शाती है. और इन सब बलिदानों को यीशु मसीह के उस सर्वोच्च बलिदान को एक प्रतीक के रूप में माना जाता है. इब्रानियों 9:1-14, 10:1-14.
तम्बू या मन्दिर में सेवा करने के लिए याजक था. वे लोग परमेश्वर के द्वारा चुने हुए और अभिषेक किये हुए थे. (निर्गमन 29). नया नियम का मन्दिर यीशु मसीह ने और उसकी कलीसिया में पूर्ण होता हैं. यूहन्ना 2:19-21, 1 कुरु. 3:16-17, 2 कुरु. 6:16, इफिसियों 2:21-22.
(c) यहूदी आराधनालय | Synagogue
मरकुस 5:38, 6:2, लूका 7:5, 8:41, प्रेरित 13:5, 14:1, 15:21, 18:4, 19:4) यरूशलेम के मन्दिर के विनाश के बाद यहूदी आराधनालय का प्रारंभ हुआ था. जब यहूदी लोग बेबीलोन और अश्शुर में प्रवास में गए और उसके बाद वे कई जगह में तितर बितर हो गए थे. इन्होने अपनी परम्परा और विश्वास को जीवित रखना चाहा. और इस उद्देश्य से यहूदी आराधनालय की स्थापना हुई.
और यह आराधनालय यहूदी समुदाय के शैक्षणिक, धार्मिक और सामाजिक केंद्र बन गए. परमेश्वर के वचन का अध्ययन और उसको समझाना आराधनालय का एक मुख्य क्रिया हो गया था. लेकिन इस आराधनालय में बलिदान विधियां और याजक आदि बातें नहीं थीं. यहूदी आराधनालय की आराधना में तीन चीजें होती थीं.
(a) विश्वास का समर्थन | Faith Affirmation (b) प्रार्थना (c) व्यवस्था का पठन reading (d) व्याख्या Exposition
मसीही आराधनालय को यहूदी आराधनालय ने बहुत प्रभावित किया है. आज मसीही आराधना में प्रार्थना, वचन का पढ़ना और प्रचार करना आदि के लिए जो महत्त्व दिया जाता है, वह यहूदी आराधनालय के कारण ही हुआ.
(4) पर्व त्यौहार | The Festivals
यहूदियों के कई बड़े और पर्व थे, जो मन्दिर और घर के जीवन पर केंदित थे. साधारण रूप में इतिहास के कुछ पुरानी घटना को याद करने या परमेश्वर को स्तुति और धन्यवाद करने के लिए पर्व मनाए जाते थे.
पुराने नियम में तीन मुख्य प्रकार के पर्व थे.
(1) फसह का पर्व Passover इस्राएलियों के मिश्र देश से कूच करने की याद में मनाया जाने वाला पर्व
(2) पिन्तेकुस्त (Pentecost) :- अच्छी फसल मिलने के बाद परमेश्वर को धन्यवाद देने का पर्व.
(3) तम्बू का पर्व – परमेश्वर ने उनके जीवन में जो कार्य किया उसको स्मरण करने का पर्व.
(1) फसह का पर्व | Festival or Feast of Passover
यह पर्व इस्राएलियों के मिश्र देश से हुए छुटकारे को स्मरण करता है. अपने आपको मृत्यु से बचाने के लिए वे लोग एक-एक मेमना को बलि करके उसका लघु द्वार के अलंगो और चौखट के सिरे पर लगाये थे. (निर्ग 12, गिनती 9:1-19, व्यव16:1-8. 2 इतिहास 35:1-19 लूका 2:41-42)
फसह का महत्व – यीशु मसीह ने फसह का पर्व मनाने के अवसर पर प्रभु भोज (Lord Supper) की स्थापना की थी. इसके द्वारा यीशु मसीह ने अपने आप को नए फसह के मेमने की तरह वर्णन किया था. यीशु मसीह ने प्रभु-भोज स्थापित करने के बाद, अपने दूसरे आगमन तक उसको स्मरण करने की आज्ञा भी दी थी. (मत्ती 26:17-29, मरकुस 14:12-25, लूका 22:7, 1 कुरु 11:23-26, 1कुरु 5:6-8)
(2) पिन्तेकुस्त का पर्व | Pentecost Festival
पिन्तेकुस्त का अर्थ होता है पचासवां या पचास यह पर्व फसह का पर्व शुरू होने के पचास दिन के बाद शुरू होता था. यह पर्व फसह के मौसम के बाद होता है, और इस समय अच्छी फसल के लिए परमेश्वर को स्तुति और धन्यवाद दिया जाता है. इसमें कई जगह से लोग शामिल होते थे. (लैव्यव्यवस्था 23:15-21, गिनती 28:26-31 व्यव16:9-12 प्रेरितों 2:1-5, 20:16)
पिन्तेकुस्त का महत्व : पिन्तेकुस्त के दिन पवित्र आत्मा एक विशेष तरह से उतरा था. इसलिए मसीही कलीसिया का आरंभ उस दिन से हुआ था. (प्रेरितों 2:1-47)
(3) तम्बू का पर्व : झोपड़ियों का पर्व | Festival of Tabernacle or Festival of Booth
इस पर्व के दिन यहोवा परमेश्वर के द्वारा उनके जीवन में किये कार्यों को स्मरण करते थे. इन दिनों में लोग घरों से बाहर आकर कुछ दिन तक तम्बुओं में रहते थे. और व्यवस्था को पढ़ते थे. वे निर्गमन के उन दिनों को भी याद करते थे जिन में इस्राएली लोग तम्बुओं में वास करते थे. (लैव्यव्यवस्था 23:33-43, व्यव31:10-11)
इन तीन पर्वो में से, पहले दो पर्वों (फसह और पिन्तेकुस्त) ने मसीही आराधना को बहुत प्रभावित किया है. पुराना नियम की और नया नियम की आराधना शैली में भिन्नता या अंतर है.
बाइबल में आराधना का स्वभाव | Nature of worship in the bible
इस्राएली लोगों की आराधना और उनकी चारों ओर के देशो के लोगों की आराधना में भिन्नता पायी जाती है. अन्य लोग अपने ईश्वर को संतुष्ट करने के लिए या उससे कुछ प्राप्त करने के लिए इस्राएलियों मिलकर आराधना करते थे. लेकिन इस्राएली लोग परमेश्वर की वाचा के कारण आराधना करते थे.
परमेश्वर और इस्राएल के बीच जो पवित्र संबंध है उसको वे बनाए रखे. लेकिन इसे इस्राएल इस उद्देश्य से पीछे हट गया ( हार गया). लेकिन नया नियम की आराधना परमेश्वर ने मनुष्य पर दिखाया अनुग्रह पर आधारित है.
परमेश्वर ने यीशु मसीह के द्वारा जो प्रेम और अनुग्रह दिखाया है, वह हमें प्रेरित करता है कि हम उसकी आराधना करें. अब परमेश्वर की आराधना इसलिए नहीं की जाती कि उसने हमसे ऐसी मांग रखी है, लेकिन उसका प्रेम ही हमें आराधना करने के लिए प्रोत्साहित करता है.
यीशु मसीह के पुनरुत्थान के बाद सामूहिक या सामजिक आराधना का विकास हुआ और एक प्रभु भोज को भी आराधना में शामिल करना शुरू किया गया. प्रारंभिक मसीही लोगों ने शुरुआत से ही धार्मिक विधियों के पालन करना बंद कर दिया था. उनको यह मालुम था कि बाहरी दिखावट से बढ़कर ह्रदय की भावना (मनोभावना) को महत्व देना है.
नया नियम को आराधना के अनुसार किसी बलिदान या धार्मिक अनुष्ठान से परमेश्वर का अनुग्रह नहीं मिलता. इसलिए आराधना में यीशु मसीह के सारे कामों को यद् करते हुए उन के लीए स्तुति और धन्यवाद ही देना है.
मसीह केंदित आराधना | Christo Centric worship
मसीही आराधना यीशु मसीह में केंत्रित हैं. हमारी आराधना का केंद्र यीशु मसीह के काम या कार्य हैं. इसलिए हम आराधना में यीशु मसीह के कामों को शब्दों के द्वारा और कामों के द्वारा याद किया जाता है. मसीह- केन्द्रित आराधना में यीशु मसीह के देहधारण, म्र्तियु पुनरुत्थान और दूसरा आगमन को याद किया जाता है.
व्यक्तिगत और सामूहिक आराधना | Individual and Corporate worship
मुख्य रूप में आराधना एक सामूहिक (सामजिक) किया है, कुछ लोग यह पूछते है कि सामूहिक आराधना की जरूरत क्या है. सामजिक आराधना हमारे आत्मिक जीवन की बढ़ोत्तरी के लिए मदद करती है. वैसे ही प्रभु के साथ हमारा व्यक्तिगत सबंध भी महत्वपूर्ण है.
परमेश्वर के वचन में ऐसे कई उदाहरण हम देख सकते हैं, जो सामूहिक आराधना के महत्व को दर्शाते हैं.
(1) यीशु मसीह मन्दिर और यहूदी आराधनालय में जाता था (मर11:15, लूका 2:46, 19:45, मरकुस 6:2 मत्ती 9:35)
(2) प्रेर्तिओं और प्रारंभिक मसीही लोग भी मांदरी और आराधनालय में जाते थे (प्रेरित 2:46, 3:1, 4:1, 13:14, 15 44:46, 18:4)
(3) इब्रानियों 10:24-25, एक दूसरे के साथ इकट्ठा होने के लिए प्रोत्साहन रहता है.
(4) जहाँ लोग इकट्ठा होते ही वही प्रभु की उपस्थिति होने का वायदा है (मत्ती 18:20)
(5) जब यीशु मसीह ने प्रार्थना सिखाया, उन्होंने ऐसा सिखाया “हे हमारे पिता” (मत्ती6:9)
(6) कलीसिया आराधना करने वालों का एक समूह है. कलीसिया एक ऐसा आत्मिक मन्दिर है जहाँ परमेश्वर वास करता है और लोग आत्मिक बलिदान के द्वारा आराधना करते हैं (प्रेरित 2:44-47 इफी 2:21-22 1 पतरस 2:4-5)
(7) यूहन्ना 4:23-24 में परमेश्वर ऐसे आराधकों को ढूंढ़ता है, जो आत्मा और सच्चाई में उसकी आराधना करें.
(8) आराधना और वचन के द्वारा हमको अनुग्रह में बढ़ सकते हैं.
(9) दूसरे मित्र विश्वासियों की संगती में एक विश्वासी की आत्मिक जीवन ज्यादा उत्तेजित होती है.
(10) सामूहिक आराधना के द्वारा हम विश्वव्यापक किलिसिया का एक भाग बन जाते हैं.
(11) सामूहिक आराधना में परमेश्वर की वचन की सेवकाई के द्वारा आशीष पा सकते हैं.
(12) देने के सन्दर्भ में भी सामूहिक आराधना महत्व को भी रखती हैं. (भेट, offering) लाना एक बलिदान है. इब्रा. 13:16)
मसीही आराधना के घटक/ भाग / अंग | Elements of Christian Worship
एक अच्छी आराधना में कुछ अनिवार्य भाग/ घटक होते हैं. जैसे पाप का अंगीकार, धन्यवाद देना, प्रार्थना, मनन और स्तुति.
(1) पाप का अंगीकार
जब आराधक पवित्र परमेश्वर के पास आता है आपने पाप के बोर में उसको बोध होता है और उस पाप का अंगीकार करने का मनोभाव आ जाता है. परमेश्वर की उपस्थति आराधक के जीवन में अपने पाप इ प्रति एक भय उत्पन्न करती है. बाइबल में भी इसके लिए भी कुछ उदाहरण हम देख सकते हैं जैसे (यशा 6:1 -5 प्रका 1:17 आदि.
पुराना नियम में वेदी के पास सेवा करने के जाने के पहले याजक को अपने हाथ पाँव धोना जरूरी था (निर्गमन 30:17-21) लेकिन नया नियम के अनुसार आराधक का ह्रदय शुद्ध होना चाहिए. (इब्रा 10:21:22)
(2) धन्यवाद देना | Thanksgiving
आराधना एक धन्यवादी मन से होनी चाहिए अकृतज्ञयता ungrateful एक बड़ा पाप है. “धन्यवाद देना” पुराना नियम का एक मुख्य विषय हैं. इसके लिए भजन संहिता एक अच्चा उदाहरण है (भजन 95. 100, 103, 105, 106) इस्राएली लोगों के बारे में एक मुख्य शिकायत यह थी की वे लोग धन्यवादी नहीं थे.
नया नियम भी धन्यवाद देने की आवश्यकता को बताता है. लूका 17:11-18 में दस कोढियों में से सिर्फ एक कोढ़ी यीशु को धन्यवाद देने आया. इब्रानी 12:28 में धन्यवाद के साथ आराधना करने के विषय में लिखा है.
(3) प्रार्थना | Prayer
प्रार्थना सिर्फ परमेश्वर से कई बातें माँगना नहीं. प्रार्थना में मांगने के आलावा पाना और देना भी शामिल है. प्रार्थना परमेश्वर के साथ सम्पर्क रखना है, परमेश्वर के साथ बातचीत करना है, प्रार्थना परमेश्वर के सामने अपने ह्रदय को उंडेलना है. प्रार्थना परमेश्वर से सुनना भी है.
प्रार्थना के दो पहलू हैं
(1) याचना, विनती, आवेदन, हमारी आवश्कताओं को बताना (माँगना)
(2) मध्यस्थता (interccession) दूसरों की आवश्यकताओं को बताना.
फिलिप्पियों 4:6 इमं पौलुस बताता है, “हर एक बात में तुम्हारे निवेदन, प्रार्थना और विनती के द्वारा धन्यवाद के साथ परमेश्वर के सम्मुख उपस्थित किये जाएं.
मध्यस्थता की प्रार्थना की जरूरत क्या है? शमुएल यह कहता है कि अगर मैं तुम्हारे लिए नहीं प्रार्थना करूँ तो मैं यहोवा के विरुद्ध पाप कर रहा हूँ (1 शमुएल 12;230 पौलुस भी दूसरों के लिए प्रार्थना करने को प्रोत्साहन देता है. (1 तिमु 2:1-2) मध्यस्थता की प्रार्थना सिर्फ दूसरों के लिए ही नहीं, हमारे जीवन में भी आशीष का कारण होती हैं. (उदाहरण अय्यूब 42:10)
(4) मनन चिंतन | meditaton
मनन में हम परमेश्वर को हमसे बात करने की अनुमति देते हैं, मुख्य रूप से परमेश्वर के वचन के द्वारा मनन होता है. व्यक्तिगत और सामूहिक आराधना दोनों में मनन जरूरी है.
(5) स्तुति | Praise
स्तुति परमेश्वर की महानता को समझने के द्वारा होती है. “धन्यवाद” परमेश्वर ने जो हमारे लिए किया उससे सम्बन्ध रखता है. लेकिन “स्तुति” परमेश्वर कौन हैं उसे सम्बन्ध रखती है. (जैसे : परमेश्वर का स्वभाव, गुण, विशेषता, आदि)
स्तुति का समय एक ऐसा समय है, जब अपने आप को और अपनी आवश्यकताओं भी भूल जाते हैं. और सिर्फ परमेश्वर के बारे में,उसके स्वभाव, आश्चर्य कर्म, सुन्दरता आदि बातों पर विचार करते हैं.
इन्हें भी पढ़ें
परमेश्वर की भेंट पर तीन अद्भुत कहानियां
पवित्र बाइबिल नया नियम का इतिहास