परिचय : इस लेख में हम इजराइल का इतिहास बाइबल अध्ययन की दृष्टिकोण से देखेंगे. यह लेख बाइबल के आधार पर बनाया गया है. जिसका सम्बन्ध प्रभु यीशु मसीह है.
जब आदम और हव्वा पाप से बाहर निकाले गए. मनुष्य जाति पाप करते रहे और परमेश्वर से दूर होते रहे. मनुष्य जाति पाप करते रहे और परमेश्वर से दूर होते रहे. उनको अपनी संगती में वापस लाने के उद्देश्य से परमेश्वर ने अब्राम (अब्राहम) नामक एक व्यक्ति को चुना. परमेश्वर की योजना यह थी कि अब्राहम के वंश को वह अपनी निज प्रजा बनाकर उनको अपने नियम को देगा. उस जाति के द्वारा संसार के अन्य लोग भी परमेश्वर के पास आयेंगे और नियूक्त समय पर परमेश्वर अब्राहम के वंश में ही अपने पुत्र को भेजेगा, जो सारे जगत के लिए उद्धारकर्ता ठहरेगा. (उत्त्पति 12:3, 22:18, गला3:16)
अब्राहम की बुलाहट – | इजराइल का इतिहास का आरंभ
बाइबल के अनुसार इस्राएल का इतिहास उत्पत्ति बारह अध्याय से शुरू होता है, जहाँ अब्राहम को परमेश्वर की बुलाहट प्राप्त होती है (उत्पति 12:3) जहाँ अब्राहम के पिता का नाम तेरह था. वे मूर्तिपूजक लोग थे. जब तेरह और अब्राहम का परिवार मेसोपोटामिया के ऊर देश में रहते थे. तब अब्राहम को तेजोमय परमेश्वर प्रकट हुआ (उत्पति 11:31, 51:7, प्रेरितों 7:2-3)
परमेश्वर ने अब्राहम को उस देश में जाने के लिए बुलाया जो वह उसे दिखाने वाला था. इस प्रकार जब अब्राहम को बुलाहट प्राप्त हुई तब परमेश्वर ने उसको एक बड़ी जाति बनाई उसका नाम महान करने और उसे आशीष का कारण बनाने का वायदा किया (उत्पत्ति 12:1-3)
कनान देश में परमेश्वर ने अब्राहम से वायदा किया (उत्पत्ति 12:6-7) और वाचा भी बाँधी कि वह देश और उसको और उसकी पीढ़ियों को दिया जाएगा (उत्पत्ति 15:18-21) लेकिन अब्राहम के वंशजो को उस देश में आने से पहले चार सौ साल तक एक देश में दासत्व होकर रहना पड़ेगा. (उत्त्पति 15:13)
अब्राहम विश्वासियों का पिता – | इजराइल का इतिहास में अब्राहम की भूमिका
जब अब्राहम निन्यानवे वर्ष का हुआ तब परमेश्वर ने उसका नाम अब्राम से बदलकर अब्राहम रखा जिसका अर्थ है बहुत सी जातियों का पिता (Father of many nations)
वायदे के अनुसार अब्राहम को एक पुत्र के रूप में सन्तान उत्त्पन्न हुआ और उसका नाम इसहाक रखा गया. (उत्त्पति 17:1-5, 21:1-3) अब्राहम जीवन एन परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारिता के कारण उसको विश्वासियों का पिता कहा जाता है. (उत्पति 22:1-14) की घटना. अब्राहम के विश्वास को दर्शानेवाला सबसे उत्तम उदाहरण है.
परमेश्वर ने जब अब्राहम से उसके प्रिय बेटे इसहाक को चढ़ाने को कहा, तब अब्राहम ने बिना सवाल किये परमेश्वर की आज्ञा मानने के लिए तैयार हुआ. अब्राहम ने परमेश्वर की वाचा पर विश्वास किया और यह भी विश्वास किया कि परमेश्वर इसहाक को मरे हुओं से जीवित करने में सामर्थी है. (इब्रानियों 11:17-19). परमेश्वर ने अब्राहम के विश्वास को पाकर इसहाक को अद्भुत तरीके से छुड़ाया.
याकूब और एसाव.- (उत्पति 25:19, 32:22)
इजराइल के दो पुत्र हुए, एसाव (एदोम) और याकूब (उत्पति 25:-26) परमेश्वर ने अब्राहम से जो वायदा किया था. कि उसको एक बड़ी जाति बना दी जाएगी याकूब के द्वारा ही पूरा होना था. याकूब का अर्थ है (धोखा देने वाला) या “चालाकी से दूसरे का स्थान लेने वाला”, अपने नाम के अनुसार भी याकूब ने दो बार एसाव को धोखा दिया.
पहले उसने एसाव के पहिलौठे पन को हासिल कर लिया. (उत्पति 26:29-34) और बाद में उसने इसहाक से उन आशीषों को छीन लिया जो एसाव को मिलने वाली थी. (उत्पत्ति 27:1-29) बाद में परमेश्वर ने याकूब का नाम इस्राएल रखा क्योंकि वह (परमेश्वर) परमेश्वर के दूत से भी लड़ाई लड़कर जीत गया था. (उत्पत्ति 32:28)
इजराइल का अर्थ है – | इजराइल का इतिहास में यह नाम क्यों पड़ा
परमेश्वर से कुशलता पूर्वक लड़ने वाला याकूब और एसाव (उत्पत्ति 25;19, 32:32)
याकूब के बारह पुत्र हुए थे वे ये हैं रूबेन, शिमोन, लेवी, यहूदा, जबुलुन, इस्साकार, दान, गाद, आशेर, नप्ताली, युसुफ और बिन्यामीन. इन बारहों के नाम से इस्राएल जाति के बारह कुल जाने जाते हैं. याकूब इन बारह में से सबसे ज्यादा युसुफ से प्यार करता था.
इसलिए युसुफ के भाई लोग युसुफ से जलन और द्वेष रखते थे. जब उसने उन्हें अपने स्वप्नों के विषय में बताया. जिनका अर्थ यह था कि एक दिन युसुफ उन पर राज्य अधिकार एवं राज्य करेगा (उत्पत्ति 37:5-11)
इसलिए उन्होंने युसुफ को मिश्र जाने वाले व्यापारियों के हाथ बेच दिया. (उत्पत्ति 37:25-28) मिश्र में युसुफ को बंदीगृह में जाना पढ़ा, जबकि उसने कुछ भी अपराध नहीं किया था. परन्तु परमेश्वर युसुफ के साथ था.
फिरौन (भविष्य का राजा) भविष्य के आने वाले अकाल के समय में दो स्वप्न देखे जिनका अर्थ उसको कोई नहीं बता सका. परन्तु युसुफ ने उन स्वप्नों का अर्थ तथा अकाल से बचने का रास्ता भी फिरौन को बताया, फिरौन ने युसुफ को मिश्र देश का प्रधान मंत्री ठहराया. (उत्पत्ति 41:1-44)
युसुफ के कहने के औसर सब देशों में अकाल आरंभ हुआ और कनान देश में भी अकाल आया. तब युसुफ के भाई अन्न लेने लिए लिए मिश्र आये, क्योंकि उस समय मिश्र में आण था उन्होंने युसुफ को दण्डवत किया.
इस प्रकार युसुफ का स्वपन पूरा हुआ. जो उसने अपने भाइयों के विषय में देखा था. (उत्पत्ति 37:5-6) याकूब और उसका पूरा परिवार मिश्र में लाए गए. युसुफ ने उनको मिश्र के एक सुंदर स्थान गोसेन देश में बसाया. (उत्पत्ति 47:6)
इजराइलियों का मिश्र देश से निकलना
इजराइलियों के मिश्र देश से छुड़ाए जाने की घटना महत्पूर्ण है. इजराइली लोग इस घटना को कभी नहीं भूलते. वे परमेश्वर को इस रूप में स्मरण करते हैं कि वह उनको दासत्व के घर अर्थात मिश्र से निकाल लाने वाला परमेश्वर है.
मिश्र में इजराइलियों का दासत्व (निर्गमन 1:1-22)
मिश्र में इजराइलियों की संख्या बहुत बढ़ गई. युसुफ के समय के बाद एक ऐसा फिरौं मिश्र में शासन करने लगा जो युसुफ को नहीं जानता था. उसको इस बात का डर लगा कि युद्ध के समय इजराइली लोग शत्रुओं से मिलकर उससे लड़ाई करेगे. फिरौं इजराइल से कठिन मजदूरी करवाने लगा.
फिरौन, इजराइल के नवजात बालकों को घात भी करने लगा. ताकि इनकी संख्या न बढ़ सके. परन्तु इस्राएली धाइयों के कारण जो परमेश्वर का भय मानती थीं यह योजना भी विफल हो गई. फिर फिरौन ने यह आज्ञा दी कि इजराइलियों के जितने भी बेटे उत्पन्न होते हैं उनको नील नदी में फ़ेंक दिया जाए.
मूसा वह व्यक्ति था जिसको परमेश्वर ने अपने लोगों के बचाव के लिए चुना था. उसके जन्म के तीन महीने बाद उसकी माता ने उसे एक टोकरी में रखकर नील नदी के किनारे छोड़ दिया था. फिरौन की बेटी ने वह बालक को पानी में पाया और उसने उसका नाम मूसा रख दिया. मूसा फिरौंन के महल में पला बढ़ा (निर्गमन 2:1-10)
एक दिन मूसा ने देखा कि मिस्री एक इजराइली को मार रहा है. इजराइली को बचाने के लिए मूसा ने मिस्री को मार डाला. यह बात फिरौंन तक पहुंची और मूसा डरकर मिद्यान देश को भाग गया. (निर्गमन 2:11-15)
इजराइलियों लोगों ने अपनी पीड़ा के कारण परमेश्वर की दोहाई दी. परमेश्वर ने अब्राहम इसहाक और याकूब से की गई वाचा को स्मरण किया (निर्गमन 2:25)
परमेश्वर मूसा को होरेब (सीने) पर्वत पर एक जलती हुई झाड़ी के बीच एन प्रकट हुआ. वह झाड़ी जल रही थी, परन्तु भस्म नहीं हो रही थी. परमेश्वर ने कहा, “वह इजराइलियों की पीड़ा को देखकर और उनकी दोहाई को सुनकर उन्हें बचाने के लिए उतर आया है.
परमेश्वर ने यह भी कहा कि, मूसा ही वह व्यक्ति होगा जो इस्राएलियों को मिश्र से निकाल ले आएगा. (निर्गमन 3:1-10) परमेश्वर ने मूसा पर आपना नाम भी प्रगट किया : “मैं जो हूँ सो हूँ” यहोवा.
दस विपत्तियाँ (Ten Plagues) (निर्गमन 7:14-12:36)
मूसा और हारून ने फिरौं से कहा कि यहोवा की आराधना करने के लिए इजराइलियों को छोड़ दे. परन्तु फिरौन ने उनकी बात न मानी. उसने इजराइलियों के काम को और कठिन करवा दिया. इसके पश्चात परमेश्वर ने मिश्र में एक के बाद एक विपत्तियां भेजी.
हर एक विपत्ति के कारण मिस्री बहुत पीड़ित हुए. लेकिन इजराइलियों पर कोई विपत्ति नहीं आई वे सुरक्षित ही थे. नौ विपत्तियों के बाद भी फिरौन का मन कठोर बना रहा. दसवी बार यहोवा परमेश्वर ने ऐसी विपत्ति भेजी कि मिश्र के सारे पहिलौटे बेटे मर गए. इसके पश्चात फिरौन ने इजराइलियों को मिश्र से जाने दिया.
यहोवा ने मूसा से कहा था. कि वह न्याय के महान कार्यो द्वारा इजराइलियों को मिस्त्र से निकाल लाएगा. और ऐसा ही हुआ (निर्गमन 6:6) जो विपत्तियाँ मिस्रियों के ऊपर भेजी गईं, वे उनके विभिन्न देवताओं के ऊपर परमेश्वर के न्याय के काम थे. इन विपत्तियों के द्वारा यहोवा ने यह प्रकट किया कि वह मिश्र के सब ईश्वरों से बड़ा और अतिसामर्थी है (निर्गमन 7:5)
विपत्ति मिस्त्री ईश्वर
- पानी का लहू बनना —(Hapi) नील नदी (हपी)
- मेंढक —– (Hekel) (हेकेल)
- कूटकिया —– (Geb) गेब (भूमि देवता)
- डांस ——- (Khepri) खेपरी
- घरेलू पशुओं की मौत -(Hathor) हथोर, सुरक्षा देवता
- फफोले —— (Isis) ईसिस (दबाई )
- ओले ——- (Nut) नट (आकाश)
- टिड्डी —— (seth) सेथ (अन्न)
- घोर अंधकार— (Ra) रा (सूर्य )
- पहिलौटों की मृत्यु —-(Pharoh) फिरौन (सूर्य का पुत्र )
फसह का पर्व – (निर्गमन 21:1-51) | यह क्यों मनाया जाता था
मिश्र में दसवी विपत्ति भेजी, तब मिश्र के सभी पहिलौटे मर गए. लेकिन इजराइलियों के लिए यह आनन्द का समय था. जैसे यहोवा ने उनसे कहा था. उन्होंने एक वर्ष के निर्दोष मेमनों के लहू अपने दरवाजे के अलंगो तथा चौखटों के सिरों पर लगा दिया था. इसलिए विपत्ति उन पर नहीं आई.
इसके तुरंत बाद फिरौन और सारे मिस्रियों ने इजराइलियों ने मिश्र से तुरंत निकल जाने को कहा. इजराइली लोग अपने भोजन का प्रबंध नहीं कर पे थे और उनका आता खमीर नहीं हुआ था. वे बरबस बाहर कर दिए गए थे. यह उस महीने का चौदहवां दिन था.
क्योंकि उस रात यहोवा ने इजराइलियों को मिश्र से छुड़ाया , इजराइलियों के बीच यह रात समस्त पीढ़ियों में मनाया जाता है. फसह का पर्व (Passover) और अखमीरी रोटी का पर्व का आरंभ इस प्रकार हुआ.
इजराइलियों को मिश्र से निकलने की रात वध किया गया एक वर्ष का निर्दोष मेमना और उसका लहू यीशु मसीह और उसके लहू का प्रतीक है. (1कुरु 5:7,यूहन्ना 1:29,36, 19:31-37-36, 1 पतरस 1:18-19, प्रकाशित 21:22)
लाल समुद्र को पार करना (निर्गमन 14:1-31) | इजराइल का इतिहास में सबसे बड़ी घटना
यहोवा इजराइलियों को दिन में मार्ग दिखाने के लिए मेघ के खम्बे में और रात को आग के खम्बे में होकर उनके आगे-आगे चला. (निर्गमन 13:21) इजराइलियों लोग लाल समुद्र के किनारे आये. फिरौन और उसकी सेना इजराइलियों का पीछा करते हुए आये. लेकिन यहोवा ने लाल समुद्र के बीच सूखी भूमि का रास्ता निकाला ताकि इजराइली लोग उसमें से होकर समुद्र पार कर सकें.
मिश्री भी इजराइलियों का पीछा करते हुए लाल समुद्र के बीच में गए. लेकिन यहोवा लाल समुद्र के पानी को फिर से उसकी पूर्व स्थिति में वापस ले आया. फिरौन’और उसकी सेना पानी में डूब गए. इस प्रकार यहोवा ने इजराइलियों के लिए मिश्र के विरुद्ध युद्ध किया और फिरौन और उसकी सेना को नाश कर दिया. (निर्गमन 14:23-31)
लाल समुद्र को पार करने से वाचा की भूमि (PROMISED LAND) पहुँचने तक-
इजराइलियों के लिए मिश्र से कनान देश जाने के लिए आसान रास्ता था. पलिस्तियों के देश का रास्ता फिर भी यहोवा ने उनको लाल समुन्द्र को पार कराकर जंगल के रास्ते से चलाया. उसके बाद ही वे वाचा की भूमि पहुंचे. इस लम्बे रास्ते को अपनाने के लिए यहोवा के पास कई कारण थे, जैसे.
- यह सम्भावना थी कि पलिस्तियों के देश में युद्ध देखकर इजराइली मिश्र को लौट न जाएं (निर्गमन 13:17-18)
- फिरौन और उसकी सेना को लाल समुद्र में डालकर उनका न्याय करने के लिए (निर्गमन 14:1-31)
- यहोवा सीनै पर्वत पर इजराइलियों के साथ वाचा बांधना चाहता था.
- जंगल के रास्ते से चलाकर यहोवा उनको नम्र बनाना चाहता था.
- वह उनकी आज्ञाकारिता को परखना चाहता था. (व्यव.8:2, 9:6-4, निर्गमन 15:25, 16:4)
- यहोवा उनको यह भी सिखाना चाहता था कि मनुष्य केवल रोटी से ही नहीं, परन्तु यहोवा के मुंह से निकलने वाले हर एक वचन से जीवित रहता है.
इजराइलियों का कुड़कुड़ाना
यहोवा के आश्चर्य कर्मों को देखने पर भी इजराइली लोग उस पर पूरी तरह विश्वास नहीं किये. उन्होंने यात्रा के बीच पानी और भोजन न मिलने के कारण मूसा और यहोवा के विरुद्ध बार-बार कुड़कुड़ाया, जिसके लिए कई बार उनको दंड भी मिला गिनती 11:1-36, 14:, 14:26-45, 16:1-33)
स्वर्गीय मन्ना
मन्ना वह भोजन वस्तु थी जो यहोवा ने इजराइलियों को उनकी जंगल की यात्रा के समय दिया था. इजराइली लोग कनान देश की सीमा पर पहुँचने तक मन्ना खाते रहे (चालीस वर्ष तक) निर्गमन 16:35, यहोशु 5:12)
इजराइल से परमेश्वर की वाचा
मिश्र से निकले हुए तीन महीने के बीतने के दिन इजराइली सीनै के जंगल में पहुंचे. सीनै पर्वत पर परमेश्वर ने मूसा से बातें की और कहा, कि ‘यदि इजराइली लोग यहोवा की बातों को मानकर उसकी वाचा का पालन करेंगे तो सब जातियों से वे यहोवा के लिए निज धन, याजको का राज्य और पवित्रजाति ठहरेंगे. (निर्गमन 19:4-6 3:12)
लोग यहोवा की बातों को मानने के लिए तैयार हुए. (निर्गमन 19:8) यहोवा ने सीनै पर्वत की चोटी पर गरजते बादल और बिजली के बीच से मूसा से बातें की और इजराइलियों को मानने के लिए दस आज्ञाएं और कई अन्य व्यवस्थाओं दीं (निर्ग 20:1-27)
उन आज्ञाओं और व्यवस्थाओं को सुनने पर फिर इजराइली फिर से उनका पालन करने को तैयार हुए. इसके बाद यहोवा ने लोगों से वाचा बाँधी और इसके प्रतीक में मूसा ने लोगों पर लहू छिड़का और कहा, यह उस वाचा का लहू है जो यहोवा ने इन सब वचनों के अनुसार तुमसे बाँधी है” निर्गमन 24:8).
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