दोस्तों आज हम चर्चा करेंगे राजा दाऊद ने ऐसा क्यों कहा कि एक वर मैंने यहोवा से माँगा है | One thing i have asked of the Lord ऐसा कौन सा वरदान राजा दाउद अपने प्रभु से मांग रहा है. तो आइये शुरू करते हैं.
एक वर मैंने यहोवा से माँगा है | One thing i have asked of the Lord
एक वर मैं ने यहोवा से मांगा है, उसी के यत्न में लगा रहूंगा; कि मैं जीवन भर यहोवा के भवन में रहने पाऊं, जिस से यहोवा की मनोहरता पर दृष्टि लगाए रहूं, और उसके मन्दिर में ध्यान किया करूं. (भजन संहिता 27:4)
यह भजन भजनकार राजा दाउद के द्वारा लिखा गया है. जिसे परमेश्वर ने कहा था यह मेरे मन के जैसा व्यक्ति है. इस वचन से हम मसीही लोग बहुत कुछ सीख सकते हैं. ‘
एक परमेश्वर के जन को जो परमेश्वर से प्रेम करता है उसकी योग्यता, उसकी सामर्थ इस बात पर निर्भर है की वह परमेश्वर के साथ अकेले में समय बिताता है की नहीं.
अर्थात वह अकेले में परमेश्वर से बातें मतलब प्रार्थना करता है कि नहीं. यदि उसके जीवन में परमेश्वर से बातें करना प्रार्थमिकता है तो बाकी सभी वस्तुएं उसके जीवन में यूँ ही उसके पास चली आएँगी.
परमेश्वर के साथ संगती कि प्राथमिकता
दाउद के जीवन में एक ही लक्ष्य था, वह कहता है मैंने यहोवा से एक ही वरदान माँगा है. और अपने जीवन भर अर्थात मृत्यु तक उसी एक बात को पूरा करने के यत्न में लगा रहूँगा.
थोड़ा विचार करें यदि आज परमेश्वर आपके पास आये जैसे राजा सुलेमान के पास आकर परमेश्वर ने कहा था मांग क्या मांगता है धन दौलत, नाम शौहरत या बुद्धि बता तेरे जीवन में क्या चाहिए.
तो हममें से बहुत से लोग शायद बुद्धि और ज्ञान ही मांगेंगे क्योंकि यदि बुद्धि होगी तो धन और नाम शौहरत अपने आप आ जाएगी.
लेकिन यहाँ राजा दाउद ने न धन माँगा और नहीं बुद्धि ही मांगी. उसने कुछ ऐसी चीज कि मांग किया जो शायद बुद्धि से भी बढ़कर है.
उसने परमेश्वर कि संगती में जीवन भर रहने कि मांग की. क्योंकि बुद्धि का दाता तो यहोवा परमेश्वर ही है. उसीका भय मानने से बुद्धि और समझ प्राप्त होती है.
राजा दाउद उस के लिए कीमत चुकाने के लिए तैयार था. वह कहता है मैं उसी के यत्न में लगा रहूँगा.
परमेश्वर कि संगती का समयावधि
राजा दाउद कुछ दिनों तक या कुछ वर्षों तक के लिए नहीं बल्कि अपने जीवन के सारे दिनों तक अर्थात जीवन भर परमेश्वर के भवन में रहना चाहता है.
ताकि वह परमेश्वर कि मनोहरता को निहार सके. हम सभी कि परमेश्वर के साथ चलने हेतु बुलाहट है. उसकी संगती में आनन्द कि भरपूरी है.
एक बार प्रभु यीशु मरियम और मार्था के घर पर गए थे तो मरियम तो प्रभु के चरणों में बैठकर संगती करते प्रभु के उपदेश सुन रही थी लेकिन मार्था भोजन बनाते हुए क्रोधित हो उठी थी
उस समय प्रभु ने कहा था एक उत्तम बात है जो मरियम ने चुन लिया है. वह है प्रभु की संगती करना.
परमेश्वर भवन में रहने का अर्थ क्या है
परमेश्वर का भवन अर्थात पवित्रता, आराधना, परमेश्वर कि उपस्थिति, परमेश्वर कि सामर्थ. एक ऐसा स्थान जहाँ परमेश्वर कि महिमा हो.
जिस प्रकार भजनकार 91:1 में कहता है. जो परमप्रधान के छाए हुए स्थान में बैठा रहे, वह सर्वशक्तिमान की छाया में ठिकाना पाएगा.
मतलब सर्वशक्तिमान कि छाया तो वहीँ होगी जहाँ सर्वशक्तिमान परमेश्वर कि उपस्थिति होगी. जिस प्रकार पेड़ कि छाया तो वहीँ होगी जहाँ पेड़ होगा.
अर्थात परमेश्वर का भवन परमेश्वर कि उपस्थिति को दर्शाता है. प्रभु यीशु ने सिखाया जब तू अपने परमेश्वर पिता से बातें करे तो कोठरी में जा और किवाड़ बंद कर और गुप्त में प्रार्थना कर तब वह तुझे सबके सामने प्रतिफल देगा.
हमें परमेश्वर कि उपस्थिति के लिए भूखे और प्यासे होंना चाहिए. जिस प्रकार राजा दाउद कहता है जैसे हिरनी पानी के लिए तरसती है वैसे ही हे परमेश्वर मेरा दिल तेरा प्यासा है.
आज सवाल है क्या हमारा दिल भी ऐसा ही प्रभु का प्यासा है उसकी संगती के लिए क्या आज हमारे अन्दर भी वही प्यास है.
यदि नहीं तो आइये इन दिनों अपने अन्दर परमेश्वर कि संगती कि प्यास जगाएं और परमेश्वर से प्रार्थना करें प्रभु आप सभी को बहुत आशीष दे.
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