चर्च किसे कहते हैं | कलीसिया क्या है | कलीसिया की परिभाषा
परिभाषा : "कलीसिया उन सब सच्चे विश्वासियों का समूह है जो मिलकर यीशु की आराधना करते हैं."
यह परिभाषा बताती है कि कलीसिया या चर्च उद्धार पाए हुए व्यक्तियों से मिलकर बनती हैं. कलीसिया यूनानी भाषा एक्लेसिया से बना है जिसका अर्थ है चुने हुए या बुलाए हुए लोग.
“मसीह ने कलीसिया से प्रेम किया और खुद को उसके लिए दे दिया.”
संत पौलुस (इफिसियों 5:25)
गिरिजाघर किसे कहते हैं | चर्च एक भवन हैं या लोगों का समूह
यहाँ इस पद में कलीसिया शब्द उन सब के लिए आया है जिनके लिए यीशु ने अपनी जान दी है. कई लोग कलीसिया (चर्च) किसी इमारत या बिल्डिंग को सोचते हैं. पर कलीसिया कोई इमारत नहीं बल्कि यीशु पर विशवास करने वालों का एक समूह हैं.
क्या पुराने नियम में परमेश्वर की कलीसिया थी ? | चर्च का इतिहास
कई लोग सोचते हैं कि पुराने नियम में परमेश्वर की कलीसिया नहीं थी. पर यह सच नहीं है. हम मत्ती 16:10 में पढ़ते हैं कि प्रभु यीशु ने कहा, “मैं अपनी कलीसिया बनाऊंगा और अधोलोग के फाटक उसके विरुद्ध प्रबल नहीं होंगे. और इसी प्रकार के वचन हम पुराने नियम में भी पाते हैं.
यह एक प्रक्रिया है जो पुराने नियम से चली आ रही है. पुराने नियम में भी परमेश्वर लोगों को अपनी आराधना करने के लिए इकट्ठा करता था. पुराने नियम में भी परमेश्वर ने अपने लोगों को कई बार कलीसिया की तरह से देखा.
जब मूसा अपने लोगों से कहता है, ‘कि परमेश्वर यों कहता है, “लोगों को मेरे पास इकट्ठा करो, ताकि वो मेरे वचनों को सुने, ताकि अपने पूरे जीवन भर मेरा भय माने” (व्यवस्था 4:10)
मूल भाषा में “इकट्ठा करो” शब्द के लिए यहाँ पर वही शब्द आया है जो नए नियम में कलीसिया के लिए इस्तेमाल किया गया है. इसी कारण यह कोई आश्चर्य की बात नहीं कि जब नए नियम के लेखक या व्यक्ति पुराने नियम के इजराइल के लोगों को “कलीसिया” कहकर पुकारे.
उदाहरण :- स्तिफनुस प्रेरितों के काम 7:38 में मरुभूमि में रह रहे इस्राएल के लोगों को “मरुभूमि में कलीसिया कह कर पुकारता है” इब्रानियों 2:12 में लेखक कहता है की “तेरी कलीसिया के बीच में, मैं तेरी आराधना करूंगा.”
चर्च का फोटो
इब्रानियों 12:1 में हम पढ़ते हैं कि “गवाहों का एक बड़ा बादल हमको घेरे हुए हैं यह सब गवाह पुराने नियम के विश्वास के योद्धा जिनका वरन हम इब्रानियों 11 अध्याय में पाते हैं. यह सब गवाह वर्तमान समय के परमेश्वर के लोगों (कलीसिया) को घेरे हुए हैं. यह इस बात को बताता है कि इन सब गवाहों को मिलकर ही परमेश्वर की कलीसिया का निर्माण होता है.
नए नियम के लेखकों ने दोनों यहूदी व यूनानी विश्वासियों को कलीसिया कहा है इन दोनों को मिलाकर एक कर दिया गया (इफिसियों 2:14) और उन्हें अब एक नया मनुष्यत्व बना दिया गया (इफिसियों 2:15) और परमेश्वर के घराने के लोग बना दिया गया (इफिसियों 2:19)
इस कारण यद्यपि यह सच है, कि नए नियम में परमेश्वर ने हमें नई आशीषों को देने का वायदा किया है, फिर भी दोनों पुराने नियम एवं नए नियम में हम परमेश्वर की कलीसिया पाते हैं. जिन्हें परमेश्वर अपनी आराधना करने के लिए बुलाता है. इस कारण दोनों पुराने और नए नियम के परमेश्वर के लोग मिलकर ही “परमेश्वर की कलीसिया” बनती है.
कलीसिया के लिए इस्तेमाल किए गए रूपक | मसीही कलीसिया
कलीसिया के स्वरूप को समझने के लिए कई रूपकों का इस्तेमाल किया गया है.संत पौलुस कलीसिया को एक परिवार के तरीके से देखता है
1. संत पौलुस कलीसिया को एक परिवार के तरीके से देखता है.
पौलुस 1 तीमुथियुस 5:1-2 में तीमुथियुस से कहता है कि “किसी भी बूढ़े को न डांट, पर उसे पिता जानकार समझा दे, बूढ़ी औरतों को अपनी मां के समान व जवान औरतों को पूरी पवित्रता के साथ बहन जान कर…
यहाँ पर पौलुस कलीसिया को एक परिवार की तस्वीर देता है. परमेश्वर हमारा स्वर्गीय पिता है. (इफिसियों 3:14) हम उसके पुत्र और पुत्रियाँ हैं क्योंकि परमेश्वर कहता है, “मैं उनका पिता ठहरूंगा और वे मेरे पुत्र व् पुत्रियाँ होंगे. (2 कुरु6:18) इसलिए हम परमेश्वर के परिवार में एक दुसरे के भाई व बहन हैं (मत्ती 12:49-50)
2. कलीसिया को मसीह की दुल्हिन कहा गया है. (इफिसियों 5:32)
पौलुस कहता है कि पति पत्नी के बीच का रिश्ता मसीह व उसकी कलीसिया के बीच रिश्ते के समान होना चाहिए. 2कुरु. 11:2 में पौलुस कुरिन्थियों के विश्वासियो से कहता है कि “मैंने एक ही पुरुष से तुम्हारी बात लगाईं है ताकि तुम्हें पवित्र कुँवारी के समान परमेश्वर को सौंप दूँ. यहाँ पर पौलुस एक ऐसे समय का इंतजार कर रहा है जब वह कलीसिया को मसीह की दुल्हिन की तरीके से देखेगा.
3. कलीसिया को दाखलता की डालियाँ कहकर सम्बोधन किया गया है (यूहन्ना 15:5)
यीशु कहते हैं तुम डालियाँ हो मैं दाखलता हूँ.
4. कलीसिया को मसीह की देह कहकर पुकारा गया है. (1कुरु. 12:12-27)
हमें यह समझने की आवश्यकता है कि पौलुस जब कलीसिया के बारे में बात करता है तो मानव देह के दो रूपकों का इस्तेमाल करता है 1 कुरु 12 अध्याय में सम्पूर्ण देह को कलीसिया के रूपक के तरीके से इस्तेमाल किया गया है.
और इफिसियों 1:22-23, 4:15 और कुलुस्सियों 2:19 में पौलुस एक अन्य रूपक जो देह से सम्बन्धित है कलीसिया का सिर है और कलीसिया बाकी शरीर के समान है.
कलीसिया में एकता
हरेक रूपक जो कलीसिया के लिए इस्तेमाल किया गया है वह हमें कुछ सिखाता है. कलीसिया को जब मसीह की दुल्हन कहा गया तो यह, संदेश देता है, कि ‘कलीसिया को पवित्र होना है व पवित्रता में आगे बढना है, और मसीह के आधीन रहना व उससे सबसे बढ़कर प्रेम करना है.’
दाखलता और डाली का रूपक बताता है कि हमें उसमें बने रहना है. हम उसकी खेती हैं का रूपक हमें मसीह में निरंतर बढ़ने का संदेश देता हैं. और उसी से पोषण प्राप्त करने का संदेश देता हैं. कलीसिया परमेश्वर का मन्दिर हैं का रूपक यह बताता हैं कि परमेश्वर हमारे अंदर वास करता है.
कलीसिया का उद्देश्य क्या है ? | चर्च में क्या होता है?
1. परमेश्वर के प्रति सेवा | परमेश्वर की आराधना करना:
कलीसिया का सर्व प्रथम उद्देश्य परमेश्वर की आराधना करना है. पौलुस कुलु 3:16 में कहता है “अपने अपने ह्रदय में परमेश्वर के लिए भजन, कीर्तन और आत्मिक गीत गाया करो.” परमेश्वर ने मसीह में हमें नियुक्त किया है कि हम उसकी महिमा और स्तुति के लिए जिएँ (इफिसियों 1:12)
कलीसिया में परमेश्वर की आराधना करना किसी अन्य कार्य के लिए तैयारी करना नहीं है, बल्कि स्वयं उस उद्देश्य को पूरा करना है जिसके लिए परमेश्वर ने उसकी रचना की है.
2. विश्वासी के प्रति सेवा | विश्वासियों को विश्वास में बढ़ाना व मजबूत करना
बाइबिल के अनुसार कलीसिया का यह उत्तरदायित्व है कि वह उनको जो यीशु पर विश्वास करते हैं, आत्मिक बातों में आगे बढाएं व् विश्वास में दृढ करें. पौलुस स्वयं कुली. 1:28 में कहता है, कि ‘उसका खुद का उद्देश्य केवल लोगों को विश्वास में लाना नहीं है वरन उन्हें मसीह में परिपक्व करना है’.
पौलुस आगे कहता है कि “परमेश्वर ने कलीसिया में वरदान पाए व्यक्तियों को दिया है ताकि वे लोगों को परमेश्वर की सेवकाई करने के लिए तैयार कर सकें” और मसीह की देह उन्नति पायें. (इफि. 4:12-13)
3. संसार के प्रति सेवा | सुसमाचार प्रचार करना और दया कि सेवा करना.
यीशु ने अपने चेलों से कहा, “सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ” (मत्ती 28:19) कलीसिया की दुनिया के प्रति सेवा उन्हें सुसमाचार प्रचार करना है. लेकिन उसी के साथ दया की सेवा भी कलीसिया का उद्देश्य है.
लेकिन उसी के साथ दया की सेवा भी कलीसिया का उद्देश्य है जिसमें -गरीबों की देखभाल करना सताए हुओं को ऊपर उठाना आदि. हमें विश्वासी या अविश्वासी दोनों में जरुरतमन्द की सेवा करना चाहिए.
यीशु ने भी केवल उन्हीं को चंगा नहीं किया, जिन्होंने उसे अपना उद्धारकर्ता ग्रहण किया बल्कि उन सब को जो उसके पास आये. (लूका 4:40)
कलीसिया का अनुशासन | कलीसिया के नियम
यीशु मसीह ने कलीसिया को यह अधिकार दिया है कि वह विश्वासियों को अनुशासित करें.
कलीसिया (चर्च) के अनुसासन का उद्देश्य :
1. उस विश्वासी को फिर से परमेश्वर से मेल मिलाप कराना व उसे पुन:स्थापित करना :
पाप परमेश्वर के साथ हमारे संबंध को तोड़ डालता है. इसलिए कलीसिया अनुशासन का उद्देश्य इस भटके हुए विश्वासी का परमेश्वर के साथ फिर से मेल मिलाप कराना व पुनः स्थापित करना है. जैसे कि बुद्धिमान माँ बाप अपने बच्चों को अनुशासित करते हैं (नीति 13:24)
जैसे सांसारिक माता पिता अपने बच्चों की ताड़ना (अनुशासित) करते हैं, उसी प्रकार कलीसिया को प्रेम से परमेश्वर के समान अपने सदस्यों की ताड़ना करनी चाहिए. या अनुशासित करना चाहिए.
इस अनुशासन का मुख्य उद्देश्य यही है कि वह भटकने वाला पुरुष या स्त्री फिर से परमेश्वर के साथ अपना सही रिश्ता कायम कर ले.( इब्रा. 12:6 , प्रका 3:19) लेकिन यह कार्य नम्रता व सज्जनता के साथ करना चाहिए (गलतियों 6:1 याकूब 5:20, यूहन्ना 15:1-2 )
कभी कभी कलीसिया को बचाने के लिए कुछ लोगों को जो बार बार बताने पर भी पाप करते ही रहते हैं, कलीसिया से बाहर भी निकालना पड़ेगा, परन्तु केवल इसी आशा से कि वो फिर बदल जाएंगे. (1 तिमु 1:20, 1 कुरु. 5:5)
2. पाप को दूसरे विश्वासियों में फैलने से बचाने के लिए:
कलीसिया का अनुशासन पाप को दूसरे विश्वासियों में फैलने से बचाने के लिए भी आवश्यक हैं. इब्रानियों 12:15 में लिखा है, “कहीं ऐसा न हो कि कोई कड़वी जड़ फूट कर निकले और बहुतों को अशुद्ध कर दे.” इसका अर्थ हैं कि अगर लोगों के बीच का झगड़ा नहीं सुलझाया गया तो बहुत से लोग इससे प्रभावित हो जाएंगे.
पौलुस 1कुरु 5:2, 6-7 में कहता है कि ‘थोड़ा सा खमीर सारे आटे को खमीर कर देता है, और कहता है, कि अनैतिक व्यक्ति को कलीसिया से बाहर निकाल दो, ताकी उसके पाप से कलीसिया के और लोग प्रभावित न हो. पौलुस तीमुथियुस से कहता हैं, कि जो प्राचीन निरंतर पाप में लगे रहते हैं उन्हें सब के सामने डांट ( 1 तिमु. 5:20)
3. मसीह के नाम को निन्दित होने से बचाने के लिए.
यह सच है कि किसी भी विश्वासी का ह्रदय पूर्ण रूप से पवित्र नहीं है लेकिन जब एक सदस्य निरंतर ऐसे पाप में लगा ही रहता हैं जिससे अन्यजातियों में भी मसीह का नाम निन्दित होता है, तो यह भयानक बात है. (रोमी 2:24) और अनुसासन आवश्यक है (1 कुरु 5:1-2, 1 कुरु 6:6)
अगर चर्च अपने लोगों को अनुशासित नहीं करेगा तो परमेश्वर स्वयं बीमारी और मृत्यु लाकर अनुशासित करेगा जैसे उसने कुरिन्थियों में किया (1 कुरु 11:27-34) और ऐसा ही करने की चेतावनी उसने पिरगमुन की (प्रका 2:14-15) एवं थुआतीरा (प्रका 2:20 ) की कलीसिया में करने की दी.
पौलुस न केवल प्राचीनों या अगुवों के पाप करने पर अनुशासन की बात करता है. (1 तिमु 5:19-21) पौलुस कहता है, उन्हें सार्वजनिक रीति से डांट. लेकिन कलीसिया के अनुशासन के व्यवहार में लाते समय यह बात निश्चित रीति से ध्यान में रखनी चाहिए कि चर्च का उद्देश्य अनुशासित करने के दौरान दण्डित करना नहीं है.
या फिर बदला लेना नहीं है. वरन चंगा करना व पुन: स्थापित करना है. इसे बड़ी ही नम्रता एवं प्रभु के भय के साथ करना चाहिए. (गलातियों 6:1)
कलीसिया में मेरा योगदान
एक विश्वासी होने के नाते कलीसिया में हमारा योगदान बढ़ चढ़ कर होना चाहिए. हम किसी मनुष्य को दिखाने के लिए चर्च नहीं जाते बल्कि अपने परमेश्वर की आराधना करने जाते हैं. और पवित्रशास्त्र में लिखा है प्रभु में किया हुआ परिश्रम व्यर्थ नहीं होता. इसका अर्थ है हम चर्च में जो कुछ भी योगदान देते हैं चाहे वो धन से हो या शारीरिक वो सब कुछ मन से करना चाहिए.
कलीसिया की उन्नति क्या है ?
जब एक चर्च अपने सदस्यों की मानसिक आत्मिक और आर्थिक रूप से मदद करता है और सभी को संपूर्ण रीति से बढ़ने में मदद करता है उसे कलीसिया की उन्नति कहते हैं. जिसमें विधवाओं की सुधि लेना, उपवास प्रार्थना करना और समाज सेवा भी शामिल है.
तीन पहलुओं की ओर ध्यान देना चाहिए.
हमारा संबंध परमेश्वर के साथ कैसा है…(UP REACH)
हमारा सम्बन्ध अंदर विश्वासियों के साथ कैसा है…(INREACH)और
हमारा संबंध बाहर के अन्य जातियों के साथ कैसा है. (OUTREACH)
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