दोस्तों आज हम परमेश्वर की महिमा | Glory of God in the Bible के विषय में सीखेंगे. एक विश्वासी के लिए उसके जीवन का उद्देश्य होता है परमेश्वर की महिमा करना तो आइये शुरू करते हैं.
परमेश्वर की महिमा | Glory of God in the Bible
“क्योंकि तुम दाम देकर मोल लिए गए हो, इसलिए अपनी देह के द्वारा परमेश्वर की महिमा करो.”
(1 कुरु. 6:20)
परमेश्वर का दास संत पौलुस इस अध्याय में हमें बताता है. कि तुम साधारण लोग नहीं हो, वरन सर्वशक्तिमान परमेश्वर का मन्दिर हो. और उसका आत्मा तुम्हारे अंदर वास करता है.
वो आगे कहता है तुम अपने भी नहीं हो. यह एक बहुत प्रभावशाली और गहरी Statement है. देखो दुनिया की इस धन दौलत और वैभव जिसे तुम अपना बनाने के लिए दौड़ते रहते हो.
वो तो बाद की बात है पहले यह जान लो कि तुम स्वयं अपने नहीं हो. परन्तु तुम्हें परमेश्वर ने मोल ले लिया है.
और उसने तुम्हें एक बहुत बड़ा दाम देकर एक बड़ी कीमत देकर मोल लिया है मतलब खरीदा है. इसलिए अपनी इस देह के द्वारा परमेश्वर की महिमा करो.
दोस्तों इस बात को आज हम जान लें कि उसने जो हमें पापों से और मृत्यु से छुडाया है वो इसलिए छुडाया है कि हम उसकी महिमा करें.
क्योंकि लिखा है, क्योंकि उसी की और से और उसी के द्वारा और उसी के लिए यह सब कुछ है उसकी महिमा युगानुयुग होती रहे. (रोमियो 11:36)
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क्या है परमेश्वर की महिमा
हम इसे सरल शब्दों में समझने के लिए कह सकते हैं कि परमेश्वर की महिमा है उसकी असीम सुन्दरता, उसके स्वभाव का सार, उसकी महत्ता, उसका वैभव, उसकी सामर्थ्य या उसकी उपस्थिति.
कुछ कहते हैं कि परमेश्वर की महिमा है उसकी भलाई और उसके गुण. और भी सरल शब्दों में कहें तो उसकी महिमा करने या उसे महिमा देने का मतलब है,
उसके गुणों को प्रगट करना. उसकी सामर्थ का वर्णन करना, या उसकी सुन्दरता का बखान करना.
जब हम कहते हैं मेरे जीवन से परमेश्वर को महिमा मिले इसका अर्थ है मेरा जीवन ऐसा हो जो परमेश्वर के गुणों को प्रकट करे.
और जब कोई मेरे जीवन को देखे तो मेरे जीवन के द्वारा परमेश्वर की तारीफ़ करे. परमेश्वर ने हमें रचा ही इसलिए है. कि हम उसकी महिमा करें.
“हर एक को जो मेरा कहलाता है, जिस को मैं ने अपनी महिमा के लिये सृजा, जिस को मैं ने रचा और बनाया है” (यशायाह 43:7)
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तो हम कैसे परमेश्वर को महिमा दे सकते हैं.
जब हम फल लाते हैं. : प्रभु यीशु मसीह ने स्पष्ट रूप से इस बात को कहा है, कि मेरे पिता की महिमा इस बात से होती है कि तुम बहुत सा फल लाओ. (यूहन्ना 15:8)
एक मसीही जीवन में यह बेहद जरूरी है कि उसके जीवन में फल हों. फल को हम दो तरीके से देख सकते हैं एक फल तो वो है
जो अपने में स्वाद और सुन्दरता को रखता है. और फल की खासियत यह है कि वो अपने आप में बीज को भी रखता है
और एक बीज में इतनी सामर्थ्य होती है कि वह और फलों को और पेड़ों को पैदा कर सकता है और वह पूरी दुनिया को जंगल में बदल सकता है.
फल लाना यह हमारे व्यक्तिगत जीवन से सम्बधित है. मतलब हमारे जीवन में कुछ ऐसे गुण होने चाहिए जिसके द्वारा हमारे परमेश्वर को महिमा मिले
जैसे आत्मा के फल…प्रेम, आनंद, शान्ति, धीरज, कृपा, भलाई, विश्वास, नम्रता और संयम. जब हमारे जीवन में हमारे स्वभाव में यह गुण होते हैं तब इसके कारण परमेश्वर को महिमा मिलती है.
फल लाने का मतलब केवल अपने जीवन में ही नहीं बल्कि दूसरों के जीवन के लिए भी आशीष का कारण बने ऐसा प्रयास करें.
क्योंकि सब वस्तुएं तुम्हारे लिये हैं, ताकि अनुग्रह बहुतों के द्वारा अधिक होकर परमेश्वर की महिमा के लिये धन्यवाद भी बढ़ाए. (2 कुरु. 4:15)
Conclusion
हम परमेश्वर की महिमा करना चाहता हैं और अपने जीवन में भी फलों को भी लाना चाहते हैं पर कैसे?
यीशु मसीह ने कहा, मैं दाखलता हूँ, तुम डालियाँ हो जो मुझ में बना रहता है और मैं उस में वह बहुत फल फलता है. (यूहन्ना 15:1)
फल लाने का एकमात्र सीक्रेट है कि हम उसमें बने रहें. यदि हम डालियों के रूप में दाखलता में बने रहे तो हम बहुत सा फल लाएंगे.
विश्वास करते हैं यह लेख परमेश्वर की महिमा आपको पसंद आया होगा यह लेख भाई हेमंत के द्वारा लिखा गया है.
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