हैलो दोस्तों आज हम सीखेंगे मिशनरियों की लघु जीवनी जिन्होंने मानव सेवा और सुसमाचार की सेवा हेतु अपना जीवन न्योछावर कर दिया.
विलियम बूथ | Christian Missionary William Booth
इनका जन्म 10 अप्रेल 1829 में इंग्लैण्ड के नोटिंगमशायर में हुआ था. विलियम बूथ एक अंग्रेजी मेथोडिस्ट प्रचारक थे, जो बाद में “द साल्वेशन आर्मी’ के संस्थापक बने. 14 साल की उम्र में अपने पिता को खोने के बाद, उन्होंने अपने परिवार का समर्थन करने के लिए सात साल तक एक मोहरे के सहायक के रूप में काम किया. उन्होंने पंद्रह चर्ष की आयु में मसीह को अपना निजी उद्धारकर्ता के रूप में स्वीकार कर लिया, और परमेश्वर की सेवा के लिए अपना जीवन समर्पित किया.
बाद में 21 साल की उम्र में मेथोडिस्ट पादरी के रूप में नियुक्त किया गया और उन्होंने लन्दन की सड़कों में खुलेआम प्रचार करना शुरू किया यहीं पर उन्होंने गरीबी के दिल को छू लेने वाले द्रश्यों को देखा, जो उनके बाद की सेवकाई पर गहरा प्रभाव डाला.
प्रभु यीशु मसीह की इन शिक्षाओं के अनुसार कि, “मैं तुम से सच कहता हूँ कि तुममें से जो कोई मेरे इन छोटे से छोटे भाइयों से किसी एक के साथ किया, वह मेरे ही साथ किया” बूथ का मानना था कि ईसाई धर्म की मूल अभिव्यक्ति एक दूसरे की देखभाल, पालन-पोषण, आश्रय और साथी मानव को समर्थन करने में है. इस विश्वास से प्रेरित होकर, उन्होंने pulpit पर उपदेश देने की अवधारणा को छोड़ दिया और सुसमाचार को बेघर, भूखे और बेसहारा लोगो तक ले जाने के लिए लन्दन की सड़कों पर चल पड़े.
उन्होंने अपनी पत्नी कैथरीन के साथ ‘ईस्ट लन्दन क्रिस्चियन मिशन’ की स्थापना की, ताकि जरुरतमंदों को व्यावहारिक और आध्यात्मिक सहायता मिल सके. वे चर्च में आने के लिए लोगो का इंतज़ार करने के बजाय चर्च को लोगों तक पहुंचाने के लिए परिश्रम किया. मिशन बढ़ता गया और बाद में इसका नाम बदलकर “द साल्वेशन आर्मी” कर दिया गया, जिसमें विलियम जर्नल के रूप में और उनके सहकर्मी परमेश्वर की सेना का हिस्सा बने.
उनके सेवकाई के पहला प्रतिफल के रूप में चोर, वेश्या, जुआरी और शराबी ने प्रभु को ग्रहण किया जो बदले में सड़कों पर परमेश्वर के सामर्थ के जीवित प्रमाण बनकर प्रचार करना शुरू किया. विलियम बूथ, जिन्हें “गरीबो के नबी” के रूप में भी जाना जाता है, ने उल्लेखनीय रूप से परमेश्वर की सेवा की और अपनी अंतिम सांस तक अपनी बुलाहट के प्रति वफादार रहे.
प्रिय मित्रों, क्या आप दूसरों की देखभाल करते हुए अपने मसीही विश्वास को व्यक्त कर रहे हैं?
प्रार्थना :- प्रभु, मुझे अपने मसीही जीवन को व्यवहार में लाने में मदद करें …आमीन.
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सोलोमन गिन्सबर्ग | A Short Biography of Solomon Ginsburg (August 6, 1867 -01/04/1927)
सोलोमन गिन्सबर्ग एक यहूदी रब्बी घर में पैदा हुए थे और अपने पिता के उदाहरण का पालन करना चाहते थे. एक दिन युवा सुलेमान ने किसी को यशा 53 अध्याय को पढ़ते सुना. जब उन्होने अपने पिता से पूछा, “नाभि किसके बारे में ये शब्द कह रहा है?” उनका पिता जी को यह सवाल पसंद नहीं आया और उन्होंने गुस्से में गिन्सबर्ग को थप्पड़ मार दिया.
गिन्सबर्ग को तब तक नहीं पता था कि परमेश्वर की इच्छा में एक दिन उनके सवाल का जवाब दिया जाएगा, और उनका जीवन काफी बदल जाएगा. सोलोमन बड़ा होकर अपने चाचा के स्टोर में काम कर रहा था. एक विशिष्ट रूढ़िवादी यहूदी होने के नाते, उन्होने अपनी सभी परम्पराओं का सख्ती से पालन किया जब तक कि मसीह के सुसमाचार ने उनको एक दम से नहीं बदल दी.
यहूदियों के एक मिशनरी ने उन्हें एक बैठक में आमंत्रित किया जहाँ यशायाह 53 के विषय पर प्रचार किया जा रहा था. कुतूहल होकर, सोलोमन उस बैठक में शामिल हुए जहाँ उन्हें मसीह की एक झलक मिली. वहां उन्हें आश्वासन मिला की यीशु मसीह में हर भविष्यवाणी पूरी हुई है, और वह परमेश्वर का पुत्र है. तब उनहोने अपने पापों के लिए पश्चाताप किया और उद्धार का अनुभव प्राप्त किया.
अपने मान्यताओं के खिलाफ प्रारंभिक संघर्ष के दौरान, प्रभु ने मत्ती रचित सुसमाचार 10:37 के द्वारा उनसे स्पष्ट रूप से बात की (“कि जो मुझसे अधिक माता और पिता से प्रेम करता है वह मेरे योग्य नहीं है”). उन्होंने तुरंत अपना सब कुछ मसीह के सामने समर्पण कर दिया.
उन्होंने नियमित रूप से बाइबल का अध्ययन में भाग लिया और मसीह के साथ घनिष्ट संवाद का आनन्द लिया. उन्होंने लन्दन के राजमार्गो और उअप मार्गो पर जाकर सुसमाचार का प्रचार किया. उन्होने यहूदियों के बीच भी सेवा की लेकिन बाद में उन्हें अहसास हुआ कि उनकी बुलाहट है अन्यजातियों के बीच सेवा करने हेतु है.
जब अन्यजातियों के बीच ब्राजील में सेवा करने का निमन्त्रण मिला, तो उनहोने तुरंत अंगीकार किया, उन्होने पुर्तगाली में महारत हासिल की और फिर उसमें ट्रैक्ट्स प्रकाशित किये. वह चोरों के साथ सुसमाचार साझा करने के लिए ब्राजील के खतरनाक हिस्सों में जाने से डरते नहीं थे. वे सड़क के कोनो में भजन गीत गाते थे. और जब लोग इकट्टा होते थे, तो वे उनके साथ सुसमाचार साझा करते थे.
उन्होंने कई सुसमाचार साहित्य प्रकाशित किये जिससे लोगो और कैदियों का जीवन बदल गया. उसे सताने के कई प्रयासों के बावजूद, ब्राजील में परमेश्वर ने 35 वर्षों तक फलदायी सेवा में उनकी सम्पूर्ण रक्षा किया.
प्रिय मित्रों क्या आपने सुसमाचार के प्रचार के लिए अपना सब कुछ मसीह के सामने समर्पण किया है?
प्रार्थना : हे प्रभु यीशु मेरी आँखे खोल दे, ताकि मैं आपके उद्धार और अद्भुत कामों का वर्णन देश-देश के लोगों के बीच कर पाऊं … आमीन
पंडिता रमा बाई | Short Biography Of Pandita Ramabai (23 April 1858 – 5 April 1922)
रमाबाई डोंगरे का जन्म एक धार्मिक ब्राह्मण परिवार में हुआ था, और उन्होंने लगभग एक दशक हिन्दू धर्मग्रन्थो का अध्ययन करने में बिताया था, जो तत्कालीन भारतीय व्यवहार के विपरीत था. उन्होंने प्रत्येक अध्ययन क्षेत्र में उत्सृष्ट प्रदर्शन किया और संस्कृत ग्रंथो में निपुणता के लिए उन्हें “पंडिता” के खिताब से सम्मानित किया गया. (जिसका अर्थ विद्वान् होता है)
हालांकि, उनके पति की मौत के बाद, उनके परिवार ने उनके साथ दुर्व्यवहार किया. इसलिए, वह पूणे के लिए रवाना हो गई, जहाँ उन्होंने अन्य विधवाओं के बीच काम करना शुरू किया और उन्हें जीवन कौशल सिखाते हुए सामजिक शोषण और उत्पीडन के चंगुल से मुक्त करने के लिए कोशिश किया.
इस दौरान, उन्हें इंग्लैण्ड में एक महिला सम्मेलन में आमंत्रित किया गया, जहाँ उनकी आँखे सुसमाचार संदेश के लिए खुल गईं. वहां उन्होंने सुना जहाँ बाइबल में का एक भाग वर्णन किया जा रहा था. जहाँ प्रभु यीशु एक व्यभिचार में पकड़ी गई महिला को दोषी ठहराने से पहले अपने स्वयं के पापों का सामना करने के लिए धार्मिक नेताओं को चुनौती दे रहे हैं. (यूहन्ना 8:1-11).
वह तुरंत जान गई कि यीशु मसीह न केवल शारीरिक रूप से बल्कि आत्मिक रूप से महिलाओं का सबसे बड़ा मुक्तिदाता है. उन्हें इंग्लैण्ड में बप्तिस्मा दिया गया और मैंरी नाम से नामकरण किया गया. मसीह के उद्धार संदेश द्वारा सशक्त, वह अपने देश में मसीह के मुक्ति देने वाला प्रेम को लिए एक समर्थक बन गईं. उन्होंने सन 1889 में भारत में विकलांग और विधवाओं के लिए “मुक्ति मिशन” की स्थापना की.
रमाबाई ने उन हजारो लोगों के प्रति अपने प्रेम और अनुग्रह को दर्शाते हुए यीशु का उदाहरण दिया, जिन्हें समान ने मूल्य के योग्य ठहराया था. वह अपने धार्मीक परिर्वतन को लेकर भारतीय समाज से गंभीर प्रतिक्रिया के सामने मसीह के प्रति अपने विश्वास में अडिग रही. उन्होंने महाराष्ट्र में बैलगाड़ियों पर कई गावों का दौरा किया और ‘मुक्ति मिशन’ के माध्यम से हजारों अनाथ, विधवाओं और निराश्रितों को बचाया, जो आज भी सक्रिय रूप से उनके लक्ष्य को पूरा कर रहा है.
मसीह के उद्धार के संदेश ने उन्हें युवावस्था में स्वतंत्र कर दिया, और उन्होंने स्वत्रन्त्रता के उस संदेश को सन 1922में अपनी मृत्यु तक आगे बढ़ाती रहीं.
प्रिय मित्रों क्या आपने मसीह के उद्धार देने वाले प्रेम को अनुभव किया है और इसे विभिन्न बन्धनों में पाए गए लोगो के साथ साझा किया है ?
प्रार्थना :- प्रभु मुझे उत्पीड़ितों के उत्थान के लिए काम करने के लिए मजबूत करो, आमीन.
जॉन वेस्ली | John Wesley (17/06/1703 – 02/03/1791)
जॉन वेस्ली एक एंग्लिकन पादरी और एक प्रचारक थे. जिन्होंने अपने भाई चार्ल्स के साथ इंग्लैण्ड के चर्च एन मेथोडिस्ट सेवकाई की सह-संस्थापना किया. एक धार्मिक परिवार में जन्में, वेस्ली को इसाई नैतिकता के सख्त अनुशासन में परवरिश किया गया था.
ओक्स्फोर्ड के क्राइस्ट चर्च से स्नातक होने के बाद, उन्हें सन 1725 में इंग्लैण्ड के चर्च में एक डिकौन के रूप में नियुक्त किया गया था. ऑक्सफोर्ड में रहते हुए, वह ‘होली क्लब’ के एक सक्रिय सदस्य थे और प्रार्थना, बैबले अध्ययन और जेल सेवकाई में उत्साह से भाग लेते थे.
उन्हें सन 1728 में एक पादरी के रूप में नियुक्त किया गया था. जिसके बाद उन्होंने उत्तरी लिकनशायर में सेवकाई करना शुरू किया. जेम्स ओगलथोरपे के अनुरोध पर, वेस्ली ने सन 1735 में न्यू वर्ल्ड कॉलोनी (जॉर्जिया की एक नई स्थापित कॉलोनी) में जाकर सुसमाचार करने के लिए निकल पड़े.
यद्यपि उनका विष्ण सेवकाई संक्षिप्त था और उनके लिए निराशाजनक था, वह जर्मन मोरावियन मिशनरियों से गहराई से प्रभावित थे, जिनसे वेस्ली वहां रहने के दौरान मिले थे. उनके आध्यात्मिक विश्वास और व्यावहारिक भक्ति के प्रति प्रतिबद्धता ने उन्हें गहराई से प्रभावित किया.
इनलैंड लौटने के बाद, एक दिन वेस्ली ने रोमियो की पत्री पर मार्टिन लूथर की प्रस्तावना को सुनकर एक आध्यातात्मिक रूपान्तरण का अनुभव किया. एक नई भावना के साथ, वेस्ली ‘केवल मसीह पर विश्वास के द्वारा ही उद्धार के विषय पर प्रचार करना शुरू कर दिया. चर्च के बाहर भी प्रचार करने की उनकी तत्परता के कारण कुछ उपेक्षित जनता को भी सुसमाचार पहुँच पाया, जिनके बारे में चर्च ऑफ़ इनलैंड को चिंता नहीं थी.
एक शक्तिशाली जागृति और आध्यात्मिक आग इनलैंड देश में भर गया और परिणामस्वरूप हजारो लोग मसीह को स्वीकार करने लगे. वेस्ली के बाइबल सिद्धांतो को स्वीकार करने के लिए इंग्लैण्ड चर्च तैयार नहीं थी इसलिए उन्होंने निजी ‘समाजों’ (सोसाईटीस) को आरंभ किया. इन समाजों में लोग हर हफ्ते बाइबल अध्ययन और प्रार्थना के लिए व्यवस्थित रूप से इकट्टा होते थे.
इसलिए आलोचकों ने उन्हें ‘मेथोडिस्ट’ कहा, वेस्ली ने विरोध और उत्पीडन के बावजूद पूरे देश में मेथोडिस्ट समाजों की स्थापना करते हुए यात्रा की. उन्होंने जीवन भर व्यक्तिगत अनुशासन का एक क्रम जारी रखा और 1791 में अपनी दौड़ पुरी करने तक अपने जीवन को व्यवस्थित रूप से जिया.
प्रिय मित्रों, आपका जीवन कितना सुव्यवस्थित और अनुशासित है?
प्रार्थना : हे प्रभु, मुझे एक अनुशासित जीवन जीने और मेरी आखरी सांस तक सेवकाई में सक्रिय रहने के लिए सक्षम करें, आमीन
साभार : ये लघु जीवनियाँ श्री वीर स्वामिदास की पुस्तक द बुक ऑफ़ सोल विन्निग से लिया गया है जिसका अनुवाद श्री अर्पण पॉल जी ने किया है. इस लेख का उद्देश्य मिशनरियों के त्याग और बलिदान की सच्चाई को लोगों तक पहुंचाना है. धन्यवाद.
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