प्रथम शताब्दी के विश्वासी जिन्होंने यीशु का अनुसरण किया, ऐसे स्त्री पुरुष थे जिन्होंने अपने समय के संसार को उल्ट पुलट कर दिया. हम भी उन्हीं के समान जीवन जी सकते हैं, यदि हम भी यीशु के सच्चे शिष्यत्व को अपना लें.
हमारे सामने सवाल यह उठता है, कि क्यों कुछ मसीही आनन्द से भरा हुआ, जोश से भरा हुआ जीवन जीते हैं. जबकि दूसरे मसीही ठंडे प्रकार का जीवन. इसका कारण यह है कि सभी चेले विश्वासी हैं परन्तु सभी विश्वासी चेले नहीं हैं.
यदि हम अपने मसीही जीवन को वैसे जियें जैसे यीशु ने सिखाया है, तब ही अपने अपने जीवन का सच्चा आनन्द उठा पायेंगे. हमारे जीवन का सच्चा अर्थ हमारे सृष्टिकर्ता को जानने में है. हमारे सृष्टिकर्ता को जानने और उसकी मर्जी के अनुसार चलने में ही जीवन का सच्चा आनन्द प्राप्त होता है.
चेलेपन का अर्थ | The True Meaning of Disciples
चेला शब्द का वास्तविक अर्थ है : सीखने वाला (A learner) एक चेला वह व्यक्ति है जो अपने गुरु से सीखता है. साथ में चेला ऐसा व्यक्ति है जो अपने गुरु के पदचिन्हों पर चलता है. इस प्रकार मसीही चेलापन, यीशु से सीखना और उसके बताए हुए मार्ग पर चलना है .
इस प्रकार चेलेपन का लक्ष्य यीशु के समान बनना है. चेलापन एक जीवनपर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है. हमें केवल विश्वासी बने रहने के लिए नहीं बल्कि चेला बनने के लिए बुलाया गया है. (मत्ती 28:19-20) कुछ लोग यीशु को ग्रहण करके विश्वासी तो बन जाते हैं. परन्तु वे वहीँ पर थम जाते हैं.
और कभी भी आगे बढ़कर यीशु के चेले नहीं बन पाते. विश्वासी और चेले में अंतर हैं. विश्वासी बनना केवल विश्वास का पहला कदम है. परन्तु चेलापन जीवन भर चलता है. यह ऐसी प्रक्रिया है जिसमें एक विश्वासी जानबूझ कर अपनी इच्छा से अपने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र को प्रतिदिन मसीह के आधीन करता है, अपनी इच्छा को क्रूस पर चढ़ाकर मसीह की इच्छा के अधीन होकर जीवन बिताता है.
हम बहुत तेजी से दौड़ने वाली दुनिया में जीवन बिता रहे हैं. नयी नयी तकनीकियों ने सब कुछ बहुत तेज व आसान बना दिया है (कंप्यूटर, स्मार्ट फोन, हवाईजहाज, ATM) आदि के कारण मनुष्य के अंदर धीरज खत्म सा हो गया है.
अब मनुष्य इंतजार करना ही नहीं चाहता. सब कुछ तुरंत पाना चाहता है. पर सच्चा चेला बनना एक दिन या एक साल में संभव नहीं है. उसके लिए पूरा जीवन चाहिए. पौलुस 2 कुरु 3:18 में कहता है कि, ‘हम अंश व अंश करके बदलते जाते हैं.
हम आत्मिक जीवन में भी धीरज नहीं रखना चाहते. हम परमेश्वर से कहते हैं प्रभु हमें धीरज सिखाइए और अभी सिखाइए. मैं बहुत जल्दी में हूँ…आपको बातें करना है तो जल्दी कीजिए. कुछ सिखाना है तो जल्दी सिखाइए. आत्मिक जीवन में बढ़ना, शारीरिक रूप से बढ़ने के समान ही धीमी प्रक्रिया है.
चेलेपन की बुलाहट | A Call For Discipleship
सभी मसीहियों को यीशु का चेला बनने के लिए बुलाया गया है. यह बुलाहट मात्र पासवानों, सुसमाचार प्रचारकों, मिशनरियों या कुछ चुने हुओं के लिए ही मात्र नहीं है. बल्कि प्रत्येक विश्वासी के लिए है. पर यीशु अपना चेला बनने के लिए किसी से जबरदस्ती नहीं करता.
वे कहता है, “यदि कोई मेरा चेला बनना चाहे” (लूका 9:23) चेलेपन की यह बुलाहट अलग-अलग लोगों के पास अलग अलग रूप में आती है. उदाहरण चेलों की बुलाहट (मर 1:16-20)
चेला कौन नहीं बन सकता | Who Can not Be Disciples
1. जिसने नया जन्म नहीं पाया है :
मसीही परिवार में पैदा होने ही नया जन्म नहीं मिलता है. पापों से पश्चाताप व यीशु को अपना जीवन समर्पित करना जरूरी है. चेलापन नया जन्म प्राप्त करने से शुरू होता है.
2. जो अपने प्रियजनों को यीशु से ज्यादा चाहता है. (लूका 14:25)
जिसके जीवन में यीशु व उसकी बातें प्रथम स्थान नहीं रखती. यीशु से ज्यादा अपने माता-पिता, भाई और बहन, पति और पत्नी से प्रेम रखने वाला व्यक्ति यीशु का चेला नहीं बन सकता.
3. जो अपना क्रूस उठाकर, यीशु के पीछे चलने को तैयार नहीं है.
अर्थात यीशु के मार्ग पर चलने के लिए जो दुःख उठाने को तैयार नहीं है . वह यीशु का चेला नहीं हो सकता. यह दुःख यीशु के नाम के खातिर अपमान, तिरस्कार, लज्जा व स्ताव के रूप में आ सकता है. (लूका 14:27)
4. जो अपने आप का इंकार करने को तैयार नहीं है. (मत्ती 16:24)
अर्थात जो अपने अहम को पीछे रखने के लिए तैयार नहीं है. अपनी मर्जी, योजनाओं को यीशु की मर्जी के सामने झुकाने के लिए तैयार नहीं है, वह उसका चेला नहीं बन सकता.
5. जो अपना सब कुछ यीशु को देने के लिए तैयार नहीं है.
अर्थात यीशु के लिए कुछ भी छोड़ना पड़े तो तैयार रहे.
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सच्चे चेले की पहचान | Characteristics Of A Disciple Of Jesus
1. एक सच्चा चेला अपने जीवन में सबसे ज्यादा प्यार यीशु से करता है. (लूका 14:21)
इसका अर्थ यह कदापि नहीं हैं, कि हमें अपने माता-पिता, रिश्तेदारों से नफरत करना है. नहीं बल्कि यीशु को अपने जीवन में पहला स्थान देना है .
क्या आप यीशु के प्रेम के खातिर अपनी उस मित्रता को जो प्रभु को नहीं भाति छोड़ने के लिए तैयार हैं? हम सभी स्वभाव से खुद को सबसे ज्यादा प्यार करते हैं. और सुबह से शाम तक यही निश्चित करना चाहते हैं हम अच्छे दिख रहे हैं. खुद को कभी कष्ट नहीं देना चाहते. यह चेलापन में एक बाधा है.
2. एक सच्चा चेला खुद का इंकार करता है. (मत्ती 16:24)
खुद को इंकार करने का अर्थ है “मसीह के स्वामिपन के प्रति खुद को पूर्ण रीति से समर्पित करना” (Complete Submission to the Lordship Of Jesus) इसका मतलब है मसीह को अपने ह्रदयरूपी सिंहासन पर राज्य करने देना और खुद को उस सिंहासन से नीचे उतार देना. अपनी इच्छाओं और योजनाओं को पूरा न करके मसीह की योजनाओं व इच्छाओं को पूरा करना.
3. एक सच्चा चेला जानबूझकर क्रूस उठाना चुनता है. (मत्ती 16)
क्रूस उठाने का मतलब कुछ शारीरिक बीमारी या मानसिक पीड़ाओं को सहना यह उठाना नहीं है. ये साड़ी बातें सभी मनुष्यों को होती हैं. क्रूस लज्जा, सताव, बेइज्जती व अपमान का प्रतीक है. हमारे प्रभु ने इन सब को सहा, यही बातें हमें मसीह के लिए सहनी पड़ेंगी.
इन सब बातों को धीरज के साथ सहना ही अपना क्रूस उठाना होता है. यीशु हमसे प्रतिदिन क्रूस उठाने की बात कहते हैं. यह दर्दनाक है, पर यही सच्चा मार्ग है. जिस पर हमारा प्रभु स्वयं भी चला है.
4. एक सच्चा चेला मसीह का अनुसरण करते हुए अपना जीवन बिताता है. (मत्ती 6:24)
मसीह का अनुसरण करने का मतलब है जिन रास्तों पर यीशु चला उन्हीं रास्तों पर चलना है. (आज्ञाकारिता का जीवन – इब्रानियों 5:7-8) पवित्रात्मा की सामर्थ में जीना, स्वार्थरहित जीवन जीना, लम्बे समय तक अन्याय सहते हुए दुःख सहना, उत्साह से भरा हुआ जीवन, आत्म संयम का जीवन, नम्रता व तरस से भरा हुआ जीवन, आत्मा के फलों से भरा हुआ जीवन . (गला 5: 22-23)
5. सब मसीहियों के प्रति एक गहरा प्रेम रखता है. (यूहन्ना 13:35)
एक निस्वार्थ प्रेम, ऐसा प्रेम जो दूसरों को अपने से अधिक अच्छा समझता है. (फ़िलि 2:3) यह ऐसा प्रेम है जो अनेक पापों को ढांप देता है (1 पतरस 4:8) ऐसा प्रेम जो लम्बे समय तक दुःख सहता है और दयालु है. (1 कुरु 13:4-7) बिना ऐसे प्रेम के चेलापन खोखला है. (1 यूहन्ना 2:9-11) (1यूहन्ना 3:10, 16, 4:20-21)
6. परमेश्वर के वचन से प्रेम व उसमें बना रहना. (यूहन्ना 8:31)
मसीह जीवन को शुरू करना आसान होता है, पर वास्तविक परीक्षा उस समय आती है. जब समय कठिन होता है जिसके लिए निरंतर वचन में बने रहना बहुत जरूरी है. (लूका 9:62)
7. सब कुछ त्याग कर उसके पीछे हो लेना. (लूका 14:33)
इसका अर्थ है उन सभी भौतिक वस्तुओं को त्याग देना जो मनुष्य के लिए आवश्यक नहीं हैं. और जिन्हें सुसमाचार की बढ़ोत्तरी में इस्तेमाल किया जा सकता है. अपने धन को भी परमेश्वर के बाद स्थान देना.
सच्चा चेला अपने उस धन को बचा क्र नहीं रखता जो उसके लिए आवश्यक नहीं है, यहाँ तक कि कई बार अपनी आवश्यकताओं को भी प्रभु के राज्य की बढ़ोत्तरी के लिए त्याग देता है.
8. एक सच्चा चेला आत्मा के चलाए चलने का प्रयास करता है. (गला 5:16-17)
वह जानबूझ कर पाप करता नहीं रहता. (1 यूहन्ना 3:6-7) वह पाप से प्रेम नहीं करता. मसीह को ग्रहण करने से पहले हम सब आत्मिक रूप से मरे हुए थे. पौलुस इसका वरन इफिसियों 2:1-3 में करता है. पर पौलुस कहता है कि हम मसीह के साथ जिलाए गए है. (इफिसियों 2:5)
अनुग्रह के द्वारा ही हम बचाए गए हैं. क्या सच्चा चेला बिल्कुल पाप नहीं करता? क्या वह सिद्ध होता है ? नहीं. (1यूहन्ना 1:8) वह पाप से संघर्ष करता है. वह अपनी मर्जी से पाप को अपना जीवन समर्पित नहीं करता है. (रोमियो 7:9-21)
क्यों संघर्ष ? क्योंकि मसीह ने हमें पाप की प्रभुता से छुड़ाया है. पर उसका प्रभाव हम पर अभी भी आता है. इस कारण संघर्ष करना पड़ता है.
मसीह ने पाप से हमको स्वतंत्र किया है का क्या अर्थ है?
- हम पाप के दोष से मुक्त हो चुके हैं (2 कुरु 5:21)
- हम परमेश्वर के क्रोध से मुक्त हो चुके हैं, जो हमारे पापों के कारण हम पर आता है. (रोमियों 2:8, इफिसियों 5:6 )
- हम पाप की उपस्थिति से आजाद नहीं हुए हैं पर पाप की ताकत से आजाद किये गए हैं (रोमी 6:12-13)
निरंतर प्रार्थना करते रहो ताकि परीक्षा में न पड़ो
पढ़ें : कलीसिया की परिभाषा और इतिहास
यीशु मसीह के 12 प्रेरितों की मृत्यु कैसे हुई | How Disciples of Jesus Died
- पतरस :- परंपरा के अनुसार कहा जाता है लगभग 64 ईस्वी में पतरस की हत्या राजा नीरो ने प्रेरितों को क्रूस पर उल्टा लटकाकर मारा था. क्योंकि पतरस मरने के लिए तैयार था लेकिन स्वयं अपने स्वामी यीशु के समान क्रूस नहीं चढना चाहता था.
- अन्द्रियास :- पतरस के भाई अन्द्रियास को लगभग 60 ईस्वी में अंग्रेजी के एक्स आकार के क्रूस पर बाँध कर म्रत्यु दी गई थी.
- याकूब :- बाइबिल में प्रेरितों के काम 12 के अनुसार याकूब को राजा हेरोदेश ने तलवार से सिर काट कर मारा था.
- यूहन्ना :- यूहन्ना को सजा देने के लिए पतमुस नामक टापू में रखा गया था. जहाँ उसने प्रकाशन पाया और प्रकाशितवाक्य पुस्तक को लिखा और वे लगभग 98 ईस्वी तक जीवित थे और सामान्य मृत्यु को प्राप्त हुए.
- फिलिप्पुस :- लगभग 80 ईस्वी में फ्रिगीया शहर में प्रचार करते हुए सेवकाई किया और वहीँ उसे क्रूस पर बांधकर और पथराव करके शहीद किया गया.
- बरतुलमै :- जिन्हें नाथनिएल भी कहा जाता है. बरतुलमै भी भारत में प्रचार किया था. लगभग 71 ईस्वी में आर्मीनिया में पीटकर मार दिया गया था.
- थोमा :- जिसे दिदमुस भी कहते हैं. इन्होने लगभग सन 50 ईस्वी में भारत आकर सेवकाई की और इन्हें लगभग 52 ईस्वी में दक्षिण भारत में भाले से मारा गया था.
- मत्ती : मत्ती प्रभु के चेले बनने से पहले चुंगी लेने वाला था उसे लगभग सन 60 ईस्वी में इथोपिया देश में तलवार से शहीद हुआ था.
- यहूदा तद्दै :- लगभग 50 ईस्वी में अर्मेनिया के अरारात शहर में तीरों से घायल कर कर के शहीद किया गया था.
- शमौन कनानी :- फरसिया में लगभग सन 50 ईस्वी में क्रूस पर चढ़ा कर मृत्यु दी गयी थी.
- यहूदा इस्करियोती :- यह वही चेला है जिसने यीशु को पैसों के लिए फरीसियों और महायाजको के हाथ बेच दिया था. इसने यीशु के समय ही फांसी लगाकर मर गया था.
हम यीशु मसीह के चेले हैं गीत
हम यीशु मसीह के चेले हैं दुनिया में धूम मचा देंगे,
जो नीद में गाफिल सोते हैं उपदेश से उनको जगा देंगे.
जब मन की घुंडी खोलेंगे और ज्ञान के मोती रोलेंगे,
इंजील मुकद्दस पढ़ पढकर हम मन में शान्ति बिठा देंगे .
बन्दे हैं एक खुदा के हम, मिल जुल कर क्यों न रहे हरदम,
इंजील मुकद्दस को सब में हम प्रेम से जाकर सुना देंगे.
हम रंज के सहने वाले हैं, उफ़ तक नहीं करने वाले हैं,
और पीछे प्यारे यीशु के चलने की राह बता देंगे.
दुःख और तकलीफ उठाएंगे उल्फत का राग सुनायेंगे,
हम दूर करेंगे रंजो अलम और प्रेम का रंग जमा देंगे.
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बहुत सुंदर सिखाया है
thanks for comment God bless you
Good massage thanks
Thank you so much Kishore Thapa may God bless you for your comment