परिचय
मित्रों आज हम इस विषय पर मनन करेंगे, परमेश्वर के साथ चलना…
परन्तु सवाल है…”क्या कोई इतना बुद्धिमान या सामर्थी है कि वह परमेश्वर के साथ चल सके?” क्या यह एक मनुष्य के लिए सम्भव है कि वह परमेश्वर के साथ चल सके? उत्तर है नहीं…कोई भी अपनी बुद्धि और बल के अनुसार परमेश्वर के साथ नहीं चल सकता…
कहानी :-
एक बार की बात है एक व्यक्ति ने स्वप्न देखा जो हमेशा परमेश्वर के साथ चलता था…वो समुद्र के तट पर चला जा रहा था…उसने देखा की गीली रेत में उसके साथ साथ एक जोड़ी और पैरों के निशान बन रहे हैं…
वह बहुत खुश था, कि परमेश्वर भी उसके साथ साथ चल रहे हैं…लेकिन थोड़ी दूर चलने के बाद…कुछ कांटो भरी और पथरीली भूमि आई..अब उसे अपने नंगे पैरों से चलना कठिन लगने लगा…अब जब उसने नीचे देखा तो उसे एक ही जोड़ी पैरों के निशान दिखाई दिए…वो परमेश्वर को दोहाई देने लगा…शिकायत करने लगा…प्रभु जब सब कुछ अच्छा था तब आप मेरे साथ चल रहे थे…लेकिन अब जब कांटो भरी डगर है…तो आप मुझे छोड़ दिए?
तब एक आवाज आई बेटे ध्यान से देख यह नीचे मेरे पाँव के निशान है। जब सब कुछ अच्छा था तब मैं तेरे साथ चला.. लेकिन अब मैं तुझे उठा कर चल रहा हूँ ये मेरे पाँव के निशान हैं ….मैं तुझे अपने हाथों में उठाए हुए हूँ।
बिलकुल इसी तरह जब हम परमेश्वर के साथ चलते हैं तो वह हमें सम्हालते हैं…लेकर चलते हैं…सुरक्षा देते हैं…लेकिन हम पवित्रशास्त्र-बाइबल में पाते हैं… परमेश्वर स्वयं लोगों को बुलाते हैं कि वे परमेश्वर के साथ-साथ चलें। हम देखते हैं उत्पत्ति 17:1 में पमरेश्वर अब्राहम से जो प्रभु का एक दास था…उसे बुलाते हैं और कहते हैं, “मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर हूँ, मेरी उपस्थिति में चल“
कोई किसी के साथ-साथ kaise चल सकता है ???
मनुष्य एक मनुष्य के साथ केवल तब ही चल सकता है, जब वे दोनों के विचार एक दूसरे से मिलते हों…दोनों की मंजिल एक हो…
यहाँ बाइबल में परमेश्वर हम मानव को बुलाते हैं कि हम उसके साथ चलें…
परमेश्वर कहते हैं यदि हम परमेश्वर के साथ चलें तो हम सिद्ध हो जाएंगे…और परमेश्वर की आशीषों को भी पाएंगे। वह हमारी गलतियों को और अपराधों को क्षमा करके हमें अपने साथ चलने के लिए बुलाते हैं।
(1 इतिहास 11:9) में लिखा है दाउद की मान प्रतिष्ठा..सम्मान बढती गई.. तरक्की पर तरक्की होती गई..क्यों, क्योंकि आगे लिखा है परमेश्वर उसके साथ था।
परमेश्वर के साथ चलना हमें तरक्की और मान प्रतिष्ठा भी प्रदान करता है…उसके साथ चलने के लिए हमें प्रतिदिन उसकी बातों को प्रथम स्थान देना होगा…हर बातों में उससे सलाह लेना होगा…यदि हम अपनी बुद्धि का सहारा न ले और सम्पूर्ण मन से उस पर भरोसा करें तो वह हमारे लिए सीधा सरल मार्ग निकालता है…
परमेश्वर के साथ चलने का रहस्य
मनुष्य से बढ़कर स्वयं परमेश्वर की तीव्र इच्छा है की वह मनुष्य के साथ साथ चले… ऐसा प्रतीत होता है, परमेश्वर आरंभ से ही ऐसे स्त्री-पुरुष को खोज रहा था । प्रारंभिक स्त्री पुरुष आदम और हौआ की सृष्टि के बाद परमेश्वर प्रतिदिन दिन के ठन्डे शीतल समय में शायद सुबह और शाम उनके पास आता था, की उनके साथ एक पिता पुत्र/पुत्री का सम्बन्ध बना सके उनके साथ चल सके…
परन्तु मनुष्य ही है जो परमेश्वर की संगति से भागता रहा है…अपने पापमय स्वभाव के कारण दूर होता रहा है ।
परन्तु बाइबल में विश्वास के ऐसे बहुत से नायक हुए जो परमेश्वर के साथ साथ चलते थे…जिनमें से विश्वास के तीन ऐसे महानायक हुए जो जीवित ही परमेश्वर के द्वारा स्वर्ग में उठा लिए गए ।
पहला हनोक जो धरती में 365 वर्षों तक जीवित रहा और परमेश्वर के साथ चलता रहा।
इब्रानियों 11:5-6 विश्वास से ही हनोक उठा लिया गया कि मृत्यु को न देखे, और उसका पता नहीं मिला क्योंकि परमेश्वर ने उसे उठा लिया था, और उसके उठाए जाने से पहले उसकी यह गवाही दी गई थी कि उसने परमेश्वर को प्रसन्न किया है ।
दूसरा व्यक्ति एलिय्याह (2 राजा 2:11) वे चलते चलते बातें कर रहे थे, कि अचानक एक अग्निमय रथ और अग्निमय घोड़ों ने उनको अलग-अलग किया, और एलिय्याह बवंडर में होकर स्वर्ग पर चढ़ गया ।
तीसरा स्वयं प्रभु यीशु जो जीवित ही स्वर्ग में उठा लिए गए…
इन तीनों में जो बातें समान थी वो उनका विश्वास और आज्ञाकारिता थी…
विश्वास और आज्ञाकारिता ही वह रहस्य है जिसके द्वारा हम परमेश्वर को खुश कर सकते हैं…परमेश्वर के साथ साथ चलना की सबसे पहली शर्त विश्वास और आज्ञाकारिता ही है जिसके बिना कोई भी परमेश्वर को प्रसन्न नहीं कर सकता ।
हाँ, हो सकता है कि हमारा विश्वास बहुत बड़ा न हो…लेकिन यह विश्वास भी तो परमेश्वर ही अपने परिमाण के अनुसार हमें देते हैं… (क्योंकि परमेश्वर यहोवा कहता है, मेरे विचार और तुम्हारे विचार एक समान नहीं हैं, न तुम्हारी गति और मेरी गति एक सी है ।)
जिस प्रकार एक पिता अपने उस बेटे को जो अभी अभी चलना सीखा है छोड़कर आगे नहीं बढ़ जाता बल्कि अपने बेटे की गति के अनुसार धीमे धीमे चलता है.. उसी प्रकार परमेश्वर भी अपनी गति को धीमा कर हमारे साथ चलता है…वो चालीस वर्षों तक इस्राइली लोगों के साथ आग का खंबा और बादल के रूप में उनके साथ साथ चलता रहा…
प्रभु यीशु ने भी अपनी कलीसिया को आदेश दिया है विश्वास और आज्ञाकारिता में बनी रहेगी तो वो जल्दी वापस आएँगे और अपनी कलीसिया को जीवित ही स्वर्ग ले जाएंगे जिसके लिए वो स्वर्ग में जगह तैयार कर रहे हैं ।
परमेश्वर के साथ चलना, एक लक्ष्य प्रदान करता है
हे भाइयों, …मैं केवल यह एक काम करता हूँ, कि जो बातें पीछे रह गई हैं उनको भूल कर, आगे की बातों की ओर बढ़ता हुआ, निशाने की ओर दौड़ा चला जाता हूँ, ताकि वह इनाम पाऊं जिसके लिए परमेश्वर ने मुझे मसीह यीशु में ऊपर बुलाया है’। (फिलिप्पियों 3:13-14)
परमेश्वर के साथ साथ चलना हमारे जीवन में एक लक्ष्य प्रदान करता है। किसी ने कहा है, बिना लक्ष्य के जीवन, बिना पता लिखे लिफाफे के समान है, जो कभी कहीं पहुँच नहीं सकता ।
प्रभु यीशु मसीह के पास एक बड़ा लक्ष्य था… सारी मानव जाति को पाप से बचाने का लक्ष्य…उन्होंने कहा मैं खोए हों को ढूंढने और उनका उद्धार करने आया हूँ…पाप रूपी अन्धकार भरी दुनिया के लिए मैं जगत की ज्योति हूँ…उनके पास एक स्पष्ट लक्ष्य था…उनके अंदर अपने पिता परमेश्वर की इच्छा को पूरा करने की आग थी…उन्होने कहा मेरे पिता के घर की धुन मुझे खा जाएगी….मेरा भोजन मेरे भेजने वाले की इच्छा को पूरा करना है…और जो कोई भी उनसे मिलता…बातें करता वो भी उस ज्वलंत शील इच्छा से उस लक्ष्य से अछूता नहीं रहता था…
प्रभु यीशु का महान चेला पतरस भी जब हारा हुआ निराश होकर झील के किनारे प्रभु यीशु से मिला तो प्रभु ने उसके जीवन में एक चमत्कार किया और जिस स्थान में वो हार गया था, उसी स्थान में उसे नांव भर कर मछली देकर उसे विजयी किया…और यह कह कर कि मेरे पीछे हो ले मै तुझे मनुष्यों को पकड़ने वाला मछुआरा बनाऊंगा…पतरस की हैसियत से बढ़कर एक लक्ष्य दिया….
लुका रचित सुसमाचार 10:17-20 में एक घटना का वर्णन है। प्रभु यीशु मसीह ने 70 चेलों को जो उसके साथ साथ लगभग साड़े तीन वर्षों तक चले थे… नियुक्त किया और उनके लिए एक योजना बनाई कि दो-दो की जोड़ी में उन्हें उन स्थानों में जाना है जहाँ प्रभु यीशु स्वयं जाना चाहते थे। और उन्हें कौन सा सामान साथ नहीं ले जाना है और जाकर क्या-क्या करना है, इस विषय में स्पष्ट आदेश दिए।
9 वीं आयत में लिखा है कि यीशु ने उनसे कहा वहां के बीमारों को चंगा करो और उनसे कहो कि परमेश्वर का राज्य तुम्हारे निकट आ पहुंचा है। उसके बाद उसने कहा कि जो तुम्हारी सुनता है, वह मेरी सुनता है। जो तुम्हें तुच्छ जानता है, वह मुझे तुच्छ जानता है। और जो मुझे तुच्छ जानता है वह मेरे भेजने वाले को तुच्छ जानता है। आज तक जिनके पास कोई लक्ष्य नहीं था उन्हें स्पष्ट और महान लक्ष्य मिल चूका था।
17 वीं आयत में लिखा है इस सबका परिणाम यह हुआ कि वे सत्तर आनन्द से वापस आकर कहने लगे कि हे प्रभु तेरे नाम से दुष्टआत्मा भी हमने निकालीं। वे हमारे वश में हैं। तब प्रभु यीशु ने उनसे कहा कि मैं शैतान को बिजली के जैसे स्वर्ग से गिरा देख रहा था।
आज यदि हम उस पर विश्वास करते हैं तो प्रभु यीशु जो स्वयं जगत की ज्योति है हमें अपने संग बुला कर महान आदेश देते हुए कहता है…तुम जगत की ज्योंति हो…तुम धरा के नमक भी हो…जाओ और जाकर सारे जगत के लोगों को चेला बनाओ और उन्हें पिता, पुत्र और पवित्रात्मा के नाम पर बप्तिस्मा दो। और उन्हें वे सारी बातें मानना सिखाओ जो मैंने तुम्हें सिखाईं हैं…और देखो जगत के अंत तक मैं तुम्हारे साथ हूँ…हमारे पास एक बड़ा लक्ष्य है…आइये उसके साथ साथ चलते हूए इसे पूरा करें।
परमेश्वर के साथ चलने की शर्तें
“जो लोग परमेश्वर के साथ चलते हैं हमेशा मंजिल तक पहुँचते हैं”
( हेनरी फोर्ड)
प्रभु यीशु में सभी को प्यार भरा नमस्कार, पिछले भाग में हमने देखा की परमेश्वर के साथ चलने वालों को परमेश्वर कितनी आशीषें देता है, वे लोग नम्र हो जाते हैं और सिद्धता को प्राप्त करते हैं और अद्भुत विश्राम को प्राप्त करते हैं ।
परमेश्वर के साथ साथ चले लोगों का अध्ययन करने से ज्ञात होता है, की परमेश्वर के साथ चलने की कुछ शर्ते भी हैं, परमेश्वर के महान दास डी. एल. मूडी बताते हैं “यदि कोई व्यक्ति संसार के साथ चलता है वह परमेश्वर के साथ नहीं चल सकता” । परमेश्वर कभी भी आधा आधा या 50% नहीं चाहते परमेश्वर मनुष्य का संपूर्ण प्रेम चाहते हैं, परमेश्वर ने भी मनुष्य जाति को पापों से बचाने के लिए अपना एकलौता बेटा देकर सम्पूर्ण प्रेम दिखाया ।
हम शैतान के कप से और प्रभु के कप से एक साथ नहीं पी सकते… उसने अपने आप को पूर्ण रूप से दे दिया । इसलिए परमेश्वर भी हमसे संपूर्ण प्रेम चाहता है । सोचे यदि हमारा परम मित्र हमारे साथ चल रहा हो और हम उससे अति महत्वपूर्ण बातें बता रहे हों और वह अपने फोन के गेम में व्यस्त हो या कान में लीड लगाकर कुछ और सुन रहा हो तो क्या हमारा मन उसके साथ चलने में आनन्दित होगा…ऐसा लगेगा जैसे वो हमारे साथ होकर भी हमसे दूर है…उसका मन तो हमारे साथ है ही नहीं…ठीक उसी प्रकार परमेश्वर भी हमसे चाहते हैं… तू अपने परमेश्वर से सारे मन से और सारे प्राण और सारी शक्ति से और सारी बुद्धि से प्रेम करना ।
जैसा दिन को सोहता है, वैसा ही हम सीधी चाल चलें; न कि लीला क्रीड़ा, और पियक्कड़पन, न व्यभिचार, और लुचपन में, और न झगड़े और डाह में । (रोमियो 13:13) हे मनुष्य, वह (परमेश्वर) तुझे बता चुका है कि अच्छा क्या है; और यहोवा तुझ से इसे छोड़ और क्या चाहता है की, तू न्याय से काम करे, और कृपा से प्रीति रखे, और अपने परमेश्वर के साथ नम्रता से चले? परमेश्वर अति पवित्र है और वह चाहता है उसके साथ साथ चलने वाले भी पवित्र हों उसके उजाले में अर्थात पवित्रता में चलें….
हमें पवित्र जीवन जीने के लिए वह अपना पवित्रात्मा भी देता है…समय समय पर हमें चिताता है समझाता है, कटाई छटाई भी करता है जरूरत पड़ने पर वह अपने लाठी और सोटे का भी इस्तेमाल करता है…इन सभी बातों को वह अपने अथाह प्रेम के कारण करता है । परमेश्वर ने राजा सुलेमान को भी आदेश देते हुए कहा, “और यदि तू अपने पिता दाउद की नाईं अपने को मेरे सम्मुख जान कर चलता रहे और मेरी सब आज्ञाओं के अनुसार किया करे, और मेरी विधियों और नियमों को मानता रहे, तो मैं तेरी राजगद्दी को स्थिर रखूँगा;
जैसे कि मैंने तेरे पिता के साथ वाचा बाँधी थी, कि तेरे कुल में इस्राएल पर प्रभुता करने वाला सदा बना रहेगा । परन्तु यदि तुम लोग फिरो, और मेरी विधियों और आज्ञाओं को जो मैंने तुम को दी हैं त्यागो और जा कर पराए देवताओं की की उपासना करो और उन्हें दण्डवत करो, तो मैं उन को अपने देश में से जो मैंने उन को दिया है, जड़ से उखाड़ दूंगा और इस भवन को जो मैं ने अपने नाम के लिए पवित्र किया है, अपनी दृष्टि से दूर करूंगा और ऐसा करूँगा कि देश देश के लोगों के बीच उसकी उपमा और नामधराई चलेगी ।”
(2 इतिहास 7:17-18) प्रभु यीशु ने कहा है, ” जो मुझसे प्रेम करता है वह मेरी आज्ञाओं को मानेगा…सवाल है क्या हम परमेश्वर के साथ चलना सीख रहे हैं या क्या हम परमेश्वर से प्रेम करते हैं यदि हाँ तो हम उसकी आज्ञाओं को भी ख़ुशी ख़ुशी मानेंगे और यदि हम ऐसा करें तो परमेश्वर हमें अपनी अद्भुत सामर्थ से भरेगा….
परमेश्वर के साथ चलना,दण्ड से छुटकारा है
..”अब जो मसीह यीशु में हैं, उन पर दण्ड की आज्ञा नहीं..क्योंकि वे शरीर के अनुसार नहीं बल्कि आत्मा के अनुसार चलते है” (रोमियों 8:1)
क्या ही सुंदर प्रतिज्ञा है अब जो मसीह में हैं उन पर दण्ड की आज्ञा नहीं…हम स्वभाव से ही पापी थे…सबने पाप किया और परमेश्वर की महिमा से रहित थे…हम सबके पापों की मजदूरी तो मृत्यु होनी थी…परन्तु परमेश्वर के अपार प्रेम से उसने हमसे प्रेम किया…हमें चुन लिया…और अपने एकलौते पुत्र के लहू से हमारे सारे पापों को धोकर हमें शुद्ध किया….इसलिए अब जो कोई मसीह यीशु में हैं वो एक नई सृष्टि हैं पुरानी बातें बीत गई…देखो सब कुछ नया हो गया है…
अब हम पर दण्ड की आज्ञा नहीं…परमेश्वर के साथ-साथ चलने वालों के लिए खुशखबरी है कि उन पर दण्ड की आज्ञा नहीं…दुनिया के शाप…दुनिया की ताकतें…काले जादू – टोने की शैतानी शक्तियाँ…उन पर कोई असर नहीं कर सकती। यहाँ तक कि हमनरक की आग से भी बच सकते हैं….
हम बाइबल में पाते हैं, जब प्रभु यीशु को क्रूस पर कीलों से लटकाया गया…उस समय प्रभु के इर्द गिर्द दो चोर डाकुओं को भी मृत्यु दण्ड के लिए लटकाया गया…जिन्होंने जीवन भर केवल चोरी की थी हत्या की थी डाका डाला था…उनमें से एक चोर तो प्रभु यीशु ठठ्टा कर रहा था…निंदा करके कह रहा था यदि तू प्रभु है तो अपने आप को बचा ले और हमें भी बचा…लेकिन प्रभु के उस छोटे अद्भुत उपदेश के कारण दूसरा चोर ने पूर्ण समर्पण के साथ प्रभु से विनती की…प्रभु जब तेरा राज्य आए तो मेरी भी सुधि लेना…जीवन भर पाप करने और अधर्म में जीवन जीने के बावजूद उसकी एक दिल से की गई प्रार्थना और प्रभु में आने के कारण उसे प्रभु ने अनुग्रह के कारण एक महान प्रतिज्ञा दी…अब तेरे ऊपर दण्ड की आज्ञा नहीं…मैं तुझसे सच कहता हूँ …आज ही तू मेरे साथ स्वर्गलोक में होगा…
फर्क नहीं पड़ता की हमारे प्रभु के साथ चलने की उम्र या समय सीमा की लम्बाई कितनी रही है परन्तु मायने इस बात से है की उसमें समर्पण कितना है…इस चोर ने जो यीशु मसीह के साथ विश्वास में चलने की समय सीमा कुछ पल ही रही है और उस चोर के पीढ़ी दर पीढ़ी के पाप और शाप एक पल में ही टूट गया…और उसे स्वर्ग प्राप्त हुआ…आज प्रभु का वचन हमें भी उसके साथ आत्मा के अनुसार चलने का आह्वान करता है…एक निमन्त्रण एक बुलाहट देता है….
परमेश्वर के साथ चलना, सिद्धता प्रदान करता है
जब अब्राम 99 वर्ष का हो गया, तब यहोवा ने उसको दर्शन देकर कहा, “मैं सर्वशक्तिमान ईश्वर हूँ; मेरी उपस्थिति में चल और सिद्ध होता जा” (उत्पत्ति 17:1-2)
परमेश्वर चाहता है की उस पर विश्वास करने वाला उसके साथ चलने वाला हर व्यक्ति उसके पुत्र प्रभु यीशु के जैसे सिद्ध हो जाए, परमेश्वर सिद्ध है… हमारे धार्मिकता के काम हमें सिद्ध नहीं कर सकते, लेकिन मात्र परमेश्वर के साथ चलना ही हमें सिद्धता प्रदान कर सकता है। परमेश्वर चाहते हैं कि हम सिद्ध होकर उससे बातें करें वो कहता है तू मुझसे मांग मुझसे बातें कर प्रार्थना कर और मैं तेरी सुनकर तुझे जवाब दूंगा, और वो गूढ़ भरी रहस्मयी बातें बताऊंगा जो तू अभी नहीं जानता।
अब्राहम परमेश्वर के साथ बुजुर्ग अवस्था में पूरी विश्वासयोग्यता के साथ चलने लगा और वेदी बना बनाकर परमेश्वर की उपासना करता था। और इस कारण एक दिन स्वयं परमेश्वर उसके घर आते हैं और अब्राहम अनजाने में परमेश्वर की पहुनाई करता है उन्हें भोजन परोसता है प्रभु उसके घर भोजन करते हैं और उसकी बूढी पत्नी सारा को आशीष देते हैं कि अगले वर्ष तू एक बेटे को प्राप्त करेगी। यह सब अब्राहम और उसकी पत्नी के लिए बड़े ही आश्चर्य की बातें थीं जैसे कोई स्वप्न हो…
और तब थोड़ी देर में ही परमेश्वर अपने इस धरती में आने का कारण, वो रहस्य अब्राहम को बतातें हैं… कि अब्राहम मैं इस धरती से करोड़ो करोड़ो किलोमीटर दूर स्वर्ग से एक काम के लिये आया हूँ… मैं उस शहर जहाँ तेरे रिस्तेदार रहते हैं उस शहर सदोम और गमोरा का पाप इतना बढ़ गया है कि मैं उस शहर को आग और गंधक से नाश करना चाहता हूँ… सुन तू मेरे साथ साथ चलता है मैं तुझ से कैसे कुछ छिपा सकता हूँ….
अब्राहम चाहता तो अपने भतीजे लूत से बदला लेने के लिए यह एक अच्छा मौका सोच सकता था…. लेकिन अब अब्राहम परमेश्वर के साथ साथ चलते चलते सिद्धता को प्राप्त कर रहा था…. वह तुरंत घुटने में आ कर अपने परमेश्वर से विनती करने लगता है.. वह उस शहर के लिए मध्यस्था करता है और प्रभु से कहता है यदि वहां कुछ धर्मी होंगे प्रार्थना करने वाले होंगे तो क्या आप उन्हें भी नाश कर देंगे। यहाँ हम परमेश्वर की अद्भुत
नम्रता देखते हैं, अब्राहम परमेश्वर से गिड़गिड़ाता है और पचास से कम करते करते दस धर्मी तक में आ जाता है। अब्राहम दस में आकर रुक जाता है लेकिन परमेश्वर उससे गुस्सा या क्रोधित नहीं हुआ (उत्पत्ति19:33) में लिखा है अब्राहम अपने घर लौट गया… ऐसा लगता है परमेश्वर अभी भी चाहता था कि शायद अब्राहम और थोड़ा कम कारवाता या और थोड़ी प्रार्थना करता तो शायद वह शहर या देश नाश नहीं होता। परमेश्वर हमें अपने साथ चलने की बुलाहट देता है ताकि हम सिद्ध होकर अपने देश को प्रार्थना करके बचा सकें आइये आज हम अपने देश के लिए प्रभु की सिद्धता में होकर प्रार्थना करें।
परमेश्वर के साथ चलना डर का अंत है
…यदि परमेश्वर हमारी ओर है, तो हमारा विरोधी कौन हो सकता है ? (रोमियों 8:31)
कल्पना करें एक स्कूल के छोटे बच्चे को गली के दो शरारती लड़के मिलकर परेशान कर रहे हैं । यह छोटा बच्चा बहुत ही डरा हुआ है…और तभी वह बच्चा मुड़कर देखता है, कि उसका पिता जो लंबा चौड़ा है और पूरे शहर का सबसे बड़ा पहलवान है, उसी मार्ग में आ रहा है…सोचिये इन शरारती लड़कों का क्या हाल होगा?? और उसके पुत्र के चहेरे में कैसी ख़ुशी होगी…जो अभी तक डरा सहमा था अब यह जानके के बाद की उसका पिता उसकी ओर से खड़ा है उस बच्चे की चाल कैसी होगी…शायद वह बच्चा ऐसा ही कहेगा…मेरा पिता मेरे साथ है तो मेरा विरोधी कौन हो सकता है??
परमेश्वर के साथ साथ चलने वाले भाइयों और बहनों हमारे लिए बड़े ही सौभाग्य की बात है कि, “ सारे संसार का सृष्टिकर्ता परमेश्वर हमारे साथ है, फिर हमें किस बात का डर…डर मनुष्य को अपाहिज बना देता है। डर और विश्वास एक साथ नहीं रह सकते। बाइबल डर शब्द के विलोम शब्द के रूप में विश्वास शब्द का प्रयोग करती है । प्रभु यीशु ने अनेकों बार कहा, डरो मत परन्तु विश्वास रखो । हमारे जीवन में या तो डर हावी होगा या विश्वास…दोनों एक साथ नहीं रहते जैसे अंधकार और उजियाला ।
यदि हम परमेश्वर के साथ-साथ चल रहे हैं तो, हमें पूर्ण विश्वास होगा कि हमारी हर परिस्थिति में सर्वशक्तिमान परमेश्वर का पूर्ण नियन्त्रण है । और वो हमारे लिए सब कुछ पूरा करेगा । फिर वो बातें चाहे आत्मिक हों या भौतिक, चाहे दृश्य हो या अदृश्य, वो हरेक आंधी और तूफान को आदेश देकर शांत कर सकता है । उसके लिए सब कुछ संभव है ।
यशायाह 43:1-2,5 में पमरेश्वर का वचन हमें आदेश देता है । हे इस्राएल, तेरा रचने वाला और हे याकूब तेरा सृजनहार यहोवा अब यों कहता है, “मत डर क्योंकि मैंने तुझे छुड़ा लिया है, मैंने तुझे नाम लेकर बुलाया है, तू मेरा ही है । जब तू जल में से होकर जाए, मैं तेरे संग संग रहूँगा और जब तू नदियों में होकर चले, तब वे तुझे डुबा न सकेगी । क्योंकि यहोवा तेरा परमेश्वर हूँ …मत डर क्योंकि मैं तेरे साथ हूँ ।”
हमें डरना नहीं है क्योंकि हम परमेश्वर के हैं । उसने हमें छुड़ाया है और हमें भली भांति जानता है वो हमें हमारा नाम लेकर बुलाता है…हमें डरना नहीं है क्योंकि स्वयं परमेश्वर हमारे साथ है । हमें डरना नहीं है क्योंकि स्वयं परमेश्वर ने हमसे वायदा किया है, कि वो हमारी कुछ भी हानि होने नहीं देंगे । हमें नहीं डरना है क्योंकि यह संसार अंत नहीं है और हम इस संसार में तो एक मुसाफिर है और उस दुनिया (स्वर्ग) के हैं जहाँ हम अनंतकाल उसके साथ बिताएंगे ।
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