अधिकांशत: देखा गया है कि बच्चों के बीच सेवकाई को लोग नजरअंदाज करते हैं और बच्चों की सेवकाई को अधिक ध्यान नहीं दिया जाता लेकिन बच्चों के बीच सेवकाई में जो समय निवेश किया जाता है वह कभी भी समय की बर्बादी नहीं है.
“बच्चे भविष्य की कलीसिया नहीं हैं बल्कि बच्चे आज वर्तमान की कलीसिया हैं.”
डी. एल. मूडी
बच्चों के लिए सेवकाई क्यों जरुरी है?
हमारे पूरे समाज में 40% बच्चें हैं और 60% वयस्क हैं. लेकिन 99% सेवकाई केवल वयस्क लोगों के बीच हो रही है और केवल 1% सेवकाई बच्चों के बीच की जा रही है.
1. बच्चे परमेश्वर के दिए हुए भाग (गिफ्ट) हैं (भजन संहिता 127:3) :-
जो हमें परमेश्वर ने दिया है एक वरदान के रूप में उसे संजोना और संवारना हर एक माँ बाप का और कलीसिया का कर्तव्य है.
एक बार परमेश्वर के दास डी. एल मूडी ने अपनी पत्नी से कहा था, आज मैंने ढाई लोगों को सुसमाचार सुनाया है…उनकी पत्नी ने पूछा वो कैसे…क्या तुमने दो आदमी और एक बच्चे को सुसमाचार सुनाया…तब परमेश्वर के दास ने कहा नहीं. आज मैंने दो बच्चों को और एक बुजुर्ग को सुसमाचार सुनाया.
बिलकुल सही है. जब हम बच्चों के बीच सेवकाई करते हैं वे लंबे समय तक गवाही का जीवन जी सकते हैं. अगर 10 साल की उम्र में एक छोटे लड़के को बचाया जाता है, तो वह अगले 60 वर्षों तक गवाही का जीवन जी सकता है.
यदि 20 वर्ष की आयु में एक युवक को बचाया जाता है. तो वह अगले 50 वर्षों तक गवाही का जीवन जी सकता है. यदि 50 वर्ष की आयु में एक वयस्क को बचाया जाता है, तो वह अगले 20 वर्षों तक गवाही का जीवन जी सकता है.
2. ये ही सबसे सही समय है (2 कुरिन्थियों 6:2) :-
कई बार हमें लगता है बच्चे हमारी बात समझेंगे नहीं इसलिए भी लोग बच्चों के बीच सेवकाई नहीं करते…मैं एक बाइबल की घटना आपको सुनाता हूँ….
मूसा की कहानी … बात उन दिनों की है जब इस्राएली लोग मिश्र देश में गुलाम थे और बड़े कष्ट को झेल रहे थे. उन दिनों वहां के राजा ने एक आदेश दिया की जितने भी इस्राएलियों के बेटे हों उन्हें पैदा होते ही मार डाला जाए. ऐसे समय में लेवी घराने के आम्राक नामक व्यक्ति के परिवार में एक सुन्दर बालक पैदा हुआ अम्राक की पत्नी का नाम यकोबेद था.
वे अपने बच्चे को किसी रीती से राजा से और सैनिकों से बचा कर रखे लेकिन जब वह तीन माह का हुआ तब उस बच्चे की मां ने परमेश्वर पर भरोषा करते हुए उसे एक टोकरी में अन्दर और बाहर राल लगाकर उसे नील नदी में बहा दिया…और उसी नदी में आगे राजा की बेटी राजकुमारी स्नान कर रही थी.
और उसने इस बालक को पाया और देखा वह बहुत सुन्दर है इसलिए उसने उस बालक को गोद लेना चाहा और निर्णय लिया कि इसे राजमहल में ही पालन पोषण होगा. और उसने उस बच्चे का नाम मूसा रखा. यह सब कुछ मूसा की बहन मरियम देख रही थी. उसने तुरंत राजकुमारी के अनुमति से उस बच्चे को दूध पिलाने के लिए एक स्त्री का इंतजाम करने विनती की.
और अपनी ही मां को उस बालक को दूध पिलाने के लिए बुला लाई. मूसा की मां को अपने ही बच्चे को दूध पिलाने के लिए मजदूरी मिलती थी. उसकी मां अपने बच्चे को जैसे जैसे वह बढ़ रहा था उसे सिखा रही थी. देख बेटा हम गुलाम है.
लेकिन तू इस राजमहल में रहता है. तुझे बड़े होकर हम इस्राएलियों की सुधि लेना होगा. यही कारण है वह जब जवान हुआ तब उसने मिश्र के राजमहल को तुच्छ जाना और अपने इस्राएली लोगों को आजाद करवाने के लिए एक महान अगुवा बन पाया. अत: यह न समझे कि बच्चे कुछ नहीं समझते…बच्चों की सेवकाई अति आवश्यक है.
3. ये प्रभु यीशु के मन की इच्छा है :-
(यूहन्ना 21:15) प्रभु यीशु ने पतरस से कहा,…मेरे मेमनों को चरा…प्रभु यीशु के पुनुरुत्थान अर्थात मृतकों में से जी उठने के पश्चात प्रभु ने देखा कि पतरस अपने मित्रों के साथ फिर से वापस अपने पुराने व्यवसाय में अर्थात मछली पकड़ने के लिए तिबिरियास झील में चला गया है.
प्रभु तड़के सुबह वहां पहुंचकर पतरस को बुलाता है. पतरस यीशु को जीवित देखकर अपनी परिस्थति को देखकर बहुत ही दुखी होता है. कि उसने प्रभु यीशु की आज्ञा पर खरा नहीं उतरा बल्कि सेवा छोड़ कर वापस मछली पकड़ने आ गया.
ऐसे समय में यीशु मसीह उस पर क्रोध नहीं करते न ही उसे डांटते हैं बल्कि उससे कहते हैं, पतरस क्या तू मुझसे प्रेम करता है. पतरस कहता है हाँ प्रभु मैं आपसे प्रेम करता हूँ. तब प्रभु यीशु अपने दिल की इच्छा को प्रगट करते हुए कहते हैं.
जा मेरे मेमनों को चरा. यदि यहोवा परमेश्वर (यीशु मसीह) हमारा चरवाहा है और हम भेड़ें हैं तो निश्चय रीति से हमारे बच्चे मेंमने हैं. इसलिए प्रभु चाहते हैं कि बच्चों के बीच में सेवकाई की जाए. उनकी आत्मा भी बचाई जाए.
4. उनके पास स्वीकार करने का मन होता है ( मरकुस 10:13-16)
प्रभु यीशु के पास बड़ी भीड़ आ रही थी क्योंकि वह लोगों को चंगाई देता था और स्वस्थ करता था. उसी समय लोग अपने बच्चों को भी उसके पास लाने लगे ताकि वह उन पर हाथ रखकर आशीष दें.
तब यीशु मसीह के चेले उन लोगों को जो अपने अपने बच्चे यीशु के पास ला रहे थे डांटने लगे. कि स्वामी को परेशान न करो. लेकिन यीशु ने अपने चेलों को डांट कर कहा, बच्चों को मेरे पास आने दो क्योंकि स्वर्ग का राज्य ऐसों ही का है.
बच्चों का मन एक पौधे के समान होता है उसे जैसे मोड़ेंगे वैसा ही मुड़ जाता है. मतलब वह अपनी गलती स्वीकार करके सीखने का मन रखता है. लेकिन वही पौधा जब एक पेड़ का रूप ले लेता है तब उसे मोड़ना बहुत कठिन होता है. वह टूट जाएगा लेकिन मुड़ेगा नहीं.
5. बच्चों के बीच सेवकाई करने से बच्चों को पाप से बचाएगा. :-
बच्चों का मन एक खेत के समान होता है, यदि हम खेत में अच्छे बीज बोते हैं तो उस खेत में अच्छी फसल ऊगती है लेकिन यदि कुछ नहीं बोते हैं तो वहां कांटे और झाड़ी उगती है. अर्थात यदि हम अपने बच्चे को अच्छी एवं बाइबल की बातें सिखाते हैं तो वे अच्छी बातें सीखकर अच्छे नागरिक बनते हैं लेकिन यदि हम नहीं सिखाते तो समाज और दुनिया गलत बाते सिखाने के लिए तैयार हैं.
6. बच्चों के बीच सेवकाई करने से बच्चे अच्छे मित्र बनाएंगे. :-
बुरी संगती अच्छे चरित्र को बिगाड़ देती है जैसा कि हम सब जानते हैं. लेकिन बच्चों के बीच सेवकाई करने से बच्चे बाइबल आधारित नियमों पर चलकर कलीसिया के लोगों के साथ मित्रता करते हैं जिससे उनका आत्मिक विकास भी होता है. इस प्रकार वे नशे और बुरी आदतों के गिरफ्त में नहीं पड़ते.
7. बच्चों के बीच सेवकाई करने से बच्चे दूसरों से प्यार करेंगे :-
यह पशु प्रवत्ति है की वह आप ही आप चरे लेकिन मानव वह है जो दूसरों के लिए मरे…मनुष्य एक सामजिक प्राणी है, इसलिए उसे दूसरों के साथ रहना और अपने गुणों और आशीषों को बांटना आना चाहिए. यह वह तब सीखता है जब उसे बचपन में सिखाया जाता है.
8. बच्चों के बीच सेवकाई करने से बच्चों की स्मरण शक्ति अच्छी होगी :-
बच्चों के बीच सेवकाई करते हुए उन्हें पवित्रशास्त्र की आयतों और वचनों को सिखाया और याद दिलाया जाता है जिससे उसकी स्मरण शक्ति प्रबल होती है और वह इसे अपनी उम्र भर याद रखता है. कहा भी गया है बच्चों को उसी मार्ग की शिक्षा दीजिये जिसमें उसे चलना है और वह बुढापे तक उसमें बना रहता है.
9. बच्चों के बीच सेवकाई से कलीसिया मजबूत होगी :-
जिस कलीसिया में बच्चों के बीच सेवकाई नहीं की जाती वह कलीसिया अधिक वर्षों तक जीवित नहीं रहती. मतलब उसमें मजबूती नहीं रहेगी यही कारण है. पाश्चात्य देशों में कलीसिया का पतन हो रहा है.
10. बच्चों के बीच सेवकाई से सेवकाई का दायरा बढ़ेगा :-
बच्चे परिवार के लिए स्वर्ग का द्वार हैं क्योंकि बच्चों के द्वारा माता पिता दोनों कलीसिया आते हैं. और वचन उनके परिवार में पहुँच कर आशीष का कारण बनता है. एक आदर्श बच्चे से बढ़कर माता पिता के लिए और कुछ भी बड़ा वरदान नहीं हो सकता.
11. बच्चों के बीच सेवकाई से परिवार मजबूत होगा :-
जिस प्रकार एक ऊचीं ईमारत या घर की मजबूती उसकी मजबूत नींव पर निर्भर करती है उसी प्रकार एक मजबूत परिवार की नींव उसकी अच्छी शिक्षा और परवरिश पर निर्भर होती है जो हम एक बच्चे को भली रीति से दे सकते हैं.
12. बच्चों के बीच सेवकाई से समाज में सुधार होगा :-
किसी ने क्या खूब कहा है, यदि समाज में बच्चों को सही शिक्षा दी जाए तो उस समाज में जेल खाने बंद हो सकते हैं. क्योंकि बच्चों को अच्छी शिक्षा दी गई तो वह समाज अपराध मुक्त समाज होगा. और एक आदर्श समाज का निर्माण होगा.
छोटे कदम एक दिन एक बड़े पद चिन्हों को बनाता है | Little feet will one day make big footprints.
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