दोस्तों आज हम चर्चा करेंगे कलीसिया की शिक्षा | What church must teach क्या सभी लोगों को सुसमाचार करना चाहिए, आइये देखते हैं.
कलीसिया की शिक्षा | What church must Teach
Doctrine of the Church | कलीसिया की शिक्षा
आज भारत में परमेश्वर के वचन के आधार पर कलीसिया का रोपण करना अति आवश्यक है. और जो कलीसिया पहले से उपस्थित हैं उन्हें बाइबल के आधारित होना चाहिए.
कलीसिया को अधिकार वहीँ से मिलता है. किसी मनुष्य के अनुसार से नहीं और नहीं ही कलीसिया किसी मनुष्य की सोच है. इसलिए इसे किसी मनुष्य की सोच पर या तत्व ज्ञान पर नहीं चलना चाहिए.
उसके सिद्धांत और अधिकार पूर्ण रूप से बाइबिल पर आधारित होना चाहिए. हमें कलीसिया के विषय में बाइबिल की समझ होना चाहिए.
बाइबिल जब कलीसिया के विषय में बातें करता है तो वह दो प्रकार से बातें करता है पहली विश्वव्यापी कलीसिया. और दूसरी स्थानीय कलीसिया.
कलीसिया की परिभाषा
मती 16:13-18 और मैं इस पत्थर पर अपनी कलीसिया बनाऊंगा: और अधोलोक के फाटक उस पर प्रबल न होंगे. जब प्रभु ने यह कहा था, यह पत्थर था या पतरस यह था प्रभु का कथन वचन जो एक चट्टान है
उस पर प्रभु अपनी कलीसिया बनाएंगे. अर्थात प्रभु यीशु मसीह की शिक्षाओं पर जब कलीसिया बनती है वह प्रभु के वचन के आधारित कलीसिया है उस पर अधोलोक के फाटक प्रबल नहीं होंगे. वो विश्वव्यापी कलीसिया है.
1 कुरु 2. मसीह कोने का पत्थर है. 1 कुरु 12:12 शारीरिक देह का उदाहरण देकर संत पौलुस कलीसिया की परिभाषा बता रहे हैं. जैसे एक शरीर है और विभिन्न अंग हैं उसी प्रकार कलीसिया है. इसी प्रकार तुम मसीह के अंग हो.
कलीसिया क्या है एक विश्व व्यापी है जिस हम एक बार में नहीं देख सकते. इसलिए वह अद्रश्य कलीसिया है. लेकिन दूसरी कलीसिया है स्थानीय कलीसिया. जिसे हम देख सकते हैं. कलीसिया मसीह की देह है.
एक दिन जब प्रभु बादलों पर आएगा हम वह विश्वव्यापी कलीसिया को देख सकेंगे जहाँ इब्रानियों में लिखे हुए गवाहों के बादल अर्थात हमसे पहले प्रभु में सो गए विश्वासियों से मिलेंगे और आमने सामने देखेंगे.
रोमियो की कलीसिया कैसे प्रारंभ हुई.
क्योंकि प्रेरितों के काम 2 अध्याय में जहाँ पवित्र आत्मा का उतरना हुआ वहां बहुत से लोग और कई भाषाओं के लोग आये हुए थे तो शायद वहां जो लोग रोमियो शहर से आये थे वहां प्रभु यीशु को ग्रहण किये और वापस जाकर सुसमाचार सुनाएं होंगे इस कारण वहाँ कलीसिया का रोपण हुआ था.
चर्च इसलिए है कि वह परमेश्वर की महिमा करें. इसके ऊपर हमने एक लेख लिखा है इस लिंक के द्वारा आप उसे पढ़ सकते हैं.
कलीसिया की जिम्मेदारी है कि वहां परमेश्वर की आराधना पर विशेष ध्यान दिया जाए. हमारा स्तुति रूपी बलिदान चढ़ाना. हमें कलीसिया में अंदरूनी भाग में ध्यान देना है.
इफिसियों के 4 अध्याय के अनुसार परमेश्वर की कलीसिया में 5 प्रकार के लोग होने चाहिए. और वे अन्दर एक दुसरे को प्रोत्साहित करें और हर एक अंग मतलब हर एक सदस्य मजबूत हो.
Edification of the People of God.
इसी प्रकार कलीसिया उन्नति करेंगी. और तीसरी बात आपको अपने बाहर वालों के लिए सुसमाचार सुनाना है. ministry to the out World कलीसिया में कोई भी ऐसा नहीं होना चाहिए जो केवल परमेश्वर के वचन को प्राप्त करें और कुछ भी न करें.
कोई भी व्यक्ति को आलसी नहीं होना चाहिए. वरदान प्राप्त किये हुए लोगों को बाहर भेजना. जो सामान्य विश्वासी हैं उन्हें बाहर जाकर एक गवाह बनना है अपने जीवन के द्वारा और अपने कार्यों के द्वारा.
कई लोग पूछते हैं क्या हरेक विश्वासी को इसलिए बुलाया गया है की बाहर जाकर सुसमाचार सुनाकर लोगों को चेलें बनाएं. मत्ती रचित सुसमाचार में लिखा है धरती और आकाश का सारा अधिकार मुझे दिया गया.
इसलिए तुम जाकर सारी सृष्टि के लोगों को सुसमाचार सुनाओं और चेले बनाओं और पिता पुत्र पवित्रात्मा के नाम से बप्तिस्मा दो. क्या यह आज्ञा हरेक विश्वासी को दी गई है?
इस महान आदेश के बाद क्या किसी चेले ने और प्रेरित ने किसी साधारण विश्वासी को कहा है कि बाहर जाकर कलीसिया रोपण करना है.
देखिये हर विश्वासी सुसमाचार सुनाना है अपने मित्रों को अपने मोहल्ले के लोगों को लेकिन क्या हर एक व्यक्ति कलीसिया रोपण कर सकता है.
इसके लिए हमें सन्दर्भ देखना है क्या परमेश्वर का वचन हमें कहता है. अपनी गवाही देना और कलीसिया रोपण में बहुत अंतर है.
जब कोई नया विश्वासी ही कलीसिया रोपण करने लगता है जो ज्यादा कुछ नहीं जानता और अधीनता नहीं सीखा है ऐसे अवसर में वह शैतान की सी समस्या में पढ़ सकता है मतलब गिर सकता है.
वहां चंगाई हो सकती है छुटकारा हो सकता है लेकिन केवल चंगाई और छुटकारा एक उत्तम कलीसिया का गुण नहीं है. क्योंकि प्रभु ने कहा था, जो लोग प्रभु प्रभु कहते हैं वे सभी स्वर्ग राज्य के वारिस नहीं होंगे.
वो कहेंगे हमने तो दुष्टात्मा निकाला और बहुत से लोगों को चंगाई दी प्रभु कहेंगे दूर हो जाओ कुकर्मी लोगों मैं तुम्हें नहीं जानता. मतलब केवल चमत्कार एक उत्तम कलीसिया की पहचान नहीं है.
कलीसिया कैसी होनी चाहिए उसके लिए प्रभु का आत्मा ने एक पुस्तक लिखवाई है उसका नाम है प्रेरितों के काम. इसलिए यदि कोई देखना चाहता है कि कलीसिया कैसी होनी चाहिए उसे पहली शताब्दी की कलीसिया कैसी थी.
और यदि कोई यह देखना चाहता है कि हमें कैसी सेवा करना चाहिए तो उसे प्रभु यीशु मसीह के जीवन को देखना चाहिए.
मतलब कलीसिया पहले शताब्दी की कलीसिया के जैसे होना चाहिए और एक सेवक को (पास्टर) को प्रभु यीशु मसीह के समान सेवा करना चाहिए.
दोस्तों यदि आप अपने दसवांश और भेंट के रूप में इस सेवा में हमारी सहायता करना चाहते हैं तो हम इसकी सराहना करते हैं. आप नीचे दिए गए बारकोड के जरिये यह सहायता राशि भेजकर ऐसा कर सकते हैं प्रभु आपके इस कार्य के लिए आपको बहुत आशीष दे.
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