दोस्तों आज हम सुनेंगे बाइबिल में एहूद की कहानी | Bible Story यह कहानी इस्राएल के एक बहादुर न्यायी की घटना है. न्यायियों 3
बाइबिल में एहूद की कहानी | Bible Story
एहूद की कहानी हम पाते हैं न्यायियों की पुस्तक के तीसरे अध्याय में. एहूद इस्राएलियों का दूसरे नंबर का न्यायी था. जब इस्राएलियों ने परमेश्वर की दृष्टि में घृणित काम और बुरा काम किया,
अर्थात परमेश्वर की आराधना करना छोड़ दिया तब परमेश्वर ने इस्राएलियों के शत्रु राजा एग्लोन जो मोआब देश का राजा था उनके अधीन कर दिया.
और इस रीती से मोआबी लोगों ने और वहां एग्लोन राजा ने इस्राएलियों की दुर्गति की बाइबिल बताती है उन्होंने 18 वर्षों तक लगातार इस्राएलियों पर अत्याचार किया.
तब 18 वर्षों के बाद जब इस्राएलियों ने अपने परमेश्वर यहोवा की दोहाई दी तब परमेश्वर ने एक व्यक्ति को उनके छुटकारे के लिए खड़ा किया जिसका नाम एहूद था.
एहूद बचपन से ही बाएँ हाथ से काम करने वाला था. जिसे हम लेफ्ट हेन्डड कहते हैं. उन दिनों बाएं हाथ वाले व्यक्ति उतना सम्मान नहीं किया जाता था.
और उसे नाकारा जाता था. इसलिए एहूद को भी लोग अच्छी दृष्टि से नहीं देखते थे. उन दिनों हर व्यक्ति को राजा के पास कुछ न कुछ भेंट देने जाना पड़ता था.
और इस कारण लोगों की कमाई और अनाज के एक बड़ा भाग राजा को दे दिया जाता था. इस्राएली लोग अपने ही देश में बहुत गरीबी और कंगाली की हालत में जी रहे थे.
और सभी ऐसी परिस्थिति से छुटकारे के लिए किसी अगुवे का इन्तजार कर रहे थे. एक दिन एहूद ने एक तलवार को अपने दाहिने और कपड़े के नीचे छुपाकर राजा को भेंट चढाने के लिए चला.
क्योंकि राजा के महल में सुरक्षा कर्मचारी लोग लोगों के बाएँ हाथ की ओर ही देख रहे थे. क्योंकि सभी लोग अपने बाएँ हाथ की ओर ही तलवार या हथियार रखा करते थे.
इसलिए कोई भी सुरक्षा कर्मचारी ने एहूद की तलवार को नहीं देख पाए. और इस रीती से एहूद हाथों में भेट लेकर और कपडे में छिपी हुई तलवार लेकर राजा के महल तक जा पहुंचा.
और जब उसकी भेंट देने की बारी आई तब उसने राजा से कहा, ‘हे राजा, परमेश्वर की ओर से मुझे एक बात कहनी है, इस पर राजा ने सभी सुरक्षा कर्मचारियों को कुछ देर के लिए बाहर जाने को कहा,
जैसे ही सभी कर्मचारी महल के बाहर गए तभी एहूद ने अपनी तलवार जो उसने दांये हाथ की और छिपाकर रखी थी निकालकर उस मोटे राजा एग्लोन के पेट में घुसा दिया.
तलवार राजा के पेट के आर पार निकल गई. और तभी एहूद बालकनी से निकलकर और दरवाजे पर ताला लगाकर भाग गया.
और पहाड़ पर जाकर नरसिंगा फूंका और लोगों को एकत्र करके सभी मोआबी लोगों को मारकर अपने देश को आजाद करवा लिया. इसरीति से वे लोग अगले 80 वर्षों तक आजादी में रहकर परमेश्वर की आराधना और सेवा करते रहे.
इस कहानी से हम क्या सीखते हैं.
जिस प्रकार इस्राएलियों ने परमेश्वर की सेवा नहीं की और अट्ठारह वर्षों तक मोआब के राजा एग्लोन की सेवा करने के लिए छोड़ दिया. (न्यायियों 3:12-14)
उसी प्रकार जब हम परमेश्वर की सेवा करने से भागते हैं तो परमेश्वर हमें लोगों की सेवा करने के लिए छोड़ देता है….
जब हमें दुःख होता है तो हमारा प्रभु परमेश्वर भी दुखी होता है.
(3:15) लिखा है जैसे ही इस्राएलियों ने परमेश्वर की दोहाई दी तो परमेश्वर ने एहुद को सामर्थ्य देकर उपाय किया…
ऐसा लगता है जैसे परमेश्वर 18 वर्षों से इन इस्राएलियों की दुहाई का इंतजार कर रहा था. अपने बच्चो के दुःख को देखकर वो भी दुखी था. दुःख की बात है इस्राएलियों को 18 लगे यह स्मरण करने में की उन्हें परमेश्वर की जरूरत है.
समस्याए इसलिए नहीं आती क्योंकि वो हमसे नफरत करता है बल्कि इसलिए आती हैं क्योंकि कहीं न कहीं हम गलत रास्ते में होते हैं. लिखा है उसकी लाठी और उसके सोंटे से मुझे शान्ति मिलती है.
Conclusion | निष्कर्ष
एहुद की कहानी से समझ में आता है कई बार सफलता आपके दरवाजे नहीं खटखटाएगी बल्कि हमें सफलता का दरवाजा जाकर खटखटाना पड़ेगा. इसके पीछे परमेश्वर बड़ी ही शान्ति से काम कर रहा था.
लेकिन दिखाई नहीं दे रहा था. परमेश्वर ने इन साधारण इस्राएलियों को इतना बल दिया की वे एहुद के साथ मिलकर बड़े बड़े शूरवीर जैसे मोआबियों को मार गिराया.
इस बात को एहुद भली भाँती समझ गया था इसलिए उसने जब पहाड़ी में नरसिंगा फूंका तो कहा, मेरे पीछे पीछे चले आओ क्योंकि यहोवा ने तुम्हारे मोआबी शत्रुओं को तुम्हारे हाथ में कर दिया है. (3:28)
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