दाऊद और बर्ज़िल्लै की कहानी | Faithful Friend in bible

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कौन था गिलादी बर्ज़िल्लै? आज हम बाइबल कहानी हिंदी में सीखेंगे बाइबल से प्रेरणा दायक कहानी, दाऊद और बर्ज़िल्लै की कहानी | Faithful Friend in bible | आज का बाइबिल पात्र

दाऊद और बर्ज़िल्लै की कहानी | Faithful Friend in bible

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दोस्तों बर्ज़िल्लै की कहानी, एक ऐसे बाइबिल पात्र जिनसे जीवन की शिक्षा मिलती है. यह दाऊद के जीवन से जुड़ी बाइबल कहानी है. तो आइये शुरू करते हैं और बाइबल से प्रेरणा पाते हैं.

बात उन दिनों की है जब इस्राएल के राजा दाऊद के विरोध में उसका ही एक पुत्र अबशालोम विद्रोह करने लगा.

उसने छल से राज्य की प्रजा को अपनी ओर कर लिया. वह लोगों से कहा करता था, यदि मैं राजा होता तो मैं तुम्हारे लिए ऐसा करता या वैसा करता आदि.

और इस रीती से उसने राज्य के लोगों का मन मोह लिया. और पूरे राज्य को हथियाने के लिए सडयंत्र करने लगा.

जब यह बात राजा दाऊद को पता चला तो राजा दाऊद अपने कुछ लोगों के साथ राज्य से अपनी जान बचाकर भागा और वह जंगल जंगल भटकने लगा.

यह राजा दाऊद के लिए बहुत कठिन दौर था, क्योंकि इस समय उसके बहुत से लोगों ने उसे छोड़ दिया. और राजा को भूखा प्यासा जंगल में बहुत दिनों तक भटकना पड़ा.

लेकिन यरूशलेम राज्य में कुछ लोग ऐसे थे जो राजा के प्रति अभी भी वफादार थे और उसे याद करते थे. उनमें से एक व्यक्ति था गिलादी बर्ज़िल्लै

गिलादी बर्ज़िल्लै रोगलीम नामक गाँव में रहने वाला व्यक्ति था. उसे लगा इस समय उसके राजा को उसकी आवश्यकता है.

और मुझे इस अवसर पर उसके लिए कुछ करना चाहिए. इसलिए उसने जो उससे हो सका वो लेकर जंगल में राजा दाऊद के पास गया.

जैसे चारपाइयां, तसले मिट्टी के बर्तन, गेहूं, जव, मैदा, लोबिया, मसूर, चबेना, मधु, मक्खन, भेड़-बकरियां, और गाय के दही का पनीर,

दाऊद और उसके संगियों के खाने को यह सोचकर ले आए, कि जंगल में वे लोग भूखे प्यासे और थके मांदे होंगे. (2 शमूएल 17:28-29)

इसके बाद राजा दाऊद ने अपने लोगों को तैयार किया और एक सेना बनाकर फिर अबशालोम के विरुद्ध चढ़ाई कर दी और विजयी हुआ.

जब वह वापस अपने राज्य में शासन करने जा रहा था तो दाऊद ने गिलादी बर्ज़िल्लै को भी अपने साथ ले जाना चाहा,

लेकिन उस समय तक गिलादी बर्ज़िल्लै 80 वर्ष का बुजुर्ग था इसलिए उसने विनम्रता पूर्वक यह कहकर मना कर दिया कि अब मैं बुजुर्ग हूँ

और राजमहल के गीत संगीत और नृत्य उसके किसी काम के नहीं. अपने लोगों के बीच में रहना चाहता है और उसके पुरखाओं की ज़मीन पर मिटटी चाहता है.

वह स्वयं आदर सत्कार पाना न चाहा बल्कि उसने अपने स्थान में एक जवान व्यक्ति को राजा दाऊद की सेवा के लिए भेजा. जिसका नाम था किम्हान.

जब राजा दाऊद बुजुर्ग हुआ और गिलादी बर्ज़िल्लै अपने पुरखाओं के ज़मीन में सो चुका था अर्थात मर चुका था,

उस समय राजा दाऊद ने अपने पुत्र राजा सुलेमान को राजगद्दी सौंपते हुए कुछ विशेष हिदायद दी. और उस समय में उसने गिलादी बर्ज़िल्लै के भले कामों को स्मरण किया

और कहा, फिर गिलादी बर्जिल्लै के पुत्रों पर कृपा रखना, और वे तेरी मेज पर खाने वालों में रहें, क्योंकि जब मैं तेरे भाई अबशालोम के साम्हने से भागा जा रहा था, तब उन्होंने मेरे पास आकर वैसा ही किया था. (1 राजा 2:7)

विचार करें गिलादी बर्जिल्लै के पुत्र दुनिया के सबसे बुद्धिमान राजा सुलेमान के सम्मुख बैठ कर उसकी मेज में दिन में तीन बार भोजन किया करते होंगे…क्या ही सम्मान की बात है…गिलादी बर्जिल्लै चाह कर भी अपने जीवन भर कार्य करके भी अपने बच्चों को ऐसा सम्मान नहीं दिलवा सकता था. लेकिन उसकी सही समय में की गई भलाई को परमेश्वर ने नहीं भूला और इस रीती से उसके बच्चों का भविष्य सुरक्षित और सुनहरा हो गया.

बाइबिल की इस बेहतरीन घटना हमें बहुत कुछ शिक्षा देती है. भलाई करने की कोई उम्र नहीं होती…

गिलादी बर्जिल्लै 80 वर्ष की बुजुर्ग अवस्था में भी भलाई किया. जो कुछ कार्य हमें मिले उसे हमें शक्ति भर करना चाहिए. परमेश्वर इसका प्रतिफल अवश्य देते हैं.

हमें हमेशा सच्चाई का साथ देना चाहिए. गिलादी बर्जिल्लै ने नए राजा अबशालोम का साथ नहीं दिया वरन अपने पुराने राजा दाऊद के प्रति विश्वासयोग्य बना रहा.

सच्चे मित्र और सच्चे रिश्तेदार बुरे दिनों में और संकट के दिनों में पहचाने जाते हैं.

जब पूरे राष्ट्र के सभी लोग झूठे और धोखेबाज राजा अबशालोम का साथ दे रहे थे उस समय गिलादी बर्जिल्लै अपने राजा दाऊद का विश्वासयोग्य मित्र बनकर खड़ा रहा.

और उसने यह कार्य नि:स्वार्थ भाव से किया उसका प्रतिफल भी पाना नहीं चाहा जब उसे सम्मान मिलने का समय था उसने जवान व्यक्ति को आगे कर दिया. आज ऐसे खरे लोगों की बहुत जरूरत है.

गिलादी बर्जिल्लै की कहानी हमें एक सच्चे नि:स्वार्थ मित्र की मिशाल देती है.

आइये हम भी जो कुछ करें ऐसे करें जैसे प्रभु के लिए करते हैं और क्योंकि हम जानते हैं कि प्रभु में किया हुआ परिश्रम व्यर्थ नहीं होता…(1 कुरु. 15:58)

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