दोस्तों आज हम एक बहुत ही जरूरी संदेश को सुनेगे जिसका टाइटल है कैसे जाने आप प्रभु में बढ़ रहें हैं कि नहीं | How to Know you are Growing in the Lord तो आइये शुरू करें .
कैसे जाने आप प्रभु में बढ़ रहें हैं कि नहीं | How to Know you are Growing in the Lord
Introduction | परिचय
प्रभु में बढ़ना एक जीवन भर चलने वाली प्रक्रिया है. जिसे हम आत्मिक परिपक्वता भी
कह सकते हैं. वो व्यक्ति जो प्रभु यीशु को अपना उद्धारकर्ता मानकर ग्रहण करता है.
उसके जीवन में यह एक लक्ष्य होता है कि वह प्रभु में बढ़ें और परमेश्वर के साथ एक गहरे संबंध बनाते हुए उसके साथ साथ चल सके, जैसा बाइबिल के हीरो लोगों ने किया और आशीष पाए.
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Definition of Growing in the Lord | आत्मिक विकास क्या है?
प्रभु यीशु में बढ़ना मतलब उसके स्वभाव में उसके चरित्र में बढ़ना होगा जैसा वह सोचता था वैसे सोचना और जैसे वह कार्य करता था वैसे ही कार्य करना.
इसे हम एक पौधे के रूप में देख सकते हैं बाइबिल में लिखा है, पर आत्मा का फल प्रेम, आनन्द, मेल, धीरज, और कृपा, भलाई, विश्वास, नम्रता, और संयम हैं; (गलतियों 5:22-23)
यदि आत्मा का फल हमारे अन्दर लगना है तो हमें जड़ की ओर ध्यान देना होगा. बाहर फल दिखाई देता है लेकिन उन फलों का मूल कारण आत्मिक जड़ है.
परिणाम या result तो फल है लेकिन अच्छे परिणाम या अच्छे फल को पाने के लिए उसकी जड़ में अच्छी मेहनत करना होगा.
बाइबिल कहती है… जैसे तुम ने मसीह यीशु को प्रभु करके ग्रहण कर लिया है, वैसे ही उसी में चलते रहो. और उसी में जड़ पकड़ते और बढ़ते जाओ; और जैसे तुम सिखाए गए वैसे ही विश्वास में दृढ़ होते जाओ, और अत्यन्त धन्यवाद करते रहो.
(कुलुस्सियों 2:6)
Importance of Growing in the Lord in Christian LIfe | प्रभु में बढ़ने की महत्ता
हम सभी बढ़ने और फलवंत होने के लिए बनाए गए और बुलाए गए हैं. (यूहन्ना 15:16) जिस प्रकार एक बच्चा यदि नहीं बढ़ता
और परिपक्व नहीं बनता तो उसके माता पिता को चिंता होने लगती है जो होनी भी चाहिए. उसके लिए वे डॉक्टर के पास जाते हैं. व्यायाम करवाते हैं.
पौष्टिक भोजन देते हैं. उसी प्रकार यदि कोई व्यक्ति प्रभु में हो और प्रभु में बढ़ें नहीं तो उसे और उसके आत्मिक अगुवों को चिंता होनी चाहिए.
और उसे भी आत्मिक पौष्टिक भोजन देने की आवश्यकता है. बाइबिल वाणी वेबसाईट वही आत्मिक पौष्टिक भोजन देने का काम कर रही है.
The Process of Growing in the Lord | प्रभु में बढ़ने की प्रक्रिया
यह एक नवजात शिशु के समान है इसलिए बाइबिल कहती है जैसे नये जन्मे हुए बच्चों की नाईं निर्मल आत्मिक दूध की लालसा करो, ताकि उसके द्वारा उद्धार पाने के लिये बढ़ते जाओ. (1 पतरस 2:2)
एक नवजात शिशु को बढ़ने के लिए केवल मां का शुद्ध दूध ही चाहिए उसी प्रकार जब कोई व्यक्ति प्रभु को ग्रहण करता है उसे वैसे ही भूख और प्यास के साथ प्रभु में बढ़ने की लालसा करना चाहिए.
प्रार्थना और आराधना – प्रभु में बढ़ने के लिए लगातार प्रतिदिन प्रार्थना के लिए समय निकालना चाहिए. और एक उत्तम समय प्रार्थना में बिताना चाहिए.
बाइबिल मनन और अध्ययन – पवित्र शास्त्र का एक भाग लेकर उसे पढ़कर और विचार करें कि आपसे वह क्या बातें कर रहा है और कौन सी आज्ञा है जिसे आपको करके प्रभु में बढ़ना है.
आज्ञाकारिता – परमेश्वर को बलिदान चढ़ाने से कहीं उत्तम लगता है कि लोग उसकी बात मानें अर्थात उसकी आज्ञा का पालन करें जो भी ऐसा करता है वह प्रभु में परिपक्व होता है और प्रतिफल पाता है.
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Signs of the Growing in the Lord | प्रभु में बढ़ते व्यक्ति के चिन्ह
प्रभु में बढ़ने के अनेक चिन्ह होते हैं उनमें से कुछ 7 चिन्ह यहाँ दिए गए हैं.
1. जैसे जो व्यक्ति प्रभु में बढ़ने लगता है वह परमेश्वर के वचन को गहराई से समझने लगता है और उसे अपने जीवन में लागू करने हेतु भरसक प्रयत्न करने लगता है.
जिस प्रकार भजन संहिता 1 में लिखा है ऐसा व्यक्ति यहोवा की व्यवस्था से प्रसन्न रहता है, और बुराई से दूर रहने लगता है.
2. ऐसा व्यक्ति प्रार्थना, अराधना और बाइबिल अध्ययन में ज्यादा समय बिताने लगता है और खुश ऐसे कामों में खुश होता है.
3. वह पापों में जयवंत होने लगता है और लोगों को क्षमा करके उनके साथ अच्छा सम्बन्ध बनाने का प्रयत्न करता है.
4. वह कठिन परिस्थिति में भी आनन्दित रहने लगता है और धीरज धरने लगता है.
5. वह यीशु के समान स्वभाव रखता है और वैसे ही कामों को करता है.
6. वह अपने आपसी विश्वासियों के साथ और बाहर वालों के साथ भाईचारे का स्वभाव रखने लगता है.
7. वह बात बात में कुडकुडाना बंद कर हर बातों में धन्यवादी ह्रदय रखने लगता हैवह सही गलत को समझना शुरू कर देता है.
वह सांसारिक अभिलाषाओं और असफलताओं में निराश नहीं होता बल्कि हमेशा प्रसन्नचित्त रहता है.
वह अपने अन्दर सुसमाचार सुनाने की तीव्रता और जरूरत को महसूस करने लगता है. और समय बर्बाद करना बंद कर देगा.
आत्मिक उन्नति करने वाला व्यक्ति अपने सारी आशीषों में और जो कुछ उसके पास है उसमें उदार भी होता है दूसरों की भलाई के लिए वह देता है.
आत्मिक उन्नति की बाधाएं या रुकावटें | The challenges of Growing in the Lord
प्रभु में बढ़ने में कुछ बाधाएं भी हैं यदि हम इन्हें जानते हैं तो हम इन्हें अलग करके आत्मिक रीति से बढ़ोत्तरी पा सकते हैं जैसे:-
आत्मिक घमंड – यह एक बहुत common लेकिन खतरनाक रुकावट है. यह स्वयं को समझ में नहीं आती.
कई बार मसीही परिवार में पैदा हुए लोग या एक लम्बे समय से मसीहियत में चले लोगों के अन्दर एक शैतान कुछ ऐसा गलत समझ या सोच डालता है.
कि उन्हें सब कुछ मालूम है उन्हें अब प्रभु में बढ़ने की आवश्यकता नहीं है. और ऐसा घमंड ही उन्हें ठोकर खिलाता है और पतन की या गिरावट की ओर ले जाता है.
Distraction या ध्यान भटकाव – यह कई कारणों से हो सकता है जैसे जीवन में अनुसासन की कमी. आज कल भाँती भाँती के गैजेट्स जैसे मोबाइल आदि
जिसके कारण एक व्यक्ति का अधिकांश समय उसमें चला जाता है और वे आत्मिक उन्नति के लिए समय ही नहीं दे पाते. यह भी शैतान की चाल है.
आत्मिक युद्ध – आत्मिक युद्ध क्या है? कई बार मसीही लोगों के जीवन में एक आत्मिक युद्ध चलता है जो शैतान की ओर से होता है जैसे शारीरिक रोग,
कमजोरी या लगातार तंग हालात या लगातार बिना कारण की व्यस्तता आदि ताकि हम आत्मिक रीती से नहीं बढ़ सकें.
इन सभी अनावश्यक आकर्षण में फंसने का और प्रभु से दूर होने का दुष्परिणाम भयानक होता है.
Conclusion
एक व्यक्ति जब प्रभु में बढ़ता है या आत्मिक रीती से बढ़ता है तो वह यीशु मसीह की डील डौल में बढ़ने लगता है.
जिस प्रकार बाइबिल कहती है तुम सारे आत्मिक ज्ञान और समझ सहित परमेश्वर की इच्छा की पहचान में परिपूर्ण हो जाओ
ताकि तुम्हारा चालचलन प्रभु के योग्य हो. और वह सब प्रकार से प्रसन्न हो. (कुलुस्सियों 1:10)
विश्वास करते हैं यह लेख कि How to Know you are Growing in the Lord पढ़कर आशीष प्राप्त हुई होगी कृपया कमेन्ट करके अवश्य बताएं आप हमारे हिंदी बाइबिल स्टडी app को गूगल प्ले स्टोर से डाउन लोड आप इस लिंक से उस लेख को पढ़ सकते हैं.. हमारे इन्स्ताग्राम को भी फोलो कर सकते हैं…
आपको धन्यवाद है। ये विषय बहुत सहज र प्रभावकारी तरिके से बनिया गया र सेवाकाई मे लाभदायक हुआ है। प्रभु परमेश्वर आपको आशिष दे।
बहुत बहुत धन्यवाद फिलिप तमांग जी आपके अच्छे शब्दों के लिए प्रभु आपको बहुत आशीष दे….