दोस्तों आज मैंने एक कहानी लिखी है जिसका नाम मैंने दिया है पति पत्नी की मजेदार कहानी | Life Partner the Best majedar kahani in hindi ये हिंदी कहानी एक नव विवाहित जोड़े की है. इस कहानी को आप मेरे पॉडकास्ट में सुन भी सकते हैं तो आइये शुरू करते हैं.
पति पत्नी की मजेदार कहानी | Life Partner the Best majedar kahani in hindi
सुबह नौ बजे राजीव चौक के मैट्रो स्टेशन में उस भीड़ भाड़ भरे माहौल में सीडियों के किनारे राहुल अपना सिर नीचे किये हुए बड़ा उदास होकर अपने एक मित्र का इन्तजार कर रहा था.
उसी समय सुनील आता है और राहुल के कांधे में हाथ मारता हुआ पूछता है, अरे यार राहुल तूने तो हद ही कर दी. तेरी शादी को अभी एक सप्ताह भी नहीं हुआ और तू फिर से जॉब में ऑफिस जा रहा है.
यार पत्नी के साथ छुटियाँ मना, कहीं घूमने जा, भाभी को भी दिल्ली या देहरादून दिखा घूम फिर मौज कर….सुनील बोला जा रहा था लेकिन राहुल था कि अपना सिर उठा ही नहीं रहा था.
यह देखकर सुनील ने गम्भीर होकर पूछा यार सब कुछ ठीक तो है न तू ऐसा उदास क्यों दिख रहा है. राहुल तब भी चुपचाप था. यह देखकर सुनील ने कहा, तबियत तो ठीक है न और भाभी यार तू बोलता क्यों नहीं…घर में सब ठीक तो है ना…???
राहुल ने गहरी साँसे लेकर धीरे से बुदबुदाते हुए बोला. यार बहुत बड़ी गलती हो गई…अनीता मेरे जैसे नहीं है. वो मोर्डन नहीं है…गाँव की है, अच्छी अंग्रेजी नहीं जानती…उसका रहन सहन उसका स्वभाव….
यार हमेशा बाइबिल पढना हमेशा प्रार्थना और प्रभु प्रभु कहना यार ये भी कोई जिन्दगी है. तीन दिन में ही परेशान हो गया हूँ. गले की हड्डी हो गई है वो मेरे लिए.
मेरी तो जैसे जिन्दगी ही बर्बाद हो गई है. सुनील ने कहा, अरे तू भी तो क्रिस्चियन है न?
हाँ हूँ तो सही लेकिन हम लोग बड़े दिन में और ईस्टर आदि में ही चर्च जाते हैं. यार हर समय बाइबिल की बातें और यह सब कुछ दिखावा मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगता…
लगता है जैसे मैं अपने घर में नहीं किसी चर्च में रह रहा हूँ. सुनील ने दिलासा दिलाते हुए कहा, सब कुछ ठीक हो जाएगा यार. कुछ समय दे भाभी को नई नई है दिल्ली में सब कुछ सीख जाएगी….
राहुल ने बात काटते हुए कहा चल ऑफिस देर हो रही है.
आज राहुल और अनीता को तीन माह हो चुके हैं लेकिन राहुल अलग कमरे में सोता है, और किसी भी तरह अनीता के सामने नहीं आना चाहता.
घर से बाहर जाते समय माँ से चिल्लाकर कहता है माँ मुझे देर हो जाएगी वापस आने में आप लोग खाना खाकर सो जाना मुझे एक जरूरी मीटिंग है. ये तो उसका रोज का बहाना हो गया था.
अनीता जब भी पानी या चाय देती तो राहुल उसे ऐसे सलीके से गिलास या कप को पकड़ता कि कहीं उंगलियाँ स्पर्श न हो जाएं.
अनीता हर वो प्रयास करती की कैसे वो राहुल को खुश रखे माँ का ध्यान रखती सुबह से शाम तक घर को सजाने संवारने में लगी रहती. युट्यूब से देखदेखकर बढियां से बढ़िया खाना बनाने की कोशिश करती.
आज शाम राहुल गाजर का हलवा खाते हुए जोर जोर से अपने ऑफिस के किसी व्यक्ति से बाते कर रहा था. माँ ने ऊँची आवाज में कहा अरे घर में तो कम से कम शान्ति से खाया कर ऑफिस को घर में मत लाया कर. गाजर का हलवा ठंडा हो जाएगा.
तभी माँ को चुप कराने के लिए तुरंत राहुल ने कहा, माँ बहुत बढ़िया हलवा बनाया है आपने….माँ ने कहा मैंने नहीं बहु ने बनाया है.
यह सुनकर तो राहुल के जैसे सांप सूँघ गया…वह चुपचाप अपना फोन लेकर डाइनिंग हॉल की और चला गया और फाइलें पलटने लगा.
माँ को अंदाजा तो था कि इन दोनों के बीच कुछ तो पक रहा है जो ठीक नहीं है. माँ जानती थी कि राहुल बचपन से जिद्दी है. माँ भी सोच रही थी कि राहुल और अनीता को कुछ समय चाहिए धीरे धीरे शायद सब कुछ ठीक हो जाएगा.
वो अनीता से बहुत प्यार करती थी. कई बार कई मामलों में समझाने के लिए शब्द कम पड़ जाते हैं.
क्योंकि इतने दिनों में अनीता ने अपनी सासु माँ को अपनी सगी माँ से बढ़कर प्यार किया था क्योंकि अनीता ने अपनी माँ को पचपन में खो दिया था.
पिता ने ही माँ और बाप दोनों का प्यार दिया था. और उसे शादी के समय बोले गए पिता के वो शब्द भी अच्छे से याद थे. जो उन्होंने आंसू बहाते हुए बिदाई के समय कहे थे.
“बिटिया अब से ससुराल ही तेरा घर है और सास ससुर ही तेरे माता पिता.”
अनीता अपना कर्तव्य निभाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही थी. लेकिन राहुल का यह स्वभाव उसे हर पल कांटे के जैसे चुभ रहा था, वो अपने घर में ही ऐसे महसूस कर रही थी जैसे वो राहुल के लिए बोझ है.
अनीता ने ठान लिया कि अब वो ज्यादा चुप नहीं रहेगी वो इस विषय में राहुल से खुल के बात करेगी. कि क्या कमी है मुझमें क्यों वो एक ऐसे गुनाह की सजा सह रही है जो उसने कभी की ही नहीं.
वो ऐसा सोच ही रही थी कि राहुल ने चिल्लाया माँ ऑफिस का टिफिन लगा दिया है क्या?
अनीता ने टिफिन उठाकर राहुल की ओर बढाते दिया लेकिन जैसे ही राहुल ने टिफिन का हेंडल पकड़ा अनीता ने उसका दूसरा हिस्सा नहीं छोड़ा और बोली मैं आपसे कुछ बात करना चाहती हूँ.
और भरे हुए गले से आंसू बहाते हुए बोली यदि मैं तुम्हें पसंद नहीं हूँ तो मुझे मेरे पापा के घर छोड़ आओ.
राहुल कुछ बोल नहीं पाया बस धीरे से बोला …ओके देखता हूँ…..
अनीता की ये बाते जैसे राहुल के कानो में जोर जोर से गूँज रही थी. पूरा दिन उसका काम करने में मन नहीं लगा. वो सोच रहा था क्या हो रहा है मेरे जीवन में. किसकी गलती है क्यों यह सब कुछ हो रहा है. अनीता सुन्दर है पढ़ी लिखी है. लेकिन… आखिर क्यों…
जो भी हो अंदर से कहीं लग रहा है चलो अच्छा है बला टली…वो अपने घर चली जाएगी…कुछ दिनों में तालाक आदि के पेपर तैयार करवा लूंगा…वो भी किसी और से शादी कर सकती है…और मैं भी आजाद.
वो इस उधेड़बुन में पूरा दिन कुछ काम न कर सका और टिफिन भी खाना भूल गया. वो जैसे ही घर पहुंचा तो क्या देखा माँ बिस्तर में पड़ी हुई है उसे बहुत तेज बुखार है.
अनीता ने कहा, सुनिए माँ को जल्दी किसी अच्छे डाक्टर के पास ले चलिए मैं सुबह से कह रही हूँ चलो किसी ऑटो में किसी डोक्टर के पास चलते हैं तो माँ मना कर रही हैं.
माँ कराहते हुए बोली अरे रहने दे बेटा थोडा बुखार है दवा खाकर ठीक हो जाउंगी. राहुल ने माँ के माथे पर हाथ लगा कर देखा तो कहा अरे माँ वुखार से आपका शरीर तप रहा है.
तुरंत ओला से टेक्सी मंगाकर वो माँ को लेकर अस्पताल पहुंचा. पूरे रास्ते अनीता माँ को सम्भाले रही और माँ के लिए लगातार प्रार्थना कर रही थी. और दिलासा देती रही आप ठीक हो जाओगी आप चिंता मत करो.
डोक्टर ने थोड़ी देर तक चेकअप किया और एक्सरे के बाद बताया राहुल की माँ के पेट में रसोली है जिसका ओपरेशन जल्द ही करना बहुत जरूरी है.
राहुल के पूछने पर डॉक्टर ने बताया 5 लाख की जरूरत पड़ेगी और उसके पास केवल एक दिन है पैसे का इंतजाम करने के लिए.
यह सुनकर राहुल के डर के मारे हाँथ पैर कांपने लगे. वो सोचने लगा, अभी शादी के समय ही तो कर्ज लिया था. दोस्तों को पार्टी देने में उसके सारी जमा पूंजी भी चली गई थी.
लेकिन वो अस्पताल से बाहर आकर जिसे भी हो सकता था फोन लगाना शुरू किया. सभी दोस्तों ने कुछ न कुछ बहाना बनाकर और दुःख जताकर फोन रख दिया.
उसने ऑफिस में फोन किया वहां से भी मालिक ने कहा देखो राहुल लॉक डाउन के बाद वैसे भी हमारी कम्पनी लोस में चल रही है और आपने पहले भी एडवांस ले चुके हो… सॉरी अभी हम आपकी कोई मदद नहीं कर सकते…
राहुल पूरे दो दिन तक पैसों के इनजाम में जहाँ जा सकता था वहां गया लेकिन उसके हाथ निराशा ही लगी. अंत में उसे लगा, मुझे डॉक्टर से कुछ और मोहलत लेनी चाहिए.
यदि हो सके तो दो या तीन दिन बाद यदि ऑपरेशन हो तो वो कहीं न कहीं से लोन लेकर या घर के पेपर गिरवी रखकर पैसों का इनजाम कर लेगा.
थका हुआ वो अस्पताल पहुंचा और सीधे डॉक्टर के केबिन में जाकर डॉक्टर के पैरों को पकड़ते हुए बोला सर मुझे दो तीन दिन का और वक्त दीजिये मैं आपका सारा पैसा दे दूंगा. और ऑपरेशन के भी पैसे भर दूंगा.
आप बस मेरी माँ की जान बचा लीजिए. मैं आपका यह एहसान जिन्दगी भर नहीं भूलूंगा…राहुल रो रहा था. डॉक्टर ने कहा, अरे तुम क्यों परेशान हो रहे हो तुम्हें तो खुश होना चाहिए ऊपर वाले ने तुम्हें इतनी अच्छी पत्नी दी है उसने पूरा पैसा चूका दी है.
तुम्हारी माँ का ऑपरेशन तो हो चूका है और वो अब खतरे से बाहर है. वो अब बातें भी कर सकती हैं…आज छुट्टी हो जाएगी आप अपनी माँ को घर ले जा सकते हैं.
राहुल को सुनकर यकीन नहीं हुआ वो दौड़ा और लेडिस वार्ड में माँ के पास पहुंचा तो देखा माँ बिस्तर में पीछे टिकी हुई बैठी है. और अनीता उनके पैरों को हल्के हल्के से दबा रही हैं.
राहुल को आज अपना कद अनीता के सामने बहुत छोटा लग रहा था. वो भी माँ के पैरो के पास जाकर बोला माँ कैसी हो….तभी नर्स ने कहा, इन्हें थैंक यू बोलो ये आपकी पत्नी हैं क्या? इन्होने रात दिन सेवा की है, और पूरी रात जीसस से प्रार्थना की है इनके जीवन के लिए.
राहुल अनीता से नजरे नहीं मिला पा रहा था. फिर भी नीचे देखते हुए बोला अनीता क… कहाँ.. से…इंतजाम हुआ इतने पैसों का….
अनीता ने कहा, मेरे पास कुछ पैसे जमा थे जो मैंने गाँव में बच्चों को ट्युसन पढ़ाकर कमाए थे और कुछ जेवर थे उन्हें बेच कर…
माँ ने धीरे धीरे आँखे खोलकर बुदबुदाते हुए बोली बेटा ये मेरी बेटी से बढ़कर है और अनीता का हाथ राहुल के हाथ में रखते हुए बोली. मैं तुम दोनों को हमेशा खुश देखना चाहती हूँ.
राहुल के आँखों में पश्चाताप के आंसू अनीता के हाथों में गिर रहे थे….
दोस्तों ये kahani majedar के सभी किरदार काल्पनिक हैं और पति पत्नी के प्रेम के लिए लिखी गई है. यदि किसी भी व्यक्ति का नाम या कहानी इससे मिलती हो तो यह केवल एक संयोग होगा.
यदि यह कहानी आपको पसंद आई है तो कमेन्ट में अवश्य लिखें और ऐसी ही जवानो और रिश्तों को मजबूत करने के लिए रिश्तों की कीमत सिखाने वाली मजेदार कहानी के लिए मुझे जरुर कमेन्ट लिखें जिससे मुझे प्रोत्साहन मिलता है. धन्यवाद.
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