पौलुस कौन था ? | शाऊल और पौलुस में क्या अंतर है
बाइबल में प्रेरित पौलुस का जीवन परिचय एक अद्भुत जीवनी है पौलुस जिसका पहले इब्रानी नाम शाऊल था मसीहियों को सता रहा था लेकिन बाद में उसका हृदय परिवर्तन हुआ. शाऊल तरसुस के किलकिया में स्थित एक धनी परिवार में रहने वाला व्यक्ति था. (प्रेरित 21:39)
वह बिन्यामिन गोत्र का था. यद्यपि जन्म से वह एक यहूदी था, उसकी नागरिकता रोमी थी. वह फरीसी संप्रदाय का था. जब प्रभु यीशु ने उससे तरसुस के रास्ते में बातें की तब वह पूरी रीति से परिवर्तित होकर प्रभु यीशु का प्रेरित पौलुस बन गया.
प्रेरित पौलुस की जीवनी | प्रेरित पौलुस का जीवन
पौलुस गमलिएल नामक एक महान शास्त्री के पांवों के पास बैठकर उच्च शिक्षा को पाया था. (प्रेरितों 22:3) उसने तम्बू बनाने के कार्य को भी सीखा था.
यद्यपि यीशु मसीह का जन्म एक यहूदी के रूप में हुआ था, अधिकारियों ने उसे अपने मसीहा के रूप में स्वीकार नहीं किया. अत: जो लोग यीशु का अनुसरण करते थे, वे उन्हें सताते थे. यह उस समय की बात है जब कलीसिया उन्नति कर रही थी;
यहाँ तक कि यहूदी भी बड़ी संख्या में मसीह को ग्रहण कर रहे थे. अत: यहूदी अधिकारियों ने इसे अपने धर्म पर एक संकट माना और मसीहियत को समाप्त करने का प्रयास किया. क्योंकि शाऊल एक समर्पित यहूदी था. उसमे अपने धर्म के प्रति महान उत्साह था. उसने घर घर जाकर मसीहियों को बाहर घसीटा तथा स्त्रियों व पुरुष दोनों को जेल में डाला.
प्रथम मसीही शहीद स्तिफानुस को शाऊल की सहमती पर मृत्यु तक पथराव किया गया था. महायाजकों से अनुमति पत्र प्राप्त कर के वह दमिश्क के विश्वासियों को यरूशलेम लाने के लिए गया था.
शाऊल का हृदय परिवर्तन
जब शाऊल तथा उसके मित्र दमिश्क को जा रहे थे दोपहर के समय अचानक आकाश से एक रौशनी चमकी, और शाऊल भूमि पर गिर गया. उसे यीशु की आवाज सुनाई पड़ी. “शाऊल, शाऊल तू मुझे क्यों सताता है. शाऊल ने कहा, “हे प्रभु तू कौन है?”
तब यीशु ने कहा “मैं यीशु हूँ जिसे तू सताता है.” शाऊल ने पूछा “प्रभु मैं क्या करूँ “. यीशु ने उत्तर दिया “उठ और दमिश्क को जा”. उस तेज रौशनी के कारण पौलुस अँधा हो गया था. उसके मित्र उसे दमिश्क में यहूदा के घर ले गए. वहां वह तीन दिनों तक प्रार्थना और उपवास करता रहा.
दमिश्क में हनन्याह नामक एक शिष्य था. एक दर्शन में प्रभु यीशु ने उससे कहा, “उठकर उस गली में जा जो सीधी कहलाती है. वहां यहूदा के घर में शाऊल नामक एक व्यक्ति प्रार्थना कर रहा है.
हनन्याह कहने लगा, “हे प्रभु, मैंने इस मनुष्य के विषय में बहुतों से सुना है, कि इस ने यरूशलेम में तेरे पवित्र लोगों के साथ बड़ी बड़ी बुराईयां की है. वह दमिश्क में भी इसलिए आया है कि तेरी आराधना करनेवालों को बाँध ले. “प्रभु यीशु ने कहा, “तू चला जा, क्योंकि मैंने उसे चुना है ताकि वह अन्यजातियों और इस्राएलियों के सामने मेरे नाम को प्रगट करेगा.”
तब हनन्याह ने यहूदा के घर जाकर जहाँ शाऊल प्रार्थना कर रहा था, उसके ऊपर हाथ रखकर कहा, “हे भाई शाऊल, प्रभु अर्थात यीशु, जो उस रास्ते मे, जिस से तू आया तुझे दिखाई दिया था, उसी ने मुझे भेजा है, कि तू फिर दृष्टि पाए और पवित्रात्मा से परिपूर्ण हो जाए.”
तब तुरंत उसकी आँखों से छिलके से गिरे, और वह देखने लगा और उठकर बप्तिस्मा लिया फिर भोजन करके बल पाया.
शाऊल द्वारा दमिश्क में प्रचार
शाऊल दमिश्क में विश्वासियों के साह कुछ दिनों तक रहा, उसने आराधनालयों में यीशु का प्रचार किया तथा लोगों को प्रमाण सहित विश्वास दिलाया कि यीशु ही मसीह तथा परमेश्वर का पुत्र है.
सुननेवाले चकित होकर कहने लगे. “क्या यह वाही व्यक्ति नहीं जो यरूशलेम में उन्हें जो इस नाम को लेते थे नाश करता था, और वहां भी इसलिए आया था, कि उन्हें बांधकर महायाजकों के पास ले जाए?” कुछ यहूदी उसके प्रचार करने से चिढ गए तथा उसे मारने की योजना बनाने लगे.
परन्तु एक रात शाऊल के मित्रों ने उसे टोकरे में बैठाया और शहरपनाह पर से लटकाकर उतार दिया. दमिश्क से, यरूशलेम वापस लौटने की अपेक्षा वह अरब चला गया. (गलातियों 1:15) वहां परमेश्वर ने दर्शन के द्वारा उस पर अपने वचन के भेदों को प्रगट किया. उसके बात वह फिर दमिश्क आ गया.
यरूशलेम में शाऊल की सेवकाई
तीन वर्ष पश्चात (गलातियों 1:18) शाऊल वापस यरूशलेम गया तथा शिष्यों को जोड़ने का प्रयास किया. परन्तु वे उसके परिवर्तन होने पर विश्वास न कर सके. बल्कि वे सभी उससे डरते थे. तब एक अन्य प्रेरित जिसका नाम बरनबास था उसकी सहायता के लिए आया.
तथा उसे प्रेरितों के पास लेकर गया. उसने उन्हें विस्तार से बताया, कि किस प्रकार शाऊल का परिवर्तन हुआ और किस तरह उसने दमिश्क में यीशु के नाम का प्रचार किया. यरूशलेम में वह दो सप्ताह पतरस के साथ रहा, तथा सारे यरूशलेम में घूमते हुए उसने निर्भीकता से यीशु मसीह का प्रचार किया.
उसने यूनानी बोलने वाले यहूदियों से वार्तालाप और वादविवाद किया. परन्तु उन्होंने उसकी हत्या करने का प्रयास किया. परन्तु जब विश्वासियों को इसका पता चला तब वे शाऊल को केशरिया लेकर आये और उसे उसके जन्म स्थान तरसुस भेज दिया.
अन्ताकिया में शाऊल की सेवकाई (प्रेरित 8:1-2 11:19-26)
स्तिफनुस के मारे जाने के बाद सताव से बचने के लिए, कई विश्वासी यरूशलेम से दूर चले गए थे. जहाँ कहीं वे गए उन्होंने मसीह के बारे में प्रचार किया. उनमें से कुछ अन्ताकिया पहुंचे. वहां अधिक लोगों ने विश्वास करते हुए प्रभु को ग्रहण किया.
जब प्रेरितों ने यरूशलेम में इस बारे में सुना उन्होंने बरनाबास को अन्ताकिया भेजा. जब बरनबास ने वहां की स्थिति को देखा तो उसे लगा कि यूनानियों के बीच प्रचार करने के लिए पौलुस एक उपयुक्त व्यक्ति है. क्योंकि वह यूनानी पृष्ठभूमि से था.
अत: बरनबास शाऊल को तरसुस से अन्ताकिया लेकर आया. वहां पूरा एक वर्ष उन्होंने अधिक संख्या में लोगों के बीच प्रचार किया और उन्हें शिक्षा दी. अन्ताकिया में ही विश्वासियों को सबसे पहले मसीह कहा गया. (प्रेरित 9:1-31, 2कुरु. 5:17)
पौलुस की पत्री
बाइबल में प्रेरित पौलुस के जीवन को पढ़ना एक उत्साहित करने वाला है. संत पौलुस ने कलीसियाओं को 13 पत्रियाँ लिखी जिनमें हैं रोमियो की पत्री, पहली और दूसरी कुरिन्थियों की पत्री, गलातियों की पत्री, इफिसियों की पत्री, फिलिप्पियों की पत्री, कुलुस्सियों की पत्री, पहला और दूसरा थिस्सलुनीकियों की पत्री, पहला और दूसरा तीमुथियुस की पत्री, तीतुस की पत्री, फिलिमोन की पत्री और इब्रानियों की पत्री.
बाइबल में प्रेरित पौलुस का जीवन एक अद्भुत जीवन चरित्र है जिसे हम आगे उसकी सेवकाई या पौलुस की मिशनरी यात्रा में सीखेंगे.
सो यदि कोई मसीह में है तो वो नई सृष्टि है. पुरानी बातें बीत गईं देखो वे सब नई हो गईं.
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पास्टर राजेश बावरिया (एक प्रेरक मसीही प्रचारक और बाइबल शिक्षक हैं)