क्या तुम नहीं जानते मुझे अपने पिता के घर पर रहना अवश्य है? | यीशु मसीह के जीवन से क्या सीखें?

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दोस्तों आज हम सीखेंगे कि यीशु मसीह के जीवन से क्या सीखें? यह संदेश मेरे आत्मिक बड़े भाई रेव्ह सूरज पाल जी ने दिया है इस Lent days में इसे मैंने आपके लिए हिंदी में किया है.

क्या तुम नहीं जानते मुझे अपने पिता के घर पर रहना अवश्य है? | यीशु मसीह के जीवन से क्या सीखें?

यीशु-मसीह-के-जीवन-से-क्या-सीखें

यह घटना उस समय की है जब 12 वर्ष का यीशु अपने माता-पिता और अन्य रिश्तेदारों के साथ यरूशलेम में पासओवर के त्यौहार (पर्व) को मनाने के लिए जा रहे थे.

यहूदियों के नियम के अनुसार (निर्गमन 23:14-17) के अनुसार हरेक पुरुष को इस पर्व में जाकर परमेश्वर की आराधना करना जरुरी था. उनके साथ स्त्रियाँ भी जाया करती थीं.

सात दिनों के इस पर्व को मनाने के बाद यीशु और उसके माता-पिता अपने रिश्तेदारों के साथ अपने घर वापस लौट रहे थे. लेकिन उन्हें पता ही नहीं चला कि यीशु तो वहीँ रह गए हैं.

उन दिनों बहुत भीड़ एक साथ यात्रा करते थे तो शायद यीशु के माता-पिता ने सोचा होगा कि शायद यीशु उनके किसी रिश्तेदार या मित्रों के साथ होंगे.

लेकिन एक दिन की यात्रा के बाद उन्हें पता चला कि यीशु उनके साथ नहीं हैं. तो वे अपने रिश्तेदारों के बीच यीशु को ढूढने लगे.

जब उन्होंने यीशु को उनके बीच भी नहीं पाया तो वे यरूशलेम लौट गए. और तीसरे दिन उन्होंने यीशु को यरूशलेम के मंदिर में पाया

और उन्होंने देखा कि 12 वर्ष के यीशु मंदिर में व्यवस्था के ज्ञाताओं के सात वार्तालाप कर रहे हैं और वे सभी यीशु को ध्यान से सुन रहे हैं.

लूका 2:48 में यीशु की माता यीशु से पूछती हैं, ‘हे पुत्र, तू ने हम से क्यों ऐसा व्यवहार किया? देख, तेरा पिता और मैं कुढ़ते हुए तुझे ढूंढ़ते थे’.

अपनी माता के प्रश्न के उत्तर के रूप में यीशु कहते हैं, तुम मुझे क्यों ढूंढ़ते थे? क्या नहीं जानते थे, कि मुझे अपने पिता के भवन में होना अवश्य है?

इस वार्तालाप के द्वारा मैं आपके सामने यह बताना चाहता हूँ कि हम यीशु मसीह के जीवन से क्या सीखें? दो सच्चाई हम सीख सकते हैं

आज का वचन हमें स्पष्ट रूप से सिखाता है, कि यीशु मसीह कौन है उसकी क्या पहचान है, वो कोई साधारण बालक नहीं है,

उसका उत्तर देखो जो वह अपनी माता को कहते हैं, कि क्या तुम्हे नहीं पता कि मुझे अपने पिता के घर पर रहना अवश्य है. एक दूसरा अनुवाद कहता है,

मुझे अपने पिता का कार्य करना अवश्य है. यीशु परमेश्वर है जैसे पिता परमेश्वर. इस छोटी उम्र में उन्हें पता था वे परमेश्वर के पुत्र हैं.

मित्रों क्या आपको पता है चारो सुसमाचार में ये प्रभु यीशु के वचन पहली बार यहाँ पर आये हैं. और यीशु के पहले शब्दों में ही यीशु बताते हैं वे परमेश्वर के पुत्र हैं.

उनकी पहचान यही है. इस संसार में जरुर वे युसूफ और मरियम के पास थे लेकिन वे परमेश्वर के पुत्र थे. यही कारण है कि यीशु ने अपने माता पिता को कहा,

मुझे क्यों ढूढ़ते हो मुझे मालुम है मुझे कहाँ होना अवश्य है….मुझे अपने पिता के घर पर रहना अवश्य है. एक पुत्र को जहाँ रहना चाहिए वह वहीँ है.

वो कोई गलत स्थान पर नहीं है. अपने पिता के कार्य में संलग्न. मित्रों क्या आप अपने ह्रदय में विश्वास करते हैं कि यीशु परमेश्वर का पुत्र है.

बहुत से इस भ्रम में है कि यीशु मात्र एक अच्छा भविष्यवक्ता है या मात्र एक अच्छा गुरु है. लेकिन 12 वर्ष के इस छोटी सी उम्र में यीशु अपने ह्रदय में बिलकुल स्पष्ट थे कि वे परमेश्वर के पुत्र हैं.

इसलिए परमेश्वर के पुत्र होने के कारण वे हमारी आराधना के योग्य हैं. आइये उसकी आराधना करें. इस लेंट के दिनों में…उसकी आराधना करें.

2. यीशु मसीह का उद्देश्य | The mission of Jesus Christ in hindi

हमारा आज का बाइबिल वचन स्पष्ट रूप से बताता है, प्रभु यीशु मसीह इस दुनिया में एक स्पष्ट उद्देश्य के साथ एक clear Mission के साथ आया है….

मुझे अपने पिता के कार्य को करना अवश्य है. वह अपने पिता के कार्य को पूरा करने के लिए इस दुनिया में उतरा था. यूहन्ना 6:37 में लिखा है,

मैं अपनी इच्छा नहीं, वरन अपने भेजने वाले की इच्छा पूरी करने के लिये स्वर्ग से उतरा हूं. मुझे आश्चर्य है कि इतनी छोटी उम्र में भी यीशु को बिलकुल पता था

और पूरा आश्वासन था कि वे इस दुनिया में अपने पिता की इच्छा को पूरा करने के लिए आये हैं. यीशु मसीह के जीवन का उद्देश्य बिलकुल साफ़ था.

जो उत्तर यीशु ने मरियम और युसूफ को दिया उससे साफ़ जाहिर होता है यीशु मसीह को अपने जीवन का उद्देश्य मालुम था. उन्हें मालुम था वे अपने पिता की ह्रदय की इच्छा को पूरी कर रहे हैं.

और उसकी सेवा कर रहे हैं. यीशु मसीह एक शब्द पर जोर देते हैं. वो शब्द है “अवश्य” मुझे अपने पिता के कार्य को करना अवश्य है.

यह शब्द बताता है कि यीशु मसीह को उस ईश्वरीय आवश्यकता को पूरी करना अवश्य था. उनके पिता ने जो कार्य उन्हें दिया था उसे पूरा करना उनकी प्राथमिकता थी….

क्या हमारे जीवन में कुछ स्पष्ट उद्देश्य है. हमारे जीवन का उद्देश्य क्या है? एक विश्वासी होने के नाते हमें अपने जीवन में यह सवाल पूछना चाहिए,

क्या परमेश्वर के कार्य को पूरा करना हमारे जीवन की प्राथमिकता है? मित्रों इस चकाचौंध से भरी दुनिया में हमें स्वयं से एक सवाल पूछने की जरूरत है

क्या हम अपने परमेश्वर के द्वारा दिए गए जीवन में उसके कार्य को कितना समय देते हैं. अपने जीवन को बिना उद्देश्य के जीते हुए बर्बाद न करें.

अपना समय उन कार्यों को करते हुए बर्बाद न करें जो परमेश्वर की ओर से नहीं है. आइये अपने पिता के कार्य में शामिल हो जाएं.

इससे पहले यह संदेश मैं समाप्त करूँ यदि कोई अभिभावक या माता पिता इस संदेश को पढ़ रहे हैं मैं आपसे पूछना चाहता हूँ.

यदि आज आपका बच्चा थोड़ी देर के लिए आपके आँखों के सामने से ओझल होता है आप उसे कहाँ ढूंढेगे? या उसे कहाँ पर होना अवश्य है?

याद रखें यीशु अपने पिता के घर में पाया गया. जवान बच्चो यदि यह लेख आप पढ़ रहे हैं मैं आपसे पूछना चाहता हूँ. आपके माता पिता को पता चले कि आप खो गए हैं तो वे आपको कहाँ पायेंगे.

वे आपको क्या करते हुए पायेंगे. क्या वे आपको अपने स्वर्गीय पिता परमेश्वर की सेवा करते हुए पायेंगे.

यीशु ने कहा मुझे अपने पिता के घर पर रहना अवश्य है…मुझे अपने पिता का कार्य करना अवश्य है.

प्रभु आपको आशीष दे.

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