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जिंदगी में सबसे महत्वपूर्ण चीज क्या है | What is most important thing in life

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दोस्तों आज हम सीखेंगे कि जिंदगी में सबसे महत्वपूर्ण चीज क्या है | What is most important thing in life जिससे यह पता चलेगा कि लाइफ में क्या करना चाहिए..

जिंदगी में सबसे महत्वपूर्ण चीज क्या है | दर्शन

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हर व्यक्ति अपने जीवन में कामयाब होना चाहता है कुछ बड़ा करना चाहता है. इस सबके लिए जो सबसे महत्वपूर्ण चीज है वो है दर्शन vision.

परमेश्वर का वचन हमसे कहता है यदि दर्शन नहीं तो लोग नाश हो जाएंगे. एक व्यक्ति अपने कद काठी या लम्बाई चौड़ाई या जात पात से नहीं जाना जाता.

यदि कोई व्यक्ति सफलता के शिखर तक पहुँचता है तो वो अपने दर्शन के कारण पहुँचता है वो अपने दर्शन के कारण ही पहचाना जाता है. कहते हैं जिद होनी चाहिए कुछ हासिल करने की वरना उम्मीद लगाकर तो हर कोई बैठा है.

यहाँ हम पवित्रशास्त्र से तीन व्यक्तियों के जीवन से उन बातों को सीखेंगे कि उन्होंने कुछ बड़ा प्राप्त करने के लिए ऐसा क्या किया जिसे बाइबिल में रखा गया.

1. जरुबाबेल की कहानी

जरुबाबेल के नाम का अर्थ है बाबेल या बेबीलोन में जन्मा, यह यहूदा के राजा यहोयाकिम के वंश का था, यह शालतीएल का पुत्र था. इसका जन्म इसके नाम के अनुसार बेबीलोन में हुआ था. (1 इतिहास 3:17)

लेकिन जब यहूदी लोग बेबीलोन से आजाद हुए तब भविष्यवक्ता हाग्गे ने इसे एक अगुवे Leader के रूप में पहचाना था.

बन्धुआइ से लौटने के पश्चात जरुबाबेल ने यरूशलेम में जो सबसे पहला काम किया वह था मन्दिर का पुनर्निमाण. उसने वेदी को फिर से ठीक किया और लोगों के आराधना के लिए मन्दिर का सुधार किया.

जरुबाबेल का दर्शन क्या था

जरुबाबेल का दर्शन था कि परमेश्वर के लोगों को परमेश्वर के साथ पुन: मेल मिलाप किया जाए लोग परमेश्वर की आराधना कर सकें. यह दर्शन उसे बन्धुआइ में रहते हुए ही था.

दर्शन को पूरा करने के लिए जरुबाबेल ने क्या किया ?

बेबीलोन की बन्धुआई से आजाद होने के तुरंत बाद जरुबाबेल ने अपने भाइयों के साथ मिलकर कमरबाँध कर इस्राएल के परमेश्वर की वेदी को बनाया कि उस पर होमबलि चढ़ाएं. (एज्रा 3:2)

फिर उसने परमेश्वर के भवन को जो यरूशलेम में था उसका पुन: निर्माण करवाया और लोगों को आराधना करने और याजकों को नियुक्त किया.

उस दर्शन का परिणाम –यह हुआ कि एक व्यक्ति के दर्शन के कारण पुरे देश के लोगों में परिवर्तन आया और जिसके कारण वहां के लोग फुटफूट कर रोये और लोगों ने ऊंची आवाज में आराधना की और जय जयकार किये.

2. एज्रा की कहानी

बाइबिल बताती है एज्रा सरायाह का पुत्र था. यह व्यवस्था के विषय में जिसे इस्राएल के परमेश्वर यहोवा ने दी थी, निपुण शास्त्री था (एज्रा 7:3)

उसने यहोवा परमेश्वर की व्यवस्था का अर्थ जान लेने, और उसके अनुसार चलने, और इस्राएल में विधि और नियम सिखाने के लिए अपना मन लगाया था. (एज्रा 7:10)

एज्रा का दर्शन क्या था

एज्रा का दर्शन था कि वह आजाद हुए इस्राएल को जो परमेश्वर के वचन को भूल चुके थे उन्हें परमेश्वर के वचन की सच्चाई सिखाकर उन्हें आत्मा और सच्चाई से परमेश्वर की आराधना करने के लिए प्रेरित करना.

दर्शन को पूरा करने के लिए एज्रा ने क्या किया ?

एज्रा ने अपने दर्शन को पूरा करने के लिए अर्थात लोगों को परमेश्वर से जोड़ने और आत्मा सच्चाई से आराधना करना सिखाने के लिए अपने आप को परमेश्वर के वचन सीखने और लोगों को सिखाने के लिए समर्पित कर दिया. परमेश्वर की कृपादृष्टि उस पर थी. (एज्रा 7:1-7)

एज्रा के दर्शन का परिणाम – यह हुआ कि सारे यरूशलेम के लोगों में परमेश्वर का भय छा गया और लोगों ने अपने Sinful Nature को छोड़कर परमेश्वर के भवन के सामने Severe बरसात होने पर भी सुबह से शाम तक खड़े होकर परमेश्वर के वचन को सुनते रहे. परमेश्वर के वचन के प्रति आदर और प्रेम का दर्शन सभी लोगों में फ़ैल गया. (एज्रा 9,10)

3. नेह्म्याह की कहानी

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एज्रा के लगभग 60 वर्ष के बाद नेह्म्याह जो शूशन नामक राजगढ़ में रहता था और वहां के राजा अर्तक्षत्र का पियाऊ था हालाकि वह यहूदी था मूलनिवासी यरूशलेम का था

जब उसे हनानी नामक एक भाई से पता चला कि उसके देश की अर्थात यरूशलेम की शहरपनाह टूटी हुई है और फाटक जले हुए हैं तो वह दुखी हो गया. और प्रार्थना करने लगा.

नेह्म्याह का दर्शन क्या था ?

नेह्म्याह चाहता था उसके लोग सुरक्षित रहकर आजादी के साथ परमेश्वर की आराधना करें. क्योंकि उसने न केवल दीवार बनवाया लेकिन दीवार बनाने का मुख्य उद्देश्य यही था कि वहां आराधनालय में लोग खुलकर आयें और आराधना करें.

नेह्म्याह ने दर्शन को पूरा करने के लिए क्या किया ?

नेह्म्याह ने दर्शन को पूरा करने के लिए सबसे पहले प्रार्थना किया. और परमेश्वर की ओर से मार्गदर्शन प्राप्त किया. जिसके कारण वहां के राजा का भी अनुग्रह उसे प्राप्त हुआ और वह तमाम वस्तुओं को और धन को प्राप्त कर सका

जो उसे यरूशलेम की टूटी हुई दीवार को बनाने में जरूरत थी और Useful चीजें थी. और इस दर्शन के कारण यरूशलेम के लोग भी उसके साथ मिल गए और सभी ने मिलकर 52 दिनों में Step-by-step उस दीवार को बनाकर खड़ा कर दिया. यह Simple नहीं था.

नेह्म्याह के दर्शन का परिणाम – यह हुआ कि लोगों ने अपने देश में सुरक्षा को प्राप्त किये जिसके कारण से लोग आराधनालय में जाना शुरू किए और मन्दिर में सभी याजकों और अन्य लोगों को काम बांटा गया. लोगों का परमेश्वर के साथ सम्बन्ध पुन: स्थापित हो पाया.

जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए कौन सा गुण आवश्यक है और क्यों ? इसका उत्तर स्पष्ट है कामयाब होने के लिए व्यक्ति के पास दर्शन होना चाहिए.

और वह दर्शन स्वार्थ से भरा हुआ नहीं होना चाहिए बल्कि लोगों के हित के लिए और उनकी भलाई के लिए होना चाहिए तब हमें परमेश्वर का और लोगों का दोनों का अनुग्रह प्राप्त होगा. और हम उस दर्शन को अवश्य पूरा कर पाएंगे.

कुछ करने से कुछ होगा

उपरोक्त तीनों उदाहरणों से हम एक बात सीखते हैं कि यदि हमें अपने जीवन में प्रभु के राज्य के लिए और लोगों के लिए कुछ चाहते हैं तो हमें कुछ करना होगा.

उनके दर्शन को पूरा करने के लिए उन्होंने कुछ किया. यदि आपके पास एक दर्शन है तो आपको अपने दर्शन को पूरा करने के लिए कुछ करना होगा.

Conclusion

कामयाब होने के लिए क्या करना चाहिए? कामयाब होने के लिए हमें comfort zone से अर्थात अपने आरामदायक स्थिति से बाहर आना चाहिए कई लोग पूछते हैं कामयाब होने के लिए व्यक्ति को क्या त्यागना पड़ता है? इसका उत्तर है Superb कामयाब होने के लिए एक व्यक्ति को अपने जीवन का आराम का त्याग करना होता है.

लाइफ में आगे बढ़ने के लिए क्या करे ? अपने जीवन में आगे बढ़ने के लिए और Truly कामयाब होने के लिए सबसे पहले प्रार्थना करके एक दर्शन को प्राप्त करें और फिर उस दर्शन को पूरा करने के लिए जी जान से कार्यरत हो जाएं कामयाबी अवश्य मिलेगी.

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पास्टर राजेश बावरिया (एक प्रेरक मसीही प्रचारक और बाइबल शिक्षक हैं)

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