परमेश्वर ने पहले मनुष्य आदम को बनाया परमेश्वर का मनुष्य बनाने का उद्देश्य था कि वह दुनिया में राज्य करे और परमेश्वर के साथ संगती करे, बातें करें. और फूले फले और पृथ्वी में भर जाए.
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संसार को किसने बनाया
बाइबल के अनुसार "आदि में परमेश्वर ने आकाश और पृथ्वी की सृष्टि की. और पृथ्वी बेडौल और सुनसान पड़ी थी. और गहरे जल के ऊपर अंधियारा था."(उत्पत्ति 1:2)
इस पहले और दूसरे कथन के बीच में लाखो वर्षों का अंतर है. जिस पृथ्वी की सृष्टि लाखो वर्षों पूर्व की गई थी वह न तो बेडौल थी और न ही खाली थी.
इसे बसने के लिए रचा गया था (यशायाह 45:18). परमेश्वर ने स्वर्गदूतों की सृष्टि की तथा उन्हें इस पृथ्वी पर रखा.
उन स्वर्गदूतों को अपनी सुन्दरता व शक्ति पर घमंड हो गया और उन्होंने परमेश्वर के विरोध में विद्रोह किया. इस कारण प्रेमश्वर ने उन्हें तथा पृथ्वी को श्राप दिया.
उसने उन्हें स्वर्ग से बाहर निकाल दिया. इस कारण पृथ्वी अंधकारमय हो गई तथा पानी व बर्फ से ढक गई. जिन स्वर्गदूतों को दंड दिया गया वे शैतान तथा उसके दूत थे.
वे अभी भी परमेश्वर तथा उसकी योजनाओं के विरोध में विद्रोह करते हैं. यद्यपि पृथ्वी जल से भरी हुई थी परन्तु परमेश्वर ने उसे नष्ट नहीं किया.
और जिस तरह से एक मुर्गी अपने अन्डो को सेती है उसी तरह से परमेश्वर का आत्मा इस पर मंडराता था. कई वर्षों बाद परमेश्वर ने पृथ्वी को उसका रूप प्रदान किया. परमेश्वर ने प्रथम पुरुष आदम को अपने स्वरूप और समानता में बनाया.
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इस संसार को कौन चलाता है
सृष्टिकर्ता परमेश्वर ही इस संसार को चलाता और इसका भरण पोषण करता है. परमेश्वर ही वर्षा करता है ताकि धरती को फसल उपजाने के लिए पानी मिल सके और सूर्य उदय करता है, ताकि वह फसल बढ़ सकें और मानव जाति को और पशुओं को आहार मिल सके.
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परमेश्वर ने आदम को कैसे बनाया | आदम और हव्वा की उत्पत्ति
छ: दिनों में परमेश्वर ने हर चीज की सृष्टि की. परन्तु यह जरूरी नहीं कि प्रत्येक दिन चौबीस घंटे का ही हो, क्योंकि बाइबल का कहना है,
हे प्रियो यह एक बात तुम से छिपी न रहे, कि प्रभु के यहाँ एक दिन हजार वर्ष के बराबर है, और हजार वर्ष एक दिन के बराबर है” (2पतरस 3:8).
प्रत्येक चीज की रचना उसके वचनों द्वारा हुई थी, जबकि पुरुष की रचना एक भिन्न तरह से की गई थी. छ्टे दिन, परमेश्वर ने अपने हाथों द्वारा भूमि की मिटटी से अपने स्वरूप और समानता में मनुष्य की सृष्टि की.
तब उसने उसके नथनो में जीवन का स्वास फूंक दिया और वह एक जीवता मनुष्य बन गया. परमेश्वर ने उसका नाम आदम रखा. परमेश्वर इ किसी भी प्राणी की तुलना में मनुष्य से सबसे अधिक प्रेम किया क्योंकि अन्य किसी भी चीज का स्वरूप उसके सदृश्य न था.
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परमेश्वर ने पहले मनुष्य आदम को क्यों बनाया
1. संसार पर शासन करने के लिए
2. परमेश्वर के साथ सहभागिता करने के लिए
3. पृथ्वी की पूर्ति करने तथा भरने के लिए
हव्वा को मिटटी से नहीं बनाया गया था. वह आदम में ही छिपी हुई थी. परमेश्वर ने जब देखा कि आदम के साथ बहुत से जानवर है लेकिन आदम का जोड़ा नहीं है बाकी सभी जानवरों का जोड़ा है तो परमेश्वर ने कहा, आदम का अकेला रहना अच्छा नहीं.
अत: परमेश्वर ने आदम को एक गहरी नींद में डाल कर उसकी एक पसली को निकालकर उससे स्त्री को बनाया. आदम और हव्वा मसीह और कलीसिया की समानता में है. इसलिए मसीह यीशु को अंतिम आदम कहा जाता है.
मनुष्य का पतन आदम और हव्वा को अदन की वाटिका में रखा गया था. उन्हें वाटिका में ज्ञान के वृक्ष को छोड़कर सभी वृक्षों के फल खाने की अनुमति थी.
वाटिका के बीच में दो वृक्ष थे. एक ज्ञान का तथा दूसरा जीवन का वृक्ष था. वे जीवन के वृक्ष से फल लेकर अनंत जीवन को प्राप्त कर सकते थे. लेकिन इसकी अपेक्षा उन्होंने वर्जित (मना किये हुए) वृक्ष से फल को खाया. यह कैसे हुआ?
हव्वा ने परमेश्वर के सत्य वचन पर अविश्वास किया और शैतान के झूठ पर विश्वास किया. उसने स्वयं फल खाया और उसे आदम को भी खाने को दिया. इस छोटी से अनाज्ञाकारिता के कारण मानवजाति को कितनी बड़ी हानि उठाना पड़ा.
उन्होंने परमेश्वर के साथ सहभागिता को खो दिया. अत: वे उसी दिन आत्मिक रूप से मर गए.
2. वे एक हजार वर्ष के भीतर ही जो कि परमेश्वर की दृष्टि में एक दिन के बराबर है शारीरिक रूप से भी मर गए.
3. उन्होंने पृथ्वी पर अपने स्वामित्व को खो दिया तथा पृथ्वी को श्रापित किया गया. प्रथम आदम की अनाज्ञाकारिता के कारण ये सभी सुविधाएं नष्ट हो गई. इसलिए मसीह प्रथम आदम द्वारा नष्ट की गई सभी चीजों को लौटाने के लिए अंतिम आदम के रूप में आया.
1. यदि हम यीशु पर विश्वास करें तथा उसे अपने उद्धारकर्ता के रूप में ग्रहण करें तो वह हमें अनंत जीवन देगा. हमें पूर्ण व सही रूप से परमेश्वर के वचन पर विश्वास करना व उसका आज्ञा पालन करना चाहिए जिससे परमेश्वर की सन्तान बन सकें और उसकी सहभागिता को फिर से प्राप्त कर सकें.
2. वह अपने द्वितीय आगमन तथा हमारे पुनरुत्थान के समय पर हमें एक नई स्वर्गीय देह प्रदान करेगा.
3. अंत में वह पृथ्वी का न्याय करेगा और एक नए स्वर्ग व पृथ्वी को बनाएगा. तब हम यीशु मसीह के साथ पृथ्वी पर राज्य करेंगे.
हमें हमेशा याद रखना चाहिए कि हमारी आनाज्ञाकारिता के परिणाम बहुत बड़े और आशीषित होंगे. इसलिए हमें हमेशा परमेश्वर अपने माता पिता शिक्षकों इत्यादि के प्रति आज्ञाकारी रहना चाहिए.
जानवरों को परमेश्वर ने केवल शब्द कहकर बनाया और उसमें शरीर और दिमाग दिया है लेकिन मनुष्यों को परमेश्वर ने अपने हाथों से बनाया और उसमें शरीर समझ और आत्मा भी दिया.
मनुष्य का आत्मा विवेक, पूर्वाभासी और परमेश्वर की आराधना के योग्य है. जिसका मतलब है
विवेक :- यह एक सूचक है जो सही गलत को दिखाता है …इस से मैं आप भी यतन करता हूं, कि परमेश्वर की, और मनुष्यों की ओर मेरा विवेक सदा निर्दोष रहे। (प्रेरित 24:16)
पूर्वाभास :- यह एक भीतरी ज्ञान है जो आत्मिक और बौद्धिक है. उदाहरण के लिए तुम सारे आत्मिक ज्ञान और समझ सहित परमेश्वर की इच्छा की पहचान में परिपूर्ण होते जाओ. (कुलु. 1:9)
आराधना :- परमेश्वर की आराधना करने की योग्यता पवित्र आत्मा का गुण है, उदाहरण के लिए :-“परमेश्वर आत्मा है, और अवश्य है कि उसकी आराधना करनेवाले आत्मा और सच्चाई से आराधना करें.” (यूहन्ना 4:24)
लेकिन यह तीनों गुण जानवर में नहीं हैं.
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