दोस्तों आज हम सीखेंगे कि हम परमेश्वर को क्या दे सकते हैं बाइबल से | What we can Give to God जिसे हम बाइबिल से देखने जा रहे रहे हैं.
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हम परमेश्वर को क्या दे सकते हैं बाइबल से
हम परमेश्वर को जिसने हमे बनाया है और जीवन प्रदान किया है धन्यवाद के अलावा कुछ नहीं दे सकते हैं. वो ही हमारे आराधना और स्तुति के योग्य है.
“हे अय्यूब...इस पर कान लगा और सुन ले...चुपचाप खड़ा रह, और परमेश्वर के आश्चर्यकर्मों पर विचार कर.” (अय्यूब 37:14)
मनुष्य की रीती से सोचें तो केवल अय्यूब ही वह व्यक्ति था जिसने एक ही दिन में इतनी मुसीबतें इतना बड़ा दुःख देख लिया था कि ऐसा लगता है किसी भी मनुष्य के सहने के बाहर की बात थी. ऐसे में किसी व्यक्ति का विश्वास हिल सकता था.
उसके पूरे जीवन में उथल पुथल मच गई थी. यहाँ तक की उसके मित्र लोग भी उसी की सारी गलती बता रहे थे. परन्तु अय्यूब के ऐसे भयानक दर्द में भी अय्यूब ने परमेश्वर की आवाज को सुना…
हे अय्यूब, ध्यान दे…मेरे तमाम अद्भुत कामों पर विचार कर…मैं जानता हूँ, तुझे दुःख है…लेकिन जब तू मेरे कामों पर विचार करेगा तब मुझपर तेरा भरोषा फिर तरोताजा हो जाएगा.
मेरी बनाई सृष्टि को देखने मात्र से तेरा विश्वास फिर नया हो जाएगा….जब हमारा भी विश्वास डगमगाने लगे, जब हमारे विश्वास की नांव हिलकोरे मारने लगे.
जब हमारे अन्दर हमारे सृष्टिकर्ता के प्रति संदेह का धुंआ उठने लगे… तब हमें भी इस वचन के अनुसार उसकी अद्भुत रचना की ओर दृष्टि लगाना चाहिए.
कि उसके बनाए उस अथाह तारामंडल जिसमें पृथ्वी जैसे न जाने कितने अनगिनत गृह हैं…उसमें हमारी गिनती कहाँ किस कोने में होती हैं…हम तो उसके उस विराट सृष्टि में किसी धूल के किनकों से भी अति सूक्ष्म हैं.
तौभी वह हमसे प्यार करता है. जीवित रखा है जिन्दों की भूमि में हम पाए जाते हैं. जिसके लिए उसने अपने एकलौते बेटे को भी नहीं रख छोड़ा…
और वायदा करता है और मैं तेरे लिए क्या कुछ नहीं करूँगा. तो हमारा दिल उसके लिए धन्यवाद से भर जाता है.
हमारा विश्वास फिर से तरोताजा हो जाता है. आइये अपने इर्द गिर्द उसकी अद्भुत रचना को निहारे….
और उसे दिल से धन्यवाद दे.
हम परमेश्वर के द्वारा बनाए गए हैं
फिर परमेश्वर ने कहा, हम मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार अपनी समानता में बनाएं; और वे समुद्र की मछलियों, और आकाश के पक्षियों, और घरेलू पशुओं, और सारी पृथ्वी पर, और सब रेंगने वाले जन्तुओं पर जो पृथ्वी पर रेंगते हैं, अधिकार रखें.
(उत्पत्ति 1:26)
जब हम बढ़ रहे होते हैं तो तमाम लोग हमें हमारी पहचान बताते हैं कि हम कौन हैं, जैसे हमारे माता पिता, हमारे शिक्षकगण, मतलब हमारे टीचर, रिश्तेदार आगे चलकर फिर हमारे दोस्त हमारे सहकर्मी…आदि
ये सभी हमें अलग अलग रीति से संदेश देकर हमे बताते हैं कि हम किस बात में अच्छे हैं, हमारे अन्दर कौन कौन से गुण हैं…
लेकिन इन सभी से ज्यादा सामर्थ्यशाली संदेश उसका है जिसने हमें बनाया है. जिसके पास से हम सभी आएं हैं. हमारा स्वर्गीय पिता परमेश्वर.
जिसने अद्भुत कुशलता और प्रेम से हमारी रचना की है. फिर फर्क नहीं पड़ता दुनिया में लोग हमारे विषय में क्या कहते हैं.
हम इस धरा में किसी भी प्रकार से दुर्घटनावश नहीं हैं. या गलती से नहीं आ गए… शर्वशक्तिमान परमेश्वर ने हमे बनाया है. वो भी अपने स्वयं के स्वरूप में…
हमारी वास्तविक पहचान उसी में है…जब आप दर्पण में स्वयं को देखते तब आपको क्या दिखाई देता है. क्या आप उसे देख पाते हैं जिसे परमेश्वर ने अपने हाथों से बनाया है…
एक अनमोल व्यक्तित्व को जिसके अन्दर स्वयं परमेश्वर ने ज्ञान और समझ का अगम्य खजाना रखा है. यदि हम अपने आपको इस रीती से देखते हैं?
यदि हमारा उत्तर सकारात्मक है तब तो आप अपने आप को उस महान परमेश्वर का दिल से धन्यवाद करने से और स्तुति करने से रोक नहीं पायेंगे.
जिसने तुम्हें और मुझे हमारे तमाम पापों को अपने एकलौते पुत्र के लहू से धोकर शुद्ध कर दिया है. उसका हमारे प्रति प्रेम की तुलना हम किसी भी रीती से नहीं कर सकते…
बस उस आईने में देख कर अनायास ही मुंह से निकल आएगा Thank you Lord. धन्यवाद प्रभु आपके प्रेम के लिए….
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Conclusion
हम परमेश्वर को क्या दे सकते हैं बाइबल से हम सीखते हैं कि उसके अद्भुत कार्यों को स्मरण करके और स्वयं को आईने में देखकर हम केवल परमेश्वर को धन्यवाद का बलिदान चढा सकते हैं.
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